in

मोदी 3.0 और भारत की विदेश नीति

Modi 3.0 and India’s Foreign Policy

मोदी 3.0 और भारत की विदेश नीति    Modi 3.0 and India’s Foreign Policy


This is a time for us to engage America, manage China, cultivate Europe, reassure Russia, bring Japan into play, draw  neighbours in, extend the neighbourhood and expand traditional constituencies of support.– The India Way, @DrSJaishankar

उपर्युक्त कथन भारत के विदेश मंत्री की लिखित पुस्तक द इंडिया वे से लिया गया है।इस उद्धरण में जो भी लिखा है वह भारत की भविष्य की विदेश नीति का सार है।

देखा जाए तो वैश्विक पटल पर दो बड़े संघर्ष चल रहे हैं।प्रथम,रूस और यूक्रेन तथा दूसरा, इजरायल और ईरान,फिलिस्तीन,लेबनान संघर्ष।वहीं अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी ने वैश्विक परिदृश्य को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

भारत की वैश्विक कूटनीति में सरपंच बनने की चाह प्रत्यक्ष रूप से दिखाई भी पड़ रही है।जवाहर लाल नेहरू के बाद नरेंद्र मोदी दूसरे प्रधानमंत्री हैं जिनकी विदेश मामलों में व्यक्तिगत रुचि है।

इसके अतिरिक्त मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में विदेश नीति का मेन बैटलग्राउंड दक्षिण एशिया और पड़ोसी देश ही है क्योंकि चीन की बढ़ती पैठ,बांग्लादेश में बढ़ता कट्टरपंथ,मालदीव और नेपाल में प्रो चाइना सत्ता की वापसी इस क्षेत्र को भारतीय कूटनीति के मद्देनजर बहुत ही चुनौतीपूर्ण बनाता है।

नई प्रवृत्तियों की बात करें तो तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद, उन्होंने सबसे पहले जून में इटली के प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी के निमंत्रण पर इटली में जी7 नेताओं की आउटरीच बैठक में भाग लिया।

पीएम मोदी ने पोलैंड, यूक्रेन और ऑस्ट्रिया का अपना पहला दौरा किया था। भारत की ओर से किसी प्रधानमंत्री का पोलैंड दौरा 45 साल बाद हुआ।वहीं ऑस्ट्रिया और युद्ध प्रभावित यूक्रेन में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा थी।

हम इस पूरे टॉपिक को दो भागों में देखेंगे पहला भाग, मोदी 3.0 की भारत के पड़ोसी देशों के साथ विदेश नीति और दूसरा भाग भारत की वैश्विक पटल पर मोदी 3.0 की  विदेश नीति।

पड़ोसियों के संबंध में:

भारत ने अपने पड़ोसियों के संदर्भ में समय समय पर विभिन्न सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं,जोकि निम्नलिखित हैं:

  • हिंदी चीनी भाई भाई
  • पंचशील सिद्धांत
  • गुजराल डॉक्ट्रिन
  • लुक ईस्ट नीति
  • एक्ट ईस्ट नीति
  • लुक वेस्ट नीति

इन पूर्ववर्ती नीतियों के अतिरिक्त वर्तमान मोदी सरकार ने 5 S कूटनीति को अपनाया है,जोकि है:

S- samman (सम्मान)

S- samvaad (संवाद)

S- sahyog (सहयोग)

S- shanti (शांति)

S- samriddhi (समृद्धि)

   

 

1- चीन: 

  • मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की पड़ोसियों के साथ नीतियों में सबसे बड़ी हाइलाइट ब्रिक्स बैठक से पूर्व हुआ हालिया सीमा पर निगरानी बहाली समझौता है। डोकालाम विवाद से चार वर्षों से चल रहे गतिरोध को अंत करते हुए दोनों देशों ने 21 अक्टूबर 2024 को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पैट्रोलिंग को लेकर हुए समझौता का ऐलान कर दिया।
  • इसके अतिरिक्त चीन को लेकर भारत के तीन मुद्दे हैं,जिसको भारत को अपनी विदेश नीति के माध्यम से संतुलित करना होता है:
  • पहला, भारत के पड़ोसियों में अपने कर्ज जाल के माध्यम से प्रभाव बढ़ाकर अपने हितों को स्थापित करना।
  • दूसरा,रूस और पाकिस्तान के साथ मिलकर एक त्रिकोण बनाना जो भारत के लिए एक मनोवैज्ञानिक चिंता पैदा करता है।
  • तीसरा, तिब्बत और दलाई लामा को लेकर चीन के साथ समय-समय पर होने वाली जुबानी जंग।

मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में सभी बिंदुओं को साधने की कोशिश की है।

 

2-बांग्लादेश :

  • मोदी सरकार 3.0 के समक्ष ओवरऑल पड़ोसियों के संबंध में अगर कहीं सबसे बड़ी असफलता हाथ लगी है तो वह है बांग्लादेश में।
  • बांग्लादेश में छात्र विद्रोह और उसके परिणामस्वरूप भारत मित्र हसीना सरकार का सत्ता से बेदखल होना और एक ऐसी कार्यवाहक सरकार का आना जो भारत विरोधी कदमों को उठा रही है।
  • साथ ही बांग्लादेश में ऐसी कट्टरपंथी ताकतों को मजबूती मिल रही है जिनकी पाकिस्तान से निकटता है और भारत विरोधी कार्यों,बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा में संलिप्तता है।
  • वर्तमान मोदी सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है कि बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार की “मेगाफोन कूटनीति” है।

 

मेगाफोन कूटनीति : यदि देशों या पक्षों के बीच वार्ता प्रेस विज्ञप्तियों और घोषणाओं के माध्यम से की जाती है, तो यह मेगाफोन कूटनीति है, जिसका उद्देश्य दूसरे पक्ष को वांछित रुख अपनाने के लिए मजबूर करना होता है।

 

3-मालदीव :

 

  • मोदी 3.0 सरकार के आने से कुछ महीनों पहले हुए मालदीव में सत्ता परिवर्तन ने भारत विरोधी दृष्टिकोण वाली मुइज्जु सरकार के आने से भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं।
  • मुइज्जु सरकार का चीन के प्रति झुकाव और उसके द्वारा अपने पोर्ट्स को चीन को सैन्य प्रयोग के लिए देने की आशंका मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में भारतीय विदेश नीति की निर्धारक तत्व है.
  • पिछले पांच वर्षों से भारत मालदीव के संबंधों में काफी समृद्धता आई थी,लेकिन इंडिया आउट मूवमेंट के जनक पूर्व राष्ट्रपति के समर्थन से आई वर्तमान मुइज्जु सरकार ने भारतीय प्रोजेक्ट्स,भारतीय सैनिकों आदि पर कड़ा रुख अपनाना शुरू कर दिया।
  • हालांकि मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में मालदीव के साथ कठोरता और अप्रत्यक्ष प्रतिबंधों की नीति अपनाई गई,लेकिन जैसे ही मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल शुरू हुआ वैसे ही प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह से लेकर मालदीव राष्ट्रपति के हालिया राजकीय दौरे तक काफी चीजें भारत के हित में परिवर्तित होती दिख रही हैं।
  • इस दौरे का ही परिणाम रहा कि मालदीव ने भारतीय सैनिकों को बाहर निकालने के बजाय एविएशन में स्थानांतरित कर दिया है,जोकि काफी प्रगति को दिखाता है।

4-नेपाल :

 

  • नेपाल के साथ संबंध एक नाजुक चुनौती पेश करते हैं। नेपाल में चीन की मजबूत राजनीतिक पकड़ है। काठमांडू की सरकार जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं, माना जाता है कि वह नई दिल्ली के खिलाफ बीजिंग कार्ड का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है।
  • नेपाल की एकतरफा रूप से फिर से बनाई गई सीमाओं को राष्ट्रीय मुद्रा पर रखने का निर्णय बताता है कि यह जारी रहेगा। नई दिल्ली को नेपाली लोगों का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, जिसे 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के बाद झटका लगा था।

