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भारत की परमाणु नीति एवं वैश्विक राजनीति

 

• भारत की परमाणु नीति का मुख्य सिद्धांत “नो फर्स्ट यूज” (NFU) है, जिसका अर्थ है कि भारत परमाणु हथियारों का पहले उपयोग नहीं करेगा, लेकिन जवाबी कार्रवाई में इसका उपयोग कर सकता है।
• यह नीति राष्ट्रीय सुरक्षा और शांतिपूर्ण उपयोग पर केंद्रित है, साथ ही वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन करती है।
• 2025 तक, कोई आधिकारिक बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन भविष्य में नीति की समीक्षा की संभावना पर चर्चा हुई है, जो विवादास्पद हो सकती है।

परमाणु नीति का अवलोकन

भारत की परमाणु नीति 2003 में स्थापित की गई थी और इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है। यह नीति “नो फर्स्ट यूज” पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि भारत केवल तभी परमाणु हथियारों का उपयोग करेगा जब उस पर परमाणु हमला हो। इसके अतिरिक्त, यह नीति शांतिपूर्ण उपयोग जैसे बिजली उत्पादन और चिकित्सा के लिए परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देती है।

वर्तमान स्थिति और विवाद

2025 तक, भारत की परमाणु नीति अपरिवर्तित बनी हुई है, लेकिन 2019 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भविष्य में नीति में संभावित बदलाव की बात कही थी, जो कुछ विवाद पैदा कर सकता है। यह नीति भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है, लेकिन पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान के साथ तनाव इसे चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।

विस्तृत सर्वेक्षण नोट

भारत की परमाणु नीति एक जटिल और बहुआयामी रणनीति है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, शांतिपूर्ण उपयोग और वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण के बीच संतुलन बनाती है।

 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत ने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण “स्माइलिंग बुद्धा” किया, जो पोखरण, राजस्थान में हुआ था। इसके बाद, 1998 में पोखरण-2 के तहत पांच और परीक्षण किए गए, जिसने भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया। इन परीक्षणों के बाद, भारत ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना किया, लेकिन उसने हमेशा जिम्मेदार उपयोग की बात कही। 2003 में, भारत ने अपनी आधिकारिक परमाणु नीति जारी की, जिसमें “नो फर्स्ट यूज” और “न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध” जैसे सिद्धांत शामिल थे।

मुख्य सिद्धांत और विशेषताएं

भारत की परमाणु नीति के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

NO FIRST USE (NFU)भारत किसी भी देश पर पहले परमाणु हमला नहीं करेगा, केवल जवाबी कार्रवाई में इसका उपयोग करेगा।न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध भारत के पास इतनी परमाणु शक्ति होगी जो किसी भी हमलावर को प्रभावी जवाब दे सके, लेकिन हथियारों की होड़ से बचा जाए।शांतिपूर्ण उपयोग परमाणु ऊर्जा का उपयोग बिजली उत्पादन, चिकित्सा और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए किया जाता है।परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन वैश्विक, गैर-भेदभावपूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन, सभी देशों के लिए समान नियम।रासायनिक/जैविक हमले पर प्रतिक्रियायदि रासायनिक या जैविक हथियारों का उपयोग किया जाता है, तो परमाणु हथियारों का उपयोग करने का विकल्प।नियंत्रण और सुरक्षा परमाणु हथियारों का नियंत्रण नागरिक नेतृत्व (प्रधानमंत्री) के पास है, और परमाणु सामग्री की सुरक्षा के लिए कड़े कदम।परमाणु आदेश प्राधिकरण (NCA)

परमाणु हथियारों के उपयोग और नियंत्रण के लिए परमाणु आदेश प्राधिकरण (NCA) का गठन किया गया है, जिसमें दो मुख्य भाग हैं:

• राजनीतिक परिषद: प्रधानमंत्री द्वारा अध्यक्षता की जाती है, जो निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
कार्यकारी परिषद: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) द्वारा अध्यक्षता की जाती है, जो राजनीतिक परिषद के निर्देशों को लागू करता है।

