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राजनीतिक शासन प्रणालियाँ

लोकतंत्रीय, सत्तावादी और अधिनायकतंत्रीय प्रणालियाँ, संसदीय और अध्यक्षीय प्रणालियाँ, एकात्मक और संघीय प्रणालियाँ

शासनप्रणाली की परिभाषा (Definition of Form of Government)

किसी भी राज्य के अंतर्गत शासन के संगठन, संचालन तथा शक्तियों के वितरण के ढंग को शासन प्रणाली कहा जाता है।
अर्थात् शासन प्रणाली यह संकेत करती है कि

  • शासन के विभिन्न अंगों (विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका) की शक्तियाँ और कर्तव्य क्या हैं,
  • तथा उनके परस्पर संबंधों की प्रकृति कैसी है।

शासन प्रणालियों के प्रमुख प्रकार (Major Types of Political Systems)

राजनीतिक प्रणालियों को सामान्यतः निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है-

  1. लोकतंत्रीय, सत्तावादी और अधिनायकतंत्रीय प्रणालियाँ (Democratic, Authoritarian and Dictatorial Systems)
  2. संसदीय और अध्यक्षीय प्रणालियाँ (Parliamentary and Presidential Systems)
  3. एकात्मक और संघीय प्रणालियाँ (Unitary and Federal Systems)

इस वर्गीकरण उद्देश्य

  • समान विशेषताओं वाली प्रणालियों को एक ही श्रेणी में रखकर उनकी तुलना करना
  • परस्पर-विरोधी विशेषताओं वाली प्रणालियों को भिन्न-भिन्न श्रेणियों में रखकर उनमें अंतर करना।
  • राजनीतिक प्रणालियों के वर्गीकरण के आरंभिक प्रयत्न शासन प्रणालियों (Forms of Govemment) के वर्गीकरण के रूप में देखने को मिलते हैं।

लोकतंत्रीय, सत्तावादी और अधिनायकतंत्रीय प्रणालियाँ

शासन प्रणालीपरिभाषा / सारमुख्य विशेषताएँ (Key Features)उदाहरण / टिप्पणियाँ
लोकतंत्रीय प्रणाली (Democratic System)ऐसी शासन-व्यवस्था जिसमें शासन की शक्ति जनता के हाथों में होती है और शासन जनता की सहमति से चलता है। यह प्रणाली उदारवाद से गहराई से जुड़ी है, इसलिए इसे उदारलोकतंत्रीय प्रणाली (Liberal-Democratic System) भी कहा जाता है।• स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव (Free & Fair Elections) • राजनीतिक दलों के बीच खुली प्रतिस्पर्धा • किसी वर्ग का विशेषाधिकार नहीं • व्यापक मताधिकार (Universal Franchise) • दबाव समूह, मजदूर संघ व स्वैच्छिक संगठन स्वतंत्र रूप से कार्यरत • नागरिक स्वतंत्रताएँ मान्य – वाणी, धर्म, संगठन व गिरफ्तारी से स्वतंत्रता • स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary) • स्वतंत्र जनसंचार माध्यम (Free Press & Media)उदाहरण : भारत, ब्रिटेन, अमेरिका आदि टिप्पणी : यह प्रणाली नागरिक अधिकारों, उत्तरदायित्व और पारदर्शिता पर आधारित होती है।
सत्तावादी प्रणाली (Authoritarian System)ऐसी व्यवस्था जिसमें किसी व्यक्ति, संस्था, परंपरा या धार्मिक ग्रंथ की सत्ता को सर्वोच्च और अनिवार्य माना जाता है। शासन की वैधता किसी विचारधारा या परंपरा पर आधारित होती है।• सत्ता किसी व्यक्ति, संस्था या ग्रंथ के आदेशों पर आधारित • जनता की सहमति आवश्यक नहीं • जनसाधारण को स्वतंत्र मत या मांग प्रस्तुत करने का अवसर नहीं • सार्वजनिक चर्चा और मतदान का अभाव • सत्ताधारी लोकमत के प्रति उत्तरदायी नहीं • सत्ता वैधता (Legitimacy) पर आधारित, पर लोकतांत्रिक नहीं • समानांतर सत्ता स्वीकार्य नहीं • सत्ताधारी को असीमित लेकिन वैध शक्ति • सत्तावाद किसी विचारधारा से जुड़ा रहता हैउदाहरण : स्पेन (फ्रांको शासन), मिस्र, रूस का त्सारकाल टिप्पणी : सत्तावाद में वैधता तो होती है, पर लोकतांत्रिक सहमति का अभाव।
अधिनायकतंत्रीय प्रणाली (Dictatorial System)ऐसी शासन-व्यवस्था जिसमें समस्त शक्ति एक व्यक्ति या गुट के हाथों में केंद्रित रहती है और वह जनता या संविधान के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।• एक व्यक्ति के हाथों में सर्वोच्च सत्ता • लोकमत का अभाव, दमन एवं आतंक का प्रयोग • संविधान और विधियों की अवहेलना • विरोध और आलोचना का दमन • सत्ता के उत्तराधिकार का कोई निश्चित तरीका नहीं • समाज में भय और अनुशासन के माध्यम से नियंत्रण • नागरिक अधिकारों का हननउदाहरण : हिटलर (जर्मनी), मुसोलिनी (इटली) टिप्पणी : लोकतंत्र का पूर्ण अभाव; यह सत्ता के केंद्रीकरण का चरम रूप है।

