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इजराइल और ईरान के बीच भारत का संतुलन

मध्य पूर्व में इजराइल और ईरान

मध्य पूर्व में इस समय इजराइल और शिया समुदायों के बीच तनाव की स्थिति है (विशेषकर ईरान, हिज़्बुल्लाह, हौथी गुटों के कारण)। भारत ने इजराइल के साथ अपने कूटनीतिक और सैन्य संबंधों को मजबूत किया है, लेकिन साथ ही ईरान और अन्य शिया समूहों के प्रति भी संतुलित रुख अपनाने की कोशिश की है।

मध्य पूर्व में नया भूराजनीतिक परिदृश्य

डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका द्वारा ईरान के खिलाफ आक्रामक सैन्य रुख अपनाना और इज़राइल के साथ मिलकर नए गठबंधनों को आकार देना एक बार फिर पश्चिम एशिया में तनाव को चरम पर ले गया है।

भारत, जो ऊर्जा निर्भरता, प्रवासी संरक्षण और भू-सामरिक प्रभाव के लिए मध्य पूर्व पर निर्भर है, अब इस संघर्ष के बीच रणनीतिक संतुलन चुनौती में है।

इज़राइलईरान तनाव

  • मई 2025 में इज़राइल ने सीरिया में कथित ईरानी सैन्य ठिकानों पर मिसाइल हमले किए। जवाबी तौर पर ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह और हौथी विद्रोहियों ने तेल अवसंरचना और समुद्री जहाजों पर ड्रोन हमले किए।
  • भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की और UN में ‘मानवाधिकार और ऊर्जा सुरक्षा’ का हवाला देकर युद्धविराम की पैरवी की।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक ‘रणनीतिक ऊर्जा स्थिरता प्रस्ताव’ पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव रखा।

भारत के लिए मध्य पूर्व का क्या महत्व है?

मध्य पूर्व भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र भारत की कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है, जिससे यह भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए ईंधन का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है।

  • आईईए के विश्व ऊर्जा आउटलुक 2021 के अनुसार , वैश्विक प्राथमिक ऊर्जा खपत में भारत की वर्तमान हिस्सेदारी1% है और 2050 तक घोषित नीति परिदृश्यों के तहत लगभग 9.8% तक बढ़ने की संभावना है ।
  • सऊदी अरब, इराक और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भारत के प्रमुख ऊर्जा साझेदार हैं। क्षेत्र की ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान या वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव का भारत के आर्थिक प्रदर्शन और मुद्रास्फीति के स्तर पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

बहुपक्षीय सहभागिता और वैश्विक प्रभाव: मध्य पूर्व के साथ भारत की सक्रिय सहभागिता उसे संयुक्त राष्ट्र, इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) और अरब लीग जैसे बहुपक्षीय मंचों पर अपना प्रभाव डालने का अवसर भी प्रदान करती है।

  • इन जटिल क्षेत्रीय गतिशीलताओं को समझने और गठबंधन बनाने की भारत की क्षमता, रणनीतिक महत्व के मुद्दों, जैसे जलवायु परिवर्तन वित्तपोषण, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधार , पर उसकी वैश्विक स्थिति और सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ा सकती है।
  • यह समान विचारधारा वाले ओआईसी देशों के साथ सहयोग के माध्यम से कश्मीर मुद्दे पर भारत की स्थिति को मजबूत करने जैसे घरेलू मुद्दों को सुलझाने में भी मदद कर सकता है।

आतंकवादरोधी सहयोग: मध्य पूर्व ऐतिहासिक रूप से अल-कायदा, आईएसआईएस और उनके सहयोगियों सहित विभिन्न आतंकवादी संगठनों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल रहा है, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है।

  • भारत इस क्षेत्र के देशों, जैसे संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और इजरायल के साथ खुफिया जानकारी साझा करने, आतंकवाद विरोधी प्रयासों में समन्वय करने और इन आतंकवादी समूहों के वित्तपोषण और रसद को बाधित करने के लिए सहयोग कर रहा है।
  • एसआईपीआरआई के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में भारत ने इजरायल से9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सैन्य उपकरण आयात किए हैं।
  • सऊदी अरब ने हाल ही में खुफिया जानकारी साझा करने और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के माध्यम से आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • इस सहयोग से भारत को कई आतंकवादी साजिशों को विफल करने और उन चरमपंथी नेटवर्क को ध्वस्त करने में सहायता मिली है, जिन्होंने देश और विदेश में भारतीय हितों को निशाना बनाया है।

सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध : मध्य पूर्व भारत के साथ गहरे सांस्कृतिक, सभ्यतागत और ऐतिहासिक संबंध साझा करता है, जो प्राचीन समुद्री व्यापार मार्गों तक जाता है। आज, ये संबंध भारत और इस क्षेत्र के बीच साझा स्थापत्य विरासत, पाक परंपराओं और कला, साहित्य और विद्वत्ता के जीवंत आदान-प्रदान में परिलक्षित होते हैं।

  • भारत-अरब लीग मीडिया संगोष्ठी और अबू धाबी में बीएपीएस हिंदू मंदिर जैसी हालिया पहलों का उद्देश्य इन सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करना है।

क्षेत्रीय संपर्क और बुनियादी ढांचा: भारत मध्य पूर्व में क्षेत्रीय संपर्क और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास में सक्रिय रूप से शामिल रहा है, जिसका उसके आर्थिक और रणनीतिक हितों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।

  • उदाहरण के लिए, ईरान में चाबहार बंदरगाह परियोजना , अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे में भारत की भागीदारी का उद्देश्य मध्य पूर्वी भूभाग के माध्यम से मध्य एशिया और यूरोप तक भारत की पहुंच को बढ़ाना है।
  • इन पहलों से भारत के व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, क्षेत्रीय प्रभाव में विस्तार होगा तथा अफगानिस्तान और अन्य स्थानों तक पहुंच के लिए पाकिस्तान पर निर्भरता कम होगी।

प्रवासी और धन प्रेषण प्रवाह: मध्य पूर्व में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी रहते हैं।

  • भारत के34 करोड़ अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) में से 66% से अधिक संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान और बहरीन में रहते हैं।
  • ये प्रवासी समुदाय न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं, बल्कि भारत के लिए धन प्रेषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी हैं।
  • इस प्रवासी समुदाय का कल्याण और सुरक्षा भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है, और भारत ने उनकी सुरक्षा के लिए विभिन्न उपाय किए हैं, जैसा कि हाल ही में कतर में भारत के पूर्व नौसेना दिग्गजों के मामले में देखा गया है।

दोनों ध्रुवों के बीच भारत की नीतिया

  • संतुलित विदेश नीति: भारत दोनों ध्रुवों (इजराइल और शिया ब्लॉक) के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। यह संतुलन इसलिए ज़रूरी है क्योंकि भारत की बड़ी मुस्लिम आबादी में शिया समुदाय की भी बड़ी संख्या है।
  • रणनीतिक विवेक: भारत धार्मिक गुटों के संघर्ष में सीधे शामिल नहीं होता, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों (ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार, प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा) को प्राथमिकता देता है। भारत की नीति ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ की है, जो किसी एक ध्रुव से पूरी तरह जुड़ने की बजाय सभी से संबंध बनाए रखने की रणनीति है।
  • ईरान से संबंधों की प्रासंगिकता: चाबहार पोर्ट परियोजना, ऊर्जा आयात और अफगानिस्तान तक पहुँच भारत-ईरान संबंधों के केंद्र में हैं। भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद ईरान से अपने संबंध पूरी तरह नहीं तोड़े।
  • इजराइल के साथ सहयोग: रक्षा और तकनीकी सहयोग में भारी वृद्धि हुई है। भारत ने कई बार संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के पक्ष में मतदान किया है, जो पहले नहीं होता था।

भारत की संतुलनकारी नीतियाँ

भारत ने UAE और सऊदी के साथ रणनीतिक पेट्रोलियम समझौते किए

  • अप्रैल 2025 में भारत ने अबू धाबी के ADNOC और सऊदी अरामको के साथ दीर्घकालिक तेल आपूर्ति अनुबंध किए हैं ताकि मध्य पूर्व की अस्थिरता के बीच ऊर्जा आपूर्ति सुरक्षित रहे।
  • भारत की रणनीति स्पष्ट है: ‘स्रोतों में विविधता लाओ, निर्भरता घटाओ।‘

