भारत-श्रीलंका के बीच मछली पकड़ने का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बना हुआ है। हाल ही में, श्रीलंका के सदन के नेता बिमल रथनायके ने भारत से श्रीलंकाई जल सीमा में अवैध मछली पकड़ने पर सख्त कदम उठाने की अपील की। उन्होंने भारत के सहयोग की सराहना की लेकिन श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के तमिल मछुआरों की आजीविका बचाने पर जोर दिया, जो इस समस्या से बुरी तरह प्रभावित हैं।
मत्स्य विवाद क्या है?
भारत और श्रीलंका के बीच मत्स्य विवाद मुख्य रूप से पाक खाड़ी और मन्नार की खाड़ी में मछली पकड़ने के अधिकारों को लेकर है। भारतीय मछुआरों, विशेष रूप से तमिलनाडु और पुडुचेरी से, श्रीलंका के समुद्री जलक्षेत्र (Exclusive Economic Zone – EEZ) में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे श्रीलंका इसे अवैध मत्स्यन (Illegal Fishing) मानता है। यह विवाद राष्ट्रीय सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और आजीविका से जुड़ा हुआ है।
मत्स्य विवाद के मुख्य मुद्दे
- सीमा उल्लंघन (IMBL) – भारतीय मछुआरे पारंपरिक मत्स्यन अधिकार का दावा करते हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा (IMBL) पार करने पर उन्हें गिरफ्तार किया जाता है।
- गिरफ्तारी और नाव जब्ती – भारतीय मछुआरे कभी-कभी इंजन खराब होने या मौसम बदलने के कारण श्रीलंकाई जलक्षेत्र में चले जाते हैं। नतीजतन, उनकी गिरफ्तारी, नावों की जब्ती और कभी-कभी नावों का नष्ट किया जाना आम समस्या है।
- बॉटम ट्रॉलिंग – भारतीय मछुआरों द्वारा समुद्र की सतह को नुकसान पहुँचाने वाली यह तकनीक श्रीलंका के लिए चिंता का विषय है। इसमें भारी जाल समुद्र तल पर खींचे जाते हैं, जिससे प्रवाल भित्तियाँ और समुद्री जीवन नष्ट होता है।
- पाक खाड़ी विवाद – यह क्षेत्र भारत-श्रीलंका के बीच बंटा हुआ है, लेकिन मछली पकड़ने के अधिकारों पर मतभेद बना हुआ है।
- मछलियों की कमी – भारतीय जल क्षेत्र में अत्यधिक मत्स्यन के कारण भारतीय मछुआरे श्रीलंकाई जल में चले जाते हैं, जिसे श्रीलंका “अवैध शिकार” मानता है। इससे स्थानीय मछुआरों की आजीविका खतरे में पड़ती है और सुरक्षा जोखिम बढ़ता है।
- कच्चातीवु द्वीप विवाद – 1974 में भारत ने कच्चातीवु द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया, लेकिन मत्स्यन अधिकारों को लेकर विवाद अब भी बना हुआ है। श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों की वहाँ जाने, आराम करने और धार्मिक स्थलों तक पहुँच को सीमित कर दिया है, जिससे यह मुद्दा लगातार उठता रहता है।
श्रीलंका को डर है कि भारतीय ट्रॉलर समन्वित तरीके से उसकी समुद्री सीमा में प्रवेश करते हैं, जो तमिल उग्रवादी समूहों के फिर से सक्रिय होने का खतरा पैदा कर सकते है।
संभावित समाधान हेतु मार्ग
इस समस्या को हल करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें संयुक्त समुद्री संसाधन प्रबंधन, वैकल्पिक आजीविका, सख्त विनियम, क्षेत्रीय सहयोग और मानवीय पहल शामिल हों।
- संयुक्त समुद्री संसाधन प्रबंधन: मत्स्यन गतिविधियों को नियंत्रित करने और समुद्री पारिस्थितिकी को बचाने के लिए एक क्षेत्रीय प्रबंधन निकाय बनाना आवश्यक है।भारत–श्रीलंका संयुक्त कार्य समूह (JWG) – 2016 में स्थापित साझा मत्स्य कार्य समूह को पुनः प्रभावी बनाना चाहिए, ताकि मछुआरों की समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जा सके।
- गहरे समुद्र में मत्स्यन और वैकल्पिक आजीविका: तमिलनाडु के मछुआरों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। भारत सरकार को गहरे समुद्र में मत्स्यन (deep-sea fishing) के लिए तकनीकी और आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए।
