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विमर्श: क्या राजनीतिक दर्शन वास्तव में मृत था?

Death of Political Philosophy: Peter Laslett, Alan Haworth, Brian Barry और John Rowls

परिचय

इस लेख में बीसवीं सदी की राजनीतिक दर्शन के बारे में चर्चा की गई है, जिसमें यह बताया गया है कि कैसे पीटर लासलेट ने 1956 में कहा था कि “फिलहाल, राजनीतिक दर्शन मृत है”। इसके बाद, इसायाह बर्लिन ने 1962 में यह दावा किया कि बीसवीं सदी में “कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक दर्शन का काम” नहीं था, इसके बाद John Rawls जैसे दार्शनिकों द्वारा इसे पुनर्जीवित किया गया।

यह लेख इसका उत्तर खोजने का प्रयास करेगा कि राजनीतिक दर्शन वास्तव में मृत था या नहीं? इसके साथ ही लेख राजनीतिक दर्शन (Political Philosophy) के उतार-चढ़ाव के मुख्य कारणों तथा प्रभावों का भी विश्लेषण करेगा।

Death of Political Philosophy

  • बीसवीं सदी के आरम्भ में, राजनीतिक दर्शन (Political Philosophy) को एक प्रकार से मृतप्राय या निष्क्रिय घोषित कर दिया गया था। Peter Laslett (1956) ने कहा कि “राजनीतिक दर्शन फिलहाल मृत है,” और उनके इस विश्लेषण को अन्य प्रमुख विचारकों जैसे Philip Pettit, Alan Haworth, और Brian Barry का भी समर्थन मिला।

  • लासलेट के अनुसार, लॉजिकल पॉजिटिविज़्म और साधारण-भाषा दर्शन के उदय ने राजनीतिक दर्शन को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
  • कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक दार्शनिक जैसे बर्ट्रेंड रसेल और अन्य ने इस समय में काम किया, लेकिन उनका काम मुख्यधारा में नहीं आया।
  • इस समयकाल को लासलेट, बर्लिन, आदि कहते है, कि राजनीतिक दर्शन यदि मृत नहीं था, तो यह निश्चित रूप से बीमार और कमजोर था।

Reason of Death of Political Philosophy

  • आदर्शवाद की पतनशीलता और तार्किक प्रत्यक्षवाद (Logical Positivism) तथा सामान्य भाषा दर्शन (Ordinary Language Philosophy) की बढ़ती लोकप्रियता।
  • बर्ट्रेंड रसेल और अन्य विश्लेषणात्मक दार्शनिक उस समय यह मानते थे कि केवल वही बातें मायने रखती हैं जो तथ्यात्मक रूप से सत्यापित (empirically verifiable) हों या तार्किक रूप से सही (analytically true) हों। नैतिक या राजनीतिक मूल्य-निर्णय इन मानकों को अर्थहीन (meaningless) या केवल भावनात्मक अभिव्यक्तियाँ मान लिया गया।
  • Ayer जैसे दार्शनिकों ने तो सीधे कहा कि मूल्य निर्णय “केवल अनुमोदन या अस्वीकृति के भाव” हैं, न कि कोई वास्तविक तथ्य।
  • इसी संदर्भ मेंD. Weldon ने अपनी पुस्तक The Vocabulary of Politics (1953) में लिखा कि “राजनीतिक विचार nonsensical (बकवास) हैं क्योंकि उनके उत्तर अनुभवजन्य रूप से नहीं दिए जा सकते।”
  • दो विश्व युद्ध, होलोकॉस्ट, परमाणु बम, और उपनिवेशवाद जैसे गंभीर मुद्दे सामने आए, लेकिन राजनीतिक दार्शनिकों ने इन पर सोचने और लिखने की कोशिश नहीं की। इससे लोगों को लगा कि राजनीतिक दर्शन व्यर्थ है।
  • उस समय के विद्वान राजनीति को एक “विज्ञान” की तरह देखने लगे। वे सिर्फ आंकड़ों और तथ्यों पर ध्यान देने लगे और गहराई से नैतिक या दार्शनिक सोच पर नहीं। इससे भी राजनीतिक दर्शन को नुक़सान हुआ।
  • परन्तु कुछ चिंतक जैसे कि Karl Popper, Isaiah Berlin, Friedrich Hayek, और Hannah Arendt सक्रिय थे।

राजनीतिक दर्शन अपने समय का निष्क्रिय दर्शक बन गया था, क्योंकि दार्शनिकों ने मूल्य आधारित प्रश्नों को अवैज्ञानिक मानकर त्याग दिया था। — (Matravers, 2007)

राजनीतिक दर्शन की मृत्यु से पुनर्जन्म: जॉन रॉल्स

1971 में जॉन रॉल्स की किताब A Theory of Justice ने राजनीतिक दर्शन की मृत्यु के विचार को पूरी तरह बदल दिया। यह पुस्तक आधुनिक राजनीतिक दर्शन का पुनर्जागरण बन गई और रॉल्स को आधुनिक युग का प्लेटो कहा जाने लगा। A Theory of Justice ने प्लेटो, लॉक, रूसो और कांट की परंपरा में एक नई शुरुआत की।

रॉल्स के राजनीतिक दर्शन का केंद्र

  • न्याय क्या है?
  • Original Position और Veil of Ignorance

न्याय क्या है?

