राजनीति मुख्य रूप से सत्ता की राजनीति और चुनावी राजनीति के रूप में ही देखा जाता है। लेकिन राजनीति का अर्थ इससे अधिक व्यापक है। राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता (power) पाना नहीं है, बल्कि आदर्श राजनीति न्याय, समानता, अधिकारों की रक्षा, शांति और समाज के विकास के उल्लास से परिपूर्ण होती है।
आधुनिक समय में राजनीति को व्यापक रूप से उन प्रक्रियाओं के रूप में समझा जाता है जिनके माध्यम से समाज में निर्णय लिए जाते हैं, शक्ति का उपयोग और वितरण होता है, और विभिन्न सामाजिक विवादों का समाधान खोजा जाता है। विभिन्न विचारकों जैसे अरस्तू, प्लेटो, वेबर, मार्क्स और रॉल्स ने राजनीति को सामाजिक जीवन के केंद्र में रखकर इसके विविध पहलुओं की व्याख्या की है। यद्धपि राजनीति आज न केवल औपचारिक संस्थाओं के भीतर, बल्कि सामाजिक आंदोलनों, संवाद और सार्वजनिक सेवा के माध्यम से भी व्यक्त होती है, जिससे यह एक व्यापक, जटिल और बहुआयामी अवधारणा बन गई है। आइये इस लेख में राजनीति के विभिन्न पहलुओं को समझते है।
राजनीति का अर्थ
राजनीति शब्द का मूल ग्रीक भाषा के शब्द “Polis” से संबंधित है, जिसका अर्थ है नगर और राज्य। प्राचीन यूनान में राजनीति का विचार मुख्यतः नगर-राज्य (City-State) की संकल्पना और नागरिकों के बीच संबंधों पर आधारित था। यूनानी राजनीतिक दर्शन ने आगे चलकर लोकतंत्र, गणराज्य और कानून के शासन जैसे विचारों की नींव रखी। भारतीय संदर्भ में यह संस्कृत के राजा और नीति के योग से बना, जिसका मतलब है राजा की नीति या राज्य संचालन के सिद्धांत।
- आधुनिक काल में राजनीति एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है। राजनीति उन गतिविधियों को संदर्भित करती है जो शासन, निर्णय-निर्माण और समाज में शक्ति के वितरण से संबंधित हैं। यह उन प्रक्रियाओं को शामिल करती है जिनके माध्यम से लोग सामूहिक निर्णय लेते हैं।
- राजनीति अधिकार से निकटता से जुड़ी होती है, जो निर्णय लेने और नियमों को लागू करने का मान्यता प्राप्त अधिकार है। विभिन्न राजनीतिक प्रणालियाँ, जैसे लोकतंत्र, राजतंत्र, और अधिनायकवादी शासन, यह दर्शाती हैं कि समाजों में अधिकार कैसे व्यायाम किया जाता है और चुनौती दी जाती है। यह विवादों को हल करने और सामाजिक मुद्दों का प्रबंधन करने के लिए तंत्र प्रदान करती है, जो स्थानीय समुदाय के मामलों से लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक हो सकते हैं।
राजनीति की परिभाषाएँ
- अरस्तू ने राजनीति को “मनुष्यों का एक सामाजिक प्राणी” कहा है। उनके अनुसार, राजनीति का उद्देश्य सामान्य भलाई को प्राप्त करना है। वे इसे एक कला मानते थे, जो समाज के लिए न्याय और नैतिकता को सुनिश्चित करती है।
- प्लेटो ने राजनीति को “राज्य के सर्वोत्तम शासन” के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने आदर्श राज्य की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें दार्शनिकों को शासक होना चाहिए, ताकि वे न्याय और सच्चाई को स्थापित कर सकें।
- वेबर ने राजनीति को “शक्ति के लिए संघर्ष” के रूप में देखा। उनके अनुसार, राजनीति का मुख्य उद्देश्य सत्ता को प्राप्त करना और उसे बनाए रखना है। उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति में वैधता और अधिकार का महत्व होता है।
- मार्क्स के अनुसार, राजनीति का संबंध वर्ग संघर्ष से है। उन्होंने कहा कि राजनीति का उद्देश्य श्रमिक वर्ग के अधिकारों की रक्षा करना और पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करना है।
- हैबरमास ने राजनीति को संवाद और सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया। उनके अनुसार, राजनीति का उद्देश्य नागरिकों के बीच संवाद को बढ़ावा देना और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सशक्त बनाना है।
