मानव सभ्यता के इतिहास में संकट और संघर्ष अक्सर ऐसे क्षण लेकर आते हैं, जब दुनिया को दिशा देने वाले महान विचारक और दार्शनिक सामने आते हैं। 19वीं और 20वीं शताब्दी के मोड़ पर भारत ने ऐसे ही दो महापुरुषों को जन्म दिया – स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी। इन दोनों ने न केवल भारत को नई चेतना दी, बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति, सहिष्णुता और वैश्विक भाईचारे का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
विवेकानंद का सार्वभौमिक संदेश
1893 में शिकागो की विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का संबोधन आधुनिक युग का एक ऐतिहासिक क्षण था। उनकी वाणी – “सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका” – ने पूरी मानवता को यह अहसास कराया कि धर्म का असली उद्देश्य विभाजन नहीं, बल्कि एकता है।
- विवेकानंद ने यह स्पष्ट किया कि सत्य केवल किसी एक धर्म का बंधक नहीं है, बल्कि सभी धर्मों की मान्यता आवश्यक है।
- उन्होंने भारत की उस परंपरा को सामने रखा, जिसने सहिष्णुता और स्वीकार्यता को सर्वोच्च मूल्य माना है।
- यह विचार पश्चिमी जगत की संकीर्ण धारणाओं से अलग था, और इसने अंतर–सांस्कृतिक संवाद व विविधता की स्वीकृति की मजबूत नींव रखी।
उनका संदेश केवल दार्शनिक चिंतन नहीं था, बल्कि यह इस बात का आह्वान था कि अगर दुनिया को शांति चाहिए, तो उसे धर्म, संस्कृति और पहचान की विविधताओं को गले लगाना होगा।
स्वामी विवेकानंद का योगदान
दार्शनिक और वैचारिक योगदान
- 1893, शिकागो विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषण – “Sisters and Brothers of America” → सार्वभौमिक भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश।
- अद्वैत वेदांत और व्यावहारिक वेदांत (Practical Vedanta) का प्रचार → सामाजिक सेवा = धार्मिक कर्तव्य।
- रामकृष्ण मिशन (1897) की स्थापना – शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण हेतु।
- भारतीय युवाओं को “उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत” का संदेश।
- भारत के पुनर्जागरण (Indian Renaissance) और आधुनिक राष्ट्रवाद के बौद्धिक आधार को मज़बूत किया।
राजनीतिक महत्व
- विवेकानंद का विचार: आध्यात्मिक राष्ट्रवाद (Spiritual Nationalism)।
- पश्चिमी भौतिकवाद और भारतीय अध्यात्म का समन्वय।
- सामाजिक सुधार पर बल – जातिवाद और संकीर्णता का विरोध।
- भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी विचारधारा ने प्रेरणा दी (खासतौर पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस, अरविंदो आदि को)।
गांधी का सत्य और अहिंसा का प्रयोग
विवेकानंद के लगभग एक दशक बाद, 1906 में दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। यह मात्र राजनीतिक संघर्ष नहीं था, बल्कि एक नैतिक क्रांति थी, जिसमें सत्य (truth-force) और अहिंसा (non-violence) को संघर्ष के हथियार बनाया गया।
- गांधी का सत्याग्रह यह सिखाता है कि अन्याय का प्रतिकार हिंसा से नहीं, बल्कि नैतिक साहस और सहनशीलता से किया जा सकता है।
- इस दर्शन ने न केवल भारत की स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी, बल्कि विश्व के अन्य आंदोलनों – जैसे अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर का सिविल राइट्स मूवमेंट और अफ्रीका में नेल्सन मंडेला का रंगभेद विरोधी संघर्ष – को भी प्रेरणा दी।
- गांधी का यह दृष्टिकोण आज भी बताता है कि वैश्विक शांति केवल समझदारी और मेल–मिलाप से ही संभव है, प्रभुत्व या हिंसा से नहीं।
महात्मा गांधी का योगदान
दार्शनिक और राजनीतिक योगदान
- सत्य और अहिंसा (Truth and Non-violence) – उनके राजनीतिक दर्शन का आधार।
- दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (1906) का प्रयोग – अन्याय और भेदभाव के ख़िलाफ़।
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सत्याग्रह और असहयोग के प्रयोग:
- चंपारण सत्याग्रह (1917)
- खेड़ा सत्याग्रह (1918)
- असहयोग आंदोलन (1920)
- दांडी मार्च और नमक सत्याग्रह (1930)
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
- उनका लोकतांत्रिक विचार: सत्ता जनता से आती है, राज्य की शक्ति नैतिक वैधता पर आधारित है।
सामाजिक और नैतिक योगदान
- रचनात्मक कार्यक्रम: खादी, ग्रामोद्योग, हरिजन उत्थान, बुनियादी शिक्षा (Nai Talim)।
- सर्वोदय (Welfare of All) का दर्शन → व्यक्तिगत और सामुदायिक कल्याण का संगम।
- ट्रस्टीशिप का सिद्धांत: पूँजीपति और श्रमिकों के बीच संतुलन।
- गांधी का दृष्टिकोण: राजनीति = नैतिकता का विस्तार।
21वीं सदी में प्रासंगिकता
आज की दुनिया कई तरह की चुनौतियों से घिरी हुई है – आतंकवाद, धार्मिक उग्रवाद, जलवायु परिवर्तन, असमानता और युद्ध। ऐसे समय में विवेकानंद और गांधी के विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।
- विवेकानंद हमें विविधता में एकता और समानता में गरिमा का संदेश देते हैं।
- गांधी हमें सिखाते हैं कि संघर्ष चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे शांतिपूर्ण तरीक़े से हल किया जा सकता है।
- भारत की यही अनूठी भूमिका – यानी सहिष्णुता, बहुलवाद और नैतिक मूल्यों का मार्ग – दुनिया को एक टिकाऊ वैश्विक सामंजस्य की ओर ले जाने की क्षमता रखता है।
निष्कर्ष
विवेकानंद और गांधी की शिक्षाएँ केवल ऐतिहासिक धरोहर नहीं हैं, बल्कि वे आज की दुनिया की नैतिक और आध्यात्मिक ज़रूरत हैं।
उनके विचार हमें बताते हैं कि –
- वैश्विक शांति केवल तकनीक या राजनीति से नहीं, बल्कि मानवता के साझा मूल्यों से संभव है।
- जब तक दुनिया सहिष्णुता, संवाद और अहिंसा को नहीं अपनाएगी, तब तक संघर्ष और विभाजन जारी रहेंगे।
इसलिए भारत की यह विरासत पूरी मानवता के लिए एक आशा की किरण है, जो हमें वैश्विक सामंजस्य और शांति की राह पर ले जा सकती है।