राजनीतिक दल अचानक उत्पन्न नहीं हुए, बल्कि 19वीं शताब्दी में यूरोप, अमेरिका और जापान में धीरे-धीरे विकसित हुए। ये लोकतंत्र के लिए अनिवार्य हैं क्योंकि नागरिकों को शासन में भागीदारी का अवसर देते हैं।
राजनीतिक दल की परिभाषा
विभिन्न विद्वानों जैसे एडमंड बर्क, आर.एम. मैकाइवर, ई.ई. शेट श्नाइडर ने अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। सभी इस बात पर सहमत हैं कि एक दल एक संगठित समूह होता है जो सत्ता प्राप्त कर नीतियों को लागू करना चाहता है।
राजनीतिक दलों की भूमिकाएँ
- सत्ता प्राप्ति और शासन स्थिरता
- नागरिकों और सरकार के बीच सेतु
- नीतियों का निर्माण और जनजागरण
- वैचारिक दिशा प्रदान करना
- सामाजिक विकास में योगदान
दलीय व्यवस्था के सिद्धांत
- जेम्स ब्राइस और जियोवानी सार्टोरी के अनुसार, दलीय व्यवस्था वह ढाँचा है जिसमें विभिन्न दल काम करते हैं।
- एकदलीय प्रणाली
- द्विदलीय प्रणाली
- बहुदलीय प्रणाली
राजनीतिक दलों की व्याख्याएँ
- उदारवादी दृष्टिकोण: दल लोकतांत्रिक भागीदारी के माध्यम हैं।
- मार्क्सवादी दृष्टिकोण: दल वर्ग-संघर्ष और मजदूर वर्ग की चेतना से उत्पन्न होते हैं।
- लेनिन का योगदान: कम्युनिस्ट पार्टी को क्रांति का अग्रदूत बताया गया।
महत्वपूर्ण सिद्धांत
- मौरिस डुवर्गर का सिद्धांत:
मौरिस डुवर्गर (Maurice Duverger) एक प्रसिद्ध फ़्रांसीसी राजनीतिक वैज्ञानिक थे, जिन्होंने राजनीतिक दलों की संरचना और चुनाव प्रणालियों के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका सिद्धांत मुख्य रूप से दलीय व्यवस्था (Party Systems) और चुनाव प्रणाली (Electoral Systems) के बीच के संबंध पर केंद्रित है।
मौरिस डुवर्गर का मानना था कि ‘चुनाव प्रणाली किसी देश की दलीय व्यवस्था को प्रभावित करती है।’ अर्थात, जिस प्रकार की चुनाव प्रणाली अपनाई जाती है (जैसे बहुमत प्रणाली या आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली), उसी के अनुसार किसी देश में एक-दलीय, दो-दलीय या बहु-दलीय प्रणाली विकसित होती है।
डुवर्गर का नियम (Duverger’s Law)
डुवर्गर ने दो महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए:
(A) Duverger’s Law (कानून): ‘बहुमत-आधारित चुनाव प्रणाली (First Past the Post System) दो-दलीय व्यवस्था को बढ़ावा देती है।’उदाहरण- अमेरिका और ब्रिटेन में ‘पहले-पार-मत’ (FPTP) प्रणाली है, जहाँ एक क्षेत्र से एक ही उम्मीदवार चुना जाता है परिणामस्वरूप दो प्रमुख दल (Democrat–Republican, Labour–Conservative) बने रहते हैं।
कारण:
- छोटे दलों को सीटें जीतना कठिन होता है।
- मतदाता ‘वोट व्यर्थ’ न जाने देने के लिए बड़े दलों को वोट देते हैं।
- इससे ‘रणनीतिक मतदान’ (Strategic Voting) की प्रवृत्ति पैदा होती है।
(B) Duverger’s Hypothesis (परिकल्पना):’आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation) बहुदलीय व्यवस्था को जन्म देती है।’ उदाहरण- स्वीडन, नॉर्वे, इटली, और नीदरलैंड, यहाँ अनुपातिक प्रणाली के कारण कई दल संसद में प्रतिनिधित्व प्राप्त करते हैं। यह व्यवस्था छोटे दलों को भी संसद में जगह देती है।
डुवर्गर द्वारा राजनीतिक दलों का वर्गीकरण
डुवर्गर ने दलों को उनकी संगठनात्मक संरचना के आधार पर चार प्रकारों में बाँटा-
- कॉकस (Caucus): छोटे, चुनाव-केंद्रित दल जो केवल चुनावी समय में सक्रिय रहते हैं।
उदाहरण: अमेरिकी रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी। - शाखा दल (Branch0 Parties): बड़े और स्थायी दल जो पूरे वर्ष सक्रिय रहते हैं।
उदाहरण: ब्रिटिश कंज़र्वेटिव पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस। - सेल दल (Cell Parties): अत्यधिक अनुशासित, विचारधारा-आधारित दल।