परमाणु हमले का निर्णय प्रधानमंत्री द्वारा लिया जाता है, जिसमें सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष से परामर्श किया जाता है। वास्तविक लॉन्च बटन सबसे निचले स्तर के परमाणु मिसाइल दल के पास होता है, लेकिन प्रधानमंत्री के पास एक स्मार्ट कोड होता है।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग और NPT

भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि वह इसे भेदभावपूर्ण मानता है। हालांकि, भारत ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) और अन्य वैश्विक मंचों के साथ सहयोग किया है, जैसे कि 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (India-US Nuclear Deal), जिसने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहयोग बढ़ाया। भारत ने परमाणु तकनीक और हथियारों के निर्यात पर सख्त नियंत्रण बनाए रखा है और किसी भी और परमाणु परीक्षण की योजना नहीं है।

वर्तमान स्थिति और संभावित बदलाव

2025 तक, भारत की परमाणु नीति अपरिवर्तित बनी हुई है, जैसा कि Wikipedia page on India and weapons of mass destruction में उल्लेख किया गया है। “नो फर्स्ट यूज” नीति अभी भी लागू है, लेकिन 2019 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बयान में कहा था कि भविष्य में इस नीति में बदलाव हो सकता है, जो परिस्थितियों पर निर्भर करेगा (BBC Hindi article on NFU policy). हालांकि, अब तक कोई आधिकारिक बदलाव नहीं हुआ है। यह नीति भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है, लेकिन पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान के साथ तनाव इसे चुनौतीपूर्ण बनाते हैं, खासकर जब पाकिस्तान ने पहली बार उपयोग की नीति अपनाई है।

शांतिपूर्ण उपयोग और भविष्य की योजनाएं

भारत ने परमाणु ऊर्जा को शांतिपूर्ण उपयोग के लिए बढ़ावा दिया है, जैसे बिजली उत्पादन और चिकित्सा। 2024 में, भारत ने ब्रुसेल्स में परमाणु ऊर्जा शिखर सम्मेलन में अपने नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य (2070 तक) को प्राप्त करने के लिए परमाणु ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया (India’s Statement at Nuclear Energy Summit 2024). इसके अतिरिक्त, भारत ने मार्च 2024 में अग्नि-5 मिसाइल का परीक्षण किया, जिसमें कई स्वतंत्र लक्ष्य क्षमता (MIRV) थी, जो उसकी परमाणु त्रिकोणीय क्षमता को दर्शाती है (NTI on India’s nuclear capabilities).

सारांश

भारत की परमाणु नीति राष्ट्रीय सुरक्षा, शांतिपूर्ण उपयोग और वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण के बीच संतुलन बनाती है। “नो फर्स्ट यूज” नीति भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है, लेकिन भविष्य में संभावित बदलाव की चर्चा विवादास्पद हो सकती है। 2025 तक, नीति अपरिवर्तित बनी हुई है, और भारत अपने परमाणु हथियारों को केवल रक्षात्मक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत की परमाणु नीति और वैश्विक राजनीति

