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युद्ध और न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत 

जस ऐड बेलम (Jus ad Bellum) और इन बेलो (Jus in Bello)

युद्ध सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय संबंध, राजनीति विज्ञान, दर्शन, नैतिकता और सैन्य इतिहास के पाठ्यक्रमों में एक लोकप्रिय विषय बन गया है। युद्ध सिद्धांत केवल एक ऐतिहासिक या सैद्धांतिक अवधारणा नहीं, बल्कि यह एक अंतरविषयक ढांचा है जो आधुनिक विश्व की राजनीति, नैतिकता, और अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार को समझने के लिए अनिवार्य बन गया है। यही कारण है कि यह विषय अनेक अकादमिक क्षेत्रों में लोकप्रिय और आवश्यक है।

युद्ध क्या होता है?

युद्ध एक संगठित, सशस्त्र और प्रायः राजनीतिक उद्देश्य से लड़ा जाने वाला संघर्ष है, जिसमें दो या दो से अधिक राष्ट्र, समूह या संगठनों के बीच शारीरिक बल और हिंसा का प्रयोग होता है। इसका उद्देश्य किसी भौगोलिक, राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक उद्देश्य की प्राप्ति हो सकता है।

  • क्लॉज़विट्ज़ के अनुसार, युद्ध राजनीति का एक विस्तारित रूप है जिसमें हिंसात्मक साधनों का प्रयोग किया जाता है।/”War is merely the continuation of politics by other means.”- On War
  • Hedley Bull के अनुसार, युद्ध को राजनीतिक संस्थाओं के बीच सुनियोजित हिंसा मानते हैं।/”War is organized violence carried on by political units.1977, The Anarchical Society: A Study of Order in World Politics.
  • Michael Walzer के अनुसार, युद्ध को नैतिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से परिभाषित करते हैं।/”War is a violent clash between armed forces, usually defined by a state of hostilities.1977, Just and Unjust Wars: A Moral Argument with Historical Illustrations.
  • John Keegan के अनुसार,युद्ध राजनीति से अलग एक विशिष्ट मानवीय गतिविधि है।/War is not the continuation of politics by other means. War is sui generis, an autonomous realm of human behavior.1993, A History of Warfare.

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत का विकास  

युद्ध सिद्धांत यह बताता है कि युद्ध कैसे और क्यों लड़े जाते हैं। युद्ध का औचित्य सैद्धांतिक या ऐतिहासिक हो सकता है। न्यायपूर्ण युद्ध की परंपरा में युद्ध के प्रकोप को सीमित करने या युद्ध की संभावित तबाही पर लगाम लगाने के लिए योद्धाओं द्वारा कुछ नैतिक विचारों का इस्तेमाल करता है

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत का भी एक लंबा इतिहास है। बाइबल के कुछ हिस्से युद्ध में नैतिक व्यवहार और न्यायपूर्ण कारण की अवधारणाओं का संकेत देते हैं, जो आम तौर पर ईश्वरीय हस्तक्षेप द्वारा युद्ध के न्याय की घोषणा करते हैं। थ्यूसीडाइड्स ने पहली बार पेलोपोनेसियन युद्ध का इतिहास लिखा । उसके बाद   संत ऑगस्टाइन ने युद्ध से उत्पन्न होने वाली हिंसा की आलोचना की लेकिन पश्चिमी परंपरा संत थॉमस एक्विनास ने 13वीं शताब्दी में सुम्मा थियोलॉजिके के तहत  पारंपरिक न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत की सामान्य रूपरेखा प्रस्तुत की। एक्विनास के बाद इन लेखकों में सबसे महत्वपूर्ण फ्रांसिस्को डी विटोरिया, फ्रांसिस्को सुआरेज़, ह्यूगो ग्रोटियस, सैमुअल पुफेंडोर्फ, क्रिश्चियन वोल्फ, और एमरिच डी वेटेल रहे है।

समकालीन युग में  माइकल वाल्ज़र के जस्ट एंड अनजस्ट वॉर्स (1977), बैरी पास्किन्स और माइकल डॉक्रिल द एथिक्स ऑफ़ वॉर (1979), रिचर्ड नॉर्मन एथिक्स, किलिंग, एंड वॉर (1995), ब्रायन ओरेंड वॉर एंड इंटरनेशनल जस्टिस (2001) और माइकल वाल्ज़र ऑन वॉर एंड जस्टिस (2001) के कार्य उल्लेखनीय रहे हैं। 2001 में 9/11 को यूएसए पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद से, शिक्षाविदों ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, शैक्षिक और सैन्य सम्मेलनों के सैद्धांतिक पहलुओं को विकसित और समेकित करने के साथ न्यायपूर्ण युद्ध पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत के घटक