  • जॉन रॉल्स का न्याय का सिद्धांत “न्याय के रूप में निष्पक्षता” पर आधारित है। यह सिद्धांत इस विचार पर केंद्रित है कि न्याय के सिद्धांतों का चयन एक ऐसे काल्पनिक स्थिति में किया जाना चाहिए, जिसे वह “मूल स्थिति” कहते हैं, जहाँ लोग अपनी व्यक्तिगत जानकारी से अज्ञात होते हैं
  • रॉल्स का “ज्ञान का पर्दा” (veil of ignorance) यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय लेने वाले लोग अपनी सामाजिक स्थिति, जाति, या व्यक्तिगत विशेषताओं के बारे में कुछ नहीं जानते। इससे यह सुनिश्चित होता है कि वे निष्पक्ष और समान सिद्धांतों का चयन करें।
  • रॉल्स का तर्क है कि न्याय के सिद्धांतों को उन नैतिक निर्णयों के खिलाफ परखा जाना चाहिए, जिन पर हमें सबसे अधिक विश्वास है। यह प्रक्रिया “प्रतिबिंबित संतुलन” (reflective equilibrium) कहलाती है, जिसमें हम अपने नैतिक विचारों को व्यवस्थित करते हैं और उन्हें न्याय के सिद्धांतों के साथ समन्वयित करते हैं।
  • रॉल्स के अनुसार, न्याय का मुख्य विषय “समाज की मूल संरचना” है, जिसमें वह उन वस्तुओं (जैसे “प्राथमिक वस्तुएं”) का उल्लेख करते हैं, जो न्याय के सिद्धांतों के अंतर्गत आती हैं। यह दृष्टिकोण न्याय को एक व्यापक सामाजिक संदर्भ में देखने की अनुमति देता है।
  • रॉल्स का न्याय का सिद्धांत केवल एक नैतिक सिद्धांत नहीं है, बल्कि यह समाज में समानता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का एक साधन है। वह यह मानते हैं कि न्याय का उद्देश्य सभी व्यक्तियों के लिए समान अवसर और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।

Original Position और Veil of Ignorance

Veil of Ignorance (ज्ञान का पर्दा) एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय लेने वाले लोग अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं (जैसे जाति, लिंग, या आर्थिक स्थिति) के बारे में अज्ञात रहें। इसका उद्देश्य यह है कि लोग निष्पक्षता के सिद्धांतों का चयन करें, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे भविष्य में किस स्थिति में होंगे।

ज्ञान का पर्दा यह सुनिश्चित करता है कि लोग अपने व्यक्तिगत हितों को ध्यान में रखे बिना न्याय के सिद्धांतों का चयन करें। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि सभी व्यक्तियों के लिए समान अवसर और संसाधनों की उपलब्धता हो

रॉल्स का तर्क है कि यदि लोग ज्ञान के पर्दे के पीछे होते हैं, तो वे ऐसे सिद्धांतों का चयन करेंगे जो सभी के लिए न्यायपूर्ण और निष्पक्ष होंगे। यह दृष्टिकोण न्याय के सिद्धांतों को एक व्यापक सामाजिक संदर्भ में देखने की अनुमति देता है।

रॉल्स की मूल स्थिति और ज्ञान का पर्दा न्याय के सिद्धांतों के चयन में निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण हैं। ये अवधारणाएँ राजनीतिक दर्शन में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रस्तुत करती हैं, जो समाज में न्याय और समानता की दिशा में एक ठोस आधार प्रदान करती हैं।

उन्होंने दो न्याय सिद्धांत दिए

  1. समान स्वतंत्रता सिद्धांत: सभी को समान मौलिक अधिकार मिलें।
  2. अंतर सिद्धांत (Difference Principle): असमानताएं केवल तब उचित हैं जब वे सबसे कमज़ोर के लिए लाभकारी हों।
  • जब अमेरिका और यूरोप में राजनीतिक विज्ञान केवल empirical data और behavioralism पर केंद्रित था। मूल्य आधारित (normative) सोच को अनवैज्ञानिक माना जाता था।
  • तब रॉल्स ने इस सोच को चुनौती दी और दर्शन को नैतिक दृष्टिकोण के साथ पुनः राजनीतिक विज्ञान में स्थापित किया।

जॉन रॉल्स की A Theory of Justice ने राजनीतिक दर्शन में क्रांति ला दी, लेकिन उनकी सोच निर्विवाद नहीं रही। कई दार्शनिकों और विचारधाराओं ने उनके सिद्धांतों की तीखी आलोचना की।

