• स्किनर 20वीं सदी के एक बड़े इतिहासकार और विचारक थे। वे Cambridge School से जुड़े थे, जो इतिहास और राजनीति के अध्ययन में “संदर्भ” (context) पर ज़ोर देती थी।
• उनका प्रसिद्ध निबंध “Meaning and Understanding in the History of Ideas” 1969 में आया। इस निबंध ने यह सवाल उठाया कि जब हम किसीपुराने दार्शनिक, लेखक या विचारक की रचना पढ़ते हैं, तो उसे सही तरह से कैसेसमझें? क्या हमें केवल उस समय की परिस्थितियों को देखना चाहिए? या फिरसिर्फ लिखे हुए शब्दों को ही देखना चाहिए? या दोनों को जोड़ना चाहिए?
• स्किनर ने इस लेख में पुराने तरीकों की गलतियाँ बताईं और एक नया तरीकासुझाया।
परंपरागत तरीके और उनकी सीमाएँ
1. संदर्भ–आधारित तरीका
• कुछ विद्वान मानते हैं कि किसी भी विचार या किताब का अर्थ उसके समय कीसामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों से ही तय होता है। जैसे अगरकोई लेखक 16वीं सदी में लिख रहा है तो उसका लिखा समझने के लिए हमेंउस सदी की राजनीति और समाज को देखना चाहिए। इस सोच में यह मानलिया जाता है कि लेखक की असली मंशा ज़रूरी नहीं, बल्कि संदर्भ ही सबकुछ है।
• समस्या : इस तरीके से लेखक की व्यक्तिगत सोच और उसका असली संदेश छुपसकता है।
2. पाठ–आधारित तरीका
• कुछ विद्वान मानते हैं कि केवल पाठ (text) ही सब कुछ है। हमें बस यह देखनाचाहिए कि लेखक ने किस भाषा, किस वाक्य और किस विचार का इस्तेमालकिया।
• पाठ अपने आप में पूरा है, हमें समाज या इतिहास की ज़रूरत नहीं।
• समस्या: इस तरीके से हम लेखक के समय और वास्तविक परिस्थितियों को भूलजाते हैं।
• स्किनर कहते हैं कि ये दोनों तरीके अधूरे हैं। सही रास्ता इनसे अलग है।
आम गलतियाँ जो इतिहासकार करते हैं
1.अनाक्रोनिज़्म (Anachronism)
• इसका मतलब है किसी पुराने लेखक पर ऐसे विचार थोप देना जो उसके समय मेंथे ही नहीं। उदाहरण: मार्सिलियस ऑफ पादुआ को “separation of powers” (शक्तियों का विभाजन) का प्रवर्तक मानना, जबकि उनके समय में यह विचारमौजूद नहीं था। एडवर्ड कोक को “judicial review” का समर्थक बताना, जबकि 17वीं सदी में यह अवधारणा नहीं थी। यानी पुराने लेखकों को ऐसेविचारों से जोड़ देना जो बाद में आए।
2.सिद्धांत की मिथक (Mythology of Doctrines)
• कई बार विद्वान किसी लेखक की कुछ बातें लेकर उन्हें जोड़–तोड़ कर “पूरासिद्धांत” बना देते हैं। जैसे जॉन लॉक की कुछ बातों से “social contract theory” का बड़ा ढाँचा बना देना। या हुक़र (Hooker) की टिप्पणियों कोआधुनिक लोकतंत्र से जोड़ देना। असल में लेखक ने ऐसा कोई ठोस सिद्धांतबनाने का इरादा ही नहीं किया था।
3. संगति की मिथक (Mythology of Coherence)