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (Just War Theory) एक नैतिक और दार्शनिक ढाँचा है जिसका उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि युद्ध को कब और कैसे नैतिक रूप से उचित ठहराया जा सकता है। यह सिद्धांत युद्ध की नैतिकता की जांच करता है ताकि युद्ध को पूरी तरह अनैतिक या पूरी तरह उचित ठहराने के बजाय एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जा सके। इस सिद्धांत के अनुसार, कुछ स्थितियों में युद्ध न तो पूर्ण रूप से वर्जित होता है, न ही अनियंत्रित रूप से अनुमत। इसके तीन मुख्य घटक होते हैं:

  1. जस ऐड बेलम (Jus ad Bellum) अर्थात युद्ध प्रारंभ करने के लिए नैतिक नियम

यह वह चरण है जहाँ यह तय किया जाता है कि युद्ध प्रारंभ करना नैतिक रूप से उचित है या नहीं।

इसके प्रमुख सिद्धांत:

  • न्यायसंगत कारण (Just Cause): केवल आत्मरक्षा, अन्याय के खिलाफ प्रतिक्रिया, या मानवीय हस्तक्षेप जैसे कारण ही स्वीकार्य हैं।
  • सही मंशा (Right Intention): उद्देश्य न्याय की स्थापना होना चाहिए, न कि प्रतिशोध या सत्ता विस्तार।
  • वैध प्राधिकारी (Legitimate Authority): केवल मान्यता प्राप्त सरकार या संस्था ही युद्ध घोषित कर सकती है।
  • संभाव्यता की आशा (Reasonable Chance of Success): युद्ध तभी शुरू किया जाए जब सफलता की वास्तविक संभावना हो।
  • अंतिम उपाय (Last Resort): जब सभी कूटनीतिक विकल्प असफल हो जाएँ तभी युद्ध की अनुमति हो।
  • समानुपातिकता (Proportionality): नुकसान और लाभ का तुलनात्मक मूल्यांकन ज़रूरी है।
  1. जस इन बेलो (Jus in Bello) अर्थात युद्ध के दौरान नैतिक आचरण के सिद्धांत

एक बार युद्ध शुरू हो जाने के बाद, यह निर्धारित करता है कि उसे नैतिक रूप से कैसे लड़ा जाए।

इसके मुख्य सिद्धांत:

  • भेदभाव (Discrimination): सैनिक और नागरिकों में भेद जरूरी है; नागरिकों को लक्षित नहीं किया जाना चाहिए।
  • समानुपातिकता (Proportionality): हमले का बल सैन्य लाभ के अनुपात में होना चाहिए।
  • अनावश्यक पीड़ा से बचाव (No unnecessary suffering): ऐसे हथियारों और तरीकों से परहेज़ किया जाना चाहिए जो अत्यधिक पीड़ा देते हैं।
  1. जस पोस्ट बेलम (Jus post Bellum) अर्थातयुद्ध के बाद न्याय

यह खंड युद्ध समाप्ति के बाद संबंधित पक्षों की जिम्मेदारी और पुनर्निर्माण से संबंधित नैतिक सिद्धांतों को निर्धारित करता है।

इसके मुख्य सिद्धांत:

  • न्यायोचित संधियाँ (Just peace treaties): शांति समझौते विनाशकारी या अपमानजनक न हों।
  • युद्ध अपराधों की जवाबदेही (Accountability): युद्ध अपराध करने वालों को दंडित किया जाए।
  • पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी (Reconstruction responsibilities): युद्ध से प्रभावित समाज के पुनःस्थापन में सहायता देना।

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत का उद्देश्य युद्ध के नैतिक आयाम को स्वीकार करते हुए उसकी क्रूरता को सीमित करना है। यह उन दो चरम स्थितियों पूर्ण परिणामवाद और पूर्ण आंतरिकवाद के बीच एक संतुलन बनाता है:

न्यायपूर्ण युद्ध का अर्थ यह नहीं कि युद्ध अच्छा है, बल्कि यह मानता है कि युद्ध अपरिहार्य हो, तो उसे कैसे नैतिक दायरे में लड़ा जाए, ताकि मानवीय गरिमा बनी रहे और अनावश्यक हिंसा को रोका जा सके।

War of Position और War of ManeuverGramsci

एंटोनियो ग्रैम्शी द्वारा प्रतिपादित “वार ऑफ पोजीशन” (War of Position) और “वार ऑफ मैनूवर” (War of Maneuver) सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन प्राप्त करने की दो भिन्न रणनीतियाँ हैं। इन दोनों का उद्देश्य सत्ता-संरचना को चुनौती देना है, परंतु उनके तरीकों और क्षेत्रों में मौलिक अंतर है। 

वार ऑफ पोजीशन (War of Position)

यह एक धीमी, रणनीतिक वैचारिक लड़ाई है, जिसका उद्देश्य समाज में वैकल्पिक सामाजिक, सांस्कृतिक और वैचारिक नेतृत्व स्थापित करना होता है।

  • यह एक सांस्कृतिक और बौद्धिक संघर्ष है जो शासक वर्ग के आधिपत्य को चुनौती देता है।
  • इसका उद्देश्य लोगों की सोच और मूल्यों को बदलना है ताकि वे शासक वर्ग के विचारों को स्वीकार न करें।
  • यह एक लंबी अवधि का संघर्ष है जो शिक्षा, संस्कृति, कला और अन्य माध्यमों के माध्यम से किया जाता है।
  • यह एक ऐसा संघर्ष है जो लोगों को उनकी सोच और मूल्यों को बदलने के लिए प्रेरित करता है, ताकि वे शासक वर्ग के विचारों के बजाय अपने विचारों को अपना सकें।
  • यह एक संघर्ष है जो लोगों को उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करता है।
  • पश्चिमी लोकतांत्रिक राज्य, जैसे इटली, ब्रिटेन या अमेरिका, जहाँ सत्ता केवल राज्य द्वारा नियंत्रित नहीं होती बल्कि cultural hegemony द्वारा भी संचालित होती है।

वार ऑफ मैनूवर (War of Maneuver)

यह एक सीधी राजनीतिक और सैन्य कार्रवाई है, जिसका उद्देश्य पूंजीवादी राज्य की सत्ता को हिंसात्मक या त्वरित क्रांति के माध्यम से उखाड़ फेंकना है।

  • यह एक प्रत्यक्ष, सैन्य या राजनीतिक संघर्ष है जो राज्य पर नियंत्रण प्राप्त करने की कोशिश करता है।
  • इसका उद्देश्य राज्य पर बल द्वारा नियंत्रण प्राप्त करना है।
  • यह एक छोटा संघर्ष है जो एक ही समय में किया जा सकता है।
  • यह एक संघर्ष है जो लोगों को उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करता है।
  • यह एक संघर्ष है जो लोगों को उनकी सोच और मूल्यों को बदलने के लिए प्रेरित करता है, ताकि वे शासक वर्ग के विचारों के बजाय अपने विचारों को अपना सकें।

ग्रैम्शी ने इसे रूस की 1917 बोल्शेविक क्रांति से जोड़ा, वहाँ की कमजोर नागरिक संस्थाएँ और केंद्रीकृत राज्य इस प्रकार की रणनीति के लिए उपयुक्त थे।

निष्कर्ष

युद्ध केवल शारीरिक हिंसा नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक, वैचारिक और नैतिक प्रक्रिया है। युद्ध सिद्धांत इन जटिलताओं को समझने का प्रयास करता है और युद्ध की नैतिकता को संरचना देता है।
Gramsci की रणनीतियाँ War of Maneuver और War of Position—हमें यह समझने में सहायता करती हैं कि सामाजिक परिवर्तन केवल बंदूक से नहीं, बल्कि विचारों, संस्कृति और शिक्षा के माध्यम से भी लाया जा सकता है।

अतः युद्ध सिद्धांत न केवल इतिहास और दर्शन का विषय है, बल्कि यह आज की दुनिया में राजनीतिक चेतना, अंतर्राष्ट्रीय न्याय और नैतिक निर्णय का केंद्रीय स्तंभ बन चुका है।

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