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) – यह योजना पाक खाड़ी में मछुआरों को आधुनिक जहाज, समुद्री शैवाल उत्पादन और समुद्र में जीव-पालन जैसी गतिविधियों के लिए समर्थन देती है। पारंपरिक मछुआरों को नई तकनीकों और सतत मत्स्यन पद्धतियों की ओर मोड़ने के लिए आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए - विनियमों का सख्त प्रवर्तन और बॉटम ट्रॉलिंग का निषेध: तमिलनाडु समुद्री मत्स्यन विनियमन अधिनियम, 1983 का प्रभावी कार्यान्वयन हो।
- बॉटम ट्रॉलिंग का चरणबद्ध उन्मूलन – भारत को सतत मत्स्यन के लिए आर्थिक प्रोत्साहन और वैकल्पिक तकनीकों की सहायता प्रदान करनी चाहिए।
- श्रीलंका की जिम्मेदारी – उसे स्पष्ट दिशानिर्देश और निर्दिष्ट क्षेत्र तय करने चाहिए, ताकि मछुआरों को समुद्री सीमा को लेकर भ्रम न रहे।
- वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी सहयोग – भारत और श्रीलंका को सतत मत्स्यन, समुद्री पारिस्थितिकी और संरक्षण परियोजनाओं पर मिलकर काम करना चाहिए।
- निगरानी और सुरक्षा बढ़ाना – ऑस्ट्रेलिया-इंडोनेशिया संयुक्त गश्ती मॉडल अपनाया जा सकता है, जिसमें रियल-टाइम मॉनिटरिंग और सीमा-पार निगरानी शामिल है।
- मछुआरों के शीघ्र प्रत्यावर्तन (Repatriation) की नीति – मछुआरों को मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए, और उनकी जल्द रिहाई और कानूनी सहायता की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए।
- संयुक्त विवाद समाधान तंत्र – दोनों देशों को UNCLOS (संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून) के आधार पर एक स्थायी विवाद समाधान प्रणाली विकसित करनी चाहिए।
भारत और श्रीलंका के बीच संबंध – वर्तमान परिदृश्य
भारत और श्रीलंका के बीच संबंध 2,500 वर्षों से अधिक पुराने हैं। ये संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक रूप से गहरे हैं। भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति और SAGAR (Security and Growth for All in the Region) दृष्टि में श्रीलंका को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
राजनीतिक और राजनयिक संबंध
- भारत और श्रीलंका के बीच नियमित उच्च स्तरीय राजनीतिक आदान-प्रदान होते रहते हैं।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के बाद तीन बार श्रीलंका का दौरा किया।
- विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 2019 के बाद 7 बार श्रीलंका का दौरा किया।
- दोनों देशों के बीच विकास सहयोग, सुरक्षा, और व्यापार जैसे क्षेत्रों में कई समझौते हुए हैं।
व्यापार और आर्थिक सहयोग
- भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 5.5 बिलियन डॉलर तक पहुँचा, जिसमें भारत का निर्यात 4.1 बिलियन डॉलर और श्रीलंका का 1.4 बिलियन डॉलर था।
- भारत ने श्रीलंका के लिए UPI डिजिटल भुगतान प्रणाली को लागू किया और रुपये में व्यापार की सुविधा प्रदान की।
- दोनों देशों ने आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौता (ETCA) पर चर्चा की, जो वस्तुओं और सेवाओं को कवर करता है।
विकास और मानव सहायता
- भारत ने श्रीलंका को 5 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता दी, जिसमें 600 मिलियन डॉलर अनुदान और 4 बिलियन डॉलर की क्रेडिट सुविधा शामिल है।
- 60,000 घरों का निर्माण परियोजना – युद्ध प्रभावित तमिल परिवारों को लाभ।
- आपातकालीन चिकित्सा सेवाएँ – “Suwa Seriya” एंबुलेंस सेवा।
- बौद्ध स्थलों का जीर्णोद्धार – जैसे थिरुकेतेश्वरम मंदिर और सांस्कृतिक केंद्र का विकास।
कनेक्टिविटी और पर्यटन
- चेन्नई–जाफना हवाई सेवा और तमिलनाडु से श्रीलंका तक फेरी सेवा शुरू की गई।
- UPI डिजिटल भुगतान प्रणाली लागू की गई।
- भारत श्रीलंका में 3.2 लाख से अधिक पर्यटकों का सबसे बड़ा स्रोत बना।
भारत और श्रीलंका के बीच बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग
भारत और श्रीलंका के संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक रूप से गहरे हैं। दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करते हैं, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और विकास को बढ़ावा मिलता है।