उदाहरण: यूरोपीय कम्युनिस्ट पार्टियाँ। - मिलिशिया दल (Militia Parties): अर्ध-सैन्य संगठनात्मक संरचना वाले दल।
उदाहरण: नाजी पार्टी (Hitler), फासीवादी दल (Mussolini)।
- जियोवानी सार्तोरी का दल–प्रणाली सिद्धांत (Giovanni Sartori’s Party System Theory)
सार्तोरी का दल-प्रणाली सिद्धांत यह समझाने का प्रयास करता है कि किसी देश की राजनीतिक दल प्रणाली (party system) की संरचना और उसकी कार्यप्रणाली (‘format and mechanics’) कैसे एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं।
यह सिद्धांत इस बात पर केंद्रित है कि दल-संख्या (number of parties), उनकी वैचारिक दूरी (ideological distance), और प्रतिस्पर्धा की दिशा (direction of competition) ये तीन चर (variables) मिलकर दल प्रणाली के ‘mechanics’ यानी संचालन-प्रक्रिया को निर्धारित करते हैं।
दलों की संख्या और स्वरूप (Format of the System)
सार्तोरी ने Maurice Duverger की द्विदलीय और बहुदलीय व्यवस्था की पारंपरिक वर्गीकरण प्रणाली की आलोचना की। उन्होंने यह कहा कि केवल ‘दो-दलीय’ और ‘बहु-दलीय’ के बीच भेद पर्याप्त नहीं है। इसके बजाय उन्होंने एक चार-आयामी ढांचा (four-dimensional framework) दिया, जिसमें शामिल हैं;
- दलों की संख्या,
- राजनीतिक ध्रुवों (poles) की संख्या,
- ध्रुवीकरण का स्तर (level of polarization),
- और प्रतिस्पर्धा की दिशा (direction of competition)।
‘Format’ और ‘Mechanics’ के बीच संबंध
- सार्तोरी के अनुसार, ‘Format उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना वह दल प्रणाली की यांत्रिकी (mechanics) को प्रभावित करता है।’ अर्थात, दलों की संख्या (format) केवल गणना का विषय नहीं है, यह यह भी निर्धारित करती है कि प्रणाली वास्तव में कैसे काम करेगी। जैसे कि कौन-से दल प्रभावी होंगे, सत्ता किसके पास केंद्रित होगी, और गठबंधन कैसे बनेंगे।
वैचारिक दूरी और प्रतिस्पर्धा की दिशा (Ideological Distance & Direction of Competition)
- सार्तोरी ने Downs (1957) के Economic Theory of Democracy की आलोचना की।
उन्होंने दिखाया कि प्रतिस्पर्धा का स्थान (competitive space) हमेशा ‘एक-आयामी’ नहीं होता।
यदि दलों rकी वैचारिक दूरी अधिक हो, तो प्रतिस्पर्धा ‘केन्द्राभिमुख’ (centripetal) के बजाय ‘केन्द्रापसारी’ (centrifugal) हो जाती है यानी दल चरम सीमाओं की ओर खिंचने लगते हैं। पाँच से अधिक दलों वाली प्रणालियों में यह प्रवृत्ति अधिक स्पष्ट होती है।
दल प्रणाली की विविध श्रेणियाँ (Typology of Party Systems)
सार्तोरी ने सात प्रमुख प्रकार की दल प्रणालियाँ प्रस्तावित कीं:-
- एक-दलीय प्रणाली (One-party system)
- प्रभुत्वशाली दल प्रणाली (Hegemonic party system)
- प्रमुख दल प्रणाली (Predominant party system)
- द्विदलीय प्रणाली (Two-party system)
- सीमित बहुदलीय प्रणाली (Moderate pluralism)
- ध्रुवीकृत बहुदलीय प्रणाली (Polarized pluralism)
- बिखरी हुई प्रणाली (Atomized system)
यह वर्गीकरण केवल गणनात्मक नहीं, बल्कि सत्ता-वितरण (distribution of power) के गुणात्मक विश्लेषण पर आधारित है।
सार्तोरी के अनुसार, चुनाव प्रणाली (Electoral System) → दल प्रणाली (Party System) → दल व्यवहार (Party Behaviour)। यह एक कारण-श्रृंखला (causal chain) है। इस प्रकार, उन्होंने एक सिस्टमिक थ्योरी (Systemic Theory) का प्रस्ताव किया। जो व्यक्तिगत दलों के व्यवहार की बजाय संपूर्ण प्रणाली के परस्पर प्रभावों को समझाती है।
- लिपसेट और रोक्कन का सिद्धांत
