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भारत का संघीय रूपांतरण: सहकारिता और राजकोषीय प्रवृत्तियों की दशकीय यात्रा

India’s Federal Transformation: A Decadal Journey of Cooperation and Fiscal Dynamics

नीति आयोग की संचालन परिषद की 10वीं बैठक का थीम “विकसित राज्य से विकसित भारत @2047” रहा। इसमें सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) को राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया। बैठक में इस बात पर बल दिया गया कि केंद्र और राज्यों के बीच साझेदारी, समन्वय और सहयोग से ही भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना साकार किया जा सकता है।

बैठक के महत्वपूर्ण बिंदु

  • संघीय सहयोग केवल प्रशासनिक आवश्यकता नहीं, बल्कि विकास की अनिवार्य शर्त है।
  • नीति आयोग राज्यों को उनके स्थानीय विकास लक्ष्यों के अनुरूप समर्थन प्रदान करता रहेगा।
  • भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के लिए राज्य केंद्रित रणनीतियाँ आवश्यक हैं।

यह बैठक सहकारी संघवाद को मज़बूत करने और “टीम इंडिया” दृष्टिकोण को और सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हुई।

सहकारी संघवाद क्या है?

सहकारी संघवाद सरकार की एक संघीय प्रणाली की अवधारणा है जिसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारें सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करती हैं। इस प्रणाली के तहत, सरकार के दोनों स्तर नीति निर्माण और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदारियां साझा करते हैं, केंद्र सरकार कुछ मुद्दों पर नेतृत्व करती है और राज्य अन्य मुद्दों पर नेतृत्व करते हैं।

  • सहकारी संघवादकेंद्र और राज्यों के बीच एक क्षैतिज संबंध है जिसमें वे व्यापक सार्वजनिक हित के लिए “सहयोग” करते हैं, जैसे बुनियादी ढांचे के विकास, आर्थिक नीतियां, सामाजिक कल्याण, कानून और व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, आदि।
  • इस प्रकार, यह एक क्षेत्र के भीतर केंद्रीय और क्षेत्रीय सरकारों के स्तर पर सत्ता साझा करने की एक प्रणाली है, जहां वे अपने-अपने विषय में स्वतंत्र रहते हुए एक-दूसरे का समन्वय करते हैं।
  • सहकारी संघवाद की अवधारणा को संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन(भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची), स्थानीय स्व-सरकारी संस्थानों की स्थापना (भाग 9, और 9 ए) जैसे विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से संविधान में भी स्थापित किया गया है। भारतीय संविधान), वित्त आयोग (अनुच्छेद 280), और नीति आयोग, अंतर-राज्य परिषद (अनुच्छेद 263), क्षेत्रीय परिषदें, नदी बोर्ड, न्यायाधिकरण और विभिन्न क्षेत्रीय परिषदें और समितियाँ जैसे संस्थानों की स्थापना।

 

सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में नीति आयोग भूमिका

2015 में योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग की स्थापना की गई, जो अब “Team India” दृष्टिकोण के तहत केंद्र और राज्यों के बीच सहयोगी भागीदारी की भूमिका निभाता है। Governing Council और Chief Secretaries Conference जैसे मंचों के माध्यम से नीतिगत चर्चा और सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान होता है। मुख्य कार्य नीचे विभिन्न बिंदुओ के माध्यम से समझाया गया है:

