यदि एक कर राज्य अपनी राष्ट्रीय हित को दूसरे की क़ीमत पर बढ़ाना चाहे तो दूसरा राज्य इसका प्रतिरोध करेगा अतः राज्यो को इस असुरक्षा की भावना से मुक्ति मिलना ही राष्ट्रीय सुरक्षा है अथवा संप्रभुता को स्थापित करने के लिए जो भी कार्य किये जाते हैं वह राष्ट्रीय सुरक्षा है
राष्ट्रीय सुरक्षा का अर्थ नकारात्मक व सकारात्मक दोनों तरीक़ों से स्पष्ट किया जा सकता है जब हम नकारात्मक रुप से राष्ट्रीय सुरक्षा को स्पस्ट करते हैं तो इसका तात्पर्य एक देश के विदेशी आक्रमण से मनोवैज्ञानिक मुक्ति के रूप में होता है और जब हम सकारात्मक रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा को स्पष्ट करते हैं तो इसका तात्पर्य उन बातों से होता है जो कोई भी राज्य अपनी संप्रभुता को बनाए रखने के लिए करता है इसमें कुछ और बातों से स्पष्ट किया जा सकता है
1 अराजक अंतराष्ट्रीय व्यवस्था में ऐसी किसी सत्ता का अभाव होता है जो व्यवस्था सुनिश्चित करने में सक्षम हो ।
2 ऐसी स्थिति में रहती को अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं प्रयत्न करने पड़ते है ।
3 प्रतिस्पर्धात्मक रूप से सुरक्षा को पाने के लिए वो अधिक से अधिक शक्ति पाना चाहते हे ताकि अन्य राज्यो की शक्ति के प्रभाव से बचा जा सके ।
सुरक्षा की दुविधा
राष्ट्रीय सुरक्षा को हम सुरक्षा की दुविधा के संदर्भ में पारिभाषित करते हैं इसमें एक राज्य शक्ति हासिल करना चाहता है अपनी सुरक्षा के लिएजो दूसरे राज्यों को असुरक्षित करती है जो अपने प्रयास और तेज़ करता है ऐसी स्थिति में एक ऐसी अवस्था आ जाती जिससे सभी राज्यों की सुरक्षा में कमी आ जाती है अर्थात सुरक्षा की दुविधा एक ऐसी अवस्था को व्यक्त करता है जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने के उपाय अन्य राज्यों को काफ़ी या ख़तरे स्वरूप प्रतीत होते हैं जिसके प्रतिउत्तर में सैन्य गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है इसके परिणाम स्वरूप सभी राज्यों की सुरक्षा में निश्चित कमी आ जाती है राज्य दोनों स्थितियों में ख़तरे में होते हैं अगर वो अपनी सुरक्षा उपायों में ढील देते हैं और दूसरों के साथ सहयोग बढ़ाते हैं तो अपने आप को भेद्य बनाते हैं अगर वो अपनी सुरक्षा की तैयारियां बढ़ाते हैं तो दूसरे देश में सुरक्षा को लेकर शंकाएं बढ़ती हैं और तनाव बढ़ जाता है जिसका परिणाम सैन्य टकराव में हो सकता है सुरक्षा की दुविधा हर राज्य के संदर्भ में अलग अलग होती है यह बहुत सारी चीज़ों पर निर्भर करती है इसकी तीव्रता भी भिन्न भिन्न भिन्न होती है
आक्रामक अथवा रक्षात्मक हथियार
राजनीतिक अथवा कूटनीतिक संबंध
आर्थिक संबंध
सुरक्षा के लिए कूटनीतिक एवं राजनीतिक प्रयास
भयादोहन
संचार
क्षमता
विश्वसनीयता
आकलन
कोई देश एक दूसरे देश पर हमला इसलिए नहीं करता क्यूंकि उसको इस बात का आकलन होता है की हमला करने से उसे ज़्यादा नुक़सान हो सकता है इसे ही भयादोहन की स्थिति कहते है इसे परमाणु हथियारों के संदर्भ में भी समझ सकते है