रॉल्स के सिद्धांतों की प्रमुख आलोचनाएँ

  • रॉबर्ट नोज़िक ने अपनी पुस्तक Anarchy, State and Utopia (1974) में रॉल्स के Difference Principle की आलोचना करते हुए कहा कि संपत्ति का पुनर्वितरण व्यक्ति की स्वायत्तता और मेहनत का अपमान है। उनके अनुसार, कराधान जबरन श्रम के समान है।
  • दूसरी ओर, कम्युनिटेरियन विचारकों जैसे माइकल सैंडल, मैकिन्टायर और चार्ल्स टेलर ने आरोप लगाया कि रॉल्स का “Original Position” व्यक्ति को उसकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान से अलग करके एक अमूर्त इकाई में बदल देता है, जो यथार्थ से दूर है। वे मानते हैं कि नैतिक जिम्मेदारियाँ केवल “चयनित” नहीं होतीं, बल्कि वे सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों से जुड़ी होती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, उपयोगितावादी आलोचना यह कहती है कि रॉल्स ने समाज की “कुल भलाई” को त्याग कर केवल कमजोर वर्ग पर ज़ोर दिया, जिससे व्यापक सामाजिक संतुलन उपेक्षित हो गया।
  • यथार्थवादी दार्शनिकों जैसे माइकल वाल्ज़र ने रॉल्स के आदर्शवादी मॉडल को अव्यावहारिक बताते हुए कहा कि राजनीति में निर्णय कभी भी “veil of ignorance” जैसी काल्पनिक स्थिति में नहीं लिए जाते। उन्होंने रॉल्स पर वास्तविक सत्ता-संरचनाओं और संघर्षों की अनदेखी का आरोप लगाया।
  • अंततः, कुछ आलोचकों ने यह भी प्रश्न उठाया कि क्या विविध सांस्कृतिक, धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण वाले समाजों में रॉल्स के सिद्धांतों पर सार्वभौमिक सहमति संभव है? इन सभी आलोचनाओं के बावजूद, रॉल्स के कार्यों ने राजनीतिक दर्शन में व्यापक विमर्श और बहस को जन्म दिया और यहीं से उनकी स्थायी महत्ता सिद्ध होती है।

 पुस्तके 

राजनीतिक दर्शन और न्याय सम्बंधित पुस्तके

  1. John Rawls – A Theory of Justice (1971), Political Liberalism (1993), Collected Papers
  2. Robert Nozick – Anarchy, State and Utopia (1974)
  3. Brian Barry – The Liberal Theory of Justice, Justice as Impartiality, Why Social Justice Matters
  4. Samuel Freeman – Justice and the Social Contract
  5. Amartya Sen – Equality of What?, Utilitarianism and Beyond (co-edited with B.A.O. Williams)
  6. Ronald Dworkin – What is Equality?, The Original Position
  7. T. M. Scanlon – What We Owe to Each Other, Contractualism and Utilitarianism
  8. Michael Sandel – Liberalism and the Limits of Justice, Liberalism and its Critics
  9. G. A. Cohen – On the Currency of Egalitarian Justice
  10. David Gauthier – Morals by Agreement
  11. H. L. A. Hart – The Concept of Law, Rawls on Liberty and Its Priority

नारीवाद और बहुलतावाद (Feminism & Multiculturalism) सम्बंधित पुस्तके

  1. Carole Pateman – The Disorder of Women
  2. Susan Okin – Justice, Gender, and the Family
  3. Catharine MacKinnon – Toward a Feminist Theory of the State
  4. Nancy Fraser – Rethinking Recognition
  5. Iris Marion Young – Justice and the Politics of Difference
  6. E. Spelman – Inessential Women
  7. C. Willet (ed.) – Theorizing Multiculturalism
  8. David Goldberg (ed.) – Multiculturalism: A Critical Reader

राजनीतिक सिद्धांत और इतिहास सम्बंधित पुस्तके

  1. Hannah Arendt – The Origins of Totalitarianism, The Human Condition
  2. Antonio Gramsci – Selections from the Prison Notebooks
  3. Michel Foucault – Discipline and Punish, Power/Knowledge
  4. Leo Strauss – Natural Right and History
  5. Michael Walzer – Spheres of Justice
  6. Charles Taylor – Human Agency and Language
  7. Alasdair MacIntyre – After Virtue, Whose Justice? Which Rationality?
  8. Peter Laslett – Philosophy, Politics and Society (ed.)

समकालीन संदर्भ और पाठ्य सामग्री सम्बंधित पुस्तके

  1. Will Kymlicka – Contemporary Political Philosophy, Multicultural Citizenship
  2. Andrew Mason – Equality of Opportunity
  3. Steven Lukes – Power: A Radical View
  4. Wendy Brown – States of Injury
  5. Peter Singer (ed.) – A Companion to Ethics
  6. Goodin & Pettit (eds.) – A Companion to Contemporary Political Philosophy
  7. Dryzek, Honig, Phillips (eds.) – The Oxford Handbook of Political Theory
  8. T. Ball and R. Bellamy (eds.) – The Cambridge History of Twentieth Century Political Thought

स्रोत: The Routledge Companion to Twentieth-Century Philosophy का अध्याय Twentieth-Century Political Philosophy

 

 

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