5-भूटान:

  • भारत थिम्पू को उसकी पंचवर्षीय योजना, वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज और गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी परियोजना में सहायता देने के लिए तैयार है। ऐसा जारी रहने की उम्मीद है, खासकर तब जब चीन अपनी शर्तों पर भूटान के साथ सीमा पर बातचीत करने की कोशिश कर रहा है। भारत चाहता है कि भूटान, जो दो एशियाई दिग्गजों के बीच फंसा हुआ है, उसके पक्ष में हो।
  • वहीं भूटान ने सितंबर के अंत में संपन्न हुए संयुक्त राष्ट्र की आम सभा की बैठक के भाषण में भारत को अपना सबसे विश्वस्त सहयोगी बताया है।

6- पाकिस्तान :

  • पाकिस्तान में आयोजित हालिया शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के जाने से दोनों देशों की मीडिया और विदेश मामलों के जानकारी के बीच एक प्रकार के दिलचस्पी बढ़ गई थी, किंतु भारत के विदेश मंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान को लेकर किसी भी प्रकार की द्विपक्षीय वार्ता साल फिलहाल में संभव नहीं है।
  • यहां तक की 2025 में होने वाले चैंपियंस ट्रॉफी क्रिकेट टूर्नामेंट में भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम का जाना भी लगभग मुश्किल है।
  • कश्मीर में हो रहे लगातार आतंकी हमले के बीच पाकिस्तान के साथ किसी भी प्रकार की वार्ता मोदी सरकार के लिए संभव ही नहीं है।

7-श्रीलंका :

  • श्रीलंका का भौगोलिक महत्व भारत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के आरम्भ में ही श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव हुए और इसमें अनुरा कुमारा दिसानायके राष्ट्रपति पद पर नियुक्त हुए हैं।
  • अभी खास चिंता भारत की वर्तमान मोदी सरकार को श्रीलंका के समक्ष नहीं दिखाई पड़ती है।

8- म्यांमार:

  • इसकी अस्थिरता विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि इसकी सीमा साझा है तथा उग्रवाद और शरणार्थियों के प्रवाह में वृद्धि की संभावना है।
  • पहले से ही 32,000 से अधिक जातीय चिन लोगों ने भारत के मिजोरम राज्य में शरण ली है, तथा हजारों लोग मणिपुर राज्य में भाग गए हैं, जहां उनके आगमन से हिंसक जातीय संघर्ष भड़क उठा है।
  • भारत भले ही अपनी विदेश नीति में खुले तौर पर सैन्य शासन को मान्यता नहीं देता लेकिन भारत म्यांमार के साथ अपनी उत्तर पूर्वी क्षेत्र की शांति और स्थिरता की खातिर बैक चैनल से संपर्क बनाए हुए है।

9- अफगानिस्तान :

  • भारत की चिंताएं अफगानिस्तान में अपने निवेश की सुरक्षा से लेकर तालिबान शासित राज्य के सुरक्षा निहितार्थ तक फैली हुई हैं।
  • यह स्थिति भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष खतरा है, क्योंकि चरमपंथी समूह इस क्षेत्र में पैर जमा सकते हैं, जिससे सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
  • मोदी0 में ही भारत के विदेश मंत्रालय ने अफगानिस्तान की वर्तमान सत्ता को कई प्रकार के लाभ पहुंचाए हैं जिनमें से एक हाल ही में चाबहार बंदरगाह के प्रयोग का ऑफर देना शामिल है।
  • अफगानिस्तान को लेकर भारत की विदेश नीति सॉफ्ट पावर और ट्रैक 2 डिप्लोमेसी पर आधारित है

 

 

This post was created with our nice and easy submission form. Create your post!

What do you think?

संविधान के भाग एवं अनुच्छेद (Open list) (0 submissions)

The India’s Way: डॉ. एस. जयशंकर