चुनावी सुधार वे व्यवस्थित परिवर्तन हैं जो किसी देश की चुनावी प्रक्रिया को अधिक दक्ष, पारदर्शी, निष्पक्ष और विश्वसनीय बनाने के लिए किए जाते हैं। इन सुधारों का उद्देश्य चुनाव प्रणाली की कमजोरियों को दूर करते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखना है।
▪ आवश्यकता:
भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में चुनाव राजनीतिक वैधता और नागरिक सहभागिता का आधार हैं। इसलिए मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव लोकतांत्रिक शासन की निरंतरता के लिए अनिवार्य हैं।
समय के साथ चुनावी व्यवस्था को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है—
- धनबल और बाहुबल का दुरुपयोग
- राजनीति का अपराधीकरण
- राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव
- कम मतदान प्रतिशत
- नकली मतदान और बूथ कैप्चरिंग
इन समस्याओं से निपटने और जनता का विश्वास बहाल रखने के लिए चुनावी सुधार आवश्यक हो जाते हैं। ये सुधार चुनावी ढाँचे, कानूनी प्रावधानों और संस्थागत क्षमताओं को मजबूत बनाते हैं।
▪ संवैधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के संचालन तथा मतदाता सूची तैयार करने की व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है।
▪ विधिक ढाँचा (Legislative Framework):
1. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1950:
- मुख्यतः चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति (मुख्य निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी आदि),
- चुनावी मतदाता सूचियों की तैयारी व संशोधन से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
2. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951:
- चुनावों की पूर्व-तैयारी,
- उम्मीदवारों की पात्रता, नामांकन, चुनाव अपराध, चुनाव व्यय आदि से जुड़े प्रावधानों को निर्धारित करता है।
3. मतदाता पंजीयन नियम, 1960:
- RPA, 1951 से जुड़े नियमों को लागू करने की विस्तृत प्रक्रियाएँ बताता है।
उदाहरण:
नाम जोड़ना, संशोधन या हटाना कैसे किया जाए आदि।
4. परिसीमन अधिनियम, 2002:
- नवीनतम जनगणना के आधार पर संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण।
भारत में प्रमुख चुनावी सुधार
I. 1996 से पहले के चुनावी सुधार
▪ 61वाँ संविधान संशोधन (1988):
मतदान आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई, जिससे युवाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी।
▪ फर्जी उम्मीदवार रोकने के लिए नियम:
राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में प्रस्तावकों की संख्या बढ़ाई गई (10% या 10 प्रस्तावक, जो भी कम हो)।
▪ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM):
- पहली बार 1998 में (राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली) प्रयोग।
- 1999 में गोवा विधानसभा चुनाव में पूर्ण उपयोग।
▪ बूथ कैप्चरिंग रोकने के प्रावधान:
बलपूर्वक कब्जा होने की स्थिति में चुनाव को रद्द या स्थगित करने की शक्ति।
▪ फोटो पहचान पत्र (EPIC):
नकली मतदान रोकने के लिए अनिवार्य फोटो आधारित पहचान।
II. 1996 के बाद के चुनावी सुधार
▪ उम्मीदवारों की सूची का वर्गीकरण:
- मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल
- पंजीकृत परंतु अमान्यता प्राप्त दल
- निर्दलीय उम्मीदवार
▪ अपमान से जुड़े अपराधों पर अयोग्यता:
राष्ट्रीय ध्वज, संविधान का अपमान या राष्ट्रगान में बाधा डालने पर 6 वर्ष की अयोग्यता।
▪ शराब बिक्री पर प्रतिबंध:
मतदान से 48 घंटे पूर्व क्षेत्र में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध।
उल्लंघन पर 6 माह कारावास या 2,000 रुपये जुर्माना।
▪ प्रस्तावक नियम:
- मान्य दल के समर्थित उम्मीदवार को 1 प्रस्तावक पर्याप्त।
