वैश्वीकरण, जिसने विश्व को एक वैश्विक बाजार और सांस्कृतिक मंच के रूप में एकीकृत किया, अब क्षेत्रीयता की ओर बदलाव देख रहा है। यह बदलाव कई कारकों से प्रेरित है:
1. आर्थिक स्वायत्तता: देश अब स्थानीय उत्पादन और आत्मनिर्भरता पर ध्यान दे रहे हैं, ताकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता कम हो। उदाहरण के लिए, भारत की “आत्मनिर्भर भारत” पहल इस दिशा में एक कदम है।
2. भू-राजनीतिक तनाव: बढ़ते व्यापार युद्धों और क्षेत्रीय संघर्षों ने देशों को अपने पड़ोसियों के साथ मजबूत क्षेत्रीय गठबंधन बनाने के लिए प्रेरित किया है, जैसे कि दक्षिण एशिया में सार्क या आसियान देशों का सहयोग।
3. सांस्कृतिक पुनर्जनन: वैश्वीकरण के एकरूपीकरण के जवाब में, कई समुदाय अपनी स्थानीय संस्कृति, भाषा और परंपराओं को पुनर्जनन की ओर बढ़ रहे हैं।
4. पर्यावरणीय चिंताएँ: वैश्विक व्यापार के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए, क्षेत्रीय व्यापार और स्थानीय संसाधनों का उपयोग बढ़ रहा है।
हालांकि, यह बदलाव चुनौतियों के बिना नहीं है। क्षेत्रीयता से व्यापार में बाधाएँ, सीमित बाजार पहुंच और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में कमी आ सकती है। फिर भी, यह स्वायत्तता और स्थानीय पहचान को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है।
वैश्वीकरण से क्षेत्रीयता की ओर बदलाव के भारत में कुछ उदाहरण:
1. आत्मनिर्भर भारत अभियान: भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया यह अभियान स्थानीय विनिर्माण और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, “मेक इन इंडिया” के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा उपकरणों का स्थानीय उत्पादन बढ़ा है।
2. क्षेत्रीय व्यापार समझौते: भारत ने दक्षिण एशियाई देशों के साथ व्यापार को मजबूत करने के लिए सार्क (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC) जैसे क्षेत्रीय संगठनों पर ध्यान केंद्रित किया है। जैसे, भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता।
3. सांस्कृतिक पुनर्जनन: क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों को बढ़ावा देने के लिए, जैसे कि हिंदी, तमिल, या बंगाली साहित्य और स्थानीय उत्सवों (जैसे पोंगल, बैसाखी) को प्रोत्साहन, वैश्विक संस्कृति के प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास है।
4. स्थानीय कृषि और खाद्य सुरक्षा: “फार्म-टू-टेबल” जैसी पहल और क्षेत्रीय जैविक उत्पादों (जैसे हिमाचल के सेब या असम की चाय) को बढ़ावा देना, वैश्विक आयात पर निर्भरता को कम करता है।
5. क्षेत्रीय स्टार्टअप और उद्यम: स्थानीय स्टार्टअप्स, जैसे कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने वाली कंपनियाँ (उदाहरण: पेटीएम), क्षेत्रीय जरूरतों को पूरा करने पर केंद्रित हैं।
क्षेत्रीय पर्यावरण नीतियाँ भारत में वैश्वीकरण से क्षेत्रीयता की ओर बदलाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये नीतियाँ स्थानीय पर्यावरणीय चुनौतियों को संबोधित करने और सतत विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं। यहाँ कुछ उदाहरण और विशेषताएँ हैं:
1. जल संरक्षण और प्रबंधन:
• जल शक्ति अभियान: भारत सरकार ने क्षेत्रीय स्तर पर जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए इस अभियान को शुरू किया। उदाहरण के लिए, राजस्थान में वर्षा जल संचयन और तालाबों का पुनर्जनन स्थानीय समुदायों के सहयोग से किया जा रहा है।
• नमामि गंगे: गंगा नदी की सफाई और संरक्षण के लिए यह नीति उत्तर भारत के राज्यों में लागू की गई, जिसमें स्थानीय प्रशासन और समुदाय शामिल हैं।
2. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा:
• सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाएँ: गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने क्षेत्रीय स्तर पर सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं को प्राथमिकता दी है। उदाहरण के लिए, गुजरात का चारणका सौर पार्क स्थानीय ऊर्जा जरूरतों को पूरा करता है।
• क्षेत्रीय लक्ष्य: कई राज्य, जैसे कर्नाटक, स्थानीय स्तर पर 100% नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग के लिए अपनी नीतियाँ बना रहे हैं।
3. वन संरक्षण और जैव-विविधता:
• अरण्य संस्कृति: पूर्वोत्तर भारत, जैसे असम और मेघालय, में स्थानीय समुदायों द्वारा वन संरक्षण और जैव-विविधता की रक्षा के लिए पारंपरिक ज्ञान का उपयोग किया जा रहा है।
• मध्य प्रदेश का वन नीति मॉडल: यह राज्य स्थानीय जनजातियों के साथ मिलकर वनों की रक्षा और पुनर्जनन पर काम कर रहा है।
4. कृषि और जैविक खेती:
• सिक्किम का जैविक मॉडल: सिक्किम भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य है, जो रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने और स्थानीय पर्यावरण को संरक्षित करने की नीति पर आधारित है।
• स्थानीय बीज संरक्षण: महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्यों में पारंपरिक बीजों को संरक्षित करने के लिए क्षेत्रीय नीतियाँ लागू की गई हैं।
5. प्रदूषण नियंत्रण:
• दिल्ली की वायु प्रदूषण नीति: दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा और पराली जलाने पर रोक जैसी नीतियाँ लागू की हैं।
• स्थानीय अपशिष्ट प्रबंधन: केरल और कर्नाटक में स्थानीय निकायों ने कचरा पृथक्करण और रीसाइक्लिंग के लिए क्षेत्रीय योजनाएँ शुरू की हैं।
लाभ:
• ये नीतियाँ स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाती हैं और पर्यावरणीय संसाधनों का स्थानीय उपयोग सुनिश्चित करती हैं।
• क्षेत्रीय समस्याओं, जैसे सूखा या बाढ़, के लिए अनुकूलित समाधान प्रदान करती हैं।
चुनौतियाँ:
• क्षेत्रीय नीतियों में समन्वय की कमी राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव को कम कर सकती है।
• संसाधनों और जागरूकता की कमी छोटे क्षेत्रों में कार्यान्वयन को कठिन बनाती है।