हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री की लैटिन अमेरिकी देशों विशेषकर ब्राज़ील और अर्जेंटीनाकी यात्रा भारत की विदेश नीति में एक नया मोड़ दर्शाती है। यह दौरा इस क्षेत्र के साथ मज़बूत और रणनीतिक साझेदारी की दिशा में बढ़ते कदम का प्रतीक है। ब्राज़ील जैसे देश जहाँ भारत के लिए व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, वहाँ भारत अभी भी इस क्षेत्र को अपनी प्राथमिकता सूची में उतना ऊपर नहीं रखता, जितना इसकी संभावनाएँ बताती हैं। यह नया संबंध भारत की उस दूरदर्शी सोच को दर्शाता है, जिसमें वह केवल पारंपरिक सहयोगियों तक सीमित न रहकर, वैश्विक साझेदारियों में विविधता लाना चाहता है।
भारत–लैटिन अमेरिका संबंधों का विकास
भारत और लैटिन अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों का ऐतिहासिक विकास बहुपरतीय और चरणबद्ध रहा है, जो औपनिवेशिक अनुभवों की साझेदारी से लेकर समकालीन बहुपक्षीय सहयोग तक विस्तृत है।
- प्रारंभिक ऐतिहासिक जुड़ाव (1947 से पूर्व): सीमित सहभागिता और औपनिवेशिक साझेदारी
- भारत और अधिकांश लैटिन अमेरिकी देशों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि उपनिवेशवाद से जुड़ी रही है, यद्यपि उपनिवेशीकरण की भौगोलिक उत्पत्तियाँ भिन्न रहीं।
- भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, जबकि लैटिन अमेरिका मुख्यतः स्पेनी और पुर्तगाली शासन के अंतर्गत रहा।
- इस कालखंड में भारत और लैटिन अमेरिकी देशों के बीच राजनयिक या आर्थिक जुड़ाव नगण्य रहा, क्योंकि दोनों क्षेत्रों का ध्यान क्रमशः स्वतंत्रता आंदोलनों और उपनिवेशोत्तर पुनर्निर्माण पर केंद्रित रहा।
- स्वतंत्रता के बाद का काल (1947–1970 का दशक): गुटनिरपेक्षता और प्रारंभिक कूटनीति
- स्वतंत्र भारत की विदेश नीति की आधारशिला गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) में देखी जा सकती है, जो वैश्विक ध्रुवीकरण के बीच एक वैकल्पिक मंच प्रदान करता था।
- कई लैटिन अमेरिकी देशों ने भी इस आंदोलन से वैचारिक रूप से एकात्मता दिखाई, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग की संभावनाएँ बनीं।
- इस संदर्भ में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 1968 की लैटिन अमेरिकी यात्रा उल्लेखनीय रही, जिसने भारत की ‘तीसरी दुनिया एकजुटता’ नीति को मूर्त रूप दिया।
- आर्थिक उदारीकरण के पश्चात विकास (1990 का दशक): व्यापारिक सन्निकटन और कार्यक्रमात्मक पहल
- भारत के आर्थिक उदारीकरण (1991) के पश्चात वैश्विक व्यापारिक साझेदारियों के विविधीकरण की रणनीति के अंतर्गत लैटिन अमेरिका के साथ संबंधों का विस्तार हुआ।
- ऊर्जा संसाधनों, खनिजों और कृषि उत्पादों की भारत की बढ़ती मांग और लैटिन अमेरिकी देशों की तकनीकी तथा औषधीय आवश्यकताओं ने व्यापारिक पूरकता को जन्म दिया।
- इस दिशा में 1997 में शुरू किया गया ‘फोकस एलएसी (LAC)’ कार्यक्रम, भारत की व्यावसायिक सक्रियता का व्यावहारिक उदाहरण रहा। इसके तहत भारत ने सात एलएसी देशों के साथ व्यापारिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
- 21वीं सदी की भागीदारी: बहुपक्षीय मंचों और रणनीतिक साझेदारियों का विस्तार
- 2000 के बाद भारत और लैटिन अमेरिकी देशों के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहभागिता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। मर्कोसुर (Mercosur) के साथ 2009 में लागू हुआ अधिमान्य व्यापार समझौता (PTA) एक मील का पत्थर रहा, जिसने ऊर्जा उत्पादों और अन्य प्रमुख वस्तुओं के शुल्क में छूट देकर व्यापारिक गति को बल दिया।
- ब्राजील में 2014 के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा और इसके पश्चात विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा की गई आवधिक यात्राएं, कूटनीतिक संबंधों की सक्रियता का प्रमाण हैं।
- इस चरण में ब्राजील, मैक्सिको और अर्जेंटीना जैसे देशों के साथ साझेदारियाँ बहुस्तरीय (रणनीतिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकीय) होती गईं।
- वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की संभावनाएँ (2020 के बाद): रणनीतिक समावेश और सहयोग
