in ,

भारत और पड़ोसी देशो में बहुध्रुवीयता (मल्टीपोलर)

चिंताजनक भारतीय विदेश नीति

भारत के पड़ोसी देश अपनी विदेश नीतियों में बहुपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता दे रहे हैं। पाकिस्तान-चीन संबंधों के अलावा, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देश अपनी नीतियों में लचीलेपन के साथ काम कर रहे हैं। दूसरी ओर श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान गहरे राजनीतिक और आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं भारत के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है, क्योंकि उसे इन देशों के साथ अपने रणनीतिक संबंध बनाए रखने होंगे। दुनिया के बहुध्रुवीय (मल्टीपोलर) ढांचे में भारत का कूटनीतिक संतुलन महत्वपूर्ण है।

पड़ोसी देशो में आये संकट

  • पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है, वहीं बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन तेज हो रहे हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे समूह सरकार को खुली चुनौती दे रहे हैं। चीन ने यहां बड़े पैमाने पर निवेश किया है, लेकिन बढ़ती हिंसा से बीजिंग पीछे हट सकता है, जो इस्लामाबाद के लिए बड़ा झटका हो सकता है।
  • म्यांमार में चल रहा संकट भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाएँ, जैसे कि कलादान मल्टीमॉडल प्रोजेक्ट, सीधे म्यांमार की स्थिरता पर निर्भर हैं। मणिपुर और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में शांति बनाए रखने के लिए म्यांमार में स्थिरता आवश्यक है।
  • सिंध प्रांत में जनाक्रोश बढ़ रहा है, जहां लोग सिंधु नदी पर बन रही 6 नहर परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि ये नहरें सिंध को उसके पानी से वंचित कर देंगी। बढ़ते असंतोष के बीच यह सवाल उठ रहा है कि पाकिस्तान अपनी अखंडता सुरक्षित रख पाएगा या नहीं।
  • नेपाल और बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध भी महत्वपूर्ण हैं। हालांकि नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता और बांग्लादेश में चुनावों की स्थिति भारत के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर सकती हैं। इसी तरह, मालदीव में भी भारत विरोधी भावनाएँ उभर रही हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं।

पड़ोसी देशों से रिश्तों में बढ़ती दूरी

भारत की विदेश नीति में कुछ रणनीतिक खामियां है, जो पड़ोसी देशों को दूर कर रही हैं। दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक संरचना, जहां भारत के प्रभाव को सीमित करने के लिए छोटे देश चीन की ओर झुक रहे हैं। इन देशो की क्षेत्रीय अस्थिरता और आंतरिक राजनीतिक परिवर्तन भारत के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर रहे हैं। जैसे;

  • नेपाल: 2015 में नेपाल में नए संविधान लागू करने के दौरान भारत की आर्थिक नाकेबंदी से आम जनता में भारत विरोधी भावना भड़की। वर्तमान में नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को कट्टर भारत विरोधी माना जाता है। नेपाल ने चीन के साथ अपनी कूटनीतिक वार्ताओं को तेज किया है, जिससे भारत-नेपाल संबंधों में और तनाव बढ़ा है।
  • श्रीलंका: भारत ने आर्थिक संकट के समय श्रीलंका की मदद की, लेकिन इसके बावजूद श्रीलंका ने चीन के जासूसी जहाज को अपने बंदरगाह पर लंगर डालने की अनुमति दी। कच्छतीवु द्वीप को भारत को लौटाने से श्रीलंका ने साफ इनकार कर दिया, जिससे दोनों देशों के बीच विवाद बना हुआ है।
  • मालदीव: 2023 में चुनाव के बाद भारत समर्थक सरकार सत्ता से बाहर हो गई और मोहम्मद मुइज़्ज़ू राष्ट्रपति बने। मुइज़्ज़ू ने सत्ता संभालते ही भारतीय सेना को मालदीव से हटाने की मांग की। उनकी पार्टी के ‘इंडिया आउट’ अभियान को व्यापक समर्थन मिला और मालदीव चीन के करीब जाने लगा।
  • भूटान: भूटान, जो रणनीतिक और आर्थिक रूप से भारत पर निर्भर था, अब चीन के साथ सीमा वार्ता कर रहा है। चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की संभावना को भूटान ने पूरी तरह नकारा नहीं है।
  • अफगानिस्तान: तालिबान सरकार के साथ भारत के पूर्ण कूटनीतिक संबंध अब तक स्थापित नहीं हो पाए हैं। भारत ने अफगानिस्तान में करोड़ों का निवेश किया था, लेकिन वर्तमान अनिश्चितता के कारण यह जोखिम में है।
  • म्यांमार: भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाएँ (जैसे कलादान मल्टीमॉडल प्रोजेक्ट) म्यांमार की स्थिरता पर निर्भर हैं। म्यांमार में जारी राजनीतिक संकट और हिंसा भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर भी असर डाल रही है।
  • बांग्लादेश: बीते डेढ़ दशक से भारत की घनिष्ठ मित्र सरकार सत्ता में थी, लेकिन हाल ही में भारत विरोधी ताकतों ने सत्ता हासिल कर ली। नरेंद्र मोदी के 2021 के दौरे के दौरान बांग्लादेश में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे।
  • पाकिस्तान: भारत-पाकिस्तान संबंधों में बेहतरी के कोई संकेत नहीं दिखे हैं। बलूचिस्तान में बढ़ती हिंसा और चीन की संभावित वापसी इस्लामाबाद के लिए बड़ा झटका हो सकती है।