लोकतंत्र में सत्ता जनता की इच्छा और सहमति पर आधारित होती है, जबकि सत्तावाद और अधिनायकतंत्र में सत्ता ऊपर से थोप दी जाती है।
जैसा कि दार्शनिक . जे. एयर (A.J. Ayer) ने कहा है:
सत्ता की नींव पर नैतिकता का ढाँचा खड़ा नहीं किया जा सकता, चाहे वह दिव्य सत्ता ही क्यों हो।

पूर्णसत्तावाद, स्वैरतंत्र, निरंकुशतंत्र और अधिनायकतंत्र(Absolutism, Autocracy, Despotism and Dictatorship)

  1. पूर्णसत्तावाद (Absolutism)
  • यह मूल रूप से एक धर्मआधारित विचार (Theocratic Concept) था, जिसमें शासक की शक्ति को ईश्वर की तरह असीम माना जाता था।
  • राजनीति में इसका अर्थ होता है ऐसा शासक जो सर्वशक्तिमान हो और किसी भी कानून, परंपरा या नैतिक नियम से बँधा हो।
  • जनता को अपनी राय या असहमति व्यक्त करने का अधिकार नहीं होता।
  • इसका प्रमुख रूप पूर्ण राजतंत्र (Absolute Monarchy) था, जिसमें राजा या सम्राट के पास असीम सत्ता होती थी।
  • यूरोप में 1648 से 1789 के बीच यह शासन प्रणाली सबसे अधिक प्रचलित रही।
  • इसलिए उस समय को “पूर्णसत्तावाद का युग (Age of Absolutism)” कहा जाता है
  1. स्वैरतंत्र या स्वेच्छाचारी शासन (Autocracy)
  • इस शासन प्रणाली में संपूर्ण शक्ति एक व्यक्ति के हाथों में होती है।
  • कोई संस्था, कानून या समाज उसे नियंत्रित नहीं कर सकता।
  • शासक की इच्छा ही कानून मानी जाती है।
  • वह जैसा चाहे वैसा शासन करता है, किसी को जवाब नहीं देना पड़ता।
  • जनता या अन्य अधिकारियों की राय का इसमें कोई महत्व नहीं होता।
  1. निरंकुशतंत्र या तानाशाही (Despotism)
  • यह शासन प्रणाली प्राचीन यूनान से जुड़ी है।
  • इसमें शासक अपनी प्रजा के साथ उसी तरह व्यवहार करता है जैसे कोई मालिक अपने दासों के साथ करता है।
  • शासक पूरी तरह मनमानी करता है, किसी नियम या नैतिक सीमा का पालन नहीं करता।
  • ऐसी व्यवस्था में क्रूरता, दमन और अत्याचार प्रमुख होते हैं।
  • फ्रांसीसी विचारक वॉल्तेयर (Voltaire) ने “प्रबुद्ध निरंकुशतंत्र (Enlightened Despotism)” की बात की थी
    जिसमें शासक भले ही पूर्ण शक्ति रखता है, लेकिन उसका उपयोग जनता के हित में करता है।