- भारत अब स्पष्टतः अपनी विदेश नीति में ‘साझेदारियों के विविधीकरण’ पर बल दे रहा है। यह दृष्टिकोण न केवल ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा को केंद्र में रखता है, बल्कि नवीन प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा सहयोग जैसे क्षेत्रों में गहन भागीदारी का समर्थन करता है।
- लैटिन अमेरिका में भारत की बढ़ती उपस्थिति को दक्षिण-दक्षिण सहयोग के एक अभिन्न हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।
- मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs), उच्च स्तरीय वार्ताओं, और बहुपक्षीय मंचों (BRICS, G-20, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन) में समन्वित भागीदारी ने इस जुड़ाव को संस्थागत रूप दिया है।
भारत के लिए लैटिन अमेरिका का महत्व
रणनीतिक आर्थिक विविधीकरण: लैटिन अमेरिका के साथ बढ़े हुए सहयोग से भारत को अपने व्यापार और निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने में मदद मिलेगी, जिससे अमेरिका और चीन जैसे पारंपरिक आर्थिक साझेदारों पर निर्भरता कम होगी ।
- 2023-24 में, लैटिन अमेरिका के साथ भारत का व्यापार 73 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें निर्यात 14.50 बिलियन डॉलर था, जो बढ़ते आर्थिक संबंधों का संकेत देता है।
- 2025 तक 100 बिलियन डॉलर (लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों के साथ) का लक्ष्य रखते हुएबढ़ता व्यापार भारत की वैश्विक रणनीति में इस क्षेत्र के महत्व को दर्शाता है।
ऊर्जा सुरक्षा: लैटिन अमेरिका कच्चे तेल और नवीकरणीय ऊर्जा के स्थिर और विविध स्रोत प्रदान करके भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए रणनीतिक महत्व रखता है।
- यह सहयोगभारत की मध्य पूर्व और रूस पर निर्भरता को कम करता है, विशेष रूप से वैश्विक ऊर्जा उतार-चढ़ाव के मद्देनजर।
- भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 15% से 20% हिस्सा लैटिन अमेरिका से आयात करता है, जिसमें ब्राजील और मैक्सिको जैसे प्रमुख आपूर्तिकर्ता भी शामिल हैं।
- हाल ही में, विश्व की सबसे बड़ी तांबा उत्पादक कंपनी चिली की कोडेल्को, भारत के अडानी समूह कोगुजरात में उसके कच्छ कॉपर स्मेल्टर के लिए तांबा सांद्र की आपूर्ति करने जा रही है।
तकनीकी और औद्योगिक सहयोग: लैटिन अमेरिका तेजी से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में भागीदार बन रहा है, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स और आईटी क्षेत्रों में, जो भारत के आर्थिक हितों के अनुरूप है।
- आईटी और फार्मास्यूटिकल्स में भारत की विशेषज्ञता लैटिन अमेरिका की तकनीकी नवाचार की आवश्यकता को पूरा करती है।
- लैटिन अमेरिका में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम5% से अधिक व्यापारिक ढांचे काप्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका भारत लाभ उठा सकता है।
- भारतीय आईटी कंपनियांलैटिन अमेरिका में 40,000 से अधिक स्थानीय लोगों को रोजगार देती हैं , जो भारत के तकनीकी विस्तार में इस क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करता है।
भू–राजनीतिक और सामरिक गठबंधन: लैटिन अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने से भारत की भू-राजनीतिक स्थिति भी मजबूत होगी, विशेष रूप से इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने में।
- उदाहरण के लिए, ब्रिक्स और जी-20 जैसे बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से अर्जेंटीना और ब्राजील के साथ भारत की भागीदारीवैश्विक शासन में इसकी स्थिति को मजबूत करती है।
- वैश्विक भू-राजनीति में “सक्रिय गुटनिरपेक्षता”पर साझा ध्यान , विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दों पर , भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों को मजबूत करता है।
सांस्कृतिक एवं लोगों के बीच आदान–प्रदान: भारत और लैटिन अमेरिका के बीच बढ़ता सहयोग सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देता है, लोगों के बीच गहरे संबंधों को बढ़ावा देता है और सॉफ्ट पावर को बढ़ाता है।
- लैटिन अमेरिकी देशों की भारतीय संस्कृति में काफी रुचि है, जिसका उदाहरणबॉलीवुड और योग की लोकप्रियता है।
