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भारत में महिला संगठन

भारत में महिला आंदोलन का इतिहास लंबा और विविधतापूर्ण रहा है। यह आंदोलन केवल महिलाओं के अधिकारों की माँग तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने समाज, राजनीति और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को भी गहराई से प्रभावित किया है। 1970 के दशक से लेकर आज तक, महिला आंदोलन ने अपनी दिशा, रूप और प्रभाव में कई परिवर्तन देखे हैं।

महिला आंदोलन में कई तरह की अलग-अलग महिलाएँ और संगठन शामिल हैं जैसे स्वतंत्र नारीवादी संगठन, वामपंथी महिला समूह, गांधीवादी समूह, धर्म या समुदाय आधारित संगठन, और अलग-अलग पेशों से जुड़ी महिलाएँ। हालाँकि, व्यवहार में इन सबके बीच का अंतर हमेशा साफ नहीं दिखता।

सेवा(Self-Employed Women’s Association) ने कामकाजी महिलाओं को ट्रेड यूनियन की तरह संगठित किया है, लेकिन इसकी सोच गांधीजी के विचारों से प्रभावित है।
प्रगतिशील महिला संगठन’ एक स्वतंत्र संगठन है, लेकिन इसकी सोच कुछ हद तक वामपंथी है।
यंग विमेंस क्रिश्चियन एसोसिएशन (YWCA)’ धर्म पर आधारित संगठन है, लेकिन यह कई महिला मुद्दों पर फोरम अगेंस्ट ऑपरेशन ऑफ विमेन’ जैसे स्वतंत्र संगठनों और अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन’ जैसे वामपंथी समूहों के साथ मिलकर काम करता है। इसलिए महिला संगठनों को वर्गों में बाँटना आसान नहीं है, क्योंकि हर संगठन की अपनी विचारधारा, प्राथमिकताएँ, लक्ष्य, संरचना और काम करने के तरीके अलग-अलग होते हैं। कई बार इन संगठनों ने आपसी मतभेदों के बावजूद एक-दूसरे से जुड़ने की कोशिश की है और खास मुद्दों पर मिलकर काम भी किया है।

एक ओर देश में बढ़ते स्वदेशी आंदोलनों का असर था, तो दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष और महिलाओं की स्थिति पर आई रिपोर्ट ने भारत में महिला आंदोलन की ज़रूरत को और गहराई से महसूस करवाया। महिलाओं के संघर्ष लगातार जारी रहे, और 1970 से लेकर 1980-90 के दशकों तक कई नए समूह और संगठन बनते गए।

नए संगठनों का गठन
1974 में हैदराबाद मेंप्रगतिशील महिला संगठन’ (Progressive Organization of Women):

इसे कुछ कम्युनिस्ट विचारधारा वाली महिलाओं ने मिलकर बनाया था। ये महिलाएँ लंबे समय से पुरुष साथियों के साथ काम कर रही थीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें एहसास हुआ कि वामपंथी पार्टियों में भी पितृसत्तात्मक सोच (पुरुष प्रधान मानसिकता) मौजूद है। पार्टी में महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं मिल रहा था। इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर उन्हें अपने शोषण और दमन से जुड़े मुद्दे उठाने हैं, तो इसके लिए उन्हें एक स्वतंत्र महिला संगठन बनाना होगा। यह उनकी राजनीतिक यात्रा का एक नया और साहसिक कदम था।

महाराष्ट्र में, 1975 में पुरोगामी महिला संगठन’:

जिसका मुख्य ध्यान दलित महिलाओं और देवदासियों की समस्याओं पर था। इसके बाद स्त्री मुक्ति संगठन’ और महिला समता सैनिक दल’ जैसे संगठन बने, जिन्होंने समाज में दलित और शोषित महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।

स्वायत्त महिला संगठनों

इसी तरह भारत में स्वतंत्र (स्वायत्त) महिला संगठनों की शुरुआत हुई। ये संगठन भले ही अलग-अलग विचारधाराओं से जुड़े थे, लेकिन एक बात पर सबका मत एक था इनकी सदस्यता सिर्फ महिलाओं तक सीमित रहेगी।ऐसे माहौल में महिलाएँ खुलकर अपनी बात रख सकती थीं। चाहे मुद्दा राजनीतिक हो या पारिवारिक, उन्हें पुरुषों की निगरानी, दखल या टिप्पणी का डर नहीं रहता था। इन संगठनों ने समाज में मौजूद पुरुषसत्ता (पितृसत्ता) की गहराई से आलोचना की और उस पर गंभीर और संवेदनशील दृष्टि से विचार किया। सन् 1970 से 2000 के बीच भारत में कई स्वायत्त महिला संगठन और समूह बने।

इनमें कुछ प्रमुख संगठन थे

मुंबई में फोरम अगेंस्ट रेप’ औरफोरम अगेंस्ट ऑपरेशन ऑफ विमेन’
दिल्ली में ‘सहेली’
हैदराबाद में ‘अस्मिता’
बेंगलुरु में ‘विमोचना’
तमिलनाडु में ‘पेनुरिमै इयक्कम’
उत्तर प्रदेश में ‘महिला मंच’