  • प्रशा के राजा फ्रेडरिक ग्रेट (Frederick the Great) इसका उदाहरण माने जाते हैं।
  1. अधिनायकतंत्र (Dictatorship)
  • अधिनायकतंत्र वह शासन प्रणाली है, जिसमें सारी शक्ति एक व्यक्ति या एक छोटे गुट के हाथों में केंद्रित होती है।
  • “अधिनायक” शब्द की उत्पत्ति प्राचीन रोम से हुई, जहाँ आपातकाल में एक व्यक्ति को अस्थायी रूप से असीम अधिकार दिए जाते थे।
  • आधुनिक युग में यह ऐसा शासन बन गया जिसमें कोई व्यक्ति कानून से ऊपर होकर शासन करता है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • अधिनायक या शासक के निर्णयों पर कोई सवाल नहीं उठा सकता।
  • सत्ता पर कोई कानूनी, सामाजिक या नैतिक नियंत्रण नहीं रहता।
  • शासन की शक्ति किसी सीमाओं में बँधी नहीं होती।
  • ऐसा शासक सामान्यतः संकट या अराजकता के समय उभरता है और धीरे-धीरे पूरे देश पर नियंत्रण कर लेता है।
  • उत्तराधिकार (succession) की कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं होती, शासक हटे तो अगला कौन बनेगा, यह तय नहीं होता।
  • सत्ता का उपयोग शासक और उसके समर्थकों के हित में किया जाता है।
  • जनता उससे डरकर उसकी आज्ञा का पालन करती है, न कि स्वेच्छा से।
  • शासन में आतंक, दमन और भय का वातावरण रहता है।
  • कुछ मामलों में “सामूहिक अधिनायकतंत्र (Collective Dictatorship)” भी होता है, जहाँ सत्ता एक छोटे गुट के पास रहती है।
  • हिटलर (जर्मनी) और मुसोलिनी (इटली) अधिनायकतंत्र के प्रमुख उदाहरण हैं।

लोकतंत्र और अधिनायकतंत्र में अंतर (Democracy vs Dictatorship)

आधारलोकतंत्र (Democracy)अधिनायकतंत्र (Dictatorship)
सत्ता का स्रोतजनता की इच्छा और सहमतिएक व्यक्ति या गुट की इच्छा
उत्तरदायित्वसरकार जनता के प्रति उत्तरदायीशासक किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं
कानून का स्थानकानून सर्वोच्च होता हैशासक की इच्छा ही कानून होती है
स्वतंत्रतानागरिकों को अधिकार और स्वतंत्रताएँ प्राप्तनागरिकों की स्वतंत्रता सीमित या समाप्त
शासन का तरीकासंविधान और कानून के अनुसारसंविधान की अवहेलना कर शासन
अवधिनियमित चुनावों द्वारा परिवर्तनशासक तब तक रहता है जब तक शक्ति बनी रहे