- अन्य सभी के लिए 10 प्रस्तावक आवश्यक।
▪ उम्मीदवार की मृत्यु पर नियम:
मान्यता प्राप्त दल का उम्मीदवार मृत्यु होने पर पार्टी 7 दिनों के भीतर नया उम्मीदवार प्रस्तावित कर सकती है।
▪ उपचुनाव:
6 महीने के भीतर कराए जाएं (यदि शेष कार्यकाल 1 वर्ष से कम हो तो आवश्यक नहीं)।
▪ अधिकतम दो सीटों पर चुनाव लड़ने की सीमा।
▪ प्रचार अवधि कम की गई:
नाम वापसी की अंतिम तिथि और मतदान के बीच की अवधि 20 दिन से घटकर 14 दिन।
III. 1997–2009 के बीच हुए प्रमुख सुधार
▪ राष्ट्रपति/उपराष्ट्रपति चुनाव:
- राष्ट्रपति के लिए प्रस्तावक संख्या 10 से बढ़ाकर 50
- उपराष्ट्रपति के लिए 5 से बढ़ाकर 20
▪ डाक मतपत्र (Postal Ballot):
कुछ श्रेणियों को डाक मतपत्र से मतदान की अनुमति।
▪ सशस्त्र बलों के लिए प्रॉक्सी मतदान (2003)।
▪ उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि, संपत्ति, देनदारी एवं शिक्षा विवरण सार्वजनिक करना अनिवार्य।
झूठी जानकारी देना दंडनीय।
▪ 2003: राज्यसभा सुधार:
- निवास संबंधी अनिवार्यता समाप्त
- खुला मतपत्र प्रणाली (Open Ballot)
▪ राजनीतिक दलों को मुफ्त मतदाता सूची और चुनाव सामग्री उपलब्ध।
▪ ₹20,000 से अधिक दान पर विवरण अनिवार्य।
कंपनियों को कर छूट।
▪ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समान समय (Equal Airtime) का सिद्धांत।
▪ EVM में ब्रेल सुविधा।
▪ Exit Poll प्रतिबंध:
अनुचित समय पर एग्ज़िट पोल के प्रकाशन पर 2 वर्ष कारावास/जुर्माना।
▪ सुरक्षा जमा राशि बढ़ाई गई:
- लोकसभा: ₹25,000 (SC/ST: ₹12,500)
- विधानसभा: ₹10,000 (SC/ST: ₹5,000)
▪ जिला स्तर पर मतदाता सूची संबंधी अपीलों का निपटारा।
IV. 2010 के बाद हुए चुनावी सुधार
▪ NRI Voting Rights (2010):
विदेश में रह रहे भारतीय नागरिक (नॉन-डुअल) अपने गृह-क्षेत्र में मतदान कर सकते हैं।
▪ 2013: ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण।
▪ NOTA का प्रावधान:
कोई नहीं – विकल्प।
हालाँकि नोटा जीतने पर भी दूसरा सबसे अधिक मत प्राप्त उम्मीदवार विजयी माना जाएगा।
▪ VVPAT (वोटर-वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल):
मतदाता को मतदान की पर्ची दिखाकर पारदर्शिता सुनिश्चित।
▪ जेल में बंद/पुलिस हिरासत में व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है।
▪ दंडित सांसद/विधायक की तत्काल अयोग्यता (Section 8(4) रद्द)।
▪ खर्च सीमा बढ़ी:
- लोकसभा: ₹70 लाख
- विधानसभा: ₹28 लाख (क्षेत्र/राज्य अनुसार भिन्न)
▪ 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना लागू
,
परंतु 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित किया (अनाम दान लोकतंत्र के मूल अधिकारों का उल्लंघन)।
चुनावी सुधारों से संबंधित प्रमुख समितियाँ
1. तारकुंडे समिति (1974):
- इस समिति ने सुझाव दिया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक समिति की सिफारिश पर हो।
- प्रस्तावित समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों।
2. दिनेश गोस्वामी समिति (1990):
- भारत में व्यापक चुनावी सुधारों पर सुझाव देने हेतु गठित।
- इसकी कई सिफारिशें 1996 में लागू की गईं।
3. वोहरा समिति (1993):
- राजनीति और अपराध के गठजोड़ की जाँच के लिए गठित।
- इसने अपराधी-राजनीति गठबंधन को गंभीर खतरा बताया।
4. इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998):
- चुनावों के राज्य द्वारा वित्तपोषण (State Funding) पर केंद्रित।
- इस समिति ने चरणबद्ध राज्य वित्तपोषण का समर्थन किया।
5. विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999):
- चुनावी कानूनों में सुधार संबंधी सुझाव दिए।
- राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र, चुनाव व्यय नियंत्रण आदि प्रमुख विषय थे।
6. तंखा समिति (2010):
