भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश के लिए प्रशासनिक सुधार न केवल सरकारी कार्य प्रणाली को सुचारू और जन-हितैषी बनाने के लिए आवश्यक हैं, बल्कि जन आकांक्षाओं और बदलती वैश्विक व्यवस्थाओं के अनुकूल सरकारी तंत्र को प्रतिस्पर्धी और आधुनिक बनाए रखने के लिए भी अपरिहार्य हैं। प्रशासनिक सुधारों का उद्देश्य प्रशासनिक संरचना, प्रक्रियाओं और व्यवहार में व्यापक परिवर्तन लाना है ताकि व्यवस्था आधुनिक चुनौतियों का सामना कर सके तथा नागरिकों को बेहतर सेवाएँ उपलब्ध कराई जा सकें।
प्रशासनिक सुधार: अर्थ और अभिप्राय
प्रशासनिक सुधार का अभिप्राय प्रशासनिक प्रणाली की दक्षता, पारदर्शिता, जवाबदेही और जन केंद्रितता बढ़ाना है। इसका केवल संरचनागत परिवर्तन ही नहीं, बल्कि प्रक्रिया, संस्कृति, नीतिगत दृष्टिकोण और संगठनात्मक व्यवहार में बदलाव लाने से भी संबंध है।
प्रशासनिक सुधार के विभिन्न रूप:
- संगठनात्मक सुधार: मंत्रालयों/विभागों की संरचनाओं का पुनर्गठन और प्रक्रियाओं का सरलकरण।
- कार्मिक प्रशासन में सुधार: भर्ती, पदोन्नति, प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास में बदलाव।
- वित्तीय प्रबंधन सुधार: बजटीय प्रणाली, लेखा प्रणाली में पारदर्शिता।
- ई-गवर्नेंस: प्रशासनिक सेवाओं का डिजिटलीकरण।
- ग्रामीण एवं शहरी प्रशासन में विकेन्द्रीकरण: पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना।
भारतीय प्रशासन में सुधार की आवश्यकता के प्रमुख कारण:
- बदलती जन अपेक्षाएं: नागरिक अब पारदर्शी, शीघ्र एवं तर्कसंगत सेवाओं की अपेक्षा रखते हैं।
- आर्थिक एवं सामाजिक बदलाव: भारत की अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण, डिजिटल परिवर्तन और उदारीकरण के दौर से गुजर रही है।
- ब्यूरोक्रेटिक जड़ता और भ्रष्टाचार: निर्णय-प्रक्रियाओं में देर, अनुपयुक्तता और भ्रष्टाचार नागरिक असंतोष को जन्म देती है।
- गवर्नेंस की वैश्विक तुलना: दक्षता, नवाचार और जवाबदेही देशों की प्रतिस्पर्धा के प्रमुख सूचक बन गए हैं।
- नीति क्रियान्वयन में कमजोरियाँ: प्रशासन के पुराने ढांचे जटिलताओं और नए शासन मॉडल के अनुकूल नहीं हैं।
भारत में अब तक किए गए प्रमुख प्रशासनिक सुधार
- प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC-I, 1966): शासन की संरचना, प्रक्रिया, वित्तीय प्रबंधन, कार्मिक प्रशासन, शिकायत निवारण और केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार की सिफारिशें।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC-II, 2005): ई-गवर्नेंस, नागरिक चार्टर, लोकपाल, सामाजिक अंकेक्षण, विकेंद्रीकरण, सार्वजनिक-निजी सहभागिता, प्रदर्शन प्रबंधन आदि पर विस्तृत सुझाव।
- सारकारिया आयोग (1983): केंद्र-राज्य संबंधों को मजबूत करने हेतु।
- इकोनॉमिक एडमिनिस्ट्रेशन रिफॉर्म्स कमिशन (EARC, 1983): आर्थिक प्रशासन को बाजार समर्थ और दक्ष बनाने हेतु सिफारिशें।