- रॉल्स ने राजनीति को “न्याय का सिद्धांत” के रूप में देखा। उन्होंने कहा कि राजनीति का मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय और समानता को सुनिश्चित करना है, ताकि सभी नागरिकों को समान अवसर मिल सकें।
- हॉब्स ने राजनीति को “सुरक्षा और व्यवस्था” के लिए आवश्यक बताया। उनके अनुसार, एक मजबूत सरकार की आवश्यकता होती है ताकि समाज में शांति और सुरक्षा बनी रहे।
इन विचारकों की परिभाषाएँ राजनीति के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं और यह दर्शाती हैं कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए न्याय, सुरक्षा, और संवाद का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
राजनीति के रूप
राजनीति के दो प्रमुख रूप होते हैं:
- चुनावी राजनीति – जिसमें पार्टियाँ चुनाव लड़ती हैं और सत्ता हासिल करने की कोशिश करती हैं। यह राजनीति का वह रूप है जिसमें संरचित और संस्थागत प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं।
- इसमें सरकार, राजनीतिक दल, चुनाव और कानून बनाने से संबंधित गतिविधियाँ शामिल हैं। यह अक्सर आधिकारिक संस्थानों जैसे कि संसद, न्यायालयों और नौकरशाही में होती है।
- सार्वजनिक सेवा की राजनीति – जिसमें लोग बिना सत्ता के भी समाज में बदलाव के लिए काम करते हैं, जैसे गांधीजी का स्वतंत्रता संग्राम।
- इसमें कोई संरचना या आधिकारिकता नहीं होती है। इसमें जन आंदोलन, सामाजिक सक्रियता और जन राय शामिल हैं।
- यह अक्सर औपचारिक संस्थानों के बाहर काम करती है और राजनीतिक निर्णयों और नीतियों को प्रभावित कर सकती है।
- इसमें विरोध प्रदर्शन, सामुदायिक संगठन और हित समूहों द्वारा लॉबिंग जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
शक्ति और वैधता में अंतर
शक्ति (Power)
- शक्ति का अर्थ है किसी व्यक्ति या समूह की दूसरों के कार्यों को प्रभावित करने या नियंत्रित करने की क्षमता। इसे विभिन्न तरीकों से लागू किया जा सकता है, जैसे कि बल, मनाने या अधिकार के माध्यम से।
- शक्ति न तो अच्छी होती है और न ही बुरी; यह इस पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कैसे किया जाता है और यह किस संदर्भ में कार्य करता है।
वैधता (Legitimacy)
- वैधता का अर्थ है किसी अधिकार, जैसे कि सरकार या नेता, को सही और न्यायसंगत के रूप में मान्यता और स्वीकृति।
- यह राजनीतिक प्रणालियों की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जनसंख्या से अनुपालन और समर्थन को बढ़ावा देती है। वैधता विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न हो सकती है, जैसे कि कानूनी ढांचे, सांस्कृतिक मानदंड, या लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ।
राजनीतिक सिद्धांत क्या है?
राजनीतिक सिद्धांत को अंग्रेज़ी में Political Theory कहा जाता है। थ्योरी शब्द यूनानी भाषा के Theoria से लिया गया है, जिसका अर्थ है किसी वस्तु के यथार्थ स्वरूप और कारणों का बौद्धिक अवलोकन करना।
राजनीतिक सिद्धांत का मतलब केवल घटनाओं का वर्णन (description) करना नहीं होता, बल्कि उनके गहरे विश्लेषण (analysis) और मूल्यांकन (value judgement) के साथ होता है।
- राजनीतिक सिद्धांत (Political Theory) राजनीति के मूलभूत सिद्धांतों, विचारों और अवधारणाओं का अध्ययन करता है। यह विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, उनके विकास और उनके प्रभावों को समझने में मदद करता है, जो राजनीतिक प्रणालियों और समाजों को आकार देते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं।
- इसके द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि सत्ता का प्रयोग कैसे किया जाता है, सरकारें कैसे काम करती हैं और व्यक्ति और समुदाय राजनीतिक गतिविधियों में कैसे शामिल होते हैं। राजनीतिक सिद्धांत न्याय, समानता, अधिकार, लोकतंत्र और अन्य मौलिक राजनीतिक मूल्यों की प्रकृति का पता लगाते हैं।
