भारत और साइप्रस के द्विपक्षीय संबंध ऐतिहासिक मित्रता, साझा मूल्यों, और गहराते रणनीतिक सहयोग पर आधारित हैं। 1950 के दशक से शुरू हुई यह साझेदारी गुटनिरपेक्ष आंदोलन, औपनिवेशिक विरोध, और संप्रभुता के सम्मान जैसे साझा आदर्शों पर आधारित रही है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- दोनों देशों ने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
- साइप्रस ने हमेशा जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भारत का समर्थन किया।
- भारत ने भी लगातार साइप्रस की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है, विशेष रूप से तुर्की के साथ इसके विवाद में।
- • कूटनीतिक संबंध: 1962 में साइप्रस के 1960 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र होने के बाद औपचारिक संबंध स्थापित हुए। भारत ने साइप्रस की स्वतंत्रता के संघर्ष का समर्थन किया और उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का लगातार समर्थन किया, विशेष रूप से साइप्रस-तुर्की विवाद के संदर्भ में।• गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM): दोनों देश NAM में सक्रिय रहे। 1947 में नई दिल्ली के सप्तु हाउस में आयोजित एशियाई संबंध सम्मेलन ने भारत और साइप्रस जैसे नव-स्वतंत्र राष्ट्रों के बीच एकजुटता की नींव रखी।• उच्च-स्तरीय दौरे: 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा ने दो दशकों बाद इस संबंध को नई गति दी।
वर्तमान प्रासंगिकता और रणनीतिक महत्व:
1. भौगोलिक और सामरिक स्थिति:
- साइप्रस की स्थिति पूर्वी भूमध्यसागर में है — यह भारत के लिए यूरोप, मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका तक पहुंच का रणनीतिक प्रवेश द्वार है।
- Energy routes, Suez Canal और maritime security की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण।
2. भारत–EU संबंधों में भूमिका:
- साइप्रस EU का सदस्य है।
- भारत EU के साथ FTA (Free Trade Agreement) चाहता है, जिसमें साइप्रस एक सहयोगी भूमिका निभा सकता है।
3. आर्थिक और निवेश सहयोग:
- साइप्रस भारत में निवेश करने वाले शीर्ष देशों में रहा है, यद्यपि पहले यह “round tripping” और tax haven से जुड़ा था।
- Double Taxation Avoidance Agreement (DTAA) पर पुनः वार्ता ने इसे अधिक पारदर्शी बनाया है।
4. रक्षा और सुरक्षा सहयोग:
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा (2025) के दौरान Maritime cooperation, cyber security, counter-terrorism पर समझौते हुए।
- भारत साइप्रस के माध्यम से Mediterranean में शक्ति संतुलन बना रहा है, विशेष रूप से तुर्की–पाकिस्तान के गठबंधन की पृष्ठभूमि में।
5. सांस्कृतिक और शैक्षिक संपर्क:
- मेडिसिन और ह्यूमैनिटीज़ में कई भारतीय छात्र साइप्रस की यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ते हैं।
- सॉफ्ट पावर और people-to-people contact का विस्तार हो रहा है।
भू-राजनीतिक संकेत:
- प्रधानमंत्री मोदी को “Grand Cross of the Order of Makarios III” सम्मान मिला — यह उच्चतम नागरिक सम्मान है।
- यह यात्रा 23 वर्षों बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई — यह साइप्रस को दी गई रणनीतिक प्राथमिकता दर्शाता है।
- यह दौरा भारत की तुर्की द्वारा कब्जे वाले Northern Cyprus को अमान्यता और साइप्रस की संप्रभुता के समर्थन का स्पष्ट संकेत था।
साइप्रस–तुर्की विवाद में भारत की स्थिति:
- 1974 में तुर्की ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर TRNC की स्थापना की जिसे केवल तुर्की मान्यता देता है।
- भारत इस क्षेत्रीय विवाद में Republic of Cyprus के साथ खड़ा है और UN प्रस्तावों का समर्थन करता है।
भारत की सक्रिय सैन्य कूटनीति:
- यात्रा के दौरान Maritime training, intelligence sharing, cyber-security teams सक्रिय रहीं।