सेमुर मार्टिन लिपसेट (Seymour Martin Lipset) और स्टीन रोक्कन (Stein Rokkan) का सिद्धांत आधुनिक राजनीतिक समाजशास्त्र में अत्यंत प्रसिद्ध है। इसे हम ‘सामाजिक विभाजन और दलीय व्यवस्था का सिद्धांत (Cleavage Theory of Party Systems)’ भी कहते हैं।
राजनीतिक दल केवल नेताओं या विचारधाराओं से नहीं बनते, बल्कि समाज में मौजूद गहरे सामाजिक विभाजन (cleavages) जैसे वर्ग, धर्म, भाषा, क्षेत्र ही उनकी नींव होते हैं।
मुख्य अवधारणा: सामाजिक विभाजन (Social Cleavages)
लिपसेट और रोक्कन ने चार प्रमुख प्रकार के विभाजनों (cleavages) की पहचान की
| प्रकार | विवरण | उदाहरण |
| 1. केंद्र बनाम परिधि (Centre vs Periphery) | राष्ट्रीय पहचान बनाम क्षेत्रीय या स्थानीय पहचान के बीच संघर्ष | स्पेन में कैटलोनिया, भारत में तमिल बनाम हिंदी क्षेत्र |
| 2. राज्य बनाम चर्च (State vs Church) | धार्मिक संस्था और राज्य सत्ता के बीच विवाद | यूरोप में कैथोलिक बनाम प्रोटेस्टेंट |
| 3. शहरी बनाम ग्रामीण (Urban vs Rural) | औद्योगिक बनाम कृषि समाज का संघर्ष | औद्योगिक मजदूर दल बनाम ग्रामीण किसान दल |
| 4. पूँजीपति बनाम श्रमिक (Capital vs Labour) | आर्थिक वर्ग विभाजन – पूँजीपति और मजदूरों के हितों का टकराव | समाजवादी दल बनाम पूँजीवादी दल |
- जिन देशों में सामाजिक विभाजन अधिक गहरे हैं, वहाँ बहुदलीय व्यवस्था विकसित होती है।
- जहाँ सामाजिक संरचना अधिक समरूप है, वहाँ द्विदलीय व्यवस्था की संभावना रहती है।
उदाहरण:
- नॉर्वे, इटली और भारत में बहुदलीय व्यवस्था (क्योंकि कई प्रकार के विभाजन मौजूद हैं)।
- अमेरिका और ब्रिटेन में द्विदलीय व्यवस्था (सामाजिक संरचना अपेक्षाकृत एकरूप)।
लिपसेट और रोक्कन ने यह स्पष्ट किया कि किसी देश की दलीय व्यवस्था केवल चुनावी प्रणाली से नहीं, बल्कि उसकी सामाजिक संरचना, ऐतिहासिक अनुभव और सांस्कृतिक संघर्षों से निर्धारित होती है।
- रॉबर्ट मिशेल्स का ‘कुलीनतंत्र का लौह नियम
रॉबर्ट मिशेल्स (Robert Michels) का ‘कुलीनतंत्र का लौह नियम (Iron Law of Oligarchy)’ राजनीतिक समाजशास्त्र का एक प्रसिद्ध और प्रभावशाली सिद्धांत है।
यह संगठन और लोकतंत्र के बीच के विरोधाभास को उजागर करता है; यानी, जैसे-जैसे कोई संगठन या दल बड़ा होता है, वह अपने आप एक छोटे अभिजात (elite) समूह के नियंत्रण में चला जाता है।
मुख्य कथन (Central Statement) ‘हर संगठन, चाहे वह कितना भी लोकतांत्रिक क्यों न हो, अंततः कुछ व्यक्तियों के छोटे समूह कुलीनतंत्र (oligarchy) के नियंत्रण में आ जाता है।’
- यह सिद्धांत मिशेल्स की प्रसिद्ध पुस्तक ‘Political Parties’ (1911) से लिया गया है।
- उन्होंने यह अध्ययन जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) के संदर्भ में किया था — जो सैद्धांतिक रूप से लोकतांत्रिक थी, लेकिन व्यवहार में कुछ नेताओं के नियंत्रण में आ गई थी।
दलीय व्यवस्थाओं के प्रकार
- एकदलीय: जैसे नाजी जर्मनी, सोवियत रूस
- द्विदलीय: जैसे अमेरिका, ब्रिटेन
- बहुदलीय: जैसे भारत, फ्रांस, इटली
निष्कर्ष
राजनीतिक दल लोकतंत्र की रीढ़ हैं। वे जनता और शासन के बीच सेतु का काम करते हैं, नीतियाँ बनाते हैं और जनहित में कार्य करते हैं। दलीय व्यवस्थाएँ एकदलीय, द्विदलीय या बहुदलीय समाज की संरचना और चुनाव प्रणाली पर निर्भर करती हैं। विद्वानों जैसे डुवर्गर, लिपसेट-रोक्कन और मिशेल्स ने दिखाया कि दल सामाजिक विभाजनों, चुनाव प्रणालियों और संगठनात्मक प्रवृत्तियों से आकार लेते हैं। किसी भी देश में लोकतंत्र तभी सफल होता है जब राजनीतिक दल उत्तरदायी, पारदर्शी और जनसेवी हों।
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