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राबर्ट ए.डाल

वॉशिंगटन विश्वविद्यालय से 1936 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और 1940 में येल विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि ली। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने अमेरिकी सेना में सेवा दी और उत्कृष्ट कार्य के लिए ब्रॉन्ज स्टार (with cluster) से सम्मानित किए गए।
युद्ध के बाद वे येल विश्वविद्यालय लौटे और 1986 तक वहीं अध्यापन करते रहे। बाद में वे येल के स्टर्लिंग प्रोफेसर एमेरिटस और समाजशास्त्र के सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट बने।
1966–67 में अमेरिकन पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे और नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, अमेरिकन फिलॉसॉफिकल सोसाइटी, अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज तथा ब्रिटिश एकेडमी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के सदस्य भी थे।
रॉबर्ट ए. डॉल का कार्य न केवल अमेरिकी राजनीति की शक्ति-संरचना को समझने में मदद करता है, बल्कि यह लोकतंत्र की व्यावहारिक और आदर्श दोनों रूपों पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। उनका योगदान आज भी राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन में आधारशिला के रूप में देखा जाता है।

मुख्य विचार

राजनीतिक बहुलवाद(Political Pluralism)

एक प्रसिद्ध अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक और शिक्षाविद थे, जिन्हें राजनीतिक बहुलवाद (Political Pluralism) के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतकारों रहे है। वे इस विचार के समर्थक थे कि राजनीति में शक्ति केवल एक छोटे से अभिजात्य वर्ग के हाथों में केंद्रित नहीं होती, बल्कि यह विभिन्न संघों, समूहों और संगठनों के बीच बंटी होती है।
डॉल का मानना था कि आधुनिक लोकतांत्रिक राजनीति को समझने के लिए यह देखना ज़रूरी है कि अलग-अलग हित समूह किस तरह से नीतियों और निर्णयों को प्रभावित करते हैं।

The Concept of Power

डॉल का पहला बड़ा विचार 1957 में छपा लेख “The Concept of Power” था। इसमें उन्होंने शक्ति को आसान शब्दों में ऐसे समझाया अगर A, B को ऐसा करने के लिए मजबूर या तैयार कर दे, जो B खुद से न करता, तो A के पास B पर शक्ति है।
इसे समझाने के लिए उन्होंने एक उदाहरण देते है, मान लीजिए, एक प्रोफेसर छात्र से कहे कि अगर उसने छुट्टियों में एक खास किताब नहीं पढ़ी तो उसे कम अंक मिलेंगे। अब अगर पहले छात्र के किताब पढ़ने की संभावना कम थी और धमकी के बाद वह ज़्यादा हो गई, तो यह बढ़ा हुआ फर्क ही प्रोफेसर की शक्ति है। कुछ विद्वानों, जैसे स्टीवन ल्यूक्स, ने कहा कि यह परिभाषा अधूरी है, क्योंकि इसमें शक्ति का वह पहलू शामिल नहीं है, जिसमें कोई व्यक्ति दूसरों की सोच, मान्यताओं और मूल्यों को बदल देता है।

Who Governs?: Democracy and Power in an American City

1961 में प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Who Governs?: Democracy and Power in an American City” में उन्होंने न्यू हेवन, कनेक्टिकट की सत्ता-गतिशीलताओं का अध्ययन किया।
इसमें उन्होंने यह दिखाया कि अमेरिकी राजनीति में शक्ति विभिन्न समूहों के बीच बंटी हुई है और यह केवल एक छोटे अभिजात्य वर्ग के हाथों में नहीं है, जैसा कि C. Wright Mills और Floyd Hunter जैसे पावर-एलाइट सिद्धांतकार मानते थे।
डॉल के अनुसार, न्यू हेवन में शक्ति असमान रूप से बंटी जरूर थी, लेकिन यह अनेक प्रतिस्पर्धी समूहों के बीच वितरित थी, जो आपस में टकराव और सहयोग दोनों करते थे।

पॉलीआर्की (Polyarchy)

1971 में उन्होंने “Polyarchy” नामक पुस्तक में “पॉलीआर्की” शब्द गढ़ा। इसके ज़रिए उन्होंने आदर्श लोकतंत्र और वास्तविक राजनीतिक व्यवस्थाओं के बीच अंतर स्पष्ट किया।
पॉलीआर्की ऐसे राजनीतिक तंत्र को कहा, जो खुला, समावेशी और प्रतिस्पर्धी हो, जहाँ प्रतिनिधि लोकतंत्र के ज़रिए चुनाव नियमित और स्वतंत्र हों, और संस्थाएँ अभिजात वर्ग की शक्ति को सीमित करें।हालांकि यह प्रत्यक्ष लोकतंत्र नहीं है, लेकिन इसमें जनता की भूमिका और अधिकारों को मान्यता दी जाती है।

Who Governs

अपने शुरुआती काम में, विशेषकर Who Governs? में, डॉल ने यह तर्क दिया था कि लोकतंत्र व्यापक जनभागीदारी के बिना भी चल सकता है और यह अपेक्षाकृत उदासीन जनता की सहमति पर भी टिका रह सकता है।
लेकिन बाद में 1989 में प्रकाशित “Democracy and Its Critics” में उन्होंने इस दृष्टिकोण में संशोधन किया और सक्रिय नागरिकता के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने माना कि पॉलीआर्की को प्रभावी बनाने के लिए अभिव्यक्ति और संगठन की स्वतंत्रता जैसे राजनीतिक अधिकार आवश्यक हैं।

अपने लंबे करियर में डॉल ने कई प्रभावशाली किताबें और शोधपत्र लिखे,

A Preface to Democratic Theory (1956),
After the Revolution? (1970)
Size and Democracy (1973, एडवर्ड टफ्टे के साथ)
A Preface to Economic Democracy (1985)
On Democracy (1998)
How Democratic Is the American Constitution (2001) प्रमुख हैं।


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