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राजनीतिक विकास सिद्धांत एवं मॉडल

राजनीतिक विकास सिद्धांत

राजनीतिक विकास का अध्ययन समकालीन तुलनात्मक राजनीति का एक केंद्रीय विषय है, जो यह समझने का प्रयास करता है कि समाज किस प्रकार राजनीतिक रूप से विकसित होते हैं, स्थायित्व प्राप्त करते हैं, और लोकतांत्रिक रूप धारण करते हैं। इस lलेख में चार प्रमुख सिद्धांतों; आधुनिकीकरण सिद्धांत, निर्भरता सिद्धांत, राज्यवाद और लोकतंत्रीकरण की तुलनात्मक समीक्षा प्रस्तुत की गई है।

  1. आधुनिकीकरण सिद्धांत (Modernisation Theory)
  • यह सिद्धांत मानता है कि सभी देश एक समान विकास की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं।
  • यह सिद्धांत गैर-पश्चिमी समाजों की वास्तविकताओं को नज़रअंदाज़ करता है।
  • यह बहुत रैखिक (linear) और पश्चिम-केंद्रित है।
  • मानता है कि पश्चिमी औद्योगिक समाज का मॉडल ही विकास का आदर्श है।
  • राजनीतिक विकास की प्रक्रिया को एक रैखिक और आंतरिक प्रक्रिया मानता है।
  • राजनीतिक विकास का मतलब है लोकतंत्र की ओर संक्रमण
  • यह गैर-पश्चिमी समाजों की अपनी विशेषताओं और बाहरी प्रभावों को नजरअंदाज करता है।
  • डब्ल्यू. डब्ल्यू. रोस्टो ने “पाँच चरणों” के विकास मॉडल की बात की: पारंपरिक समाज, टेक-ऑफ, परिपक्वता, और उच्च उपभोग की अवस्था।

Rostow’s Stages of Growth मॉडल

W.W. Rostow के मॉडल को समझने के दो तरीके है

  1. “नीचे से ऊपर” (Bottom-Up) दृष्टिकोण

रॉस्टो का मॉडल “ऊपर से नीचे” (top-down) है – मतलब विकास शहरीकरण, औद्योगीकरण और पूंजीवाद से शुरू होकर धीरे-धीरे पूरे देश में फैलता है।

यह दृष्टिकोण स्थानीय संसाधनों, संस्कृति और आवश्यकताओं पर आधारित होता है।

  • इसमें समुदाय की भागीदारी और स्वावलंबन होता है।
  • यह पश्चिमी मॉडल की नकल नहीं करता बल्कि देश की यथार्थवादी स्थिति को स्वीकार करता है।
  • उदहारण: भारत के सपोलिया मॉडल या स्वराज योजना
  1. बहुआयामी विकास मॉडल (Multi-Dimensional Development Approach)

रॉस्टो केवल आर्थिक विकास पर केंद्रित हैं — जैसे औद्योगीकरण, उत्पादन और उपभोग।
पर एक वैकल्पिक तरीका यह मानता है कि विकास सिर्फ आर्थिक नहीं होता, बल्कि इसमें ये भी शामिल हैं:

  • सामाजिक समावेशन (जैसे जाति, लिंग, वर्ग के आधार पर समान अवसर)
  • पर्यावरणीय स्थिरता
  • सांस्कृतिक संरक्षण
  • राजनीतिक भागीदारी और लोकतंत्र

उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र का मानव विकास सूचकांक (HDI)” जो शिक्षा, स्वास्थ्य और आय को मिलाकर विकास को मापता है।

W.W. Rostow books

  1. The Stages of Economic Growth: A Non-Communist Manifesto (1960)
  2. Politics and the Stages of Growth (1971)
  3. How It All Began: Origins of the Modern Economy (1975)
  4. The World Economy: History and Prospect (1978)
  1. निर्भरता सिद्धांत (Dependency Theory)
  • यह विचार करता है कि विकासशील देशों की गरीबी का कारण उनकी वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था पर निर्भरता है।
  • जोर देता है कि बाहरी शोषण के कारण आंतरिक विकास संभव नहीं है।
  • विकास और अविकास दोनों एक ही वैश्विक पूंजीवादी प्रक्रिया के दो पहलू हैं।
  • राजनीतिक विकास तभी संभव है जब यह आर्थिक अधीनता समाप्त हो।
  • यह सिद्धांत बहुत ही निर्धारणवादी (deterministic) है।
  • जापान और अर्जेंटीना जैसे देशों के आर्थिक विकास को यह सिद्धांत स्पष्ट रूप से समझ नहीं पाया।
  • . जी. फ्रैंक जैसे मार्क्सवादी विचारकों ने कहा कि विकासशील देश “अधीनता” में हैं क्योंकि वे “केंद्र” देशों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं।