- Catriona McKinney का मानना है कि राजनीतिक सिद्धांत समाज में एक साथ कैसे रहना चाहिए जैसे सवालों को समझने का अध्ययन है।
राजनीतिक सिद्धांत की परिभाषाएँ
विद्वान का नाम | परिभाषा का विषय | प्रमुख पुस्तक का नाम |
Arnold Brecht | सिद्धांत को तथ्य, व्याख्या और मूल्य के समुच्चय के रूप में परिभाषित किया। | Political Theory: Foundations of Twentieth Century Political Thought (1959) |
David Held | राजनीतिक सिद्धांत को शासन, राज्य और समाज से जोड़ा। | Political Theory and the Modern State (1989) |
Andrew Hacker | सिद्धांत को राजनीतिक और सामाजिक वास्तविकताओं की जांच के रूप में देखा। | Political Theory: Philosophy, Ideology, Science (1961) |
John Plamenatz | राजनीति से जुड़ी अवधारणाओं के विश्लेषण और स्पष्टीकरण पर बल। | The English Utilitarians (1949) और Man and Society (1963) |
Karl Popper | विज्ञान और सिद्धांत का विश्लेषण किया। | The Open Society and Its Enemies (1945) |
Robert Dahl | राजनीतिक सिद्धांत के वैज्ञानिक अध्ययन पर ज़ोर। | Who Governs? Democracy and Power in an American City (1961) |
David Easton | राजनीति को एक सिस्टम के रूप में परिभाषित किया। | The Political System (1953) |
राजनीतिक सिद्धांत का विकास
कालखंड | मुख्य प्रतिनिधि विचारक | प्रमुख विचार (Key Ideas) |
प्राचीन काल (Ancient Period) | प्लेटो (Plato), अरस्तू (Aristotle) | 1. आदर्श राज्य (Ideal State) की संकल्पना 2. न्याय (Justice) और सद्गुण (Virtue) पर आधारित राज्य 3. राज्य एक नैतिक इकाई है — व्यक्तिगत जीवन और राज्य एक-दूसरे से जुड़े हैं। 4. प्लेटो का “दार्शनिक राजा” (Philosopher King) का विचार। 5. अरस्तू का “मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है” (Man is a political animal) सिद्धांत। |
मध्यकाल (Medieval Period) | सेंट ऑगस्टीन (St. Augustine), एक्विनास (Thomas Aquinas) | 1. राजनीति को धर्म (Religion) और नैतिकता (Morality) के अधीन माना गया। 2. राज्य का उद्देश्य : धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार जीवन को निर्देशित करना। 3. चर्च और राज्य के बीच संबंधों पर विचार। 4. ईश्वर प्रदत्त सत्ता का सिद्धांत (Divine Right of Kings)। |
आधुनिक काल (Modern Period) | हॉब्स (Hobbes), लॉक (Locke), रूसो (Rousseau), मार्क्स (Marx) | 1. सामाजिक संविदा (Social Contract) का विचार: राज्य की वैधता नागरिकों की सहमति से। 2. प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights) — स्वतंत्रता, संपत्ति, जीवन का अधिकार। 3. लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आदर्श। 4. मार्क्सवाद: आर्थिक समानता और वर्गहीन समाज का सिद्धांत। |
समकालीन काल (Contemporary Period) | डेविड ईस्टन (David Easton), रॉबर्ट डाहल (Robert Dahl), जॉन रॉल्स (John Rawls) | 1. व्यवहारवाद (Behaviouralism) — राजनीति का वैज्ञानिक और सांख्यिकीय अध्ययन। 2. उत्तर-व्यवहारवाद (Post-Behaviouralism) — राजनीतिक अध्ययन में मूल्यों और नैतिकताओं को भी जोड़ा गया। 3. न्याय का सिद्धांत (Theory of Justice) जॉन रॉल्स द्वारा सामाजिक समानता का पुनर्विचार। 4. लोकतंत्र के नए मॉडल — भागीदारी और बहुलवाद पर जोर। |
राजनीतिक सिद्धांत का विकास विभिन्न स्कूल के द्वारा
राजनीतिक सिद्धांत का इतिहास लगभग 2500 वर्षों से भी अधिक का है।
इस अवधि में, विभिन्न परंपराएँ (traditions) और धाराएँ (streams) विकसित हुई हैं।
Classical Political Theory
