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मोहन नारायण रॉय: Reason, Romanticism and Revolution

M. N. Roy (मोहन नारायण रॉय, 1887–1954) एक महान चिंतक, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिक दार्शनिक थे। शुरुआत में वे क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े, बाद में मार्क्सवाद से प्रभावित हुए और अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन का हिस्सा बने। लेकिन बाद में उन्होंने मार्क्सवाद की सीमाएँ पहचानी और उससे अलग हटकर एक नया Radical Humanism (कट्टर मानववाद) का दर्शन प्रस्तुतकिया।
Reason, Romanticism and Revolution उनकी सबसे प्रमुख और विस्तृत कृति है। इसमें उन्होंने पश्चिमी सभ्यता के बौद्धिक इतिहास (intellectual history) को समझने का प्रयास किया है। यह पुस्तक सिर्फ दर्शनशास्त्र की नहीं, बल्कि राजनीति, इतिहास, साहित्य और संस्कृति सबको जोड़कर एक बड़े कैनवास पर मानवता के विकास की कहानी कहती है।

मुख्य विचार

किताब के कुछ प्रमुख तर्क इस प्रकार हैं:

आधुनिक सभ्यता का संकट

Roy बताते हैं कि आज के समय में संस्कृति और नैतिकता (moral values) गिरावट की ओर हैं। पारंपरिक विश्वासों, धर्म, स्वीकृत नैतिक नियमों आदि की पकड़ कमजोर हो गई है। साथ ही, वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण सोच के उदय ने उन विश्वासों को चुनौती दी है जो आधारहीन या केवल प्रचलित परंपराओं पर आधारित हैं।

तर्क की भूमिका

तर्क (reason) को Roy एक जैविनिर्धारित (biological) विशेषता मानते हैं यानि यह कि तर्क इंसान की स्वाभाविक, जन्मजात शक्ति है, और यह किसी पारलौकिक शक्ति या आध्यात्मिक रहस्य से प्रेरित नहीं है। यदि हम तर्क को सही रूप से समझें, तो यह हमें नैतिक मूल्यों को मिटने से बचाने में मदद कर सकता है।

रोमांटिसिज्म की भूमिका

रोमांटिसिज्म एक ऐसी मानसिक-भावनात्मक प्रेरणा है जो परंपरा, रूढ़िवादी सोच, स्थिर सामाजिक व्यवस्था आदि से विद्रोह करती है। यह इच्छा है कुछ नया करने की, कुछ बेहतर जीवन की कल्पना करने की। रोमांटिसिज्म में जो कल्पना और सपने होते हैं, वे क्रांति की बुनियाद बन सकते हैं।

क्रांति (Revolution) का तर्क

Roy के अनुसार, क्रांति सिर्फ इच्छा (will) नहीं है बल्कि ऐतिहासिक आवश्यकता (historical necessity) भी है। जब सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाएँ मनुष्य की संभावनाओं और स्वतंत्रता के आगे बाधा बन जाती हैं, तो परिवर्तन होना अनिवार्य है। क्रांति की कल्पना रोमांटिक होती है, लेकिन वह तर्कसंगत (rational) भी है क्योंकि यह समय और परिस्थिति के दबावों से उभरती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific view) और मानववाद (Humanism)

Roy यह प्रस्ताव रखते हैं कि मानवता की प्रगति को समझने और दिशा देने के लिए हमें एक वैज्ञानिक मानवतावादी दर्शन(rationalist social philosophy) चाहिए जो तर्क और विज्ञान पर आधारित हो;
मानव प्रकृति, इतिहास और कल्पना की भूमिका को ध्यान में ले
नैतिकता को परंपरागत धार्मिक मान्यताओं से अलग करते हुए, मानव अंतरात्मा और तर्क के भीतर स्थित करने का प्रयास करे।

इतिहास और चिन्तन की धाराएँ

Roy इतिहास के विचारों की यात्रा पर विचार करते हैं कैसे प्राचीन यूनानी तत्त्वदर्शियों (philosophers) ने प्राकृतिक जगत को कारण-परिणाम (cause-effect), नियमों (laws), तर्क इत्यादि से समझने की कोशिश की कैसे मध्यकाल और धार्मिकता ने तर्क को सीमित किया
कैसे पुनर्जागरण (Renaissance), मानवतावाद (Humanism) और बाद में विज्ञान ने तर्क और विचारों की शक्ति को बढ़ाया।

निष्कर्ष

तर्क और रोमांटिसिज्म में तालमेल: Roy यह मानते हैं कि तर्क और रोमांटिसिज्म विरोधी नहीं, बल्कि पूरक धाराएँ हैं। रोमांटिसिज्म बिना तर्क के अंधविश्वास या कल्पना मात्र बन सकती है तर्क बिना रोमांटिसिज्म के स्थिर, सूखी, कभी-कभी जीवनहीन हो सकती है। क्रांति तभी सफल होती है जब दोनों मिलें।
नयी दर्शन की ज़रूरत: Roy का विश्वास है कि आज हमें एक ऐसा दर्शन चाहिए जो वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण हो, लेकिन जो कल्पना की शक्ति, मानवीय इच्छाशक्ति और नैतिक चेतना को भी शामिल करे, ताकि एक न्यायपूर्ण और मुक्त समाज संभव हो सके।
मानव-स्वरतापूर्ण इतिहास का दृष्टिकोण: इतिहास केवल शक्तियों या पदार्थों (material forces) की लड़ाई नहीं है, बल्कि विचारों, चेतना, कल्पना, और मानव स्वाधीनता की भी कहानी है। इस कारण से, सामाजिक परिवर्तन, राजनीतिक संघर्ष, कला-साहित्य आदि सभी इतिहास के अंग हैं।

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