पड़ोसी देशों से दुरी के कारण

भारत और उसके पड़ोसी देशों के संबंधों में बढ़ती दूरियों के पीछे कई राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा से जुड़े कारण हैं। डॉ. इरफान नूरुद्दीन के अनुसार, दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे कम एकीकृत (Least Integrated) क्षेत्र है, और भारत की विदेश नीति में कई खामियां हैं जो इसके पड़ोसियों को दूर कर रही हैं। इसके अलावा, कुछ अन्य प्रमुख कारण भी हैं;

  1. अल्पकालिक कूटनीति और बहुआयामी रणनीति का अभाव
  • भारत ने नेपाल, श्रीलंका और मालदीव जैसे पड़ोसी देशों के साथ दीर्घकालिक साझेदारी विकसित करने की कोशिश नहीं की।
  • छोटे देशों को केवल संकट के समय मदद दी जाती है, लेकिन दीर्घकालिक सहयोग की स्पष्ट रणनीति नहीं बनाई जाती।
  • चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी योजनाओं के मुकाबले भारत की परियोजनाएँ अक्सर धीमी और असंगत रहती हैं।
  1. सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर आधारित विदेश नीति
  • वर्तमान सरकार की “हिंदू पहचान” आधारित विदेश नीति का असर मुस्लिम बहुल देशों (बांग्लादेश, मालदीव, अफगानिस्तान) पर नकारात्मक पड़ा।
  • भारत में नेताओं द्वारा “अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों” जैसे बयानों से बांग्लादेश में भारत-विरोधी भावनाएँ भड़कीं।
  • नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में भी भारत की ‘हिंदू-प्रभावित’ कूटनीति को संदेह की नजर से देखा जाता है।
  1. चीन ने दक्षिण एशिया में भारत को चुनौती दी
  • श्रीलंका में हम्बनटोटा बंदरगाह और कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना।
  • नेपाल में सड़क, रेलवे और जलविद्युत परियोजनाएँ।
  • पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)।
  • मालदीव में बुनियादी ढांचे के बड़े निवेश।

भारत की आर्थिक मदद अपेक्षाकृत कई शर्तों से बंधी रहती है, जिससे छोटे देश चीन की ओर झुक रहे है।