1. नो फर्स्ट यूज (NFU) और वैश्विक स्थिरता:
• भारत की “नो फर्स्ट यूज” नीति वैश्विक परमाणु स्थिरता को बढ़ावा देती है। यह नीति भारत को एक रक्षात्मक और जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है, जो परमाणु हथियारों का उपयोग केवल जवाबी कार्रवाई के लिए करेगा। यह नीति विशेष रूप से दक्षिण एशिया में, जहां पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ तनाव है, क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने में मदद करती है।
• वैश्विक स्तर पर, NFU नीति भारत को उन देशों से अलग करती है जो पहले हमले की नीति अपनाते हैं, जैसे कि पाकिस्तान। यह भारत को परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति की वकालत करने वाले देशों के बीच एक विश्वसनीय आवाज बनाता है।
2. न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध और शक्ति संतुलन:
• भारत की नीति “न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध” (Minimum Credible Deterrence) पर आधारित है, जो यह सुनिश्चित करती है कि भारत के पास पर्याप्त परमाणु शक्ति हो, लेकिन यह हथियारों की होड़ में शामिल नहीं होता। यह नीति वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की स्थिति को मजबूत करती है, खासकर चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के संदर्भ में।
• 2025 में, भारत ने अग्नि-5 मिसाइल का परीक्षण किया, जिसमें मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक शामिल थी। यह भारत की परमाणु त्रिकोणीय क्षमता (हवा, जमीन, और समुद्र से हमला करने की क्षमता) को दर्शाता है, जो वैश्विक स्तर पर उसकी रणनीतिक स्थिति को और मजबूत करता है।
3. परमाणु अप्रसार संधि (NPT) और वैश्विक शासन:
• भारत ने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि वह इसे भेदभावपूर्ण मानता है। यह भारत की वैश्विक राजनीति में स्वतंत्र रुख को दर्शाता है, जहां वह उन नियमों का पालन करने से इनकार करता है जो परमाणु शक्ति वाले देशों और गैर-परमाणु शक्ति वाले देशों के बीच असमानता पैदा करते हैं।
• इसके बावजूद, भारत ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग किया है और 2008 के भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने भारत को वैश्विक परमाणु व्यापार में शामिल होने का अवसर दिया। यह समझौता भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने और उसे एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने का उदाहरण है।
4. क्षेत्रीय तनाव और वैश्विक प्रभाव:
• भारत की परमाणु नीति का वैश्विक राजनीति में प्रभाव विशेष रूप से दक्षिण एशिया में देखा जाता है, जहां पाकिस्तान और चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं। पाकिस्तान की “फर्स्ट यूज” नीति और चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति भारत की नीति को चुनौती देती है। भारत का NFU रुख क्षेत्रीय तनाव को कम करने में मदद करता है, लेकिन यह वैश्विक शक्तियों (जैसे अमेरिका और रूस) के साथ उसके संबंधों को भी प्रभावित करता है।
• उदाहरण के लिए, भारत का रूस के साथ रक्षा सहयोग और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी वैश्विक शक्ति संतुलन में उसकी स्थिति को मजबूत करती है। हाल के वर्षों में, भारत ने क्वाड (Quad) गठबंधन (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, और भारत) के माध्यम से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाई है, जो चीन के प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास है।
5. वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण और भारत की भूमिका:
• भारत ने हमेशा वैश्विक, गैर-भेदभावपूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन किया है। वह चाहता है कि सभी देश परमाणु हथियारों को समाप्त करने की दिशा में काम करें, लेकिन यह निष्पक्ष और समान होना चाहिए। यह रुख भारत को उन विकासशील देशों के बीच लोकप्रिय बनाता है जो वैश्विक शासन में अधिक समानता की मांग करते हैं।
• 2025 में, वैश्विक राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण और अमेरिका-चीन के बीच तनाव के बीच, भारत की यह स्थिति उसे एक मध्यस्थ की भूमिका निभाने का अवसर देती है। भारत उन देशों के लिए एक सेतु के रूप में काम कर सकता है जो पश्चिम और पूर्व के बीच संतुलन बनाना चाहते हैं।
6. शांतिपूर्ण उपयोग और जलवायु परिवर्तन:
• भारत परमाणु ऊर्जा का उपयोग शांतिपूर्ण उद्देश्यों, जैसे बिजली उत्पादन और चिकित्सा, के लिए करता है। 2024 में, भारत ने ब्रुसेल्स में परमाणु ऊर्जा शिखर सम्मेलन में 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए परमाणु ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। यह भारत की वैश्विक जलवायु परिवर्तन नीति का हिस्सा है, जो इसे पर्यावरणीय जिम्मेदारी में एक नेता के रूप में प्रस्तुत करता है।
• यह वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति को मजबूत करता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन 2025 में एक प्रमुख वैश्विक मुद्दा है, और भारत जैसे उभरते देशों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।
7. वैश्विक चुनौतियां और भारत की स्थिति:
• 2025 में वैश्विक राजनीति कई चुनौतियों से प्रभावित है, जैसे कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल, यूरोप में दक्षिणपंथी उभार, और रूस-यूक्रेन युद्ध। भारत की परमाणु नीति उसे इन चुनौतियों के बीच एक स्थिर और जिम्मेदार शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है।
• उदाहरण के लिए, ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” नीति और टैरिफ युद्ध भारत जैसे देशों के लिए आर्थिक चुनौतियां पैदा कर सकते हैं, लेकिन भारत की स्वतंत्र परमाणु नीति उसे वैश्विक दबावों से निपटने में सक्षम बनाती है।