• विद्वान यह मान लेते हैं कि हर लेखक की सभी बातें एक–दूसरे से पूरी तरह जुड़ीहोंगी और उनमें संगति होगी। उदाहरण: रूसो, ह्यूम या बर्क जैसे विचारकों केअलग–अलग और कभी–कभी विरोधी विचारों को जबरदस्ती एक संगठित“दर्शन” के रूप में पेश करना। लेकिन सच्चाई यह है कि लेखक कई बारविरोधाभासी या अधूरी बातें भी लिखते हैं।
4. भविष्यवादी व्याख्या (Mythology of Prolepsis)
• यह गलती तब होती है जब विद्वान किसी पुराने लेखक को आधुनिक विचारों का“जनक” बता देते हैं। जैसे रूसो को “फासीवाद का पिता” कहना। प्लेटो को“आधुनिक टोटलिटेरियन राजनीतिज्ञ” कहना। लेकिन इन लेखकों ने कभी ऐसासोचकर नहीं लिखा था। यह बाद के विचारों को उन पर थोपना है।
स्किनर का समाधान: “मंशा” पर ध्यान
• स्किनर कहते हैं कि हमें न तो केवल संदर्भ पर निर्भर रहना चाहिए और न ही केवलपाठ पर।
बल्कि हमें यह देखना चाहिए कि लेखक ने अपने समय में, अपनी भाषा काउपयोग करते हुए, अपने लेखन से क्या करने की कोशिश की थी। यानी हमेंलेखक की “मंशा” (intention) को समझना चाहिए।
उदाहरण
अगर कोई लेखक “स्वतंत्रता” (freedom) पर लिख रहा है, तो हमें यहपूछना चाहिए:
• उसने यह शब्द क्यों चुना?
• उस समय समाज में “स्वतंत्रता” शब्द का क्या मतलब था?
• क्या वह अपने विरोधियों को जवाब दे रहा था?
• क्या वह अपने पाठकों को मनाने की कोशिश कर रहा था?
इस तरह हम लेखक के लेखन को “क्रिया” (act) की तरह समझेंगे यानी उसनेशब्दों का इस्तेमाल केवल बयान करने के लिए नहीं, बल्कि कुछ “करने” केलिए किया।
स्किनर का नया दृष्टिकोण
• हर ग्रंथ को उसके भाषाई और सामाजिक संदर्भ में पढ़ना चाहिए।
• यह देखना चाहिए कि लेखक ने अपने विचारों से अपने समय की बहसों में कैसाहस्तक्षेप किया।
• हमें यह मानना बंद करना होगा कि हर लेखक ने हमेशा किसी “शाश्वत प्रश्न” (timeless question) का उत्तर देने की कोशिश की।
स्किनर का प्रभाव
• स्किनर के विचारों ने बौद्धिक इतिहास (history of ideas) को बदल दिया।
• उन्होंने इतिहासकारों को यह सिखाया कि हमें पुराने विचारों को आज की नज़र सेनहीं देखना चाहिए।
• हमें लेखकों की भाषा, इरादा और संदर्भ पर बराबर ध्यान देना चाहिए।
इस दृष्टिकोण को “Cambridge School approach” कहा जाता है औरइसका प्रभाव राजनीतिक सिद्धांत, इतिहास और साहित्य अध्ययन पर आज भीहै।
निष्कर्ष
क्वेंटिन स्किनर के निबंध का मूल संदेश यह है कि
• विचारों के इतिहास को समझने का मतलब केवल सिद्धांत गढ़ना नहीं है।
• असली काम यह देखना है कि लेखक ने अपने समय और परिस्थितियों में शब्दोंऔर विचारों का उपयोग करके क्या किया।
हमें चार गलतियों से बचना होगा
• अनाक्रोनिज़्म (anachronism)
• सिद्धांत की मिथक (mythology of doctrines)
• संगति की मिथक (mythology of coherence)
• भविष्यवादी व्याख्या (mythology of prolepsis)
• स्किनर के अनुसार, अगर हम इनसे बचें और लेखक की मंशा को समझें, तभी हमइतिहास में विचारों को सही अर्थ में समझ पाएँगे।