हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक राजनीति, व्यापार और समुद्री सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण भू-रणनीतिक क्षेत्र बन चुका है। भारत, जो इस क्षेत्र का एक प्रमुख देश है, अपनी समुद्री सुरक्षा, आर्थिक विकास, व्यापार सहयोग और बहुपक्षीय कूटनीति को मजबूत करने के लिए विभिन्न पहल कर रहा है। वर्तमान में भारत IORA (Indian Ocean Rim Association) की अध्यक्षता कर रहा है, जो उसे इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने का अवसर प्रदान करता है। इस लेख में भारत की हिंद-प्रशांत नीति, इसके महत्व, प्रमुख चुनौतियों और नीतिगत समाधानों का विश्लेषण किया गया है।
हिंद–प्रशांत क्षेत्र
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया को जोड़ने वाला एक विशाल समुद्री क्षेत्र है, जो वैश्विक व्यापार के 75% से अधिक हिस्से को नियंत्रित करता है। भारत के लिए यह क्षेत्र सामरिक स्वायत्तता, ऊर्जा आपूर्ति, आर्थिक समृद्धि और बहुपक्षीय कूटनीति की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में दक्षिण चीन सागर, मलक्का जलडमरूमध्य, होर्मुज़ जलडमरूमध्य और हिंद महासागर जैसी प्रमुख समुद्री मार्ग स्थित हैं, जिन पर भारत की निर्भरता अधिक है।
- भारत की हिंद-प्रशांत नीति का प्रमुख उद्देश्य सागर (SAGAR – Security and Growth for All in the Region) सिद्धांत के तहत समुद्री शासन, क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा देना है।
भारत की हिंद–प्रशांत नीति/पहल
भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी रणनीतिक और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए विभिन्न बहुपक्षीय समूहों का हिस्सा है। इन संगठनों के माध्यम से भारत समुद्री सुरक्षा, व्यापार सहयोग, क्षेत्रीय संपर्क और आपदा प्रबंधन को बढ़ावा दे रहा है।
- क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता)
सदस्य: भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया
लक्ष्य:
- रणनीतिक समन्वय और समुद्री सुरक्षा
- प्रौद्योगिकी और आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलन
- जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य सहयोग
- चीन की बढ़ती आक्रामकता को संतुलित करने के लिए सुरक्षा साझेदारी
भारत के लिए महत्व:
- हिंद-प्रशांत में सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने में सहायक।
- भारत को अत्याधुनिक रक्षा तकनीकों और रणनीतिक समन्वय में सहयोग मिलता है।
- समृद्धि के लिए हिंद–प्रशांत आर्थिक कार्यढाँचा (IPEF)
सदस्य: भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, ASEAN राष्ट्रों सहित 14 देश
लक्ष्य:
- व्यापार और निवेश सहयोग
- आपूर्ति शृंखला का विकास और समुत्थानशीलन
- स्वच्छ और हरित अर्थव्यवस्था
- निष्पक्ष आर्थिक प्रणाली (भारत ने व्यापार स्तंभ से बाहर रहने का विकल्प चुना)
भारत के लिए महत्व:
- आपूर्ति शृंखला विविधीकरण में सहयोग।
- डिजिटल और हरित प्रौद्योगिकियों में क्षेत्रीय भागीदारी बढ़ाना।
- भारत का “चाइना-प्लस वन” रणनीति के तहत व्यापार विस्तार।
- हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA)
सदस्य: एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के 23 सदस्य देश
लक्ष्य:
- समुद्री सहयोग और ब्लू इकॉनमी
- आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन
- क्षमता निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता
भारत के लिए महत्व:
- IORA की अध्यक्षता (2025-27) भारत को समुद्री शासन में नेतृत्व करने का अवसर देती है।
- ब्लू इकॉनमी और आपदा प्रबंधन में भारत की भागीदारी को बढ़ावा।