  1. आंतरिक राजनीतिक तनाव और घरेलू नीतियों का असर
  • भारत के नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर बांग्लादेश में भारी असंतोष फैला।
  • कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पाकिस्तान और अन्य इस्लामी देशों में भारत के खिलाफ माहौल बना।
  • भारत में असहिष्णुता और धार्मिक हिंसा की घटनाओं की वैश्विक आलोचना हुई, जिससे पड़ोसी देशों में नकारात्मक छवि बनी।
  1. क्षेत्रीय सहयोग की विफलता (SAARC का निष्क्रिय होना)
  • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) को भारत-पाकिस्तान तनाव ने निष्क्रिय कर दिया।
  • भारत ने BIMSTEC (बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव) को प्राथमिकता दी, लेकिन यह SAARC जितना प्रभावी नहीं हो सका।
  • ASEAN या EU जैसे संगठनों की तरह दक्षिण एशिया में कोई मजबूत आर्थिक या सैन्य गठबंधन नहीं बन पाया।
  1. सुरक्षा और सैन्य प्रभाव की सीमाएँ
  • भारत ने कई देशों में सैन्य प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन विरोध हुआ, जैसे मालदीव में भारतीय सेना की उपस्थिति को लेकर विवाद हुआ। श्रीलंका ने चीनी नौसैनिक जहाजों को अनुमति दी, लेकिन भारतीय जहाजों पर पाबंदी लगाई।
  1. सीमा विवाद और जल संसाधनों पर संघर्ष
  • नेपाल: 2020 में नेपाल ने भारत के कुछ क्षेत्रों (लिपुलेख, कालापानी) को अपना बताया, जिससे तनाव बढ़ा।
  • बांग्लादेश: सिंधु नदी और तीस्ता नदी जल बंटवारे पर विवाद।
  • पाकिस्तान: सिंधु जल संधि को लेकर असहमति।
  • चीन: भारत के कई पड़ोसी देशों को चीन सीमा विवाद में भारत के खिलाफ खड़ा कर रहा है।

क्या यह भारत की विदेश नीति की असफलता है?

  • कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत अपने विकल्प सीमित कर चुका था, इसलिए सत्ता परिवर्तन से संबंध प्रभावित हुए।
  • चीन की आर्थिक और रणनीतिक पैठ बढ़ने से भारत की कूटनीतिक चुनौती बढ़ी है।
  • हालाँकि, इन देशों के साथ बातचीत और सहयोग की गुंजाइश बनी हुई है।

भारत के पड़ोस में सत्ता परिवर्तन एक जटिल प्रक्रिया है, जो केवल भारत की विदेश नीति पर निर्भर नहीं करती। भारत को नए सिरे से रणनीति बनाकर इन देशों से संबंध सुधारने की जरूरत है।

पड़ोसी देशों में बहुध्रुवीयता के प्रमुख कारण

दक्षिण एशिया में बहुध्रुवीयता (Multipolarity) का मतलब है कि क्षेत्र में एक से अधिक शक्तिशाली देश अपनी भूमिका निभा रहे हैं। पहले, भारत इस क्षेत्र में सबसे प्रभावशाली शक्ति था, लेकिन अब चीन, अमेरिका और क्षेत्रीय संगठन भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

  1. चीन का बढ़ता प्रभाव
  • चीन ने बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान और मालदीव में भारी निवेश किया है।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में चीन की भागीदारी बढ़ी।
  • श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट और पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट चीन के नियंत्रण में हैं।
  • मालदीव और नेपाल में चीन समर्थित सरकारों का प्रभाव बढ़ा।
  1. अमेरिका की दिलचस्पी
  • अमेरिका भारत के सहयोग से इंडो-पैसिफिक रणनीति पर काम कर रहा है।
  • नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में अमेरिका अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है।
  • मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) के तहत नेपाल को आर्थिक मदद।
  1. रूस की पारंपरिक मौजूदगी
  • भारत और रूस ऐतिहासिक साझेदार हैं, लेकिन रूस अब पाकिस्तान और चीन के करीब आ रहा है।
  • रूस ने पाकिस्तान को सैन्य उपकरण बेचे और अफगानिस्तान में चीन के साथ काम कर रहा है।
  1. इस्लामिक देशों का प्रभाव
  • सऊदी अरब और तुर्की दक्षिण एशिया में धार्मिक और आर्थिक रूप से प्रभाव बढ़ा रहे हैं।
  • पाकिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव में इस्लामिक राष्ट्रों की भूमिका बढ़ी।

भारत की प्रमुख विदेश नीतियाँ

भारत की विदेश नीति मुख्य रूप से शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, आपसी सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता पर केंद्रित है। खासकर पड़ोसी देशों के लिए भारत ने समय-समय पर कई नीतियाँ अपनाई हैं। दक्षिण एशिया में भारत को अब एकमात्र शक्ति नहीं माना जा सकता। चीन, अमेरिका, रूस और अन्य देशों का प्रभाव बढ़ा है, जिससे बहुध्रुवीय व्यवस्था बन गई है। भारत को संतुलन नीति (Balance of Power) अपनानी होगी और आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक ताकत को बढ़ाना होगा, ताकि वह अपने पड़ोस में अपनी पारंपरिक स्थिति बनाए रख सके।