विकास सहायता
- भारत, श्रीलंका को सबसे अधिक विकास सहायता देने वाले देशों में से एक है।
- भारतीय आवास परियोजना – युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में 50,000 घरों का निर्माण।
- इंफ्रास्ट्रक्चर विकास – बिजली परियोजनाएँ, रेलवे सुधार, और सामाजिक कल्याण योजनाएँ।
- नवीनतम पहल (2022) – श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में हाइब्रिड पावर प्रोजेक्ट और त्रिंकोमाली व कंकसानथुराई बंदरगाहों का विकास।
आर्थिक सहयोग
- भारत और श्रीलंका के बीच व्यापारिक संबंध भारत–श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते (ISFTA) द्वारा मजबूत हुए हैं।
- भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, और 60% से अधिक निर्यात ISFTA से लाभान्वित होते हैं।
- दोनों देश आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते (ETCA) पर भी विचार कर रहे हैं।
- श्रीलंका में UPI का उपयोग – इससे डिजिटल लेनदेन आसान हुआ और भारत के फिनटेक नेटवर्क से श्रीलंका को फायदा हुआ।
- रुपए में व्यापार – भारतीय मुद्रा में व्यापार से श्रीलंका की विदेशी मुद्रा संकट में मदद मिली।
सांस्कृतिक संबंध
- भारत और श्रीलंका के सांस्कृतिक संबंध हजारों वर्षों पुराने हैं, जिनमें बौद्ध धर्म, रामायण और तमिल संस्कृति की गहरी जड़ें हैं।
1977 का सांस्कृतिक सहयोग समझौता – दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला। - भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (कोलंबो) – भारतीय कला, संगीत, योग और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है।
- भारत–श्रीलंका फाउंडेशन (1998) – वैज्ञानिक और सांस्कृतिक सहयोग को मजबूत करता है।
- बौद्ध तीर्थ यात्रा – बौद्ध धर्म की विरासत को बनाए रखने के लिए भारत और श्रीलंका संयुक्त रूप से प्रयास कर रहे हैं।
रक्षा और सुरक्षा सहयोग
- भारत और श्रीलंका हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए रक्षा साझेदारी को मजबूत कर रहे हैं।
- संयुक्त सैन्य अभ्यास: “मित्र शक्ति“ (थल सेना), “SLINEX” (नौसेना)
- भारतीय सैन्य सहायता – भारत ने श्रीलंका को फ्री–फ्लोटिंग डॉक, डोर्नियर टोही विमान, और एक सैन्य प्रशिक्षण टीम प्रदान की है।
- समुद्री सुरक्षा सहयोग – हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए, भारत श्रीलंका को सुरक्षा सहायता और निगरानी तकनीक प्रदान कर रहा है।
बहुपक्षीय सहयोग
- भारत और श्रीलंका विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग कर रहे हैं।
- बिम्सटेक (BIMSTEC) – बंगाल की खाड़ी में आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा।
- सार्क (SAARC) – दक्षिण एशियाई देशों के साथ क्षेत्रीय संबंधों को मजबूत करने में साझेदारी।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) और WTO – दोनों देश वैश्विक स्तर पर व्यापार और कूटनीति में सहयोग कर रहे हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
भारत-श्रीलंका संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक रूप से गहरे हैं। हालांकि मत्स्य विवाद, कच्चातीवु द्वीप मुद्दा और श्रीलंका में चीन की बढ़ती उपस्थिति जैसे कुछ मुद्दे दोनों देशों के संबंधों में तनाव पैदा करते हैं, लेकिन राजनीतिक सहयोग, व्यापार, रक्षा, विकास सहायता और सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से द्विपक्षीय साझेदारी को निरंतर मजबूत किया जा रहा है।
मत्स्य विवाद के समाधान के लिए संयुक्त संसाधन प्रबंधन, बॉटम ट्रॉलिंग पर नियंत्रण, गहरे समुद्र में मत्स्यन को बढ़ावा और कानूनी विवाद समाधान तंत्र जैसे उपायों को लागू किया जाना चाहिए। व्यापार और आर्थिक सहयोग, रक्षा साझेदारी, पर्यटन और कनेक्टिविटी, और संयुक्त बहुपक्षीय भागीदारी से दोनों देशों को क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास में लाभ मिलेगा।