- यह बढ़ते सांस्कृतिक आदान-प्रदान में परिलक्षित होता है, जैसे किइंडियन सुपर लीग में अधिक संख्या में लैटिन अमेरिकी फुटबॉल खिलाड़ियों की मेजबानी तथा लैटिन अमेरिकी मनोरंजन उद्योग में भारत की बढ़ती भागीदारी।
- लैटिन अमेरिकी अभिनेता भारतीय फिल्मों में दिखाई दे रहे हैं, जैसे”काइट्स” में अभिनेत्री बारबरा मोरी।
- इस तरह के आदान-प्रदान से सामाजिक और सांस्कृतिक अंतर को पाटने में मदद मिलती है, तथा द्विपक्षीय संबंध और मजबूत होते हैं।
कृषि एवं खाद्य सुरक्षा सहयोग: लैटिन अमेरिका भारत की खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने में एक प्रमुख साझेदार है, जो खाद्य तेलों और दालों जैसे महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद प्रदान करता है।
- यूक्रेन में युद्ध के कारण खाद्य तेल के आयात में हाल में आए बदलाव के कारण लैटिन अमेरिका ने इस कमी को पूरा करने के लिए कदम बढ़ाया है, तथा ब्राजील और अर्जेंटीना ने भारत को अपने निर्यात में वृद्धि की है।
- 2022 में, लैटिन अमेरिका से भारत का खाद्य तेलों का आयात बढ़कर 6 बिलियन डॉलर हो गया, जोभारत की कृषि आपूर्ति श्रृंखला में इस क्षेत्र की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
- यह सहयोग भारत में खाद्यान्न कीमतों को स्थिर बनाए रखने तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
सतत विकास और हरित ऊर्जा परिवर्तन: सतत कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु लचीलेपन में लैटिन अमेरिका का अनुभव भारत के लिए बहुमूल्य शिक्षण अवसर प्रस्तुत करता है।
- सौर ऊर्जा, लिथियम निष्कर्षण और जैव ईंधनमें संयुक्त उद्यम दोनों क्षेत्रों की हरित ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं में योगदान दे सकते हैं।
- भारत पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए)पर ब्राजील और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के साथ सहयोग कर रहा है , तथा जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा के लिए मिलकर काम कर रहा है।
- इसके अलावा, लिथियम उत्पादन में चिली का नेतृत्व और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों में भारत की रुचि, दोनों क्षेत्रों को वैश्विक हरित परिवर्तन को आगे बढ़ाने में साझेदार के रूप में स्थापित करती है।
लैटिन अमेरिका के साथ संबंध मजबूत के उपाय
प्रत्यक्ष सम्पर्क और अवसंरचना विकास
- भारत को प्रमुख भारतीय शहरों और लैटिन अमेरिकी राजधानियों के बीच सीधे हवाई और समुद्री संपर्क स्थापित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- भारत को बंदरगाहों और व्यापारिक केंद्रों की लॉजिस्टिक्स अवसंरचना में सुधार करना चाहिए जिससे परिवहन लागत में कमी आए।
- भारत को लैटिन अमेरिकी देशों के साथ मिलकर साझा परिवहन गलियारे विकसित करने चाहिए ताकि तेज़, सस्ती और निर्बाध माल आवाजाही सुनिश्चित हो सके।
राजनीतिक और कूटनीतिक जुड़ाव को सशक्त करना
- भारत को लैटिन अमेरिका में उच्च-स्तरीय सरकारी दौरों की आवृत्ति बढ़ानी चाहिए ताकि रणनीतिक रिश्तों को मज़बूती मिले।
- भारत को सीईएलएसी और प्रशांत गठबंधन जैसे बहुपक्षीय मंचों पर अधिक सक्रियता से भाग लेना चाहिए।
- विदेश मंत्रालय के भीतर एक समर्पित “लैटिन अमेरिका डेस्क” की स्थापना की जानी चाहिए ताकि क्षेत्र पर निरंतर और संगठित ध्यान बना रहे।
व्यापार समझौतों का विस्तार और मजबूती
- भारत को मर्कोसुर और अन्य प्रमुख देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए।
- भारत को उन क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए जिनमें पूरक क्षमताएँ मौजूद हैं, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स और तकनीक।
- अधिमान्य व्यापार समझौतों (PTAs) का विस्तार करके और अधिक उद्योग क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए।
शैक्षिक और सांस्कृतिक कूटनीति का विस्तार
- भारत को छात्रवृत्ति कार्यक्रमों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजनाओं में निवेश बढ़ाना चाहिए।
- भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में लैटिन अमेरिकी छात्रों की संख्या को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- भारत को गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में बसे भारतीय मूल के समुदायों को सांस्कृतिक और आर्थिक कनेक्टर के रूप में संगठित रूप से शामिल करना चाहिए।
सहयोगात्मक अनुसंधान और नवाचार
- भारत को टिकाऊ कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा और तटीय प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में लैटिन अमेरिकी देशों के साथ संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएँ प्रारंभ करनी चाहिए।
- भारत को स्टार्टअप्स और नवाचार केंद्रों के लिए द्विपक्षीय प्लेटफॉर्म स्थापित करने चाहिए ताकि तकनीकी साझेदारी को बढ़ावा मिल सके।
डिजिटल और तकनीकी सहयोग
- भारत को डिजिटल प्रशिक्षण केंद्र और टेक्नोलॉजी पार्क स्थापित करने में लैटिन अमेरिकी देशों के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
- भारत को साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), और डिजिटल अवसंरचना के क्षेत्र में संयुक्त उद्यमों की पहल करनी चाहिए।
- भारत को आईटी सेवाओं में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाकर लैटिन अमेरिकी बाज़ारों में प्रवेश करना चाहिए।
दक्षिण–दक्षिण सहयोग की भूमिका
- भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन जैसे क्षेत्रों में संयुक्त विकास परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- भारत को ब्रिक्स और जी-20 जैसे मंचों का उपयोग करके लैटिन अमेरिका के हितों को अंतरराष्ट्रीय नीति में समाहित करना चाहिए।
सुरक्षा और रक्षा सहयोग
- भारत को आतंकवाद-निरोध, समुद्री सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में रक्षा सहयोग बढ़ाना चाहिए।
- भारत को संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा तकनीक परियोजनाओं और सूचनाओं के आदान-प्रदान को संस्थागत रूप देना चाहिए।
- भारत को साइबर रक्षा और आतंकवाद विरोधी अभियानों में अपने अनुभव को साझा करते हुए द्विपक्षीय सुरक्षा साझेदारी को मज़बूत करना चाहिए।
यह सभी उपाय भारत और लैटिन अमेरिका के बीच बहुआयामी सहयोग को बढ़ावा देकर दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी को सुनिश्चित करने की दिशा में प्रभावी साबित हो सकते हैं।
भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों में बाधक तत्व
भौगोलिक दूरी और संपर्क की चुनौती: भारत और लैटिन अमेरिका के बीच भौगोलिक दूरी के साथ-साथ प्रत्यक्ष हवाई व समुद्री संपर्क की कमी व्यापार और राजनयिक संबंधों को बाधित करती है।
जागरूकता और धारणाओं का अभाव: लैटिन अमेरिका में भारत को अक्सर एक आध्यात्मिक देश माना जाता है, जबकि भारत में इस क्षेत्र को अभी भी राजनीतिक रूप से अस्थिर समझा जाता है, जिससे पारस्परिक विश्वास और सहयोग सीमित होता है।
अवसंरचना और व्यापारिक तंत्र की कमजोरी: भारत और लैटिन अमेरिका के बीच व्यापारिक अवसंरचना, जैसे लॉजिस्टिक्स और वित्तीय तंत्र, की अपर्याप्तता आर्थिक संबंधों को पूरी क्षमता तक विकसित होने से रोकती है।
राजनीतिक सहभागिता में असंगति:भारत और लैटिन अमेरिका के बीच उच्च-स्तरीय राजनीतिक संवाद और सतत कूटनीतिक यात्राओं की कमी रणनीतिक साझेदारी के विस्तार में बाधक है।
व्यापार प्रतिबंध और संरक्षणवाद: भारत की कृषि-प्रधान संरक्षणवादी नीतियाँ और लैटिन अमेरिकी कृषि उत्पादों पर ऊँचे शुल्क, द्विपक्षीय व्यापार को सीमित करते हैं।
चीन से तीव्र प्रतिस्पर्धा: चीन द्वारा लैटिन अमेरिका में बुनियादी ढांचे और व्यापार में बड़े निवेशों ने भारत की उपस्थिति को पीछे धकेल दिया है, जिससे प्रतिस्पर्धात्मकता में असंतुलन उत्पन्न हुआ है।
बहुपक्षीय मंचों में सीमित भागीदारी: प्रशांत गठबंधन और सीईएलएसी जैसे क्षेत्रीय मंचों में भारत की भागीदारी सीमित और प्रतीकात्मक रही है, जिससे बहुपक्षीय सहयोग के अवसर कम हुए हैं।
भाषाई और सांस्कृतिक दूरी: स्पेनिश और पुर्तगाली भाषा में पारंगत भारतीय पेशेवरों की कमी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की धीमी प्रगति से आपसी समझ और व्यापारिक जुड़ाव प्रभावित होता है।
ये सभी कारक मिलकर भारत और लैटिन अमेरिका के बीच एक व्यापक, रणनीतिक और दीर्घकालिक साझेदारी को गहराई देने में बाधा उत्पन्न करते हैं।