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राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा

समकालीन भारत की राजनीतिक संस्कृति

राजनीतिक संस्कृति क्या है?

राजनीतिक संस्कृति का मतलब है, किसी समाज के ऐसे विचार, मूल्य, विश्वास और व्यवहार, जो उसकी राजनीति को प्रभावित करते हैं
हर समाज की एक संस्कृति होती है जिसमें जीवन जीने के तरीके, परंपराएँ, रीति-रिवाज, धर्म, कला, उत्सव, और मान्यताएँ शामिल होती हैं।
इसी संस्कृति का वह हिस्सा जो राजनीतिक सोच, आचरण और व्यवस्था को प्रभावित करता है, वही राजनीतिक संस्कृति कहलाता है। राजनीतिक संस्कृति यह बताती है कि लोग अपने शासकों, संस्थाओं, और शासन प्रक्रिया के प्रति क्या सोचते हैं;

क्या वे शासन को वैध मानते हैं?
क्या वे राजनीति में भाग लेना चाहते हैं या नहीं?
क्या वे सरकार पर भरोसा करते हैं या नहीं?

राजनीतिक संस्कृति के प्रकार (Types of Political Culture)

राजनीतिक वैज्ञानिक जी. . ऑल्मंड (G. A. Almond) और सिडनी वर्बा (Sidney Verba) ने राजनीतिक संस्कृति के तीन रूप बताए हैं:-

क्रमांकप्रकारमुख्य विशेषताएँ
1.संकीर्ण संस्कृति (Parochial Culture)लोगों को राजनीति और सरकारी संस्थाओं की बहुत कम जानकारी होती है। वे राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेते। यह संस्कृति परंपरागत समाजों में पाई जाती है।
2.अधीन संस्कृति (Subject Culture)नागरिक सरकार की नीतियों, कानूनों और संस्थाओं के प्रति जागरूक होते हैं, लेकिन वे निर्णयों को प्रभावित करने में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते।
3.सहभागी संस्कृति (Participant Culture)नागरिक राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वे चुनाव, चर्चा और निर्णयों में शामिल होकर शासन को प्रभावित करते हैं। यह संस्कृति लोकतंत्र के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

नागरिक संस्कृति (Civic Culture)

ऑल्मंड और वर्बा ने कहा कि लोकतंत्र को टिकाए रखने के लिए इन तीनों संस्कृतियों का संतुलित मिश्रण जरूरी है। इसी संतुलित मिश्रण को उन्होंने “नागरिक संस्कृति” कहा।

नागरिक संस्कृति की मुख्य विशेषताएँ:

  • नागरिक सरकार पर भरोसा करते हैं और मानते हैं कि सरकार जनहित में काम करती है।
  • लोग राजनीतिक रूप से जागरूक भी होते हैं, लेकिन अति-उत्साही या विद्रोही नहीं।
  • नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और सीमित लेकिन सक्रिय भागीदारी करते हैं।
  • सरकार और जनता के बीच विश्वास और संतुलन बना रहता है।
  • कानून के शासन (Rule of Law) और कानून के प्रति सम्मान (Respect for Law) को प्राथमिकता दी जाती है।
  • सब पर समान कानून लागू होता है, और कोई मनमाना निर्णय नहीं लिया जाता।

राजनीतिक संस्कृति का वैकल्पिक सिंद्धात (Alternative Theory of Political Culture)

प्रचलित सिद्धांत पर पुनर्विचार (Reconsideration of the Prevalent Theory)

  • पश्चिमी जगत् में राजनीतिक संस्कृति का जो सिद्धांत विकसित हुआ है, उसे राजनीतिक संस्कृति का ‘मुख्यधारा सिद्धांत (Mainstream Theory of Political Culture) कहा जाता है।
  • यह सिद्धांत उदारवादी चिंतन के साथ निकट से जुड़ा है इसलिए इसे राजनीतिक संस्कृति का उदारवादी सिद्धांत (Liberal Theory of Political Culture) भी कहा जाता है।
  • आल्मंड और वर्बा ने ब्रिटिश राजनीतिक संस्कृति का अत्यंत आकर्षक बनाया
  • राजनीतिक विरोध-प्रदर्शन (Political Protest) की लंबी परंपरा रही है
  • उन्होंने ‘राजनीतिक उदासीनता’ (Politic Apathy) को ज़रूरत से ज्यादा महत्त्व दिया है, और ‘सह लोकतंत्र’ (Participatory Democracy) से जुड़ी स्थिति की उपेक्षा की।
  • ऑल्मंड और वर्बा ने 1980 में ‘द सिविक कल्चर रिविज़िटेड’ (नागरिक संस्कृति–एक सिंहावलोकन) में आत्मालोचना पुनर्मूल्यांकन प्रस्तुत की।
  • इसमें उन्होंने लिखा है ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमरीका में सरकार के प्रति विश्वास में कमी आई है।
  • संस्कृति से हटकर राजनीति को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के साधन के रूप में देखा।
  • आज भी अपनी राजनीतिक प्रणाली पर गर्व अनुभव करते हैं।
  • उनके असंतोष का मुख्य कारण राजनीतिक दलों में कार्यकुशलता का अभाव है, संपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया नहीं।
  • राजनीतिक संस्कृति की संकल्पना पर विचार और पुनर्विचार चलता रहा है।
  • माइकल रियान ने अपनी चर्चित कृति ‘पॉलिटिक्स एंड कल्चर : वर्किंग हाइपोथीसेस फ़ॉर ए पोस्ट-रिवोल्यूशनरी सोसायटी’ के अंतर्गत यह तर्क दिया है कि नागरिक संस्कृति पूंजीवाद (Capitalism) के उदय के साथ उभरकर सामने आई थी।
  • समाज उत्तर-भौतिकवादी मूल्यों (Post-materialist Values) को बढ़ावा देते हैं।
  • ‘पूंजी संचय’ (Capital Accumulation) सामाजिक उन्नति की ज़रूरी शर्त नहीं है।
  • सहभागी लोकतंत्र (Participatory Democracy)
  • लोकतंत्र का वह रूप जिसमें नागरिक अपने प्रतिनिधि चुनकर सार्वजनिक समस्याओं पर निरंतर चर्चा करते रहते हैं
  • विधायकों, मंत्रियों और उच्चाधिकारियों के साथ निरंतर संपर्क में रहते हैं
  • अपने विचारों और भावनाओं से अवगत कराते रहते हैं।
  • वे न केवल सार्वजनिक कार्यों में सरकार का हाथ बँटाते हैं, बल्कि सरकार के काम-काज की निगरानी भी करते हैं।