  1. प्रतिस्पर्धी संघवाद को मजबूती देना
  • नीति आयोग ने डेटाआधारित पारदर्शिता को बढ़ावा देते हुए राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया है।
    यह राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक, आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP), समग्र जल प्रबंधन सूचकांक और राज्य ऊर्जा एवं जलवायु सूचकांक जैसे मापदंडों के ज़रिये राज्यों में नीतिगत और प्रशासनिक सुधारों को गति देता है, जिससे क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलता है।
  1. उन्नत सहकारी संघवाद का प्रवर्तन
  • नीति आयोग, केंद्र और राज्यों के बीच संवाद और सहयोग का एक सशक्त सेतु बन गया है, जो क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को राष्ट्रीय लक्ष्यों से समन्वित करता है।
  • इसका उदाहरण “टीम इंडिया हब” और 112 पिछड़े जिलों पर केंद्रित ADP कार्यक्रम है, जो विभिन्न मंत्रालयों और साझेदार संस्थाओं के सामूहिक प्रयास से संचालित हो रहा है।
  1. नीति निर्माण एवं प्रशासनिक मार्गदर्शन
  • नीति आयोग ने केवल वित्तीय आवंटन तक सीमित रहने के बजाय राज्यों को नीति परामर्श और विकेन्द्रीकृत शासन में सक्रिय भागीदारी हेतु प्रेरित किया है।
  • इसके तहत राज्यों को स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन (SIT) जैसे संस्थानों की स्थापना में सहायता दी जाती है, जो नीति कार्यान्वयन को ज़मीनी स्तर पर प्रभावी बनाते हैं।
  1. क्षेत्रीय और सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा
  • नीति आयोग ने उत्तरपूर्व नीति मंच, साथ पहल, पोषण अभियान, राज्य स्वास्थ्य सूचकांक, और शिक्षा सुधार कार्यक्रमों जैसे सामाजिक हस्तक्षेपों के माध्यम से क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने का प्रयास किया है।
  • यह गुजरात के औद्योगिक गलियारे और तमिलनाडु के कौशल विकास कार्यक्रमों जैसे सफल मॉडल्स को अन्य राज्यों में लागू कर, पीपीपी मॉडल को भी प्रोत्साहित करता है जिससे विकसित और विकासशील राज्यों के बीच की खाई पाटी जा सके।
  1. डिजिटल नवाचार और परिवर्तन
  • अटल इनोवेशन मिशन, अटल टिंकरिंग लैब्स, इन्क्यूबेशन सेंटर्स, नेशनल डेटा एंड एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म (NDAP) और डिजिटल भुगतान रोडमैप के माध्यम से नीति आयोग देश में डिजिटल समावेश और नवाचार को बढ़ावा दे रहा है।
  • भविष्य में यह पुणे जैसे तकनीकी केंद्रों को नागपुर और अन्य टियर2/3 शहरों तक विस्तारित कर सकता है, साथ ही स्टार्टअप्स को मेंटरशिप और R&D सपोर्ट प्रदान कर उभरते राज्यों को सशक्त बना सकता है।

सहकारी संघवाद को सशक्त बनाने हेतु व्यापक उपाय
भारत जैसे विविध और बहुस्तरीय संघात्मक देश में सहकारी संघवाद की मजबूती न केवल लोकतांत्रिक शासन का आधार है, बल्कि समान विकास, नीति समन्वय और संघीय संतुलन का अनिवार्य कारक भी है। नीचे ऐसे प्रमुख उपाय दिए गए हैं, जो सहकारी संघवाद को व्यावहारिक रूप से सशक्त बनाने में सहायक हो सकते हैं:

