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रोनाल्ड ड्वार्किन (Ronald Dworkin) का समानता पर विचार

रॉनाल्ड ड्वार्किन (Ronald Dworkin) समकालीन न्यायशास्त्र के एक प्रमुख विचारक रहे हैं, जिनका समानता और न्याय पर अद्वितीय दृष्टिकोण है। उनका विचार “समानता” को केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं बल्कि नैतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी समझने की कोशिश करता है। ड्वार्किन का यह सिद्धांत न्याय, समानता और अधिकारों के आधार पर समाज की संरचना की व्याख्या करता है, जो विशेष रूप से उनके न्याय और अधिकारों पर विचारों में देखा जा सकता है।

1. समानता की परिभाषा – ड्वार्किन का दृष्टिकोण

ड्वार्किन का समानता पर विचार मुख्य रूप से समान सम्मान और समान प्राथमिकता पर आधारित है। उनके अनुसार, समानता का मतलब केवल आर्थिक समानता नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति के लिए “समान सम्मान” और “समान अवसर” की गारंटी देना है।

2. ड्वार्किन का न्याय का सिद्धांत

ड्वार्किन का मुख्य न्यायसंगत सिद्धांत “समान सम्मान का सिद्धांत” (Theory of Equal Respect) है, जिसे वह अपने सबसे प्रसिद्ध काम “Taking Rights Seriously” (1977) और “Sovereign Virtue” (2000) में प्रस्तुत करते हैं।

समान सम्मान का सिद्धांत:

  • ड्वार्किन के अनुसार, समानता का मतलब है कि हर व्यक्ति को समान सम्मान मिलना चाहिए। यह सम्मान उन अधिकारों और आज़ादियों से संबंधित है जो एक व्यक्ति के पास होते हैं और जिन्हें समाज द्वारा माना जाता है।
  • यह सम्मान इस बात से जुड़ा है कि हर व्यक्ति का जीवन और फैसले में भागीदारी का समान मूल्य होना चाहिए। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति या समूह दूसरों से कमतर न समझा जाए या उसके अधिकारों का उल्लंघन न हो।

समान अवसर:

  • ड्वार्किन का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को पूरी तरह से उपयोग करने का समान अवसर मिलना चाहिए। यह “समान अवसर” का सिद्धांत तब लागू होता है जब हम यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन की दिशा निर्धारित करने का समान अवसर प्राप्त हो, चाहे वह शिक्षा, काम, या अन्य किसी भी क्षेत्र में हो।

3. “समानता का गुणात्मक दृष्टिकोण” (Equality of Resources)

ड्वार्किन ने समानता के संसाधनों के दृष्टिकोण (Equality of Resources) पर भी विचार किया। उनका यह सिद्धांत “संसाधन आधारित समानता” के रूप में जाना जाता है, जिसका उद्देश्य यह है कि समाज में हर व्यक्ति को उतने ही संसाधन मिलें, जिससे वे अपनी जीवनशैली और लक्ष्यों को पूरा कर सकें।

ड्वार्किन का संसाधन आधारित समानता सिद्धांत:

  • उनके अनुसार, संसाधन आधारित समानता यह सुनिश्चित करती है कि सभी व्यक्तियों को समान संसाधन उपलब्ध हों, ताकि वे अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकें।
  • ड्वार्किन का मानना था कि सामाजिक असमानताएँ (जैसे जन्म से प्राप्त असमानता, शारीरिक विकलांगता, आर्थिक स्थिति आदि) केवल तब स्वीकार की जा सकती हैं जब वे सभी के लिए लाभकारी हों। यदि असमानताएँ किसी एक समूह के लाभ में हैं और दूसरों के लिए हानिकारक हैं, तो उन्हें समाप्त किया जाना चाहिए।

जीवन के अवसर:

ड्वार्किन ने यह भी तर्क किया कि यदि किसी व्यक्ति के पास अच्छे जीवन के अवसर हैं, तो उसकी स्थिति को उसी के क्षमताओं और प्रयासों के आधार पर आंका जाना चाहिए, न कि अकस्मात भाग्य (ब्रूट लक) के आधार पर। ड्वार्किन के अनुसार, समाज का उद्देश्य विभिन्न अवसरों का वितरण समान रूप से करना होना चाहिए।