समकालीन भारत की राजनीतिक संस्कृति (Political Culture of Contemporary India)

भारत की राजनीतिक संस्कृति की जड़ें राष्ट्रीय आंदोलन के समय पड़ीं।
स्वतंत्रता के बाद यह संस्कृति धीरे-धीरे नए रूपों में विकसित हुई और विद्वानों ने इसके अलग-अलग विश्लेषण किए।

डब्ल्यू. एच. मौरिसजोंस (W. H. Morris-Jones)

अपनी प्रसिद्ध कृति “Government and Politics in India” में मौरिस-जोंस ने कहा कि भारत की राजनीति तीन “भाषाओं या मुहावरों (Idioms)” में चलती है;

आधुनिक भाषा (Modern Language):

  • यह लोकतांत्रिक संस्थाओं और राष्ट्र-राज्य से जुड़ी है।
  • इसमें संसद, चुनाव, संविधान और प्रशासन की आधुनिक व्यवस्था शामिल है।

परंपरागत भाषा (Traditional Language):

  • यह भारत की पुरानी सामाजिक रचनाओं, जैसे जातिप्रथा, धर्म और रीति-रिवाजों से जुड़ी है।
  • इसमें समाज जन्म के आधार पर ऊँच-नीच वर्गों में बँटा हुआ है।
  • इसी का सबसे नकारात्मक रूप “अस्पृश्यता” (Untouchability) है।

संतसुलभ भाषा (Saintly Language):

  • यह नैतिकता, सत्य, अहिंसा और आत्मबल जैसे गांधीवादी मूल्यों को दर्शाती है।

इन तीनों भाषाओं ने मिलकर भारत की राजनीतिक संस्कृति को गढ़ा है।
गांधीजी ने अपने आंदोलन के ज़रिए सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं को एक-दूसरे के करीब लाने की कोशिश की।
स्वतंत्रता के बाद सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Suffrage) ने इन दोनों को और निकट कर दिया।

माइरन वीनर (Myron Weiner)

अपनी रचना “India: Two Political Cultures” (1965) में वीनर ने कहा कि स्वतंत्र भारत में दो तरह की राजनीतिक संस्कृतियाँ पाई जाती हैं:-

विशिष्ट वर्गीय राजनीतिक संस्कृति (Elite Political Culture):

  • यह दिल्ली और उच्च प्रशासनिक स्तर पर पाई जाती है।
  • इसमें योजनाकार, नेता, नौकरशाह, सेना के अधिकारी और अंग्रेज़ीभाषी बुद्धिजीवी शामिल हैं।
  • यह संस्कृति आधुनिक, तर्कसंगत और नीतिनिर्माण से जुड़ी है।

जनपुंज राजनीतिक संस्कृति (Mass Political Culture):

  • यह स्थानीय स्तर पर, जैसे ज़िला, राज्य और पंचायत स्तर पर दिखाई देती है।
  • इसमें जनता, स्थानीय नेता और सामाजिक समूह शामिल होते हैं।
  • यह संस्कृति भावनात्मक, जातिगत और परंपरागत तत्वों से प्रभावित रहती है।

वीनर का मानना था कि भारत की राजनीति में ये दोनों संस्कृतियाँ एक साथ काम करती हैं, और यही भारत की लोकतांत्रिक जटिलता को दर्शाती हैं।

रिचर्ड एल. पार्क (Richard L. Park)

अपनी कृति “India’s Political System” में पार्क ने कहा कि भारत एक एकीकृत संस्कृति वाला देश नहीं, बल्कि अनेक उपसंस्कृतियों (Subcultures) का समूह है।

  • हर राज्य, भाषा और क्षेत्र की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है।
  • इन उपसंस्कृतियों की पहचान उनके कला, भाषा, धर्म, दर्शन और इतिहास से होती है।
  • हर समूह अपने “स्वर्ण युग” (Golden Age) की परंपरा पर गर्व करता है।
  • इसलिए भारत की राजनीतिक संस्कृति में विविधता के साथ एकता (Unity in Diversity) देखने को मिलती है।

 


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