- शास्त्रीय राजनीतिक सिद्धांत की शुरुआत 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व से मानी जाती है। इसमें ग्रीक, रोमन और ईसाई विचारकों के राजनीतिक विचारों को समझाया गया है।
- शास्त्रीय दार्शनिकों ने राजनीति को सार्वजनिक मामलों में भागीदारी (participation) के रूप में देखा।
शास्त्रीय राजनीतिक सिद्धांत का स्वभाव था:
- वर्णन (Description)
- व्याख्या (Explanation)
- निर्देशन (Prescription)
- मूल्यांकन (Evaluation)
शास्त्रीय राजनीतिक चिंतकों का मानना था कि:
- राज्य एक प्राकृतिक संस्था (Natural Institution) है और व्यक्ति से पहले आता है।
राज्य का उद्देश्य सामान्य भलाई (Common Good) की प्राप्ति है।
Liberal Political Theory
- 15वीं शताब्दी से यूरोप में पुनर्जागरण (Renaissance) और सुधार आंदोलन (Reformation) जैसी दोहरी क्रांतियों ने एक नया बौद्धिक वातावरण (intellectual atmosphere) बनाया।
- इससे आधुनिक विज्ञान, आधुनिक दर्शन और एक नई राजनीतिक विचारधारा उदारवाद (Liberalism) का जन्म हुआ।
- इस सिद्धांत ने व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा (Autonomy of Individual Will) पर अधिक बल दिया।
- उदारवाद ने सामान्य भलाई (Common Good) के विचार को खारिज किया और व्यक्तिगत स्वार्थ पर आधारित एक जैविक समुदाय (Organic Community) को प्राथमिकता दी।
Marxist Political Theory
- कार्ल मार्क्स (Karl Marx), एंगेल्स (Engels) और उनके अनुयायियों ने 19वीं सदी के उत्तरार्ध में उदारवादी व्यक्तिगत राजनीतिक सिद्धांत को चुनौती दी।
- मार्क्स के अनुसार, सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य व्यावहारिक भौतिक हितों (Practical Material Interests) की सेवा करना है।
मार्क्सवादी राजनीतिक सिद्धांत के मुख्य विषय:
- राज्य को वर्ग प्रभुत्व (Class Domination) का साधन माना।
- उत्पादन के तरीके (Mode of Production)
- वर्ग विभाजन (Class Division)
- संपत्ति संबंध (Property Relations)
- क्रांति (Revolution)
20वीं सदी में मार्क्सवादी विचार में प्रमुख योगदान: लेनिन (Lenin), बकुनिन (Bakunin), स्टालिन (Stalin), रोज़ा लक्ज़मबर्ग (Rose Luxemburg), ग्राम्शी (Gramsci), लुकास (Lukacs) आदि ने दिया।
Empirical-Scientific Political Theory
- 1920 के दशक में अमेरिका में अनुभवजन्य-वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांत का विकास हुआ।
- मैक्स वेबर (Max Weber), ग्रैहम (Graham) आदि ने इस सिद्धांत को वैज्ञानिक तरीकों से अध्ययन करने की वकालत की।
इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य था:
- केवल तथ्यों (Facts) के आधार पर अध्ययन करना।
- व्यवस्था बनाए रखना, व्याख्या करना और भविष्यवाणी (Prediction) करना, लेकिन आदर्श (Utopian Standards) तय नहीं करना।
- इस सिद्धांत ने मूल्यों (Values) से खुद को अलग कर केवल तथ्यों पर केंद्रित किया।
Contemporary Political Theory
- अनुभववादी स्कूल द्वारा तथ्यों और शुद्ध विज्ञान पर अत्यधिक ज़ोर तथा वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ को समझने में असफलता के चलते समकालीन राजनीतिक सिद्धांत का उदय हुआ।
- वैज्ञानिक थॉमस कुहन (Thomas Kuhn) ने विज्ञान की पारंपरिक अवधारणा को चुनौती दी।
- इसलिये महसूस किया गया कि राजनीतिक सिद्धांत केवल दर्शनशास्त्र (Philosophy) या केवल विज्ञान (Science) नहीं है, बल्कि यह दृष्टि (Vision) और प्रासंगिकता (Relevance) दोनों रखता है।
राजनीतिक सिद्धांत का पतन
राजनीतिक सिद्धांत कभी न्याय, लोकतंत्र और शासन के विचारों को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका निभाता था। हालांकि, आज तथ्यों और आँकड़ों द्वारा संचालित दुनिया में, यह अपनी महत्ता खोता प्रतीत हो रहा है। लेकिन क्या इस बदलाव की कोई कीमत है? क्या हम सत्ता, निष्पक्षता और नैतिकता जैसे बड़े सवाल पूछना भूल रहे हैं? राजनीतिक सिद्धांत का पतन इस बात को प्रभावित करता है कि हम सरकार, राजनीति और नेतृत्व को कैसे समझते हैं।
