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लोकतंत्रीकरण के सिद्धांत

सैमुअल हंटिंगटन, लोकतंत्रीकरण के लहरे, एलेक्सिस डी टॉकविल, थेडा स्कोकपोल, जुआन जे. लिंज़

लोकतंत्रीकरण का अर्थ है समाज, राज्य और संस्थाओं में लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रक्रियाओं के प्रसार से है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें सत्ता, निर्णय-निर्माण, और संसाधनों पर नियंत्रण कुछ लोगों के हाथों से निकलकर व्यापक जनता के बीच बाँट दिया जाता है।

लोकतंत्रीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी देश या समाज में शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली विकसित होती है और नागरिकों को समान अधिकार, भागीदारी, और स्वतंत्रता प्राप्त होती है।

अब्राहम लिंकन की परिभाषा: “Democracy is government of the people, by the people and for the people.”

  •  जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन।
  • इसमें समानता, स्वतंत्रता, भागीदारी, और जवाबदेही मुख्य तत्व हैं।

लोकतंत्रीकरण के प्रमुख तत्व

  1. जन भागीदारी: शासन और निर्णय-निर्माण में जनता की भागीदारी।
  2. समानता: जाति, वर्ग, लिंग, धर्म आदि के आधार पर भेदभाव का अंत।
  3. नागरिक अधिकारों की रक्षा: अभिव्यक्ति, संगठन और मतदान का अधिकार।
  4. जवाबदेही (Accountability): शासकों को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाना।
  5. कानून का शासन (Rule of Law): सभी के लिए एक समान कानून लागू होना।

लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया के चरण

  1. राजनीतिक लोकतंत्रीकरण: सार्वभौमिक मताधिकार, राजनीतिक दलों की स्वतंत्रता।
  2. सामाजिक लोकतंत्रीकरण: सामाजिक समानता, शिक्षा और अवसरों की समानता।
  3. आर्थिक लोकतंत्रीकरण: संपत्ति और संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण।

लोकतंत्रीकरण का अधिनायकवाद के साथ तुलना

सत्तावादी शासन नागरिक स्वतंत्रता को सीमित करते हैं, विपक्ष को दबाते हैं, संविधानों पर नियंत्रण रखते हैं और मीडिया की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते हैं।

  • सत्ता एक छोटे समूह, जैसे सैन्य अभिजात वर्ग, पार्टी नेताओं या शासक मंडली के हाथों में केंद्रित होती है।
  • उदाहरण: अर्जेंटीना में जुआन पेरोन का शासन, पाकिस्तान में जनरल ज़िया का शासन, और स्पेन में जनरल फ्रैंको का शासन।

लोकतंत्र की प्रकृति

लोकतंत्र केवल शासन प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है, जिसमें लोग शासन में सक्रिय भागीदारी करते हैं, सामान्यतः एक लिखित संविधान के माध्यम से (यूके जैसे कुछ देशों को छोड़कर)।

मूल सिद्धांत

  • स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व।
  • नियमित और शांतिपूर्ण चुनावों के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • अधिकारों का संवैधानिक संरक्षण।
  • ऐसी सरकार जो जनता की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी हो।

लोकतंत्र एक जीवनशैली के रूप में

  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया केवल शासन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मूल्यों तक विस्तृत होती है।
  • यह एकता, गरिमा, अहिंसा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित करती है।

लोकतंत्र का लक्ष्य: अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए बहुसंख्यकों के अत्याचार को रोकना।

लोकतंत्र के प्रकार

  1. प्रत्यक्ष (शुद्ध) लोकतंत्र: इस प्रणाली में नागरिक प्रत्यक्ष रूप से शासन में भाग लेते हैं, अक्सर सार्वजनिक सभाओं के माध्यम से।

उदाहरण: प्राचीन एथेंस, जहाँ वयस्क पुरुष नागरिक राजनीतिक निर्णयों में भाग लेते थे (महिलाओं, दासों और गैर-नागरिकों को छोड़कर)।

वर्तमान उदाहरण: प्रत्यक्ष लोकतंत्र के तत्व आज भी पहल (initiative), जनमत संग्रह (referendum) और जनमत प्रश्न (plebiscite) के रूप में स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों में देखे जा सकते हैं।

  1. अप्रत्यक्ष (प्रतिनिधि) लोकतंत्र: इस प्रणाली में नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, जो उनकी ओर से निर्णय लेते हैं।
  • निर्वाचित प्रतिनिधि मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होते हैं।
  • निर्णय विधायिका द्वारा लिए जाते हैं, जिसमें कार्यपालिका और विधायी शाखाओं की अलग-अलग भूमिकाएँ होती हैं।