आधुनिक युग में तीन प्रकार के अधिनायकतंत्र

  • राजनीतिक दल का अधिनायकतंत्र (Dictator ship of a Political Party)-जैसा कि पूर्ववर्ती सोवियत संघ, जनवादी चीन गणराज्य
  • सैनिक अधिनायकतंत्र (Military Dictator ship)-जैसा कि एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमरीका
  • फ़ासिस्ट अधिनायकतंत्र (Fascist Dictator ship)-जैसा इटली और जर्मनी
  • अधिनायकतंत्र शक्ति के ऐसे श्रेणीतंत्र (Tlierarchy) का निर्माण करता है जो सामाजिक वर्ग-व्यवस्था के अनुरूप सिद्ध नहीं होता।
  • इस तंत्र का प्रधान कोई जनप्रिय नेता होता है, जैसा फ़ासिस्ट इटली, नाजी जर्मनी, सोवियत रूस।

सर्वाधिकरवाद (Totalitarianism)

  • वह सिद्धांत जो राज्य की सारी शक्ति को एक ही जगह केंद्रित करने, और लोगों के संपूर्ण जीवन पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने का समर्थन करता है।
  • इसमें सत्ताधारी वर्ग जो लक्ष्य निर्धारित करता है, समाज के समस्त संसाधनों (Resources), अधिकारक्षेत्र (Jurisdiction) और जनशक्ति (MannaM) का उपयोग किया जाये।
  • किसी को उनका विरोध करने या उनके बाहर कोई दूसरा लक्ष्य चुन लेने का अधिकार या अवसर नहीं दिया जाता।
  • फासिस्ट (Fascist) और कम्युनिस्ट (Communist) प्रणालियों में यह सिद्धांत अपनाया जाता है।
  • संसदीय और अध्यक्षीय प्रणालियां (Parliamentary and Presidential Systems)
  • लोकतंत्रीय एवं सांविधानिक शासन-प्रणालियों के अंतर्गत शासन के राजनीतिक अंग
  • विधानमंडल (Legislature)
  • कार्यपालिका (Executive)
  • इनमे दो तरह का संबंध देखने को मिलता है।
  • संसदीय और अध्यक्षीय प्रणालियों में अंतर किया जाता है।

संसदीय प्रणाली और अध्यक्षीय प्रणाली में अंतर

आधारसंसदीय शासन प्रणाली (Parliamentary System)अध्यक्षीय शासन प्रणाली (Presidential System)
कार्यपालिका की उत्तरदायित्वकार्यपालिका (मंत्रिमंडल) संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।कार्यपालिका (राष्ट्रपति) संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होती।
शक्ति का संबंधकार्यपालिका और विधायिका में घनिष्ठ संबंध होता है।कार्यपालिका और विधायिका में शक्ति-पार्थक्य (Separation of Powers) होता है।