राजनीतिक सिद्धांत के पतन पर विभिन्न सिद्धांतकारों के तर्क
डेविड ईस्टन का तर्क
डेविड ईस्टन ने राजनीतिक सिद्धांत के पतन पर तर्क दिया कि व्यवहारवादी क्रांति के चलते राजनीतिक अध्ययन में “मूल्य-निरपेक्षता” (value-neutrality) और “वैज्ञानिक विधियों” पर अत्यधिक जोर दिया गया। इससे बड़े नैतिक और दार्शनिक प्रश्नों की उपेक्षा हुई।
- उनका मानना था कि सिद्धांतों को राजनीति के व्यापक मानवीय संदर्भ से जोड़ने की बजाय, केवल अनुभवजन्य (empirical) विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित कर दिया गया, जिससे राजनीतिक सिद्धांत की गहराई और आलोचनात्मक शक्ति कम हो गई।
- डेविड ईस्टन ने राजनीतिक सिद्धांत के पतन के चार प्रमुख कारण बताए: (1) ऐतिहासिकता- केवल अतीत के विचारों में सीमित रहना; (2) नैतिक सापेक्षवाद- मूल्य-निरपेक्षता पर अत्यधिक बल देना; (3) विज्ञान और सिद्धांत के बीच भ्रम- केवल वैज्ञानिक विधि से सिद्धांत विकसित करने की ग़लत धारणा; और (4) अति तथ्यवाद- तथ्यों के संग्रह पर अत्यधिक ध्यान देना।
Alfred Cobban का तर्क
कॉबन के अनुसार, पश्चिम में दो हजार वर्षों तक विचारधारा और संस्थाओं के बीच सक्रिय संवाद चलता रहा, परन्तु अठारहवीं सदी के अंत में यह प्रक्रिया रुक गई। उन्होंने आधुनिक समय में राजनीतिक सिद्धांत के पतन के कारण बताए:
- राज्य गतिविधियों का असीम विस्तार,
- नौकरशाही का सर्वत्र नियंत्रण,
- सैन्य संगठन का उभार,
- कम्युनिस्ट देशों में पार्टी का दमनकारी शासन,
- पश्चिमी लोकतंत्रों में लोकतांत्रिक विचार का ठहराव।
Alfred Cobban ने अपने यह विचार मुख्य अपनी किताब “The Crisis of Political Theory” में व्यक्त किए है।
दांते जर्मिनो का तर्क
- डेविड ईस्टन और अल्फ्रेड कोब्बन की तरह, दांते जर्मिनो ने अपनी पुस्तक ‘बियॉन्ड आइडियोलॉजी: द राइवल ऑफ पॉलिटिकल थ्योरी’ में भी सोचा है कि उन्नीसवीं सदी के अधिकांश समय और बीसवीं सदी की शुरुआत में राजनीतिक सिद्धांत में गिरावट आई।
- हालांकि जर्मिनो का मानना है कि राजनीतिक सिद्धांत में प्रत्यक्षवाद के कारण गिरावट आई और उनका मानना है कि समय के साथ राजनीतिक सिद्धांत के पतन के लिए आदर्शवाद जिम्मेदार है।
- हालांकि, पहले की गिरावट के अलावा, उन्होंने विचारधाराओं और राजनीतिक सिद्धांतों और मार्क्सवाद के अपने प्रारंभिक चरण के अस्तित्व की बात की। उनके लिए, ट्रेसी का वैचारिक न्यूनीकरणवाद राजनीतिक सिद्धांत, कॉम्टे और कार्ल मार्क्स के पतन के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है।
इसायाह बर्लिन और एस.एम. लिपसेट के तर्क
इनके अनुसार राजनीतिक सिद्धांत के पतन का मुख्य कारण पश्चिम में लोकतांत्रिक सामाजिक क्रांति की विजय है। लोकतंत्र की विजय का अर्थ है उदार लोकतांत्रिक प्रवचन की अन्य प्रवचनों पर विजय।
उदार लोकतंत्र की सार्वभौमिक स्वीकृति राजनीतिक सिद्धांत के पतन पर इस बहस को समाप्त कर देती है। और इस विजय के कारण, लिपसेट के शब्दों में, “अच्छे समाज की पुरानी खोज का युग समाप्त हो गया है, क्योंकि अब हमें वह मिल गया है।”
बर्लिन और लिपसेट एक साथ कहते हैं “यदि शास्त्रीय राजनीतिक सिद्धांत मर गया है, तो शायद यह लोकतंत्र की विजय द्वारा मारा गया है”।
Isaiah Berlin ने अपनी किताब Four Essays on Liberty (1969) और अन्य लेखों में उदारवाद और लोकतंत्र की विजय से राजनीतिक सिद्धांत की जरूरत में कमी की बात कही।
S.M. Lipset ने इस विषय पर अपने प्रसिद्ध काम Political Man: The Social Bases of Politics (1960) में लोकतंत्र और सामाजिक क्रांति के प्रभाव पर चर्चा की।