आधुनिक कार्यान्वयन: प्रतिनिधि लोकतंत्र आज विश्वभर में सबसे व्यापक रूप से अपनाया गया लोकतांत्रिक मॉडल है, विशेषकर संसदीय प्रणालियों में।

प्रतिनिधि लोकतंत्र की विशेषताएँ

  1. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार: प्रत्येक वयस्क नागरिक को जाति, लिंग, धर्म या वर्ग के भेदभाव के बिना मतदान का अधिकार प्राप्त होता है।
  2. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव: चुनाव निष्पक्ष रूप से आयोजित किए जाते हैं ताकि नागरिक स्वतंत्र रूप से मतदान कर सकें।
  3. सक्रिय राजनीतिक दलों की भागीदारी: राजनीतिक दल लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए आवश्यक तत्व हैं, जो विभिन्न विचारों और हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  4. हित समूहों की भागीदारी: दबाव और हित समूह जनमत और नीति निर्माण को प्रभावित करते हैं।
  5. प्रेस की स्वतंत्रता: मीडिया स्वतंत्र रूप से विचार व्यक्त कर सकता है और सरकार की आलोचना कर सकता है।
  6. स्वतंत्र न्यायपालिका: न्यायपालिका राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहकर निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय देती है।

लोकतंत्रीकरण के लिए तंत्र

  1. चर्चा के माध्यम से सरकार
    विधानसभाएँ बहस और विचार-विमर्श को प्रोत्साहित करती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी दृष्टिकोणों पर पर्याप्त विचार किया जाए।
  2. आंतरिक असहमति से निपटना
    राजनीतिक दल संवाद और संघर्ष समाधान के माध्यम से असहमति को समायोजित करते हैं, जिससे स्थिरता और सहमति का वातावरण बनता है।
  3. विपक्ष की भूमिका
    एक मजबूत विपक्ष बहुमत के अत्याचार को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है कि सरकार सभी नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनी रहे।
  4. शक्तियों का पृथक्करण
    कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का विभाजन नियंत्रण और संतुलन (checks and balances) की प्रणाली को स्थापित करता है।
  5. अल्पसंख्यक अधिकारों का संरक्षण
    सफल लोकतंत्रीकरण के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा आवश्यक है ताकि समानता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सके।
  6. कानून का शासन और संवैधानिक शासन
    सरकारों को कानून के शासन के अधीन कार्य करना चाहिए, जिससे सभी के लिए जवाबदेही, पारदर्शिता और निष्पक्ष शासन सुनिश्चित हो सके।

सैमुअल हंटिंगटन (Samuel P. Huntington)

सैमुअल हंटिंगटन ने अपनी प्रसिद्ध कृति “The Third Wave: Democratization in the Late Twentieth Century” (1991) में लोकतंत्र के वैश्विक प्रसार को समझाने के लिए एक रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने विशेष रूप से लोकतंत्रीकरण की “तीसरी लहर” (Third Wave) पर ध्यान केंद्रित किया, जिसकी शुरुआत 1970 के दशक के मध्य में हुई थी। उनका सिद्धांत लोकतंत्रीकरण की विभिन्न लहरों (waves) के बीच अंतर को स्पष्ट करता है और इन परिवर्तनों को प्रेरित करने वाले सामाजिक, राजनीतिक एवं अंतर्राष्ट्रीय कारकों की व्याख्या करता है।