- चुनावी कानूनों की समीक्षा और सुधार हेतु गठित मुख्य समिति।
- चुनाव प्रक्रिया को आधुनिक और पारदर्शी बनाने संबंधी अनुशंसाएँ कीं।
7. विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट (2015):
- व्यापक चुनावी सुधारों पर केंद्रित।
- चुनाव आयोग की शक्तियों में वृद्धि, राजनीतिक दलों के नियमन और चुनावी फंडिंग सुधारों पर ज़ोर।
8. समानांतर चुनावों (Simultaneous Elections) पर उच्चस्तरीय समिति:
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित।
मुख्य अनुशंसाएँ:
- चरणबद्ध क्रियान्वयन:
पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ,
उसके 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव। - एकीकृत मतदाता सूची और EPIC:
सभी स्तरों के लिए एक ही मतदाता सूची और एक ही EPIC कार्ड।
इससे त्रुटि और दोहराव कम होंगे। - आर्थिक एवं विधिक पहलू:
बार-बार चुनाव से होने वाले प्रशासनिक व्यवधान कम होंगे।
शासन क्षमता और संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होगा।
चुनावी प्रक्रिया में प्रमुख चिंताएँ (Key Concerns)
1. EVM टैम्परिंग की चिंता:
- कुछ आलोचकों ने EVM में छेड़छाड़ की आशंका जताते हुए पेपर बैलेट और VVPAT की 100% गिनती की माँग की।
- सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ण VVPAT मिलान की माँग खारिज की और कहा—
→ हर पर्ची गिनना ज़रूरी नहीं है।
→ संदेह होने पर 5% EVM की मेमोरी चिप का सत्यापन किया जा सकता है।
2. मतदाता सूची में हेरफेर:
- महाराष्ट्र व दिल्ली में नकली मतदाताओं के आरोप लगे।
- EC ने स्पष्ट किया कि यह पुरानी विकेन्द्रित EPIC प्रणाली का प्रभाव था,
जिसे अब ERONET (केंद्रीकृत Electoral Roll Management System) से ठीक किया गया है।
3. डुप्लिकेट EPIC नंबर:
- पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में एक ही EPIC नंबर होने की शिकायतें।
4. आचार संहिता (MCC) उल्लंघन:
- स्टार प्रचारक जाति/धर्म आधारित बयान, आपत्तिजनक भाषा और भ्रामक आरोप लगाते हैं।
5. चुनावी खर्च:
- उम्मीदवार खर्च सीमा का उल्लंघन करते हैं।
- राजनीतिक दलों के लिए कोई खर्च सीमा ही नहीं है।
- 2024 लोकसभा चुनाव का खर्च लगभग ₹1,00,000 करोड़ आँका गया।
6. राजनीति का अपराधीकरण:
- ADR रिपोर्ट (2024):
→ 46% निर्वाचित सांसदों पर आपराधिक मामले।
→ 31% पर बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसे गंभीर आरोप।
चुनावी प्रक्रिया में और कौन-से सुधार आवश्यक हैं?
▪ 1. चुनाव प्रचार में सुधार:
- गंभीर MCC उल्लंघन पर चुनाव आयोग को स्टार प्रचारक का दर्जा रद्द करने की शक्ति मिले।
- कानून में संशोधन कर पार्टियों के फंड को उम्मीदवार की खर्च सीमा के भीतर समायोजित किया जाए।
- राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम, 2005 के दायरे में लाया जाए।
- उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों का खुलासा सख्ती से लागू किया जाए।
▪ 2. मतदाता सूची की शुद्धता:
- आधार–EPIC लिंकिंग विचार योग्य,
पर गोपनीयता (privacy) संबंधी चिंताओं का समाधान आवश्यक।
▪ 3. मतदान और मतगणना प्रक्रिया:
- VVPAT मिलान का नमूना (sample size) वैज्ञानिक आधार पर निर्धारित हो।
- टोटलाइज़र मशीन का उपयोग शुरू किया जाए—
→ 14 बूथों के मतों को मिलाकर गिनती होगी,
→ वोटरों का गोपनीयता संरक्षण बढ़ेगा। - उम्मीदवारों को संदिग्ध छेड़छाड़ की स्थिति में 5% EVM सत्यापन का अधिकार मिले।
▪ 4. मतदाता जागरूकता:
- मीडिया और नागरिक समाज की चुनाव निगरानी को समर्थन।
- राजनीतिक नेताओं के लिए नैतिकता आधारित प्रशिक्षण
ताकि जवाबदेही और लोकतांत्रिक मूल्य मजबूत हों।
Discover more from Politics by RK: Ultimate Polity Guide for UPSC and Civil Services
Subscribe to get the latest posts sent to your email.

