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राष्ट्रवाद (Anthony D. Smith)

प्रस्तावना

Anthony D. Smith बीसवीं सदी के उत्तरार्ध और इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में राष्ट्रवाद अध्ययन के प्रमुख विद्वान माने जाते हैं। उन्होंने राष्ट्रवाद को समझने के लिए जिस दृष्टिकोण को विकसित किया, उसे ethno-symbolism कहा जाता है। यह दृष्टिकोण आधुनिकतावादी (modernist) और आदिमतावादी (primordialist) दोनों धारणाओं के बीच एक संतुलित स्थिति प्रस्तुत करता है।
Smith के अनुसार राष्ट्रवाद को केवल आधुनिक युग की राजनीतिक और आर्थिक संरचनाओं से जोड़कर नहीं समझा जा सकता। इसके मूल में वे सांस्कृतिक स्मृतियाँ, परंपराएँ, मिथक और प्रतीक भी हैं, जो किसी समुदाय की ऐतिहासिक चेतना को आकार देते हैं। यही कारण है कि उनकी पुस्तक Nationalism (2001) राष्ट्रवाद को एक विचारधारा और आंदोलन, दोनों के रूप में परिभाषित करती है।

राष्ट्रवाद की परिभाषा

Smith (2001) राष्ट्रवाद को केवल एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन के रूप में परिभाषित करते हैं।
उनका कहना है कि राष्ट्रवाद का मूल आग्रह यह है कि प्रत्येक राष्ट्र को अपनी सामूहिक पहचान के आधार पर स्वायत्त (autonomous), एकीकृत (unified) और विशिष्ट (distinct) रूप में अस्तित्व का अधिकार है।

यह परिभाषा तीन केंद्रीय तत्वों पर आधारित है

स्वायत्तता (Autonomy): हर राष्ट्र का यह अधिकार है कि वह बाहरी नियंत्रण से मुक्त होकर आत्मनिर्णय करे।
एकता (Unity): राष्ट्र के सदस्यों में साझा पहचान और पारस्परिक निष्ठा का भाव होना चाहिए।
पहचान (Identity): प्रत्येक राष्ट्र की अपनी विशिष्टता होती है, जो उसे अन्य समूहों से अलग करती है।

यहाँ Smith राष्ट्रवाद को केवल सत्ता प्राप्ति का साधन न मानकर, उसे एक ऐसी विचारधारा के रूप में देखते हैं जो इतिहास और संस्कृति से राष्ट्र की वैधता को सिद्ध करती है।

राष्ट्र और राष्ट्रवाद का संबंध

Smith यह स्पष्ट करते हैं कि राष्ट्र और राष्ट्रवाद में अंतर होते हुए भी दोनों गहराई से जुड़े हैं।

राष्ट्र (Nation): एक सांस्कृतिक-राजनीतिक समुदाय है, जिसमें साझा मिथक, स्मृतियाँ और प्रतीक होते हैं। यह केवल वर्तमान का निर्माण नहीं है, बल्कि अतीत की स्मृतियों और भविष्य की आकांक्षाओं का भी मेल है।
राष्ट्रवाद (Nationalism): वह विचारधारा और आंदोलन है जो इस राष्ट्र को राजनीतिक वैधता देता है और उसे आत्मनिर्णय का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करता है। अर्थात राष्ट्रवाद वह शक्ति है जो राष्ट्र की अवधारणा को राजनीतिक रूप में परिणत करती है।

राष्ट्रवाद के प्रकार

Smith राष्ट्रवाद के विभिन्न रूपों को स्पष्ट करते हैं, जिनमें से तीन सबसे प्रमुख हैं:

नागरिक राष्ट्रवाद (Civic Nationalism):
यह आधुनिक राष्ट्र-राज्यों से जुड़ा है।
इसमें जोर कानून, संविधान और नागरिक अधिकारों पर दिया जाता है।
यहाँ राष्ट्र की सदस्यता का आधार नागरिकता और राजनीतिक निष्ठा होती है।
उदाहरण: फ्रांस और अमेरिका, जहाँ साझा नागरिक अधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर राष्ट्रवाद टिका।
जातीय राष्ट्रवाद (Ethnic Nationalism):
इसका आधार साझा वंश, भाषा, संस्कृति और परंपराएँ होती हैं।
इसमें रक्त संबंध और जातीय पहचान को महत्व दिया जाता है।
यह अपेक्षाकृत exclusive होता है, यानी बाहरी लोग इसमें आसानी से शामिल नहीं हो सकते।
उदाहरण: जर्मनी और पूर्वी यूरोप के राष्ट्रवादी आंदोलन।