राज्याध्यक्ष की स्थितिराज्याध्यक्ष (राष्ट्रपति/राजा) प्रतीकात्मक होता है।राष्ट्रपति ही राज्याध्यक्ष और शासनाध्यक्ष दोनों होता है।
प्रधान कार्यकारी प्रमुखप्रधानमंत्री या चांसलर शासन का वास्तविक प्रमुख होता है।राष्ट्रपति शासन का वास्तविक प्रमुख होता है।
विधानमंडल की भूमिकामंत्रिमंडल संसद से समर्थन प्राप्त करता है, समर्थन न मिलने पर त्यागपत्र देता है।संसद राष्ट्रपति को पद से नहीं हटा सकती; केवल महाभियोग से ही हटाया जा सकता है।
विधानमंडल का विघटनप्रधानमंत्री की सलाह पर राज्याध्यक्ष संसद को भंग कर सकता है।राष्ट्रपति संसद को भंग नहीं कर सकता।
कार्यकालप्रधानमंत्री तब तक पद पर रहता है जब तक संसद का विश्वास प्राप्त हो।राष्ट्रपति और संसद दोनों का कार्यकाल निश्चित अवधि के लिए होता है।
राजनीतिक दलों की भूमिकाबहुदलीय व्यवस्था (Multi-Party System) प्रचलित रहती है।प्रायः द्विदलीय व्यवस्था (Two-Party System) देखी जाती है।
शासन की स्थिरताबार-बार अविश्वास प्रस्ताव या चुनावों से शासन अस्थिर हो सकता है।शासन स्थिर रहता है क्योंकि कार्यकाल निश्चित होता है।
नीतिनिर्माण और प्रशासनमंत्रिमंडल सामूहिक रूप से निर्णय लेता है; नीतियाँ दलगत आधार पर बनती हैं।राष्ट्रपति अकेले निर्णय ले सकता है; प्रशासनिक कार्यकुशलता अधिक होती है।
महाभियोग प्रक्रियाराज्याध्यक्ष केवल औपचारिक पद पर होते हैं, इसलिए प्रायः महाभियोग नहीं चलता।राष्ट्रपति को देशद्रोह, भ्रष्टाचार या संविधान उल्लंघन पर महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
शासन की प्रकृतिलचीली (Flexible) प्रणाली — संसद या मंत्रिमंडल किसी भी समय बदला जा सकता है।कठोर (Rigid) प्रणाली — निश्चित कार्यकाल तक कोई बदलाव नहीं।
नियंत्रण और संतुलनशक्ति का केंद्रीकरण मंत्रिमंडल में; नियंत्रण संसद द्वारा।नियंत्रण और संतुलन (Checks and Balances) की सशक्त व्यवस्था होती है।
उदाहरणभारत, ब्रिटेन, जापान आदि।अमेरिका, ब्राज़ील, अर्जेंटीना आदि।
मुख्य लाभउत्तरदायी शासन, लोकतांत्रिक जवाबदेही और जनसंपर्क।स्थिर शासन, शक्ति का स्पष्ट विभाजन, कार्यकुशल प्रशासन।
मुख्य दोषअस्थिरता, दलगत राजनीति, प्रशासनिक बोझ।कठोरता, कार्यपालिका पर जनमत का कम नियंत्रण, सहयोग की कमी।

