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भारत-तुर्किए संबंध और वर्तमान ट्रेंड्स

भारत और तुर्किए के बीच संबंध सदियों पुरानी एक जटिल और विविधतापूर्ण यात्रा के साक्षी हैं। यह संबंध न केवल आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी गहरे हैं।चाहे वह मध्यकालीन अवधि हो जब ओटोमन साम्राज्य और भारतीय मुस्लिम समाज के बीच धार्मिक व सांस्कृतिक सामंजस्य विकसित हुआ था, या आधुनिक युग जब दोनों देशों ने वैश्विक राजनीति में अपने विशेष स्थान बनाए। तब भी, इन संबंधों ने विकास के अलग-अलग चरण देखे हैं। हालांकि दो दशक पूर्व तक यह रिश्ता अपेक्षाकृत समर्पित और सम्मानजनक था, पर 2025 में आए हाल के घटनाक्रमों ने इस रिश्ते को तनावपूर्ण बना दिया है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 

भारत और तुर्किए के संबंधों की जड़ें मध्यकालीन इस्लामी इतिहास और राजनीतिक सतह तक जाती हैं। उस समय के ओटोमन साम्राज्य को इस्लामी खलीफात का प्रतीक माना जाता था और भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान इस संस्था के प्रति गहरा सम्मान रखते थे। 20वीं सदी के प्रारंभ में खिलाफत आंदोलन (1919-1924) इस ऐतिहासिक भावनात्मक संबंध का एक प्रमुख प्रतीक था, जिसमें भारतीय मुस्लिम नेताओं ने ब्रिटिश साम्राज्य से ओटोमन खलीफात की रक्षा की मांग की थी। उस दौर में महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए इस आंदोलन का समर्थन किया था, जिसे स्वतंत्रता संग्राम के लिए एकजुटी का संदेश भी माना जाता है।

विश्व युद्धों के बाद ओटोमन साम्राज्य के पतन के साथ ही तुर्किए ने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में पुनः निर्माण किया, जबकि पाकिस्तान ने इस्लामी राष्ट्र के रूप में उभरते हुए मुस्लिम एकता के प्रतीक का रोल संभाला। इस बदलाव ने भारत-तुर्किए संबंधों में दूरी ला दी। तुर्किए ने धीरे-धीरे पाकिस्तान के साथ अपने कूटनीतिक संबंध बढ़ाए और भारत ने अमूमन गैर-संरेखित नीति अपनाई। शीत युद्ध के दौरान तुर्किए का NATO का हिस्सा बनना और भारत का अप्रतिबद्ध रहना भी बहुत हद तक द्विपक्षीय जुड़ाव को प्रभावित करता रहा।

द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट के पुराने एवं वर्तमान कारण: 

भारत-तुर्किए संबंधों में पहली बार गहरा संकट 2019 में तब आया जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 रद्द किया और तुर्की ने इसके विरोध में कांग्रेस समेत अंतर्राष्ट्रीय मंच पर तीखी टिप्पणियां की। तुर्की की यह प्रतिक्रिया भारत को अस्वीकृत थी क्योंकि उसने इसे भारत की आंतरिक राजनीतिक स्थिति में विदेशी हस्तक्षेप माना। इसके कारण राजनयिक संवाद में ठहराव आया।

मगर असली तूफान 2025 में ऑपरेशन सिन्दूर के बाद उठा। मई 2025 में, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने आतंकवादियों और पाकिस्तान में उनके ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई की। इस संघर्षकालीन स्थिति के दौरान तुर्की ने पाकिस्तान को लगभग 350 ड्रोन, सैन्य सहायता और संचालन कर्मियों का समर्थन दिया। यह सहयोग भारत के लिए एक बड़े राजनयिक झटके के रूप में सामने आया, जिसके कारण दोनों देशों के बीच स्थापित भरोसेमंद कनेक्शन टूटने लगे।

तुर्की के प्रो-पाकिस्तान रुख का भारत ने कड़ा विरोध किया, जिससे द्विपक्षीय आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंधों में बहिष्कार की स्थिति उत्पन्न हो गई। भारतीय जनता, उद्योग और ट्रेड एसोसिएशनों ने व्यापक आंदोलन चलाकर तुर्की के खिलाफ व्यापार और पर्यटक मामले में विरोध दर्ज कराया। भारतीय विश्वविद्यालयों ने तुर्की के साथ अकादमिक साझेदारियां स्थगित कीं। एयरलाइन क्षेत्र में भी सुरक्षा कारणों के आधार पर तुर्की के नागरिक उड्डयन कम्पनी का क्रेडेंशियल निरस्त किया गया। इंडिगो एयरलाइंस ने तुर्की एयरलाइंस के साथ अपना वेट लीज़ समझौता खत्म कर दिया। ये सभी कदम यह संकेत देते हैं कि भारत ने तुर्की के खिलाफ अपनी कूटनीतिक और आर्थिक रणनीति को मजबूत किया है।

भारत का रुख और रणनीतिक प्रतिक्रिया:

भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसकी संप्रभुता, आंतरिक सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता सर्वोपरि हैं, जिनमें कोई समीक्षा या समझौता संभव नहीं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बार-बार तुर्की से कहा कि पाकिस्तान को आतंकवाद समर्थक गतिविधियों को रोकना चाहिए और आतंकियों के ठिकानों को नष्ट करना चाहिए। इसके साथ ही, भारत द्वारा तुर्की के नए राजदूत के क्रेडेंशियल समारोह को स्थगित करना, एयरलाइंस के समझौतों को रद्द करना, और कई बहिष्कार जैसे कड़े कदम भारत की सख्त नीति का प्रमाण हैं।

भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि तुर्की के साथ व्यापारिक संबंधों में सुधार तब ही संभव होगा जब तुर्की पाकिस्तान के आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले रवैये से सख्ती से पीछा छुड़ाएगा। इस बार फिर covid-19 के बाद आर्थिक सहयोग की धीमी वृद्धि और 2024-25 में भारतीय निर्यात में कमी भी मुख्य रूप से इसी विवाद से प्रभावित हुआ।

प्रादेशिक और वैश्विक कूटनीति में भारत-तुर्की संबंध:

तुर्की ने चीन, सऊदी अरब और UAE जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है, जबकि भारत ने तुर्की के विरोधी देशों — जैसे ग्रीस, साइप्रस और आर्मेनिया के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा दिया है। यह एक सामरिक कदम है जिससे तुर्की के पाकिस्तान के समर्थन को टाला जा सके और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव की गहरी पकड़ बनाई जा सके।

तुर्की की BRICS में शामिल होने की आकांक्षा में भी भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत ने तुर्की को चेतावनी दी है कि वह पाकिस्तान के आतंकवाद का समर्थन बंद करे, तभी द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर उसकी सदस्यता या भागीदारी पर सकारात्मक विचार किया जाएगा।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव:

तुर्की पर भारत की व्यापारिक निर्भरता 2024 में भी महत्वपूर्ण थी, जब तुर्की को भारतीय निर्यात लगभग 5.2 बिलियन डॉलर था। लेकिन 2025 में इस व्यापारी उलटफेर की स्थिति आई। तुर्की में भारत के पर्यटक आना भी प्रमुख आय का स्रोत रहा है; 2024 में लगभग 3 लाख भारतीय पर्यटक तुर्की की यात्रा कर चुके थे। अब पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

भारत में तुर्की के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार के कारण तुर्की ब्रांडों, सांस्कृतिक उत्पादों और खान-पान से जुड़ी वस्तुओं का उपभोग कम हुआ है। इन घटनाओं ने तुर्की की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। भारतीय टूर ऑपरेटर्स ने तुर्की के लिए अपने ऑफर बंद कर दिए हैं, जो भारत-तुर्की के सामाजिक और आर्थिक संबंधों में गहरे संकट दिखाता है।

आगे की राह: चुनौतियां और संभावनाएं

जहां तक दोनों देशों के संबंधों को सुधारने की बात है, यह स्पष्ट है कि कोई “स्ट्रेटेजिक ब्रेकथ्रू” तभी संभव होगा जब तुर्की अपनी पाकिस्तान नीतियों में बड़ा बदलाव लाएगा और आतंकवाद विरोधी पहल को सशक्त करेगा। भारत की प्रमुख चिंताएं कश्मीर में आतंकी गतिविधियों की रोकथाम, सीमा की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के प्रति तुर्की के रुख में स्पष्टता चाहती हैं।

दूसरी ओर भारत को भी तुर्की की जियो-पॉलिटिकल परिस्थितियों और मध्य पूर्व की चुनौतियों का सम्मान करना होगा। द्विपक्षीय अभियानों और बहुपक्षीय मंचों में आपसी संवाद बनाए रखना जरूरी होगा। यह भी अपेक्षित है कि दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय सुरक्षा, व्यापार, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए नए अवसर तलाशे जाएंगे।

भारत ने तुर्की के खिलाफ अपने व्यापारिक विकल्प बढ़ाने शुरू कर दिए हैं, जैसे तुर्की के विरोधी देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों को मज़बूत करना। यह रणनीति तुर्की पर सकारात्मक प्रभाव डालने के साथ-साथ भारत की अपनी क्षेत्रीय भूमिका को ठोस बनाने का प्रयास भी है।

निष्कर्ष:

भारत-तुर्की संबंध का इतिहास समृद्ध और विविध रहा है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक और कूटनीतिक परिवर्तनों ने इस सामंजस्य को चुनौती दी है। तुर्की का पाकिस्तान के प्रति समर्थन और भारत की संप्रभुता के प्रति कड़ा रुख इस संबंध को तनावपूर्ण बना रहा है। परंतु बहिष्कार और विरोध के बावजूद संवाद के द्वार पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं। भविष्य में यदि दोनों देश कूटनीतिक समझौते और सुरक्षा, व्यापारिक हितों के संरक्षण के लिए साझा प्रयास करें तो यह रिश्ता पुनः उभर सकता है।

समाज, राजनीति और आर्थिक हितों के जटिल ताने-बाने के बीच भारत-तुर्की संबंधों में सुधार का मार्ग कठिन है, लेकिन यह असंभव नहीं। समय की मांग है कि दोनों पक्ष किसी संगठित, दीर्घकालिक रणनीति के तहत अपने मतभेदों को कम करें और साझा हितों पर फोकस करें।


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