तनाव शैथिल्य की कूटनीति
जब दोनों देश तनाव घटाना चाहते हो एवं युद्ध को विनाशकारी मानते हो
जब दोनों देश संघर्ष के अलावा अन्य विकल्पों को बेहतर मानते हो
जब दोनों देश आर्थिक तकनीकी और अन्य सहयोग का लाभ उठाना चाहते हो
कोई राष्ट्र तनाव शैथिल्य इसलिए छाता है क्यूंकि वो सुरक्षा चाहता ही है
निःशत्रीकरण
यह अवधारणा यह मानती हे की हथियार ही युद्ध का करना होते है तो अगर निःशस्त्रीकरण के उपाय किए जाए तो काफ़ीहद तक युद्ध की आशंका को कम किया जा सकता है ।
रक्षात्मक उपाय
कई बार आक्रमण करता राष्ट्र नुकसान के डर से दूसरे राज्य पर आक्रमण नहीं करता
यथार्थ वादी दृष्टिकोण
अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के मुख्य अभिकर्ता राज्य है और अपनी संप्रभुता की रक्षा उनका प्राथमिक उद्देश्य है संप्रभुता अंतरराष्ट्रीय व्यवहार का मुख्य अंग है किसी राज्य की सुरक्षा को ख़तरा अन्य राज्यों से होता हैराज्य अपनी सुरक्षा के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर नहीं रह सकते या भरोसा नहीं कर सकते इसलिए गठबंधन संधियों सामूहिक प्रयास राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं यदि राज्य को अपने अस्तित्व को बचाना है तो उसे अपनी शक्ति को बढ़ाना होगा यथार्थवादी सैन्य शक्ति को बढ़ाने की बात करते हैं यद्यपि ये धन सम्पत्ति या भू राजनैतिक करनी से इंकार नहीं करते ।
शीतयुद्ध के बाद नए प्रकार का दृष्टिकोण उभर कर सामने आया
रेडिकल दृष्टिकोण
यह दृष्टिकोण यथार्थवादी दृष्टिकोण को नहीं मानते ये नए प्रकार से सुरक्षा के दृष्टिकोण की बात करते हैं ये राज्य केंद्रित दृष्टिकोण को पूरी तरह सही नहीं मानते ये राज्य सुरक्षा के विचार को राज्य के स्थान पर मानवता से जोड़कर देखते हैं ये सुरक्ष के लिए सैन्य खतरों के स्थान पर अन्य खतरों की बात करते हैं इनका मुख्य तर्क है कि अंतरराज्यीय युद्ध अभी भी संभव है लेकिन आज के समय सर्वाधिक हिंसक संघर्ष राज्यों के भीतर होते हैं राज्य की अनेक मामलों में जैसी पर्यावरणीय समस्या जनसंख्या वृद्धि बीमारी शरणार्थी समय आर्थिक समस्या और संसाधनों की कमी इत्यादि मामलो में सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता घाट रही है आज आतंकवाद पर्यावरण नशीली दवाई की तस्करी भूख आदि विकराल समस्या है ।
निष्कर्ष
सामान्यतः राष्ट्रीय सुरक्षा को किसी राज्य के लिए बाह्य ख़तरे से मनोवैज्ञानी मुक्ति के संदर्भ में देखा जाता है साथ ही इसे ऐसे उपायों से जोड़कर देखा जाता है जो कोई राज्य अपनी सुरक्षा को बनाए रखने के लिए करता है अराजक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था होने के कारण सुरक्षा की दुविधा हमेशा बनी रहती है जिसके कारण राज्य एक दूसरे की तुलना में अपनी सुरक्षा उपाय बढ़ाते हैं जिससे अंततः असुरक्षा का वातावरण उत्पन्न हो जाता है ऐसी स्थिति में राज्य अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए भयादोहन तनाव शैथिल्य निःशस्त्रीकरण या सुरक्षात्मक तरीक़े अपनाते हैं ।