Andre Gunder Frank की Dependency Theory

ए. जी. फ्रैंक का निर्भरता सिद्धांत यह बताता है कि जब तक वैश्विक पूंजीवादी संरचना बनी रहेगी, तब तक कुछ देश विकसित और कुछ अविकसित ही रहेंगे। स्वतंत्र और स्थायी विकास के लिए इस प्रणाली को तोड़ना आवश्यक है।

  • ए. जी. फ्रैंक का मानना है कि विकास और अविकास दोनों एक ही वैश्विक पूंजीवादी प्रक्रिया के हिस्से हैं। विकसित देशों (core/metropole) ने विकासशील या अविकसित देशों (periphery/satellite) का शोषण किया है, जिससे ये देश एक आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हालात में फँस गए हैं।
  • विकास और अविकास एक ही प्रक्रिया के दो पहलू हैं।
  • वैश्विक पूंजीवाद का फैलाव ही अविकास का मूल कारण है।
  • “मेट्रोपोलिस-सैटेलाइट संबंध” के तहत संसाधनों का प्रवाह सैटेलाइट (ग्राम/देश) से मेट्रोपोलिस (शहर/विकसित देश) की ओर होता है।
  • अविकसित देश अक्सर विकसित देशों पर निर्भर होते हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर नहीं बन पाते।
  • इस सिद्धांत ने पहली बार वैश्विक व्यवस्था को आलोचनात्मक नज़रिये से देखा। यह स्पष्ट करता है कि विकास केवल आंतरिक नीति से नहीं, बाहरी वैश्विक संबंधों से भी प्रभावित होता है।

Andre Gunder Frank books

  1. Capitalism and Underdevelopment in Latin America (1967)
  2. The Development of Underdevelopment (1966)
  3. Dependent Accumulation and Underdevelopment (1978)
  4. World Accumulation 1492–1789 (1978)
  5. Crisis in the World Economy (1980)
  6. Lumpenbourgeoisie: Lumpendevelopment (1972)
  7. The World System: Five Hundred Years or Five Thousand? (1993)
  8. 3. राज्यवाद (Statism)
  • यह सिद्धांत मानता है कि राज्य (State) स्वयं एक स्वतंत्र इकाई है, जो अपने हितों की पूर्ति के लिए विकास करता है।
  • वेबर के अनुसार, राज्य वैध बल प्रयोग का अधिकार रखता है और उसकी सत्ता का अपना महत्व है।
  • Peter Evans जैसे विद्वानों ने दिखाया कि “राज्य द्वारा संचालित औद्योगिकीकरण” से विकास संभव है।
  • राज्यवाद (Statism) वह दृष्टिकोण है जिसमें राज्य (government/state) को आर्थिक और सामाजिक विकास का मुख्य चालक (primary agent) माना जाता है।
    इस सिद्धांत के अनुसार, “राज्य केवल नीतियां बनाने वाला मंच नहीं है, बल्कि वह खुद विकास को सक्रिय रूप से संचालित करने वाला एक शक्तिशाली संस्थान है।”

Peter Evans काEmbedded Autonomy” सिद्धांत

Peter Evans की प्रमुख रचना “Embedded Autonomy: States and Industrial Transformation (1995)” में उन्होंने राज्यवाद को एक नई समझ दी।

  • Embedded Autonomy (समाहित स्वतंत्रता) “राज्य को ऐसा होना चाहिए जो स्वतंत्र (autonomous) भी हो, लेकिन साथ ही समाज में गहराई से जुड़ा हुआ (embedded) भी हो।”
  • Autonomous: राज्य पर निजी पूंजीपति या किसी विशेष समूह का नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
  • Embedded: राज्य का संपर्क उद्योगों, व्यापारियों और समाज से बना रहना चाहिए ताकि ज़मीनी जरूरतें समझी जा सकें।

Books of Peter Evans

  1. Embedded Autonomy: States and Industrial Transformation, 1995
  2. Dependent Development: The Alliance of Multinational, State, and Local Capital in Brazil, 1979
  1. 4. लोकतंत्रीकरण (Democratization)
  • 1970 के दशक के बाद लोकतांत्रिक आंदोलनों की तीसरी लहर आई, जिसने अधिनायकवादी शासन को हटाया।
  • Adam Przeworski और Ronald Inglehart ने तर्क दिया कि आर्थिक विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव लोकतंत्र की स्थापना और उसके स्थायित्व में भूमिका निभाते हैं।

Adam Przeworski का दृष्टिकोण

“मिनिमलिस्ट” या “इलेक्टोरलिस्ट”: लोकतंत्र को वह प्रणाली मानते हैं जिसमें नागरिक शांतिपूर्ण ढंग से चुनावों के माध्यम से सरकार बदल सकते हैं।

“Democracy is simply a system in which incumbents lose elections and leave when they lose.”