- राष्ट्रीय संविधान समीक्षा आयोग (2000): संविधान के प्रशासनिक पहलुओँ की समीक्षा।
- मिशन कर्मयोगी (2020): सिविल सेवा में क्षमता निर्माण और निरंतर सीखने की संस्कृति को प्रोत्साहन।
- लैटरल एंट्री: विशेषज्ञों की नियुक्ति से दक्षता व नवाचार।
- डिजिटल इंडिया, सीपीग्राम्स, ई-ऑफिस, गुड गवर्नेंस इंडेक्स जैसे तकनीकी नवाचार।
प्रशासनिक सुधारों को लागू करने में आने वाली बाधाएँ:
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: नेतृत्त्व स्तर पर इच्छाशक्ति और सर्वसम्मति का अभाव।
- ब्यूरोक्रेटिक जड़ता और अहंकार: परिवर्तन का विरोध, पद/सत्ता खोने का भय, सांस्कृतिक रुढ़ियाँ।
- संरचनात्मक जटिलता: बदलते नियम, प्रक्रियाओं की कठोरता, संसाधनों की कमी।
- विषम समन्वय एवं संचार: विभागों में समन्वय की कमी, निर्णय लेने की धीमी गति।
- जन सहभागिता की न्यूनता: सुधारों के विषय में जनता तक पर्याप्त जानकारी नहीं पहुँचती।
- प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण का अभाव: कर्मचारियों में अद्यतनता और आधुनिक कौशल की कमी।
- भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, राजनीतिक हस्तक्षेप: भ्रष्टाचार की उच्च दर एवं राजनीतिक प्रभाव प्रणाली को कमजोर करता है।
बाधाओं के समाधान एवं सुधारों को सफल बनाने के उपाय:
- राजनीतिक एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति का निर्माण: सभी स्तरों पर नेतृत्व को जागरूक और प्रतिबद्ध बनाना।
- प्रणालीगत एवं सांस्कृतिक बदलाव: संचार, सहयोग और नवाचार को प्रोत्साहित करना।
- जनसहभागिता और पारदर्शिता: सोशल मीडिया, सार्वजनिक मंच, नागरिक चार्टर, सोशल ऑडिट से सहभागिता बढ़ाना।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: मॉर्डन तकनीकी प्रशिक्षण, केस स्टडी, वैश्विक मॉडल के अनुरूप प्रशिक्षण पाठ्यक्रम।
- ई-गवर्नेंस और तकनीक का अधिकतम उपयोग: डेटा एनालिटिक्स, AI, ब्लॉकचेन, ऑनलाइन शिकायत निवारण।
- लालफीताशाही समाप्त करें: सिंगल विंडो क्लियरेंस, पेपरलेस प्रक्रिया।
- नैतिक प्रशासन एवं जवाबदेही: प्रोजेक्ट ट्रैकिंग, व्हिसलब्लोअर संरक्षण, संपत्ति घोषणा की अनिवार्यता।
- डिसेंट्रलाइजेशन और स्थानीय स्वशासन: पंचायत/नगर निकायों को वित्तीय व निर्णयात्मक स्वतंत्रता देना।
निष्कर्ष
देश में जन आकांक्षाओं, आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मद्देनज़र आधुनिक, दक्ष, पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासनिक ढांचे का निर्माण करना अपरिहार्य है। प्रशासनिक सुधारों की सफलता के लिए न केवल राजनीतिक नेतृत्व की प्रतिबद्धता, बल्कि सक्रिय जन सहभागिता, तकनीकी नवाचार, निरंतर प्रशिक्षण एवं पारदर्शी जवाबदेही आवश्यक है। प्रशासनिक सुधार न केवल सरकारी व्यवस्था का सुचारू संचालन सुनिश्चित करते हैं, बल्कि लोकतांत्रिक, समावेशी और जन-हितैषी समाज की नींव को भी सशक्त बनाते हैं।
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