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उपनिवेशवाद के विरुद्ध भारत: चागोस द्वीप मुद्दा 

 

चागोस द्वीप समूह विवाद एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक मुद्दा है, जिसने भारत की विदेश नीति में उपनिवेशवाद विरोधी रुख को पुनः उजागर किया है। मॉरीशस के चागोस द्वीप पर संप्रभुता के समर्थन में भारत के बयान ने वैश्विक मंच पर एक सशक्त संदेश दिया है। यह न केवल ऐतिहासिक रूप से उपनिवेशवाद के खिलाफ भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि वर्तमान समय में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों में भारत की भूमिका को भी रेखांकित करता है।

चागोस द्वीप के बारे में

  • चागोस द्वीप समूह हिंद महासागर में स्थित एक सामरिक द्वीपसमूह है, जिसे ब्रिटेन ने 1965 में मॉरीशस से अलग कर दिया था।
  • 1966 में ब्रिटेन ने इनमें से सबसे बड़े द्वीप ‘डिएगो गार्सिया’ को अमेरिका को 50 वर्षों के लिए पट्टे पर दिया, जहाँ एक महत्वपूर्ण सैन्य अड्डा स्थापित किया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने चागोस द्वीपों पर मॉरीशस के दावे को वैध ठहराया और ब्रिटेन से इसे लौटाने का आग्रह किया।

उपनिवेशवाद क्या है?

जब कोई देश या राज्य किसी अन्य देश या क्षेत्र पर बलपूर्वक अधिकार कर लेता है और वहां के प्राकृतिक संसाधनों, अर्थव्यवस्था और प्रशासन को अपने हित में प्रयोग करता है, तो इसे उपनिवेशवाद कहते हैं।”

उपनिवेशवाद और भारत

  • भारत का उपनिवेशवाद (Colonialism) के प्रति रुख उसकी आजादी की लड़ाई से गहराई से जुड़ा हुआ है। भारत ने 200 वर्षों तक ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का सामना किया, जिसके कारण स्वतंत्रता के बाद भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख सिद्धांत उपनिवेशवाद विरोध बन गया।
  • भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने “गुटनिरपेक्ष आंदोलन” (NAM) की नींव रखी, जिसने नव-स्वतंत्र राष्ट्रों को साम्राज्यवादी शक्तियों के प्रभाव से मुक्त करने में मदद की।
  • भारत ने अफ्रीकी, एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों की स्वतंत्रता की लड़ाई का समर्थन किया और संयुक्त राष्ट्र में उपनिवेशवाद समाप्ति के लिए आवाज उठाई है और दुनिया भर के देशों के आत्मनिर्णय (Right to Self-determination) के अधिकार का समर्थन किया है।
  • चागोस द्वीप पर भारत का रुख उसकी ऐतिहासिक उपनिवेशवाद विरोधी नीति और वैश्विक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह न केवल भारत की नैतिक शक्ति को दर्शाता है, बल्कि हिंद महासागर में उसकी रणनीतिक स्थिति को भी सुदृढ़ करता है।

उपनिवेशवाद विरोधी भारत की रणनीतियां 

भारत की स्वतंत्रता संग्राम ने उपनिवेशवाद के खिलाफ वैश्विक चेतना को प्रेरित किया। स्वतंत्रता के बाद भारत ने उन सभी प्रयासों का नेतृत्व किया जिनका उद्देश्य किसी भी राष्ट्र के राजनीतिक, आर्थिक या सैन्य शोषण को समाप्त करना था।

  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना (1961): भारत ने यूगोस्लाविया, मिस्र, इंडोनेशिया और घाना के साथ मिलकर “गुटनिरपेक्ष आंदोलन” की शुरुआत की। इसका उद्देश्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चल रहे शीत युद्ध में किसी भी सैन्य गुट से दूरी बनाए रखते हुए उपनिवेशवाद का विरोध करना था।
  • संयुक्त राष्ट्र में उपनिवेशवाद विरोधी प्रस्तावों का समर्थन: भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कई प्रस्तावों का समर्थन किया, जिनका उद्देश्य उपनिवेशवाद समाप्त करना था। 1960 में “Colonial Declaration” के पक्ष में भारत ने वोट दिया, जिसमें सभी उपनिवेशों को स्वतंत्रता देने की मांग की गई थी।
  • आत्मनिर्णय का अधिकार (Right to Self-determination): भारत हमेशा से मानता है कि प्रत्येक राष्ट्र को अपनी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था चुनने का अधिकार होना चाहिए। उदहारण -फिलिस्तीन मुद्दा।
  • समानता और संप्रभुता (Sovereignty and Equality): भारत किसी भी राष्ट्र की संप्रभुता का सम्मान करता है और उपनिवेशवादी ताकतों द्वारा क्षेत्रीय अखंडता के उल्लंघन का विरोध करता है।
  • नवऔपनिवेशवाद का विरोध (Opposition to Neo-colonialism): भारत न केवल पारंपरिक उपनिवेशवाद बल्कि नव-औपनिवेशवाद (आर्थिक और राजनीतिक नियंत्रण के नए रूपों) का भी विरोध करता है।
  • ग्लोबल साउथ की आवाज (Voice of the Global South): भारत विकासशील देशों के अधिकारों का समर्थन करता है और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।
  • शांतिपूर्ण सहअस्तित्व (Peaceful Coexistence): भारत सभी देशों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का पालन करता है और किसी भी प्रकार के साम्राज्यवादी हस्तक्षेप का विरोध करता है।