- समुद्री सुरक्षा और व्यापार मार्गों की स्थिरता सुनिश्चित करना।
- BIMSTEC (बहु–क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल)
सदस्य: बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड
लक्ष्य:
- क्षेत्रीय संपर्क और व्यापार सहयोग
- सुरक्षा समन्वय और आतंकवाद विरोधी रणनीति
- आर्थिक और तकनीकी विकास
भारत के लिए महत्व:
- भारत को बंगाल की खाड़ी और दक्षिण एशिया में व्यापार और संपर्कता बढ़ाने में सहायता।
- चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का संतुलन बनाने के लिए एक वैकल्पिक मंच।
- इंडो–पैसिफिक महासागर पहल (IPOI) (भारत के नेतृत्व में)
साझेदार: ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, जापान, इंडोनेशिया सहित स्वैच्छिक भागीदार
लक्ष्य:
- समुद्री पारिस्थितिकी और ब्लू इकॉनमी
- संपर्कता और समुद्री सुरक्षा
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण
भारत के लिए महत्व:
- IPOI भारत की समुद्री कूटनीति को आगे बढ़ाने का एक मंच है।
- समुद्री संसाधनों के सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा।
- हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को मजबूत करना।
भारत के लिए प्रमुख चुनौतियाँ
- चीन की आक्रामक रणनीति: चीन द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में बंदरगाह निर्माण, सैन्य अड्डों की स्थापना और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत बढ़ती गतिविधियाँ भारत के लिए रणनीतिक चुनौती हैं।
- अपर्याप्त नौसैनिक संसाधन: अमेरिका और चीन की तुलना में भारत की नौसैनिक शक्ति सीमित है, जिससे उसकी क्षेत्रीय शक्ति-प्रक्षेपण क्षमता प्रभावित होती है।
- स्पष्ट हिंद-प्रशांत नीति का अभाव: भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति SAGAR, Act East, IPOI जैसी अलग-अलग पहलों में विभाजित है, जिससे स्पष्ट नीति की कमी महसूस होती है।
- आर्थिक असंतुलन: भारत की RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) से वापसी और ASEAN के साथ सीमित व्यापार साझेदारी ने उसके क्षेत्रीय आर्थिक प्रभाव को सीमित कर दिया है।
- संस्थागत बाधाएँ: IORA, BIMSTEC और IPOI जैसे संगठनों में वित्त पोषण और प्रशासनिक समस्याएँ भारत की प्रभावी भागीदारी को प्रभावित कर रही हैं।
नीतिगत समाधान
- भारत को अपनी सागर, एक्ट ईस्ट, IPOI और IORA नीतियों को एकीकृत कर एक राष्ट्रीय हिंद-प्रशांत नीति विकसित करनी चाहिए।
- भारत को अग्रिम नौसेना अड्डे, गहरे समुद्री बंदरगाह और लॉजिस्टिक समर्थन तंत्र का विस्तार करना चाहिए।
- भारत को ASEAN, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ FTA समझौतों को मजबूत करना चाहिए।
- भारत को IORA और IPOI के माध्यम से सतत् समुद्री विकास और जलवायु अनुकूलन पहलों को आगे बढ़ाना चाहिए।
- चाबहार पोर्ट, कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट और इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) जैसी परियोजनाओं को शीघ्र लागू किया जाना चाहिए।
- भारत को बहुपक्षीय मंचों में नेतृत्व बढ़ाने और IPOI को एक प्रभावी समुद्री शासन मंच के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति एक महत्वपूर्ण परिवर्तन बिंदु (turning point) पर है। IORA की अध्यक्षता (2025-27) और क्वाड, BIMSTEC, IPEF जैसे मंचों में सक्रिय भागीदारी से भारत अपनी वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है। रणनीतिक स्वायत्तता, समुद्री सुरक्षा और आर्थिक कूटनीति के माध्यम से भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरने के लिए अपनी नीतियों को और अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाना होगा।