- भारत IMEC (India-Middle East-Europe Corridor) में साइप्रस को महत्वपूर्ण लिंक मानता है।
साइप्रस की आतंकवाद पर भारत का समर्थन:
- पहलगाम आतंकी हमले की साइप्रस ने स्पष्ट निंदा की।
- EU Foreign Ministers’ Council में साइप्रस ने भारत के पक्ष में मुद्दा उठाया।
- Operation Sindoor के संदर्भ में भी साइप्रस ने भारत के दृष्टिकोण का समर्थन किया।
चुनौतियाँ:
- द्विपक्षीय व्यापार अभी भी सीमित (लगभग USD 200–500 मिलियन)
- साइप्रस का छोटा आकार और EU में उसकी सीमित आवाज
- क्षेत्रीय अस्थिरता — तुर्की के साथ विवाद
- • मोदी की साइप्रस यात्रा: 16 जून 2025 को साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिदेस ने मोदी को साइप्रस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III’ प्रदान किया। मोदी ने इसे 1.4 अरब भारतीयों का सम्मान बताया।• आतंकवाद विरोधी सहयोग: साइप्रस ने भारत के सीमा-पार आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में समर्थन दिया। दोनों देशों ने आतंकवाद, नशीली दवाओं की तस्करी और हथियारों की तस्करी से निपटने के लिए वास्तविक समय में सूचना आदान-प्रदान की व्यवस्था स्थापित करने पर सहमति जताई।• संयुक्त राष्ट्र सुधार: साइप्रस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किया।
• आर्थिक और कर सहयोग: 2022 में भारत ने OECD के BEPS ढांचे को अपनाया, और साइप्रस ने कर पारदर्शिता में सहयोग किया, जिसे कूटनीतिक उपलब्धि माना गया।
भारत–साइप्रस संबंध केवल कूटनीतिक शिष्टाचार तक सीमित नहीं हैं। यह संबंध अब रणनीतिक साझेदारी, साझा सुरक्षा हितों, और वैश्विक शक्ति-संतुलन में सहभागिता के रूप में बदल रहे हैं। प्रधानमंत्री की यात्रा ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया कि भारत यूरोप और भूमध्यसागर में अपनी उपस्थिति और भूमिका को सशक्त बनाने की दिशा में गंभीर है। छोटे लेकिन सामरिक रूप से महत्वपूर्ण राष्ट्रों के साथ संबंधों को सुदृढ़ कर भारत एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी स्थिति को मज़बूत कर रहा है।
• परमाणु क्षमता: SIPRI की 2025 की रिपोर्ट में भारत की परमाणु क्षमता को पाकिस्तान से उन्नत बताया गया। साइप्रस का भारत के आतंकवाद विरोधी रुख का समर्थन इस सामरिक संवाद को पूरक बनाता है।
• रक्षा सहयोग: आतंकवाद विरोधी सहयोग से रक्षा और खुफिया जानकारी साझा करने की संभावना बढ़ी है।
आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध
• व्यापार और निवेश: भारत साइप्रस को फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा और रसायन निर्यात करता है। साइप्रस यूरोपीय संघ में भारतीय व्यवसायों के लिए प्रवेश द्वार है। साइप्रस में 7,000 भारतीय प्रवासी आईटी, शिपिंग और आतिथ्य क्षेत्र में योगदान देते हैं।
• सांस्कृतिक कूटनीति: नई दिल्ली का सप्तु हाउस भारत की विदेश नीति का केंद्र रहा है, जहां साइप्रस जैसे देशों के साथ सांस्कृतिक और कूटनीतिक आयोजन होते हैं। साइप्रस भारत के सांस्कृतिक उत्सवों और शैक्षिक आदान-प्रदान में भाग लेता है।
• पर्यटन और शिक्षा: साइप्रस भारतीय पर्यटकों और छात्रों को आकर्षित करता है। विश्वविद्यालयों में व्यवसाय और प्रौद्योगिकी के कार्यक्रम, छात्रवृत्तियां और MoUs शैक्षिक सहयोग को बढ़ाते हैं।
चुनौतियां और अवसर
• साइप्रस मुद्दा: साइप्रस-तुर्की विवाद में भारत का शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन विश्वास बढ़ाता है, लेकिन तुर्की के क्षेत्रीय प्रभाव के कारण सावधानी बरतनी पड़ती है।
• आर्थिक संभावनाएं: साइप्रस की रणनीतिक स्थिति और EU सदस्यता भारत को फिनटेक और नवीकरणीय ऊर्जा में यूरोप में विस्तार का अवसर देती है।
• भू-राजनीतिक संरेखण: दोनों देश आतंकवाद और बहुपक्षवाद पर चिंता साझा करते हैं, जो UN और कॉमनवेल्थ जैसे मंचों पर गहरे सहयोग की नींव रखता है।