एकात्मक और संघात्मक शासन प्रणाली में अंतर

आधारएकात्मक शासन प्रणाली (Unitary System)संघात्मक शासन प्रणाली (Federal System)
परिभाषाजिसमें पूरे देश की सत्ता एक ही केंद्रीय सरकार में निहित होती है।जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का संवैधानिक विभाजन होता है।
सत्ता का केंद्रसारी शक्तियाँ केंद्र के पास होती हैं।शक्ति केंद्र और राज्यों में विभाजित होती है।
संविधान की प्रकृतिसंविधान एकात्मक (एक ही शासन के लिए) और साधारण होता है।संविधान लिखित, कठोर और सर्वोच्च होता है।
संविधान की सर्वोच्चतासंसद सर्वोच्च होती है, वह किसी भी विषय पर कानून बना सकती है।संविधान सर्वोच्च होता है; न केंद्र, न राज्य उससे ऊपर हैं।
शक्तियों का वितरणशक्तियाँ केंद्र के विवेक पर निर्भर करती हैं; राज्य की शक्तियाँ स्थायी नहीं होतीं।शक्तियाँ संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से बाँटी जाती हैं; दोनों स्तरों की अपनी सीमाएँ होती हैं।
कानून निर्माण की शक्तिकेवल केंद्रीय संसद के पास विधायी शक्ति होती है।केंद्र और राज्य दोनों अपने-अपने विषयों पर कानून बना सकते हैं।
प्रशासनिक ढाँचाएक ही शासन और सेवाएँ — प्रशासन सरल और कम खर्चीला।दोहरे शासन और दोहरी सेवाएँ — प्रशासन जटिल और महँगा।
राज्य या स्थानीय इकाइयों की स्थितिप्रशासनिक इकाइयाँ केवल केंद्र के अधीन होती हैं; स्वतंत्र अधिकार नहीं।राज्य इकाइयाँ संवैधानिक रूप से स्वतंत्र होती हैं; अपने क्षेत्र में सर्वोच्च।
संविधान में संशोधनकेंद्र सरकार अकेले संशोधन कर सकती है।संशोधन के लिए केंद्र और राज्यों दोनों की सहमति आवश्यक।
न्यायपालिका की संरचनाएकात्मक न्यायपालिका।संघात्मक या एकान्वित न्यायपालिका (भारत की तरह)।
केंद्र की सत्ता की सीमाकेंद्र की सत्ता पूरे देश में सर्वोच्च और असीम होती है।केंद्र की सत्ता संविधान द्वारा सीमित होती है।
राष्ट्रीय एकता बनाम स्वायत्तताराष्ट्रीय एकता और केंद्रीकरण पर बल।राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ राज्यों की स्वायत्तता पर बल।
लागत (Cost)कम खर्चीला, क्योंकि एक ही प्रशासनिक ढाँचा।अधिक खर्चीला, क्योंकि दोहरा प्रशासन।
शासन की उपयुक्तताछोटे और सांस्कृतिक रूप से एकरूप देशों के लिए उपयुक्त।बड़े, विविधतापूर्ण और बहुभाषी देशों के लिए उपयुक्त।
उदाहरणब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, जापान।अमेरिका, भारत, स्विट्ज़रलैंड, कनाडा।
मुख्य लाभसशक्त और केंद्रीकृत प्रशासन, समान नीतियाँ और त्वरित निर्णय।स्थानीय स्वायत्तता, विविधता का सम्मान, लोकतंत्र की गहराई।
मुख्य दोषस्थानीय समस्याओं की अनदेखी, नौकरशाही का बढ़ना, जनसंपर्क में दूरी।जटिल प्रशासन, अधिक खर्च, केंद्र–राज्य विवाद की संभावना।
भारतीय परिप्रेक्ष्यभारतीय संविधान सामान्यतः संघात्मक है, परंतु आपातकालीन परिस्थितियों में केंद्र को एकात्मक शक्ति प्राप्त होती है — अतः इसे संघात्मकवत् (Quasi-Federal) कहा जाता है।