  • लोकतंत्र तब संकट में होता है जब चुनाव निष्पक्ष नहीं रह जाते, या जब सत्ता पर काबिज सरकारें संस्थानों को धीरे-धीरे कमजोर करती हैं (stealth authoritarianism)।
  • लोकतंत्र तब काम करता है जब संस्थान सामाजिक संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से हल कर सकें। जब संस्थाएं ऐसा नहीं कर पातीं, तब लोकतंत्र संकटग्रस्त होता है।
  • लोकतंत्र और पूंजीवाद के बीच तनाव को स्वीकार करते हैं। यदि समाज में आर्थिक असमानता अत्यधिक हो जाती है और नीतिगत परिणाम अल्पसंख्यकों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाते हैं, तो लोकतंत्र का टिकना कठिन हो जाता है।

Adam Przeworski Book

  1. Crises of Democracy (2019)

Ronald Inglehart का दृष्टिकोण

  • जैसे-जैसे समाज आर्थिक रूप से विकसित होते हैं, शिक्षा, शहरीकरण और संचार के प्रसार से व्यक्ति की सोच अधिक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र होती जाती है, इससे लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास होता है।
  • पारंपरिक मूल्यों से हटकर व्यक्ति स्वतंत्रता, आत्म-अभिव्यक्ति और भागीदारी की मांग करता है, यह लोकतंत्र के लिए अनुकूल होता है।
  • लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब नागरिकों की सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ (values) लोकतांत्रिक हों। जैसे-जैसे लोग उत्तर-आधुनिक मूल्य अपनाते हैं, लोकतंत्र की मांग और स्थायित्व दोनों बढ़ते हैं।
  • भौतिक सुरक्षा से ऊपर जाकर आत्म-अभिव्यक्ति, पर्यावरण संरक्षण और लिंग समानता जैसे मुद्दे अहम हो जाते हैं, यह स्थायी लोकतंत्र के लिए आधार बनते हैं।

Ronald Inglehart books

  1. The Silent Revolution: Changing Values and Political Styles among Western Publics (1977)
  2. Culture Shift in Advanced Industrial Society (1990)
  3. Modernization and Postmodernization: Cultural, Economic, and Political Change in 43 Societies (1997)
  4. Sacred and Secular: Religion and Politics Worldwide (2004, with Pippa Norris)
  5. Cultural Evolution: People’s Motivations are Changing, and Reshaping the World (2018)

निष्कर्ष

राजनीतिक विकास को समझने के लिए एक ही सिद्धांत पर्याप्त नहीं है। आधुनिकीकरण सिद्धांत जहाँ आर्थिक समृद्धि और पश्चिमी संस्थानों की नकल को विकास का मार्ग मानता है, वहीं निर्भरता सिद्धांत वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था के शोषणकारी स्वरूप को उजागर करता है। इसके विपरीत, राज्यवाद राज्य की भूमिका को केंद्रीय मानते हुए “नीति निर्माण” को नहीं बल्कि “नीति प्रेरणा” को प्राथमिकता देता है। लोकतंत्रीकरण के सिद्धांत इस बात पर बल देते हैं कि लोकतंत्र का विकास केवल संस्थाओं के निर्माण से नहीं बल्कि नागरिकों के मूल्यों और राजनीतिक चेतना में परिवर्तन से भी जुड़ा हुआ है।

इन सभी दृष्टिकोणों से स्पष्ट होता है कि राजनीतिक विकास न तो पूर्णतः आंतरिक (internal) होता है और न ही केवल बाहरी (external)—बल्कि यह आर्थिक, सांस्कृतिक, संस्थागत, और वैश्विक शक्तियों के परस्पर संवाद से उत्पन्न होने वाली एक जटिल प्रक्रिया है। अतः, किसी भी समाज के राजनीतिक विकास को समझने के लिए बहुस्तरीय और सापेक्षिक दृष्टिकोण (multi-level and context-sensitive approach) अपनाना आवश्यक है।

आज की तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक विकास को बहु-आयामी प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, जिसमें आंतरिक (संस्कृति, सामाजिक ढांचे) और बाहरी (वैश्विक पूंजीवाद, भू-राजनीति) दोनों कारक शामिल होते हैं। फिर भी कोई सिद्धांत पूरी तरह से राजनीतिक विकास को नहीं समझा सका है।

 

 

 

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