4. समानता का न्यायपूर्ण वितरण

ड्वार्किन के समानता के सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि वह “संविधान और कानून के अंतर्गत न्यायपूर्ण वितरण” पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि किसी भी समाज में कानूनी समानता की जरूरत होती है ताकि सभी व्यक्तियों को उनके मूल अधिकारों का संरक्षण मिल सके।

कानूनी समानता:

  • ड्वार्किन ने यह तर्क किया कि कानून और नीति को इस तरह से स्थापित किया जाना चाहिए कि वे सभी नागरिकों के अधिकारों का समान रूप से संरक्षण करें। कानून में भेदभाव नहीं होना चाहिए, और सभी के साथ समान तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए।
  • उनका मानना था कि अगर किसी नीति में भेदभाव होता है, तो यह समानता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है।

5. ब्रूट लक (Brute Luck) और ड्वार्किन का समानता सिद्धांत

ड्वार्किन ने ब्रूट लक (Brute Luck) की अवधारणा पर भी विचार किया, जैसा कि जॉन रॉल्स ने अपने “अंतरप्रवाह सिद्धांत” (Difference Principle) में किया था।

  • ब्रूट लक वह असमानता होती है जो व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर होती है, जैसे जन्म से गरीब होना या शारीरिक विकलांगता होना।
  • ड्वार्किन ने इस पर विचार करते हुए कहा कि समाज को ब्रूट लक के कारण उत्पन्न असमानताओं को समाज के द्वारा संबोधित किया जाना चाहिए। उन्होंने इसे “वैकल्पिक दृष्टिकोण” (Option Luck) से अलग रखा, जहां व्यक्ति के चुनाव और प्रयासों के कारण असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।

ब्रूट लक को संबोधित करना:

  • ड्वार्किन ने समाज से यह अपेक्षाएँ की कि उसे ब्रूट लक के कारण उत्पन्न असमानताओं को सुधारने के लिए नीतियाँ बनानी चाहिए
  • इसके लिए उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि संसाधनों का वितरण इस प्रकार किया जाए कि हर व्यक्ति को समय, योग्यता और प्रयास के आधार पर अवसर मिलें, न कि केवल भाग्य और संयोग के आधार पर।

6. अधिकारों और कर्तव्यों का संतुलन

ड्वार्किन के समानता के सिद्धांत में “अधिकारों और कर्तव्यों” का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उनका मानना था कि हर व्यक्ति के पास समान अधिकार होने चाहिए, लेकिन साथ ही साथ समान कर्तव्यों (duties) भी होने चाहिए। यह कर्तव्य यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि प्रत्येक व्यक्ति समाज में अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन न करे और हर किसी को समान सम्मान मिले।

7. राजनीतिक समानता

ड्वार्किन के लिए राजनीतिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को अपनी राजनीतिक राय व्यक्त करने का समान अधिकार होना चाहिए। उनका कहना था कि किसी भी लोकतांत्रिक समाज में यह आवश्यक है कि सभी नागरिकों को समान रूप से प्रभावी वोट देने का अधिकार मिले, ताकि किसी का अधिकार दूसरे से कम न हो।

8. नैतिक समानता और सार्वभौमिक अधिकार

ड्वार्किन ने नैतिक समानता (Moral Equality) पर भी जोर दिया। उनके अनुसार, हर व्यक्ति का मूल अधिकार यह है कि उसे अपने जीवन के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। यह अधिकार उनके लिए इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय की बुनियादी अवधारणाओं से जुड़ा हुआ था।

निष्कर्ष:

रॉनाल्ड ड्वार्किन का समानता पर विचार न केवल एक न्यायसंगत और समृद्ध समाज बनाने की ओर इंगीत करता है, बल्कि यह हर व्यक्ति के लिए समान अवसर, सम्मान और अधिकार की बात करता है। उनका “समान सम्मान” और “संसाधन आधारित समानता” का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि समाज में किसी भी प्रकार की असमानता को केवल तभी स्वीकार किया जाए, जब वह समाज के सबसे वंचित वर्ग के लाभ में हो। उनके विचार समकालीन न्यायशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और समाज के विभिन्न पहलुओं में समानता की अवधारणा को पुनः परिभाषित करते हैं।

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ब्रूट लक, ऑप्शन लक और एंडॉवमेंट:रॉनाल्ड ड्वार्किन का दृष्टिकोण