Ethno-symbolism (Smith का दृष्टिकोण):
Smith का मानना है कि राष्ट्रवाद की जड़ें न तो केवल आधुनिक हैं, न ही पूरी तरह प्राचीन।
इसके मूल में myths, memories, values, symbols और traditions हैं।
आधुनिक राष्ट्रवाद इन पुराने तत्वों को नए रूप में पुनर्निर्मित करता है।
यही दृष्टिकोण Smith का सबसे बड़ा योगदान है, क्योंकि यह दिखाता है कि राष्ट्रवाद में अतीत की निरंतरता (continuity) और वर्तमान में पुनर्निर्माण (reinvention) दोनों शामिल हैं।

राष्ट्रवाद को समझने के सैद्धांतिक दृष्टिकोण

Smith तीन प्रमुख सैद्धांतिक ढाँचों की पहचान करते हैं:

Modernist दृष्टिकोण:
राष्ट्रवाद आधुनिक युग की उपज है।
यह औद्योगीकरण, पूँजीवाद और आधुनिक राज्य व्यवस्था से जुड़ा है।
प्रतिनिधि विद्वान: Ernest Gellner, Benedict Anderson।

Primordialist दृष्टिकोण:
राष्ट्रवाद की जड़ें बहुत प्राचीन हैं।
राष्ट्र एक प्राकृतिक इकाई है, जो मानव समाज के साथ हमेशा से मौजूद रही है।

Ethno-symbolist दृष्टिकोण (Smith का मॉडल)
राष्ट्रवाद को समझने के लिए अतीत और वर्तमान दोनों को देखना होगा।
सांस्कृतिक स्मृतियाँ और प्रतीक आधुनिक राष्ट्रवाद में लगातार पुनर्निर्मित होकर नई वैधता पैदा करते हैं।

राष्ट्रवाद की विशेषताएँ

साझा इतिहास: राष्ट्रवाद हमेशा एक साझा अतीत की रचना करता है, भले ही उसमें ऐतिहासिक तथ्य और कल्पना का मिश्रण हो।
स्मृतियाँ और मिथक: अतीत की कहानियाँ राष्ट्रवाद को भावनात्मक गहराई देती हैं।
प्रतीक: राष्ट्रगान, झंडा और स्मारक जैसे प्रतीक नागरिकों में भावनात्मक एकता उत्पन्न करते हैं।
भविष्य की आकांक्षा: राष्ट्रवाद केवल अतीत की स्मृति नहीं है; यह स्वतंत्रता और एकता के भविष्य का भी वादा करता है।
राजनीतिक वैधता: राष्ट्रवाद राज्य को यह दावा करने का आधार देता है कि उसकी सत्ता जनता की सामूहिक इच्छा पर आधारित है।

राष्ट्रवाद और राज्य

Smith के अनुसार, आधुनिक राज्य राष्ट्रवाद से अपनी वैधता प्राप्त करता है।
राष्ट्रवाद यह सुनिश्चित करता है कि राज्य केवल प्रशासनिक संरचना न होकर जनता की सामूहिक पहचान का प्रतीक भी बने।
यह नागरिक और राज्य के बीच भावनात्मक बंधन स्थापित करता है, जो आधुनिक राष्ट्र-राज्यों के उदय और स्थायित्व के लिए आवश्यक है।

भारतीय संदर्भ

Smith का दृष्टिकोण भारतीय परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से प्रासंगिक है।
भारतीय संविधान ने Civic Nationalism को अपनाया, जिसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार और साझा नागरिक पहचान दी गई।
लेकिन साथ ही, भारत ने भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं को भी मान्यता दी। यह Smith के ethno-symbolism दृष्टिकोण से मेल खाता है।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी मिथकों और प्रतीकों (जैसे तिरंगा, गांधीजी की छवि, “भारत माता” की कल्पना) ने राष्ट्रवादी भावना को गहराई दी।
इस प्रकार भारतीय राष्ट्रवाद में नागरिक और जातीय दोनों तत्व मौजूद रहे, परंतु इन्हें एक साझा राष्ट्रीय परियोजना में पिरोया गया।

निष्कर्ष

Anthony D. Smith की Nationalism (2001) राष्ट्रवाद को समझने के लिए एक समग्र और संतुलित रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
उन्होंने दिखाया कि राष्ट्रवाद केवल आधुनिकता की उपज नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक स्मृतियों, प्रतीकों और परंपराओं की निरंतरता पर आधारित है।
राष्ट्रवाद की असली समझ केवल नागरिक या जातीय राष्ट्रवाद से नहीं, बल्कि ethno-symbolism से मिलती है, जो अतीत और वर्तमान को जोड़कर भविष्य की आकांक्षाओं को आकार देता है।
राष्ट्रवाद इस प्रकार न केवल राजनीतिक वैधता का स्रोत है, बल्कि यह समाज की सांस्कृतिक चेतना और पहचान का भी आधार है।
Smith का योगदान यही है कि उन्होंने राष्ट्रवाद को राजनीतिक संघर्ष और सांस्कृतिक स्मृति—दोनों के बीच सेतु के रूप में समझाया।

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