भारत की पहलें

  1. भारत ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद (Apartheid) के खिलाफ लड़ाई का समर्थन किया। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह आंदोलन से नस्लीय भेदभाव का विरोध किया।
  2. भारत ने हमेशा से फिलिस्तीन के आत्मनिर्णय का समर्थन किया है और इजरायल के कब्जे का विरोध किया है।
  3. भारत ने नव-स्वतंत्र देशों को आर्थिक, तकनीकी और कूटनीतिक सहायता प्रदान की।
  4. भारत ने ब्रिटेन द्वारा चागोस द्वीप समूह पर कब्जे का विरोध करते हुए मॉरीशस की संप्रभुता का समर्थन किया।
  5. भारत ने हमेशा छोटे पड़ोसी देशों की संप्रभुता का सम्मान किया और बाहरी हस्तक्षेप का विरोध किया।

उपनिवेशवाद के प्रकार (Types of Colonialism)

  1. बसावट उपनिवेशवाद (Settler Colonialism): जब औपनिवेशिक देश अपने नागरिकों को कब्जाए गए क्षेत्र में बसाता है। उदाहरण: अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया।
  2. शोषण उपनिवेशवाद (Exploitation Colonialism): केवल प्राकृतिक संसाधनों और श्रम का दोहन करना। उदाहरण: भारत में ब्रिटिश शासन।
  3. व्यापारिक उपनिवेशवाद (Trading Post Colonialism): व्यापारिक लाभ के लिए किसी क्षेत्र पर कब्जा। उदाहरण: पुर्तगालियों द्वारा गोवा पर नियंत्रण।
  4. सांस्कृतिक उपनिवेशवाद (Cultural Colonialism): स्थानीय संस्कृतियों को दबाकर अपनी संस्कृति को थोपना।

उपनिवेशवाद विरोधी सिद्धांत

  • साम्राज्यवादी विस्तार का सिद्धांत (Imperial Expansion Theory): यह सिद्धांत कहता है कि महान शक्तियाँ अपने सामरिक और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए नए क्षेत्रों पर कब्जा करती हैं। उपनिवेशवाद को शक्ति प्रदर्शन और वैश्विक प्रभुत्व स्थापित करने का साधन माना गया।
  • परनिर्भरता सिद्धांत (Dependency Theory): यह सिद्धांत कहता है कि उपनिवेशवाद ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को दो भागों में बाँट दिया—मूल (Core) और परिधि (Periphery)। औपनिवेशिक शक्तियाँ केंद्र में होती हैं और परिधि के देशों का शोषण करती हैं।
  • सभ्यता मिशन का सिद्धांत (Civilizing Mission Theory): इस सिद्धांत के अनुसार, यूरोपीय शक्तियाँ अपने राजनीतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को पिछड़े समाजों तक पहुँचाने के लिए उपनिवेशवाद को एक ‘मिशन’ के रूप में देखती थीं। इसे “श्वेत व्यक्ति का बोझ” (White Man’s Burden) भी कहा जाता है।
  • नवउपनिवेशवाद का सिद्धांत (Neo-Colonialism Theory): यह सिद्धांत बताता है कि भले ही पारंपरिक उपनिवेशवाद समाप्त हो गया हो, लेकिन आज भी शक्तिशाली देश आर्थिक और राजनीतिक माध्यमों से कमजोर देशों पर नियंत्रण बनाए रखते हैं।

चागोस विवाद पर भारत का वर्तमान रुख और रणनीतिक महत्व

भारत ने कहा कि वह मॉरीशस की चागोस द्वीप पर संप्रभुता का समर्थन करता है। यह बयान वैश्विक राजनीति में भारत की नैतिक और रणनीतिक स्थिति को मजबूत करता है।

  • हिंद महासागर में रणनीतिक संतुलन: चागोस द्वीप अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण सैन्य अड्डा है, जिससे भारत के समुद्री सुरक्षा हित सीधे जुड़े हैं।
  • मॉरीशस के साथ विशेष संबंध: भारत-मॉरीशस के बीच सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक संबंध हैं, जिसे भारत इस मुद्दे पर समर्थन देकर और मजबूत बना रहा है।
  • चीन की विस्तारवादी नीति का प्रतिकार: चीन की हिंद महासागर में बढ़ती उपस्थिति को संतुलित करने में यह समर्थन महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

भारत का यह रुख नव-औपनिवेशिक शक्तियों के प्रति एक सख्त संदेश है कि क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता सर्वोपरि है। यह निर्णय भारत की बहुपक्षीय कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय कानून के समर्थन की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालांकि पारंपरिक उपनिवेशवाद समाप्त हो गया है, लेकिन कई शक्तिशाली देश आज भी आर्थिक और सांस्कृतिक तरीकों से कमजोर देशों पर प्रभाव डालते हैं। इसे नवउपनिवेशवाद कहा जाता है। उदाहरण: बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विकासशील देशों के संसाधनों का दोहन।

 

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