हंटिंगटन के लोकतंत्रीकरण सिद्धांत के प्रमुख विचार

  1. लोकतंत्रीकरण की तीसरी लहर
    • हंटिंगटन ने तीसरी लहर को सत्तावादी शासन से लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर संक्रमण की अवधि के रूप में परिभाषित किया।
    • इसकी शुरुआत 1970 के दशक में दक्षिणी यूरोप से हुई और बाद में यह लहर लैटिन अमेरिका, पूर्वी यूरोप, एशिया और अफ्रीका के कई हिस्सों तक फैल गई।
    • पहली दो लहरों की तुलना में तीसरी लहर अधिक व्यापक थी, जिसमें विभिन्न संस्कृतियाँ और राजनीतिक प्रणालियाँ शामिल थीं।
    • यह लहर सैन्य शासन और निरंकुश सरकारों के पतन तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना से चिह्नित थी।
  2. लोकतंत्रीकरण के चरण
    • प्रथम लहर (1828–1926): पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में लोकतंत्र का प्रारंभिक प्रसार।
    • द्वितीय लहर (1943–1962): द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी, जापान तथा पूर्व उपनिवेशों में लोकतांत्रिक शासन की स्थापना।
    • तृतीय लहर (1974–वर्तमान): दक्षिणी यूरोप से प्रारंभ होकर लैटिन अमेरिका, पूर्वी यूरोप, एशिया और अफ्रीका में लोकतंत्र का तेज़ी से प्रसार।
  3. लोकतंत्रीकरण को प्रेरित करने वाले कारक
    • आंतरिक कारक: सत्तावादी शासन की कमजोरियाँ, आर्थिक संकट, और जनता का असंतोष लोकतांत्रिक परिवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं।
    • बाह्य कारक: अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, विदेशी नीतियों और आर्थिक प्रतिबंधों की भूमिका लोकतंत्रीकरण में सहायक होती है।
    • वैश्वीकरण: वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक शक्तियाँ लोकतांत्रिक आदर्शों और संस्थाओं के प्रसार में योगदान देती हैं।
  4. अभिजात वर्ग और जनआंदोलन की भूमिका
    • हंटिंगटन के अनुसार, अभिजात वर्ग (elite class) लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका निभाता है।
    • जब शासक वर्ग को यह अहसास होता है कि लोकतांत्रिक प्रणाली से उन्हें लाभ हो सकता है, तब वे परिवर्तन की पहल करते हैं।
    • जन-आंदोलन भी महत्वपूर्ण होते हैं, परंतु वे हमेशा प्राथमिक प्रेरक नहीं होते।
  5. लोकतंत्र का सुदृढ़ीकरण (Democratic Consolidation)
    • हंटिंगटन ने “लोकतंत्रीकरण” (initial transition) और “लोकतंत्र का समेकन” (institutional stabilization) के बीच अंतर बताया।
    • उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ देश “विपरीत लहर” (reverse wave) का सामना कर रहे हैं, जहाँ सैन्य तख्तापलट, संस्थागत अस्थिरता और सत्तावादी पुनरुत्थान से लोकतंत्र कमजोर हो रहा है।
    • सफल लोकतंत्रीकरण के लिए राजनीतिक स्थिरता, संस्थागत मजबूती और नागरिक भागीदारी आवश्यक है।

लोकतंत्रीकरण की लहरें (The Waves of Democratization)

  1. पहली लहर (1828–1926):
    • केंद्र: पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका।
    • विशेषताएँ: मताधिकार का विस्तार, प्रतिनिधि लोकतंत्र का उदय।
    • प्रमुख घटनाएँ: अमेरिकी क्रांति (1776), फ्रांसीसी क्रांति (1789), ब्रिटेन में मताधिकार सुधार (1828 के बाद)।
    • पतन: प्रथम विश्व युद्ध के बाद राजतंत्रों के पतन के बावजूद, फासीवाद और अधिनायकवाद का उदय हुआ।
  2. दूसरी लहर (1943–1962)
    • केंद्र: यूरोप और उपनिवेशी क्षेत्र।
    • विशेषताएँ: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी, जापान और इटली में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना।
    • उपनिवेशों की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक ढांचे की स्थापना (भारत, घाना आदि)।
    • पतन: 1960–70 के दशक में कई नव-स्वतंत्र देशों में सैन्य शासन का उदय।
  3. तीसरी लहर (1974–वर्तमान)
    • आरंभ: 1974 में पुर्तगाल की Carnation Revolution से।
    • विस्तार: दक्षिणी यूरोप, लैटिन अमेरिका, पूर्वी यूरोप, एशिया और अफ्रीका।
    • प्रमुख घटनाएँ: पुर्तगाल, ग्रीस, स्पेन में तानाशाही का अंत; 1989–91 में पूर्वी यूरोप में साम्यवाद का पतन।
    • चुनौतियाँ: लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण में कठिनाइयाँ और संकर शासन (hybrid regimes) का उभार।

विपरीत लहरें (Reverse Waves)

  1. प्रथम विपरीत लहर (1922–1942)
    • यूरोप, लैटिन अमेरिका और एशिया में फासीवादी एवं साम्यवादी शासन के उदय ने पहली लहर की प्रगति को पलट दिया।
  2. दूसरी विपरीत लहर (1958–1975)
    • इस अवधि में कई देशों में लोकतांत्रिक संस्थाएँ कमजोर पड़ीं, सैन्य तख्तापलट हुए और सत्तावादी शासन मजबूत हुए।

