राजनीति का इतिहास अनेक दृष्टियों से विचित्र रह चुका है, लेकिन शायद ही कोई विचारक ऐसा हो जिसने व्यवहारवाद की राजनीति पर उतना गहरा प्रभाव डाला हो जितना निकोलो मेकियावेली ने। उनकी कृति द प्रिंस में तानाशाही की राजनीति और सत्ता की स्थिरता को केंद्र में रखकर जो तर्क प्रस्तुत किए गए थे, आज भी विश्व राजनीति के कई आयामों में अद्भुत प्रतिध्वनि पैदा करते हैं। स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठता है: क्या 21वीं सदी में भी एक व्यवहारवादी, सत्ता-केंद्रित मेकियावेलियन राजनीतिक दर्शन प्रासंगिक बना हुआ है? वर्तमान विश्व के संदर्भ में चीन, रूस, इजरायल, हंगरी जैसी राष्ट्राध्यक्षतंत्र वाले देशों में सत्ता के व्यवहार में हम मेकियावेली की शिक्षाओं की झलक देख सकते हैं।
मेकियावेली ने द प्रिंस में यह स्पष्ट कर दिया कि राजाओं और सरकारों की पहली प्राथमिकता होती है,सत्ता की निरंतरता सुनिश्चित करना। उनके अनुसार राजनीति में नैतिकता से अधिक अहमियत होती है परिणामों की, और यदि सत्ता को बनाए रखने के लिए छल, डर, दमन या मंशा-हित साधन जरूरी लगे, तो इन्हें अपनाना पात्र है। उनके अनुसार अगर एक राजा या शासक को ‘भय’ और ‘दयालुता’ में से किसी एक का चयन करना पड़े तो भय का चयन करना चाहिए। मूल रूप से, मेकियावेली का प्रस्ताव था कि एक शक्तिशाली तानाशाह वह हो सकता है जो नैतिक सिद्धांतों पर स्थिर रहते हुए व्यावहारिक, चतुर और निर्णायक हो; और उसका सबसे बड़ा हथियार हो—सत्ता की संरचना की समझ और नियंत्रण। इस व्यावहारिक दृष्टिकोण का उद्देश्य न केवल सत्ता प्राप्त करना, बल्कि उसे स्थिर और सतत बनाये रखना था।
मेकियावली (Niccolò Machiavelli) का जीवन परिचय जन्म – निकोलो मेकियावली का जन्म 3 मई 1469 को इटली के फ्लोरेंस नगर में हुआ। परिवार पृष्ठभूमि – वे एक शिक्षित लेकिन आर्थिक रूप से साधारण कुलीन परिवार से थे। उनके पिता बर्नार्डो मेकियावली वकील थे और माँ बारतोलेमिया दी स्टीफानो ने उन्हें साहित्यिक रुचि दी। राजनीतिक करियर की शुरुआत – 1498 में फ्लोरेंस गणराज्य के दूसरे चांसलर और सचिव के रूप में नियुक्त हुए। राजनयिक कार्य – 1498 से 1512 के बीच उन्होंने फ्रांस, जर्मनी और पापल स्टेट्स में कई महत्वपूर्ण कूटनीतिक मिशन संभाले। पदच्युत – 1512 में मेडिची परिवार के पुनः सत्ता में आने पर उन्हें पद से हटा दिया गया, बंदी बनाया गया और यातनाएँ दी गईं। साहित्यिक जीवन – जेल से रिहा होने के बाद वे फ्लोरेंस के बाहर अपने गाँव में रहने लगे और इसी समय उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “The Prince” (Il Principe) लिखी (1513)। मुख्य कृतियाँ –The Prince (राजनीतिक सत्ता और व्यवहारवाद पर),Discourses on Livy ,The Art of War,The Mandrake (नाटक) राजनीतिक विचार – उन्हें “राजनीतिक यथार्थवाद” का जनक माना जाता है। उनका मानना था कि सत्ता बनाए रखने के लिए शासक को व्यवहारिक, कभी-कभी कठोर और परिस्थितियों के अनुसार कार्य करना चाहिए। मृत्यु – 21 जून 1527 को फ्लोरेंस में उनका निधन हुआ। |
वर्तमान में चीन में कम्युनिस्ट पार्टी और केंद्रीय सत्ता की संरचना में स्पष्ट रूप से एक केंद्रीकृत नियंत्रण दिखता है। मेकियावेली के अनुसार, यदि राजसुशासन को टिकाऊ बनाना है, तो पार्टी की एकता बनाए रखना, विद्रोह की संभावना को कुन्द करना, और नियंत्रित प्रचार द्वारा जनता का मन नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। शी जिनपिंग की सत्ता में उठाये गए कई कदम, जैसे पार्टी के भीतर आत्म-शुद्धि अभियान, अभिव्यक्ति की सीमाएं और सरकार के प्रचार तंत्र पर नियंत्रण—ये सभी मेकियावेलियन दृष्टिकोण की प्रतिध्वनि हैं, जहाँ सत्ता को बनाए रखने के लिए मुक्त प्रेस और असंतुष्ट आवाजों को नियंत्रित किया जाता है।