वैश्विक राजनीति में भारत की परमाणु नीति की प्रासंगिकता

1. उभरती शक्ति के रूप में भारत:
• भारत की परमाणु नीति उसकी उभरती वैश्विक शक्ति की स्थिति को दर्शाती है। यह नीति भारत को एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर देश के रूप में प्रस्तुत करती है, जो वैश्विक शासन में अपनी आवाज को मजबूत करना चाहता है। भारत की G20 अध्यक्षता (2023) और वैश्विक दक्षिण की वकालत इसका उदाहरण है।
2. चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध:
• भारत की परमाणु नीति का वैश्विक राजनीति में सबसे बड़ा प्रभाव दक्षिण एशिया में देखा जाता है। चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और पाकिस्तान की परमाणु नीति भारत के लिए चुनौती हैं। भारत का NFU रुख और MIRV तकनीक इन चुनौतियों का जवाब देने में सक्षम बनाती है।
3. अमेरिका और रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी:
• भारत की परमाणु नीति उसे अमेरिका और रूस जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी विकसित करने में मदद करती है। भारत का रूस के साथ रक्षा सहयोग और अमेरिका के साथ क्वाड गठबंधन वैश्विक शक्ति संतुलन में उसकी स्थिति को मजबूत करता है।
4. वैश्विक शांति और स्थिरता:
• भारत की नीति वैश्विक शांति और स्थिरता को बढ़ावा देती है। उसका परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन और शांतिपूर्ण उपयोग पर जोर उसे उन देशों के लिए एक मॉडल बनाता है जो परमाणु तकनीक को जिम्मेदारी से उपयोग करना चाहते हैं।

2025 में वैश्विक राजनीति के संदर्भ में भारत की चुनौतियां

1. अमेरिका-चीन तनाव:
• 2025 में, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव भारत की परमाणु नीति को प्रभावित कर सकता है। भारत को दोनों शक्तियों के बीच संतुलन बनाना होगा, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में।
2. पाकिस्तान और क्षेत्रीय अस्थिरता:
• पाकिस्तान की “फर्स्ट यूज” नीति और उसकी रूस के साथ बढ़ती निकटता भारत के लिए चिंता का विषय है। भारत को अपनी परमाणु नीति को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए और मजबूत करना होगा।
3. वैश्विक आर्थिक चुनौतियां:
• ट्रम्प की टैरिफ नीतियां और वैश्विक आर्थिक मंदी भारत के लिए चुनौतियां पैदा कर सकती हैं। भारत की परमाणु नीति उसे वैश्विक दबावों से निपटने में मदद करती है, लेकिन आर्थिक स्थिरता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
4. जलवायु परिवर्तन और परमाणु ऊर्जा:
• जलवायु परिवर्तन 2025 में एक प्रमुख वैश्विक मुद्दा है। भारत की परमाणु ऊर्जा नीति उसे नेट जीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकती है, लेकिन इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष

भारत की परमाणु नीति वैश्विक राजनीति में उसकी स्थिति को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। “नो फर्स्ट यूज” और “न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध” जैसे सिद्धांत भारत को एक जिम्मेदार और स्वतंत्र परमाणु शक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं। 2025 में, वैश्विक राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण, क्षेत्रीय तनाव, और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों के बीच, भारत की नीति उसे एक मध्यस्थ और उभरती शक्ति की भूमिका निभाने का अवसर देती है। यह नीति न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करती है, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता में भी योगदान देती है।

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रॉबर्ट नोज़िक

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