लोकतंत्रीकरण से संबंधित विचारक

  1. एलेक्सिस डी टॉकविल (Alexis de Tocqueville)
    • कृति: Democracy in America (1835)।
    • विचार: लोकतंत्र के लिए नागरिक समाज, सामाजिक पूंजी और स्वतंत्रता–समानता के संतुलन का महत्व।
  2. थेडा स्कोकपोल (Theda Skocpol)
    • योगदान: सामाजिक क्रांतियों के सिद्धांत के माध्यम से राज्य संरचनाओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों की भूमिका पर बल।
  3. जुआन जे. लिंज़ (Juan J. Linz)
    • योगदान: लोकतंत्र की स्थिरता, राजनीतिक संस्कृति और अभिजात वर्ग की भूमिका पर विशेष ध्यान।

लोकतंत्रीकरण से सम्बंधित अन्य प्रमुख अवधारणाएँ

राजनीतिक समाजीकरण (Political Socialization)

  • नागरिकों में राजनीतिक संस्कृति व मूल्य विकसित करने की प्रक्रिया।
  • माध्यम: परिवार, विद्यालय, मीडिया, धार्मिक संगठन।
  • प्रमुख विचारक – Gabriel Almond और Sidney Verba
  • लोकतंत्र के स्थायित्व हेतु यह आवश्यक है।

राजनीतिक संस्कृति (Political Culture)

  • राजनीतिक विश्वास, मूल्य, दृष्टिकोण और व्यवहार का समुच्चय।
  • Almond और Verba ने तीन प्रकार बताए:
    1. Parochial Culture – सीमित राजनीतिक ज्ञान
    2. Subject Culture – शासन के प्रति जागरूकता
    3. Participant Culture – सक्रिय भागीदारी
  • भारत में मिश्रित संस्कृति (Mixed Political Culture) पाई जाती है।

राजनीतिक भागीदारी (Political Participation)

  • शासन में जनता की सीधी या परोक्ष भागीदारी।
  • जैसे – मतदान, चुनाव प्रचार, जन आंदोलन, याचिकाएँ आदि।
  • यह लोकतंत्र की जीवनरेखा है।

शक्तिविकेन्द्रीकरण (Decentralization of Power)

  • सत्ता को केंद्र से राज्यों और स्थानीय निकायों तक बाँटना।
  • 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन– पंचायत व नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा।
  • उद्देश्य: स्थानीय स्तर पर निर्णय-निर्माण और भागीदारी।

राजनीतिक विकास (Political Development)

  • एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें राजनीतिक संस्थाएँ स्थिर, उत्तरदायी और जनोन्मुख बनती हैं।
  • Lucian Pye ने कहा राजनीतिक विकास समाज की “आधुनिकीकरण प्रक्रिया” है।
  • सूचक: नागरिक अधिकार, राजनीतिक भागीदारी, उत्तरदायी शासन।

आधुनिकीकरण (Modernization)

  • पारंपरिक समाज से आधुनिक समाज की ओर परिवर्तन।
  • राजनीतिक दृष्टि से तर्कसंगत निर्णय, संस्थागत परिवर्तन और लोकतांत्रिक व्यवहार।

नागरिक समाज (Civil Society)

  • राज्य और व्यक्ति के बीच स्थित संस्थाएँ: NGO, मीडिया, यूनियन, संगठन आदि।
  • लोकतंत्र को सशक्त बनाता है, सत्ता पर नियंत्रण रखता है।
  • एलेक्ज़ेंडर डे टॉकविल ने कहा: “Civil society is the school of democracy.”

निष्कर्ष

लोकतंत्रीकरण केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन की दीर्घकालिक यात्रा है। यह निरंतर विकसित होती प्रणाली है जिसमें नागरिकों की भागीदारी, संस्थाओं की जवाबदेही और समानता के मूल्यों का विस्तार होता रहता है।

सैमुअल हंटिंगटन तथा अन्य राजनीतिक विचारकों के अनुसार, लोकतंत्रीकरण एक जटिल, बहुआयामी और चक्रीय प्रक्रिया है, जो आंतरिक (जन-आंदोलन, संस्थागत स्थिरता, नागरिक जागरूकता) और बाह्य कारकों (वैश्विक दबाव, अंतरराष्ट्रीय समर्थन) दोनों पर निर्भर करती है।

हंटिंगटन की “तरंगों और प्रतितरंगों (Waves and Reverse Waves)” की अवधारणा विश्व स्तर पर लोकतंत्र के उत्थान और पतन की व्याख्या करती है। यह दर्शाती है कि लोकतंत्र की प्रगति एक सतत् संघर्ष है जहाँ लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए समाज को निरंतर प्रयासरत रहना पड़ता है।

 


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