पूंजीवादी प्रणाली और समाजवादी प्रणाली में अंतर

आधारपूंजीवादी प्रणाली (Capitalist System)समाजवादी प्रणाली (Socialist System)
उत्पत्तिऔद्योगिक युग की देन; औद्योगिक रूप से उन्नत देशों में विकसित।मार्क्सवाद–लेनिनवाद से प्रेरित; औद्योगिक असमानता के प्रतिकार के रूप में विकसित।
सत्ता और स्वामित्वउत्पादन के साधनों (भूमि, कारखाने, उपकरण) का निजी स्वामित्वउत्पादन के साधनों का राज्य स्वामित्व
मुख्य उद्देश्यअधिकतम लाभ (Profit Maximization) प्राप्त करना।सार्वजनिक सेवा और सामाजिक समानता (Social Welfare) प्राप्त करना।
अर्थव्यवस्था का आधारमुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था (Free Market Economy) – माँग और पूर्ति पर आधारित।नियोजित अर्थव्यवस्था (Planned Economy) – राज्य के नियंत्रण में।
निर्णय प्रक्रियाउद्यमियों, उद्योगपतियों और व्यापारियों द्वारा विकेंद्रीकृत निर्णय।केंद्रीय योजना आयोग या राज्य के निर्देशों द्वारा केंद्रीकृत निर्णय।
संविधानिक ढाँचानागरिक स्वतंत्रताओं और अनुबंध की स्वतंत्रता को प्रमुखता।नागरिक स्वतंत्रताओं की अपेक्षा सामाजिक–आर्थिक अधिकारों पर बल।
संपत्ति का अधिकारसंपत्ति का अधिकार मूलभूत और निजी हित सर्वोपरि।संपत्ति का अधिकार सीमित; राज्य के नियंत्रण में।
प्रेरक तत्वद्रव्यात्मक प्रोत्साहन (Monetary Incentives) से व्यक्ति को प्रेरित किया जाता है।सामाजिक प्रोत्साहन (Social Motivation) से व्यक्ति कार्य करता है।
श्रमिक की स्थितिश्रमिक स्वतंत्र रूप से कहीं भी कार्य कर सकता है या नौकरी छोड़ सकता है।श्रमिक राज्य के नियंत्रण में; रोजगार की गारंटी लेकिन स्वतंत्रता सीमित।
राज्य की भूमिकाराज्य सीमित हस्तक्षेप करता है; बाज़ार की स्वतःस्फूर्त शक्तियाँ काम करती हैं।राज्य संपूर्ण आर्थिक गतिविधियों का संचालन करता है।
वर्ग संरचनासमाज दो वर्गों में बँटा – धनवान (Haves) और निर्धन (Have-nots)वर्गविहीन समाज की स्थापना का लक्ष्य।
राजनीतिक व्यवस्थाउदार लोकतंत्र; बहुदलीय प्रणाली।साम्यवादी एकदलीय प्रणाली (Communist One-Party System)।
नागरिक स्वतंत्रतावाणी, धर्म, संगठन आदि की पूर्ण स्वतंत्रता।व्यक्तिगत स्वतंत्रता सीमित; राज्य-हित सर्वोपरि।
शक्ति का केंद्रीकरणआर्थिक शक्ति कुछ उद्योगपतियों के हाथों में केंद्रीकृत।राजनीतिक शक्ति साम्यवादी दल के हाथों में केंद्रीकृत।
वैचारिक आधारउदारवाद (Liberalism) पर आधारित।मार्क्सवाद-लेनिनवाद (Marxism-Leninism) पर आधारित।
सरकारी हस्तक्षेपन्यूनतम हस्तक्षेप; बाजार की स्वतन्त्रता पर विश्वास।अधिकतम हस्तक्षेप; राज्य की योजना सर्वोच्च।
नियोजन प्रणालीबाज़ार स्वयं उत्पादन और मूल्य निर्धारण तय करता है।केंद्रीय नियोजन (Central Planning) के अनुसार उत्पादन और वितरण होता है।
आर्थिक समानताआय और संपत्ति में असमानता अधिक।समानता और समरसता पर बल।
राजनीतिक स्वतंत्रताबहुदलीय प्रणाली, चुनाव द्वारा सत्ता परिवर्तन संभव।एकदलीय शासन; सत्ता परिवर्तन की संभावना सीमित।
उदाहरणअमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि।चीन, पूर्ववर्ती सोवियत संघ (USSR), विएतनाम, उत्तर कोरिया, लाओस आदि।
मुख्य लाभउत्पादन में दक्षता, नवाचार, प्रतिस्पर्धा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता।सामाजिक न्याय, रोजगार की गारंटी, समानता और आर्थिक सुरक्षा।
मुख्य दोषआर्थिक असमानता, वर्ग संघर्ष, शोषण और बेरोजगारी।व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ह्रास, केंद्रीकृत नौकरशाही और धीमी आर्थिक प्रगति।