चाबहार पोर्ट परियोजना को पुन: शुरू किया

  • जून 2025 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच तीरवेज़ (Three-Nation Logistics Pact) पर समझौता हुआ है।
  • इससे मध्य एशिया तक भारत की पहुँच सुदृढ़ होगी, और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का जवाब देने में मदद मिलेगी।

चीनईरान गठबंधन से भारत सतर्क

  • जून 2025 में चीन और ईरान ने रक्षा सहयोग बढ़ाने की घोषणा की, जिससे भारत की रणनीतिक चिंता बढ़ी है।
  • भारत ने इसके जवाब में सऊदी और ओमान के साथ रक्षा विनिमय और सैन्य अभ्यास की शुरुआत की।

खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा को प्राथमिकता

  • कतर और बहरीन में युद्ध की आशंका को देखते हुए भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन सावधानी-2’ नामक योजना तैयार की है, जिससे किसी भी संकट की स्थिति में भारतीय नागरिकों को निकाला जा सके।

भारत की विदेश नीति में नया मंत्र: ‘नैतिक शक्ति, रणनीतिक सतर्कता

  • विदेश मंत्री ने जुलाई 2025 में दिए बयान में कहा कि भारत ‘किसी ध्रुव के साथ नहीं, बल्कि संतुलन के साथ खड़ा है’।
  • भारत ने ‘SAMOSA’ (Security, Access, Mutual Respect, Open Dialogue, Supply Chain Assurance, Autonomy in Action) नीति की घोषणा की

मध्य पूर्व: संघर्ष और अस्थिरता का स्थायी क्षेत्र क्यों बना हुआ है?

  • क्षेत्र में सुन्नी और शिया मुसलमानों के बीच गहरी सांप्रदायिक खाई मौजूद है, जो सत्ता संघर्ष और हिंसक टकरावों को बढ़ावा देती है। इस विभाजन का उपयोग राजनीतिक शक्तियाँ अपनी सत्ता मजबूत करने और विरोधियों को कमजोर करने के लिए करती हैं। सीरियाई गृहयुद्ध इसका बड़ा उदाहरण है, जहाँ संघर्ष ने सांप्रदायिक रूप ले लिया और बड़ी संख्या में लोगों की जान गई।
  • मध्य पूर्व वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियों जैसे ईरान, सऊदी अरब, इज़राइल, तुर्की और अमेरिका के बीच चल रही भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का केंद्र बन चुका है। यह प्रतिद्वंद्विता अक्सर छद्म युद्धों (proxy wars) के रूप में सामने आती है, जहाँ राज्य अपने हितों की रक्षा के लिए गैर-राज्यीय गुटों या विद्रोही संगठनों को समर्थन देते हैं। शक्ति संतुलन की कमी और बाहरी हस्तक्षेप की प्रवृत्ति इस क्षेत्र को निरंतर अस्थिर बनाए रखती है।
  • मध्य पूर्व लंबे समय से इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद जैसे पुराने और जटिल मुद्दों से जूझ रहा है, जो अभी तक किसी निर्णायक समाधान तक नहीं पहुँच सके हैं। ये संघर्ष कठोर रुख़, बाहरी हस्तक्षेप और न्यायसंगत संवाद की कमी के कारण और जटिल हो गए हैं। अब्राहम समझौता, जिसने यूएई और बहरीन को इज़राइल के करीब लाया था, अब नाजुक स्थिति में है और पहले की गई प्रगति रुक गई है।
  • अधिकांश मध्य पूर्वी देशों में सत्ता सत्तावादी शासकों के हाथों में है, जो शासन की रक्षा को नागरिक अधिकारों से ऊपर रखते हैं। ये शासन असहमति पर दमन, राजनीतिक कैद और स्वतंत्रता के हनन जैसे दमनकारी उपाय अपनाते हैं।

निष्कर्ष

भारत अब अधिक व्यावहारिक और रणनीतिक दृष्टिकोण अपना रही है। धार्मिक गुटों के प्रति संवेदनशीलता और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के प्रयास भारत को एक परिपक्व वैश्विक खिलाड़ी बनाते हैं। भारत आर्थिक हितों, घरेलू विविधता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन साधने की लगातार कोशिश कर रहा है।

 

 

 

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