  1. संस्थागत तंत्र को सशक्त बनाना
  • नीति आयोग, जीएसटी परिषद और अंतरराज्यीय परिषद की नियमित और समयबद्ध बैठकें सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • अंतर-राज्यीय परिषद को विवाद समाधान मंच के रूप में पुनर्जीवित करना, जिससे जल विवाद, सीमांत क्षेत्रीय विवाद और वित्तीय असंतुलन जैसे मुद्दों पर त्वरित समाधान संभव हो।
  • न्यायिक सक्रियता को संतुलित करते हुए नीतिनिर्माण को संवादोन्मुख बनाना।
  1. संसाधनों का न्यायसंगत और कार्यकुशल साझाकरण
  • 14वें वित्त आयोग की तरह, आगे की सिफारिशों में कर हस्तांतरण को बढ़ाने की आवश्यकता।
  • प्रदर्शन आधारित अनुदान प्रणाली लागू की जाए, जिससे बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को सशर्त वित्तीय सहायता मिल सके।
  • इससे न केवल वित्तीय जवाबदेही बढ़ेगी, बल्कि सुधारोन्मुख शासन को प्रोत्साहन भी मिलेगा।
  1. राज्यदरराज्य साझेदारी मॉडल को बढ़ावा देना
  • विकसित राज्य जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक आदि को पिछड़े राज्यों के साथ औद्योगिक गलियारों, स्किल हब्स, PPP निवेश और विनिर्माण क्लस्टर के माध्यम से सहयोग करना चाहिए।
  • इससे प्रवासन का दबाव कम होगा और क्षेत्रीय असमानता भी घटेगी।
  1. अंतरराज्यीय जल समन्वय और साझा संसाधन नीति
  • एक राष्ट्रीय जल नीति 2.0 लाई जाए जो:
    • बाध्यकारी नदी जल साझाकरण समझौतों की स्थापना करे।
    • संयुक्त कार्यबल और केंद्रीय वित्त पोषित परियोजनाओं को प्रोत्साहित करे।
  • इससे कावेरी जैसे जल विवादों में कमी और क्षेत्रीय एकता सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  • यह नीति जलजागरूकता, संरक्षण और स्वच्छता को भी बढ़ावा दे सकती है।
  1. दीर्घकालिक रणनीतिक योजना और संरेखण
  • विकसित राज्य से विकसित भारत @2047” के तहत:
    • राज्य और केंद्र की योजनाओं को एक साझा दृष्टिकोण में पिरोना चाहिए।
    • नीति आयोग को चाहिए कि वह राज्यविशिष्ट प्राथमिकताओं का आदर करते हुए मापने योग्य लक्ष्यों, प्रगति संकेतकों, और आवधिक समीक्षा तंत्र को लागू करे।
  • इससे विकास संरचित, उत्तरदायी और परिणामोन्मुख होगा।

 

केंद्र और राज्यों की साझेदारी

जीएसटी और वित्तीय संघवाद

  • GST परिषद एक संघीय मंच के रूप में कार्य करती है जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाते हैं
  • GST राजस्व में 71% हिस्सा राज्यों को जाता है, 29% केंद्र को।
  • 2017-18 से 2024-25 तक केंद्र ने ₹6.52 लाख करोड़ का GST मुआवजा राज्यों को दिया।

राज्यों को अनुदान, ऋण और पूंजीगत सहायता

  • कुल स्थानांतरणों का GDP में हिस्सा 5.2% से बढ़कर 6.5% हो गया।
  • अनुदानों में 234% और ऋणों में 992% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • बजट 2025-26 में राज्यों को ₹1.5 लाख करोड़ की 50-वर्षीय ब्याजमुक्त पूंजी ऋण योजना

राज्यों में केंद्रीय योजनाओं की भूमिका

  • जल जीवन मिशन – 570% बजट वृद्धि, 15.44 करोड़ परिवार लाभान्वित
  • पीएम जन आरोग्य योजना – 292% वृद्धि, स्वास्थ्य खर्च 6% से घटकर 39.4%
  • पीएम आवास योजना (ग्रामीण) – 181% बजट वृद्धि, 2.67 करोड़ घर बने

संविधानिक ढांचा और लचीला संघवाद

  • संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार शक्तियों का वितरण: संघ, राज्य, समवर्ती सूची।
  • डॉ. आंबेडकर की परिकल्पना: संघवाद को लचीले ढांचे के रूप में देखा गया, जो समयानुकूल एकात्मक और संघीय दोनों हो सकता है।

संस्थाए जो सहाकरी संघवाद में योगदान करती है

अंतरराज्य परिषद और क्षेत्रीय परिषद/ Inter-State Council and Zonal Council

  • केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग में सुधार के तरीकों की जांच, चर्चा और सिफारिश करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार अंतर-राज्य परिषद की स्थापना की जानी चाहिए।
  • प्रधान मंत्री अंतर-राज्य परिषद के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेंगे।
  • हालाँकि, यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय के लिए एक अस्थायी संवैधानिक निकाय है, राष्ट्रपति ऐसी परिषद की स्थापना कर सकते हैं यदि उन्हें लगता है कि इसके गठन से सार्वजनिक हित की पूर्ति होगी।
  • ज़ोन परिषदों का गठन राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 द्वारा अंतर-और अंतर-राज्य सहयोग के लिए एक अतिरिक्त-वैधानिक संस्थागत तंत्र के रूप में किया गया था। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के भाग III ने भारत में पाँच क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना की।