इसी प्रकार रूस में पुतिन की सत्ता को बढ़ावा देने की जंग में भी मेकियावेली के सिद्धांत स्पष्ट रूप से झलकते हैं। पुतिन ने सत्ता को सुदृढ़ करने के लिए राजनीतिक विरोध को कमजोर किया, मीडिया पर नियंत्रण स्थापित किया, और देश में राष्ट्रीयता की भावनाओं को भड़काकर राजनीतिक स्थान सुनिश्चित किया। द प्रिंस के अनुसार, तानाशाह को चाहिए कि वह खुद को चतुर और संपूर्ण दिखाए—और पुतिन ने पश्चिम विरोधी प्रदर्शन और मजबूत नेता के रूप में खुद को प्रस्तुत किया है। इसमें नागरिकों में भय का संतुलन बनाए रखना, बतौर उपकरण इस्तेमाल करना और सत्ता को स्थिर रखना शामिल है ये सभी मेकियावेलियन तत्त्व हैं।
आज इज़राइल में भी प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू की सत्ता संरचना भी मेकियावेली के सिद्धांतों से प्रभावित प्रतीत होती है। सुरक्षा के बहाने की कठोर नीतियाँ, मीडिया का नियंत्रित रूप, न्यायपालिका पर विवाद, और विपक्ष को दबाने की चुनौतियाँ—ये सभी उस संदर्भ में आते हैं जहाँ एक नेता को सत्ता बनाए रखने के लिए व्यावहारिक, लेकिन अक्सर तानाशाही भूखे कदम उठाने पड़ते हैं। यदि सत्ता ही सर्वोपरि हो, तो ऐसे निर्णयों को औचित्यसंगत ठहराने में मेकियावेलियन तर्क काम आते हैं।
यूरोप के एकमात्र तानाशाह कहे जाने वाले हंगरी में विक्टर ओरबान ने ‘हिंगल यूरोपीय’ निर्देशों के साथ एक मजबूत, नियंत्रण केंद्रित शासन स्थापित किया है। प्रेस आज़ादी, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और मीडिया का केंद्रीकरण—ये सभी कदम सत्ता की संरचना को मजबूत बनाते हैं। मेकियावेली के तर्क के अनुसार, यदि राजा (या नेता) को सत्ता स्थिर बनानी है, तो वह संविधान या लोकतांत्रिक ढांचे का उपयोग व्यावहारिक रूप से अपने नियंत्रण को बढ़ावा देने के लिए कर सकता है। ओरबान ने इसी को अमल में लाया है।
इस प्रकार से निकोल मेकियावेली को ‘इन सबका गुरु’ कहा जा सकता है और अच्छे से समझा जा सकता है कि कैसे आज के विश्व में मेकियावेली की शिक्षाएं तानाशाही की नींव बन गई हैं। आज के अधिकांश राजनीतिज्ञों के व्यवहार में सदैव से सत्ता की प्राप्ति और उसके संरक्षण की प्राथमिकता रही है और मेकियावेली ने इस अर्थव्यवस्था को आधुनिक राजनीतिक भाषा में सबसे सुलझे ढंग से प्रस्तुत किया।यहां ये भी समझने योग्य है कि मेकियावेली का विचार आधुनिक सत्ता संरचनाओं में बेझिझक दिखाई देता है, चाहे वह लोकतंत्र हो, अधिनायकवाद हो, या मिश्रित राजनैतिक प्रणाली हो, क्योंकि राजनीति परिदृश्य में सत्ता का खेल सार्वभौमिक है।इस प्रकार कहा जाए तो मेकियावली की पुस्तक द प्रिंस का सिद्धांत न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि वर्तमान के सत्ता खेल में एक जीवंत और क्रियाशील तत्व है—जिसे विश्व के कई नेता या तो खुलकर या निहित रूप से अपनाते हैं।
मेकियावेलीवाद के आलोचक कहते हैं कि यह दर्शन लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवीय आदर्शों को क्षति पहुंचाता है। जब सत्ता शक्ति और नियंत्रण के लिए नैतिकता पर समझौता करती है, तो दीर्घकाल में लोगों का विश्वास खत्म हो सकता है। परिणामस्वरूपी सामाजिक अस्थिरता, विद्रोह संभावित हैं। इसलिए आधुनिक नेता मेकियावेली दृष्टिकोण अपनाते भी हैं, तो उसे सावधानीपूर्वक और सीमित रूप से अपनाते हैं,क्योंकि इसका संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।
निष्कर्षतः, द प्रिंस में प्रस्तुत मेकियावेली का तानाशाही सिद्धांत आज भी वर्तमान विश्व राजनीति में प्रासंगिक है। चीन, रूस, इज़राइल, हंगरी जैसी सत्ता संरचनाओं में मेकियावेलियन दृष्टि स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।सत्ता की राजनीति में परिणामपरक और व्यवहारवादी दृष्टिकोण आज भी उतना ही कारगर है जितना 16वीं सदी में था।
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