साम्यवादी और उत्तरसाम्यवादी प्रणालियाँ में अंतर

आधारसाम्यवादी प्रणाली (Communist System)उत्तरसाम्यवादी प्रणाली (Post-Communist System)
परिभाषाऐसी राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था जो मार्क्सवादलेनिनवाद की विचारधारा पर आधारित होती है, जहाँ राज्य के स्वामित्व में उत्पादन के साधन होते हैं।वे देश जिन्होंने साम्यवादी प्रणाली को छोड़कर लोकतंत्रीय और पूंजीवादी संरचना अपनाने का प्रयास किया।
मुख्य विचारधारामार्क्सवाद और लेनिनवाद; वर्गहीन समाज और उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण।लोकतंत्र, बहुदलीय व्यवस्था, और बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण।
राजनीतिक ढाँचाएकदलीय व्यवस्था (One-Party System) – केवल साम्यवादी दल का शासन।बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था (Multi-Party System) स्थापित करने का प्रयास।
शक्ति का संगठनअत्यधिक केंद्रीकरण (Centralization) – सत्ता और नीति-निर्माण केंद्र में केंद्रित।धीरे-धीरे विकेंद्रीकरण (Decentralization) की ओर अग्रसर।
शासन का सिद्धांतलोकतंत्रीय केंद्रवाद (Democratic Centralism) – निचले स्तर के अंग ऊँचे स्तर के निर्णयों का पालन करते हैं।प्रतिनिधि लोकतंत्र की ओर झुकाव; जनता की भागीदारी बढ़ाने का प्रयास।
दल और शासन का संबंधदल और राज्य एक-दूसरे में विलीन; साम्यवादी दल शासन पर पूर्ण नियंत्रण रखता है।दल और शासन को अलग करने का प्रयास; नौकरशाही को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त करने की दिशा।
नौकरशाही की भूमिकानौकरशाही (Bureaucracy) दल के नियंत्रण में; राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं।प्रशासनिक सुधारों का प्रयास, परंतु पुरानी नौकरशाही अब भी प्रभावशाली।
आर्थिक संरचनाकेंद्रीकृत नियोजन प्रणाली; उत्पादन और वितरण पर राज्य का नियंत्रण।मिश्रित या बाज़ार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण।
चुनावी व्यवस्थाचुनाव होते हैं पर केवल साम्यवादी दल के प्रत्याशी होते हैं।प्रतिस्पर्धात्मक चुनाव; विभिन्न राजनीतिक दलों की भागीदारी।
जनसहभागितासीमित; जनता केवल दल के मार्गदर्शन में कार्य कर सकती है।नागरिक स्वतंत्रताओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विस्तार।
अधिकारितंत्र (Bureaucracy)दल का उपकरण; नीतियों को लागू करने वाला साधन।धीरे-धीरे पेशेवर प्रशासनिक ढाँचे की ओर झुकाव।
उदाहरणचीन, उत्तर कोरिया, विएतनाम, लाओस, क्यूबा (अब भी साम्यवादी)।रूस, पोलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया, अल्बानिया (साम्यवादी पश्चात् राज्य)।
ऐतिहासिक परिवर्तनकेंद्रीकरण, दलीय नियंत्रण और वैचारिक एकरूपता पर आधारित शासन।राजनीतिक संक्रमण, आर्थिक उदारीकरण और सामाजिक विविधता की स्वीकृति।
सामाजिक प्रभावनागरिक स्वतंत्रता सीमित, परंतु रोजगार और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी।स्वतंत्रता का विस्तार, परंतु आर्थिक असमानता और राजनीतिक अस्थिरता में वृद्धि।
प्रमुख घटनाएँचीन की सांस्कृतिक क्रांति (1966) — जनता से सीधे मार्गदर्शन लेने का प्रयास।1989–1992 के बीच पूर्वी यूरोप में साम्यवाद का पतन, और नए लोकतांत्रिक राज्यों का गठन।

 

विकासशील देशों की राजनीतिक प्रणालियां (Political Systems of the Developing Countries)

  • विकासशील देशों (Developing Countries) या तीसरी दुनिया (Third World) के देशों में उपनिवेशवादी दौर (Colonial Phase) की प्रशासनिक व्यवस्था को रातोंरात हटाना संभव नहीं था।
  • उपनिवेशवादी व्यवस्था केंद्रीकरण को बढ़ावा देती थी।
  • इन देशों में जहां-जहां सत्तावादी प्रणाली (Authoritarian Systems) स्थापित हुई है, वहां केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया
  • जहां-जहां लोकतंत्र स्थापित हुआ है, वहां जनसाधारण की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए विकेंद्रीकरण की नीति अपनाने का प्रयत्न किया जा रहा है।
  • इन देशों का विशाल आकार, राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार तथा भाई-भतीजावाद आज भी जन-आकांक्षाओं की पूर्ति में बाधक बना हुआ हैं।
  • भारतीय प्रशासन में विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए संघीय प्रणाली, पंचायती राज व्यवस्था की गई है।

 


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