जीएसटी/ GST

  • भारतीय संविधान के 101वें संशोधन अधिनियम ने एक समान कर की स्थापना की, जिसे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कहा जाता है। यह “एक राष्ट्र और एक कर” उद्देश्य को पूरा करने के लिए निर्माताओं द्वारा उपभोक्ताओं पर सीधे लगाया जाने वाला एक अनूठा कर है।

7वीं अनुसूची/ 7th Schedule

  • संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ हैं जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का वितरण करती हैं (अनुच्छेद 246)।
  • संघ सूची: इसमें 98 विषय हैं, और संसद के पास उन पर एकमात्र विधायी अधिकार है।
  • राज्य सूची: इसमें 59 विषय हैं और अकेले राज्य ही कानून बना सकते हैं।
  • समवर्ती सूची: इसमें 52 विषय हैं और केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
  • हालाँकि, समवर्ती सूची पर विवाद की स्थिति में संसद द्वारा बनाया गया कानून मान्य होगा (अनुच्छेद 254)।

भारत में संघीय व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ

भारत में सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism in India) एक अद्वितीय प्रकार का संघवाद है जिसमें संघीय और एकात्मक दोनों तत्व शामिल होते हैं।इसे कभी-कभी अर्ध-संघीय प्रणाली के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह एकात्मक सरकार के करीब है।

हालाँकि, “संघीय” शब्द भारतीय संविधान में कहीं भी दिखाई नहीं देता है, लेकिन अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है कि “भारत, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।” इस प्रकार, भारत एक सच्चा संघ नहीं है।

संघ-प्रकार की संघीय राजनीति में दो अंतर्निहित प्रवृत्तियों, अर्थात् संघीकरण और क्षेत्रीयकरण के आवश्यक संतुलन की आवश्यकता होती है। भारत में संघीय व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • एक लिखित संविधान
  • संविधान की कठोरता
  • दोहरी सरकारी राजनीति
  • संविधान की सर्वोच्चता
  • स्वतंत्र एवं एकीकृत न्यायपालिका
  • द्विसदन

भारत में सहकारी संघवाद देश की राजनीतिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

सहकारी संघवाद के लक्ष्य

  • प्रभावी शासन उद्देश्यों को प्राप्त करना।
  • अनेकता में एकता को बढ़ावा देना।
  • राज्यों के अधिकारों की रक्षा करना।
  • संसाधनों के बेहतर आवंटन के लिए.
  • राज्यों को नवाचार के लिए प्रोत्साहित करना।
  • राज्यों को अपनी स्वच्छता और स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

भारत जैसे विशाल, विविध और बहुस्तरीय लोकतंत्र में सहकारी संघवाद न केवल एक प्रशासनिक आवश्यकता है, बल्कि विकास की अनिवार्य शर्त है। नीति आयोग की 10वीं संचालन परिषद की बैठक में “विकसित राज्य से विकसित भारत @2047” की थीम के अंतर्गत यह स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया कि केंद्र और राज्यों के बीच साझेदारी, संवाद और सहयोग ही भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के मार्ग में सर्वोत्तम साधन है। सहकारी संघवाद के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारें संयुक्त रूप से नीति निर्माण, कार्यान्वयन और संसाधन साझा कर नीतिगत समन्वय को मजबूती देती हैं। नीति आयोग सहकारी संघवाद के प्रवर्तक के रूप में डिजिटल नवाचार, समावेशी विकास, क्षेत्रीय सहयोग, और नीति-परामर्श को एकीकृत करता है, जिससे “टीम इंडिया” दृष्टिकोण को बल मिलता है।

वित्तीय संघवाद, जीएसटी परिषद, अंतर-राज्यीय परिषदें, क्षेत्रीय परिषदें जैसे मंच इस संघवाद की संरचना को मजबूत करते हैं और राज्यों की भूमिका को स्पष्ट रूप से सशक्त बनाते हैं।

 

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