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युरेशियन आर्थिक संघ एवं भारत

यूरेशियन आर्थिक संघ (Eurasian Economic Union – EAEU) को संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है:

1. 

परिचय

  • स्वभाव: यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देता है और जिसकी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी पहचान है।
  • स्थापना: 2015 में यूरेशियन आर्थिक संघ संधि के माध्यम से।
  • मुख्यालय: मॉस्को, रूस।
  • सदस्य देश: आर्मेनिया, बेलारूस, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान और रूस।
  • उद्देश्य: वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और श्रम का मुक्त प्रवाह; नीतियों का समन्वय; प्रतिस्पर्धात्मकता और स्थिर आर्थिक विकास को बढ़ाना।

2. 

भारत के लिये EAEU का महत्व

  • बाज़ार तक पहुँच: संभावित FTA से भारत को 6.5 ट्रिलियन डॉलर के बाज़ार तक पहुँच।
  • व्यापार विविधीकरण: अमेरिका और EU पर निर्भरता कम कर वैकल्पिक व्यापारिक साझेदार।
  • ऊर्जा सुरक्षा: रूस पहले से भारत की तेल आपूर्ति का 35–40% करता है, EAEU संसाधन भारत की ज़रूरतों के लिये महत्वपूर्ण हैं।
  • कनेक्टिविटी: INSTC और चेन्नई–व्लादिवोस्तोक गलियारा जैसे प्रोजेक्ट्स से लॉजिस्टिक लागत और समय में कमी।

3. 

चुनौतियाँ

  • व्यापार घाटा: रूस से तेल व गैस आयात के कारण भारत का घाटा तेज़ी से बढ़ रहा है।
  • भू-राजनीतिक दबाव: NATO व पश्चिमी देशों की आशंकाएँ, रूस पर प्रतिबंध और अमेरिका–EU के साथ तनाव।
  • घरेलू उद्योग पर दबाव: सस्ते आयात भारतीय MSME व उत्पादन इकाइयों को चुनौती।
  • कम FTA उपयोग: भारत केवल 25% तक ही व्यापार समझौतों का लाभ उठा पाता है।
  • गैर-टैरिफ बाधाएँ: जटिल सीमा शुल्क, SPS मानक, नौकरशाही अवरोध।
  • डॉलर पर निर्भरता: रुपये-रूबल तंत्र सीमित; प्रतिबंधों के कारण लेन-देन महँगा।

4. 

रिश्तों को मज़बूत करने के उपाय

  • आर्थिक सहयोग कार्यक्रम: 2025–2030 की योजना को सभी EAEU सदस्यों तक विस्तारित करना।
  • निर्यात विविधता: दवाइयाँ, कृषि, वस्त्र, मशीनरी, सेवाएँ शामिल कर हाइड्रोकार्बन पर निर्भरता घटाना।
  • वित्तीय नवाचार: रुपये–रूबल लेन-देन और स्थानीय मुद्रा निपटान (LCS) को मज़बूत करना।
  • बहुपक्षीय सहयोग: BRICS, RIC और अन्य क्षेत्रीय मंचों का उपयोग।
  • कनेक्टिविटी सुधार: INSTC, चेन्नई–व्लादिवोस्तोक और उत्तरी समुद्री मार्ग को बढ़ावा।

👉 संक्षेप में, EAEU भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा, वैकल्पिक बाज़ार और कनेक्टिविटी बढ़ाने का अवसर है, लेकिन इसे संतुलित करना होगा ताकि व्यापार घाटा, घरेलू उद्योग की चिंता और भू-राजनीतिक जोखिम भारत के दीर्घकालिक हितों को प्रभावित न करें


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