  1. नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (Neighborhood First Policy)
  • शुरुआत: 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लागू की गई।
    लक्ष्य: दक्षिण एशिया के देशों के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध बनाना और आर्थिक, सुरक्षा व कनेक्टिविटी में सहयोग बढ़ाना।
  • उदाहरण; सार्क देशों के प्रमुखों को मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाना (2014)।
  1. गुजराल डॉक्ट्रिन (Gujral Doctrine)
  • शुरुआत: 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने पेश की।
  • लक्ष्य: भारत को अपने छोटे पड़ोसियों को बिना किसी पारस्परिक अपेक्षा के समर्थन देना चाहिए।
  • सिद्धांत: भारत अपने छोटे पड़ोसियों से बिना किसी शर्त के सहयोग करेगा।, विवादों को शांति से हल करने का प्रयास किया जाएगा।, किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी।
  1. एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy)
  • शुरुआत: 2014 में ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ का विस्तार हुआ।
  • लक्ष्य: पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से व्यापार, कनेक्टिविटी और सांस्कृतिक संबंध मजबूत करना।
  • फोकस देश: म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस, जापान, दक्षिण कोरिया।
  1. एसएएआरसी (SAARC) पहल
  • शुरुआत: 1985 में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) बना।
  • लक्ष्य: दक्षिण एशियाई देशों में व्यापार, आर्थिक विकास और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना।
  • बाधाएँ: भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण सार्क निष्क्रिय हो गया।, भारत अब BIMSTEC (बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड) को प्राथमिकता दे रहा है।
  1. इंडियन ओशन रीजन पॉलिसी (Indian Ocean Region Policy)
  • लक्ष्य: हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना और मालदीव, श्रीलंका, सेशेल्स और मॉरीशस के साथ रणनीतिक संबंध बनाना।
  1. डिफेंस डिप्लोमेसी (Defense Diplomacy)
  • लक्ष्य: पड़ोसी देशों को सुरक्षा सहयोग और सैन्य प्रशिक्षण देना।
  • उदाहरण: बांग्लादेश और नेपाल की सेनाओं को भारत में प्रशिक्षण देना।, श्रीलंका को सैन्य उपकरण और प्रशिक्षण सहायता।, अफगानिस्तान में सुरक्षा बलों को ट्रेनिंग देना (तालिबान से पहले)।

भारत पर बहुध्रुवीयता का प्रभाव

  • चीन और अमेरिका के बीच संघर्ष में भारत को अपने संतुलन को बनाए रखना पड़ता है
  • नेपाल और बांग्लादेश में चीन का प्रभाव बढ़ने से भारत की पारंपरिक पकड़ कमजोर हुई है
  • चीन की आर्थिक मदद के कारण भारत के पड़ोसी देश उसके विकल्प तलाश रहे हैं।
  • भारत ने बांग्लादेश और नेपाल के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाई, लेकिन चीन का निवेश अभी भी भारी है।
  • पाकिस्तान-चीन की गहरी सैन्य साझेदारी भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है।

 

निष्कर्ष

दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को चुनौती देने वाले कई नए शक्ति केंद्र उभर रहे हैं, जिससे क्षेत्र बहुध्रुवीय (Multipolar) बनता जा रहा है। भारत के पड़ोसी देश अब अपनी विदेश नीतियों में विविधता ला रहे हैं और कई देशों के साथ संबंधों को संतुलित करने का प्रयास कर रहे हैं। चीन, अमेरिका, रूस और इस्लामिक देशों का इस क्षेत्र में बढ़ता प्रभाव भारत के लिए कूटनीतिक चुनौतियाँ खड़ी कर रहा है। भारत को एक संतुलित कूटनीति अपनाने की जरूरत है। भारत को लंबी अवधि की विदेश नीति, आर्थिक सहयोग और सुरक्षा रणनीति को मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि वह अपने पारंपरिक प्रभाव को बनाए रख सके।

What do you think?

न्यायालय की अवमानना: अमेरिका v/s भारत

आप्रवास और विदेशियों से संबंधित विधेयक, 2025