“यूडेमोनिया” शब्द ग्रीक शब्द “ईयू” (अच्छा) और “डेमोन” (आत्मा) से लिया गया है। इसका तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जिसमें एक व्यक्ति अपने सच्चे स्व या आत्मा के अनुसार जीवन यापन कर रहा है, जिससे पूर्णता तथा कल्याण की भावना उत्पन्न होती है। यह अवस्था खुशी की क्षणिक भावना से भी अधिक जटिल और गहन है।
यूडेमोनिया: आत्मा की उत्कृष्ट अवस्था में निरंतर सक्रिय होना (activity of soul in accordance with virtue). यह क्षणिक सुख या संवेदनात्मक संतोष नहीं, बल्कि लंबे समय तक सदाचार के साथ जीया गया जीवन है।

यूडेमोनिया की विशेषताए
- सदाचार से संबंधः अरस्तू के लिए, यूडेमोनिया प्राप्त करना सद्गुण के अभ्यास से निकटता से जुड़ा हुआ है। सद्गुण चरित्र के उत्कृष्ट लक्षण हैं जो किसी व्यक्ति को तर्क के अनुसार कार्य करने में सक्षम बनाते हैं, जिसे अरस्तू मानव जीवन का सर्वोच्च कार्य मानते थे। उन्होंने साहस, संयम और न्याय जैसे नैतिक गुणों की पहचान की, जो आदत तथा अभ्यास के माध्यम से विकसित होते हैं।
- तर्क की भूमिकाः तर्क अरस्तू की नैतिक प्रणाली का केंद्र है। उनका मानना था कि तर्क के अनुसार जीवन यापन का अर्थ उस कार्य को पूरा करना है जो मनुष्यों के लिए अद्वितीय है, जो बदले में यूडेमोनिया की ओर ले जाता है। इसमें ऐसे विकल्प चुनना सम्मिलित है जो जीवन के प्रति एक संतुलित या “औसत” दृष्टिकोण को दर्शाते हैं तथा कमी और अधिकता की चरम सीमा से बचते हैं।
- आत्मनिर्भरताः अरस्तू ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि यूडेमोनिया में आत्मनिर्भरता (ऑटार्किया) की एक मात्रा सम्मिलित है, अलगाव के संदर्भ में नहीं बल्कि इस अर्थ में कि एक व्यक्ति का जीवन पूर्ण है तथा कल्याण के लिए आवश्यक किसी भी वस्तु का अभाव नहीं है। इसका आशय यह नहीं है कि धन, स्वास्थ्य और मित्रता जैसी बाहरी वस्तुएं महत्वहीन हैं, बल्कि यह कि वे अंतिम लक्ष्य नहीं हैं, वे मूल्यवान हैं क्योंकि वे एक समृद्ध जीवन में योगदान करते हैं।
- गतिविधि तथा क्षमताः यूडेमोनिया केवल अस्तित्व की एक अवस्था नहीं है, बल्कि गतिविधि के माध्यम से प्राप्त की जाती है- विशेष रूप से, सद्गुण के अनुसार जीने की गतिविधि। यह किसी की क्षमता को साकार करने तथा एक तर्कसंगत प्राणी के रूप में उसकी प्रकृति के अनुरूप जीवन यापन के विषय में है।
- नैतिक जिम्मेदारी तथा विकल्पः अरस्तू की यूडेमोनिया की अवधारणा नैतिक जिम्मेदारी और ऐसे विकल्प चुनने के महत्व पर ध्यान देती है जो एक सदाचारी और पूर्ण जीवन की ओर ले जाते हैं। यह कुछ ऐसा नहीं है जो किसी व्यक्ति के साथ घटित होता है, बल्कि कुछ ऐसा है जिसे एक व्यक्ति द्वारा किए गए सुविचारित कार्यों तथा नैतिक जीवन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
- अरस्तू का यूडेमोनिया खुशी की सरल अवधारणा से आगे बढ़कर मानव जीवन की एक समृद्ध तथा जटिल दृष्टि को अपने सर्वोत्तम रूप में समाहित करता है। यह तर्क और सद्गुण के अनुसार जीने, अपनी क्षमता को पूरा करने तथा पूर्णता और कल्याण की भावना प्राप्त करने की एक सक्रिय अवस्था है। यह अवधारणा व्यक्तियों को वास्तव में पूर्ण जीवन की खोज में अपने मूल्यों, विकल्पों और कार्यों पर विचार करने के लिए आमंत्रित करती है।
अंतिम उद्देश्य (Telos) और यूडेमोनिया
- अरस्तू का मानना है कि हर क्रिया और निर्णय किसी उद्देश्य की ओर निर्देशित होते हैं, और वह अंतिम उद्देश्य है “सर्वोच्च भलाई” (the Highest Good) — यही है यूडेमोनिया।
- “Every art and every inquiry, and similarly every action and pursuit, is thought to aim at some good.”– Nicomachean Ethics, Book I
सदाचार (Virtue) के साथ सामंजस्य
- यूडेमोनिया की प्राप्ति नैतिक सदाचार (Moral Virtue) और बौद्धिक सदाचार (Intellectual Virtue) के संतुलन से होती है।
सदाचार (Arete) वह उत्कृष्टता है जो मानव को अपने उद्देश्य की पूर्ति में सक्षम बनाती है।
उदाहरण:
- साहस (Courage) = डर और दुस्साहस के बीच मध्य मार्ग।
- संयम (Temperance) = भोग में संतुलन।
- प्रज्ञा (Phronesis) = व्यावहारिक बुद्धिमत्ता।
सामाजिक जीवन और तर्कशीलता का महत्व
- अरस्तू मानते हैं कि मानव एक “राजनीतिक प्राणी” (Zoon Politikon) है। पूर्ण जीवन केवल समाज के भीतर ही संभव है, और यूडेमोनिया प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को सामाजिक और नैतिक कर्तव्यों का पालन करना होता है।
निष्कर्ष
यूडेमोनिया एक ऐसा जीवन जिसमें आत्मा, सदाचार और बुद्धिमत्ता के अनुसार कार्यरत हो, और जो समाज में सार्थक सहभागिता द्वारा पोषित हो।
यह जीवन का अंतिम लक्ष्य है न कि एक क्षणिक भावना, बल्कि एक जीवन-पद्धति।
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