समय के साथ इन संगठनों ने अपनी अलग पहचान बनाई। इन मंचों ने महिलाओं को बिना किसी डर या पक्षपात के अपनी बात खुलकर कहने का अवसर दिया।

पार्टी आधारित महिला संगठन (Party-Based Women’s Organizations)

सन् 1970 और 1980 के दशकों में भारत में कई राजनीतिक पार्टियों से जुड़े महिला संगठनों का विस्तार हुआ। इनमें से कुछ संगठन पार्टी से थोड़ा स्वतंत्र होकर भी काम करते हैं, लेकिन अधिकतर अपनी पार्टी की शाखा के रूप में ही जाने जाते हैं।

महिला दक्षता समिति (1977): इसे समाजवादी महिलाओं ने बनाया था। इसका नेतृत्व प्रमिला दंडवते और सुमन कृष्णकांत ने किया।
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन (NFIW): यह सबसे पुराने संगठनों में से एक है। पहले यह अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा था, बाद में सी.पी.आई. (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) का हिस्सा बन गया। विमला फारुखी की अध्यक्षता में यह आज भी सक्रिय है।
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन (AIDWA): यह 1978 में बनी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) से जुड़ी है। इस संगठन ने पिछले कई दशकों में कामकाजी वर्ग, मजदूर और गरीब महिलाओं के बीच व्यापक काम किया है। यह ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में सक्रिय है।
महिला कांग्रेस, :कांग्रेस पार्टी से जुड़ी है।
दुर्गा वाहिनी: भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़ा एक महिला संगठन है, जिसकी हज़ारों स्वयंसेविकाएँ हैं।
ये सभी संगठन समय-समय पर विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आंदोलन करते हैं और महिलाओं की आवाज़ उठाते हैं।

अन्य संगठन

क्रम

संगठन का नाम

स्थापना / सक्रिय वर्ष

उद्देश्य / मुख्य कार्यक्षेत्र

1

पिंजरा तोड़ (Pinjra Tod)

2015

विश्वविद्यालयों और छात्रावासों में महिलाओं पर लगाई जाने वाली असमान पाबंदियों का विरोध; महिला स्वतंत्रता और समान अधिकारों के लिए आंदोलन।

2

#MeToo India आंदोलन

2018

कार्यस्थल, मीडिया, और फिल्म जगत में यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता और न्याय की माँग; सोशल मीडिया के ज़रिए महिलाओं की आवाज़ बुलंद करना।

3

महिला किसान अधिकार आंदोलन (Mahila Kisan Adhikar Andolan – MKAA)

2011

खेती में महिलाओं की भूमिका को मान्यता दिलाना; भूमि अधिकार और कृषि नीति में महिला भागीदारी सुनिश्चित करना।

4

राइजिंग फ्लेम (Rising Flame)

2017

दिव्यांग (विकलांग) महिलाओं के अधिकारों, आत्मनिर्भरता और नेतृत्व को बढ़ावा देना।

5

वन बिलियन राइजिंग इंडिया (One Billion Rising India)

2013

महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा के विरोध में राष्ट्रीय और वैश्विक अभियान।

6

ब्रेकथ्रू इंडिया (Breakthrough India)

2010 के बाद सक्रिय विस्तार

घरेलू हिंसा, बाल विवाह, शिक्षा और लैंगिक समानता पर सामाजिक अभियान चलाना (Bell Bajao, Dakhal Do जैसे अभियानों से प्रसिद्ध)।

7

द जेंडर लैब (The Gender Lab)

2014

युवाओं, खासकर लड़कों में लैंगिक समानता की समझ विकसित करना और महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण बनाना।

8

फेमिनिज़्म इन इंडिया (Feminism in India – FII)

2013

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जो जेंडर समानता, LGBTQ+, और महिला अधिकारों पर शिक्षा, शोध और जनजागरूकता फैलाता है।

9

Sayfty (सेफ्टी)

2014

महिलाओं की ऑनलाइन सुरक्षा, आत्मरक्षा प्रशिक्षण, और डिजिटल सुरक्षा पर काम करने वाला संगठन।

10

SheThePeople.TV

2013

डिजिटल प्लेटफॉर्म जो महिलाओं की उपलब्धियों, नेतृत्व और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित है।

11

सखी महिला रिसोर्स सेंटर (Sakhi Women’s Resource Centre)

2010 के बाद सक्रिय विस्तार

घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सहायता सेवाएँ प्रदान करना।

12

नारी शक्ति मंच (Nari Shakti Manch)

2012

गरीब और ग्रामीण महिलाओं के अधिकार, रोजगार, और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर काम करना।

13

द रेड एलीफेंट फाउंडेशन (The Red Elephant Foundation)

2013

कहानी कहने (Storytelling) और मीडिया के माध्यम से शांति, समानता और महिला अधिकारों को बढ़ावा देना।


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