संयुक्त राष्ट्र के 80वें स्थापना वर्ष पर वैश्विक शांति और सुरक्षा की चुनौतियों के संदर्भ में, शांति और सतत सुरक्षा के लिए बोर्ड (Board of Peace and Sustainable Security) जैसी संस्थागत पहल की जरूरत और उसकी व्यवहारिकता आज पहले कभी भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बदलती प्रकृति, परमाणु हथियारों का प्रसार, क्षेत्रीय संघर्षों की जटिलता और मध्यस्थ संस्थानों की कमज़ोरी ने सुरक्षा और शांति को एक स्थायी प्रक्रिया में बदल दिया है, जहां त्वरित संकट-प्रतिक्रिया से आगे सोचने की आवश्यकता है।
वैश्विक शांति और सुरक्षा: मौजूदा परिप्रेक्ष्य
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्थापित संयुक्त राष्ट्र का मूल उद्देश्य वैश्विक शांति की रक्षा करना और विनाशकारी युद्धों को रोकना था। समय के साथ अंतरराष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप में बड़ा बदलाव आया है – राष्ट्रों के बीच असमानता, राजनीतिक विचारधाराओं में टकराव, क्षेत्रीय हितों का टकराव तथा संसाधनों पर कब्ज़े के लिए होड़ के कारण अक्सर स्थायी शांति असंभव सी प्रतीत होती है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की संरचना और कार्यशैली एक ‘संकट-प्रतिक्रिया केंद्रित’ मॉडल के तहत आगे बढ़ी है, जिसमें जब कोई बड़ा संकट सामने आता है तो कार्रवाई होती है, लेकिन संकट के हटने के बाद स्थायी समाधान पर पूरी तरह ध्यान नहीं दिया जाता।
शांति की प्रक्रियाएं अक्सर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा या शक्ति के असमान वितरण की वजह से टूट जाती हैं। यही वजह है कि कई बार देशों में शांति-बिंदु तक पहुंचने के बाद भी छोटे-छोटे विवाद उभरकर पूरी प्रक्रिया को फिर संकट में डाल देते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की शांति व्यवस्था की प्रशासनिक कमियाँ
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद आमतौर पर तत्काल हस्तक्षेप और संकट-प्रबंधन के लिए जानी जाती है। हालांकि, इसका स्वरूप अत्यधिक प्रतिक्रियाशील व अस्थायी हो गया है। शांति व्यवस्था (Peacekeeping) का भी मुख्य मकसद शांति बनाए रखना है, लेकिन अधिकांश शांति मिशन स्वायत्त राजनीतिक रणनीति के बिना संचालित होते हैं, जिससे उनका दीर्घकालिक प्रभाव सीमित रह जाता है।
यूएन पीसबिल्डिंग कमीशन (Peacebuilding Commission – PBC) जैसी संस्थाएं संघर्षोत्तर पुनर्गठन के दौरान सहयोग तो करती हैं, लेकिन उनके पास पर्याप्त अधिकार व संसाधन नहीं होते कि वे जटिल परिवर्तनकारी चरणों में निर्णायक हस्तक्षेप कर सकें। ऐसे में कई बार शांति समझौते अधूरे रह जाते हैं, संस्थागत स्मृति की कमी देखी जाती है, और संघर्ष-ग्रस्त राज्य अस्थिरता की ओर लौट जाते हैं।
सुधार का विवाद: संरचनात्मक बनाम कार्यात्मक दृष्टि
संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में सबसे बड़ी बहस उसकी संरचनात्मक जड़ता को लेकर रही है। सुरक्षा परिषद में सुधार वर्षों से रुका हुआ है, जिससे नए ढांचे के नवाचार की गति कमजोर रही है। ऐसे में एक व्यावहारिक विकल्प – सशक्त, सुपरस्पष्ट और सावधानीपूर्वक कार्यात्मक सुधार – की जरूरत महसूस हुई है।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 22 ‘जनरल एसेंबली’ को सहायक निकायों (subsidiary bodies) की स्थापना का अधिकार देता है। इसी आधार पर BPSS जैसी पहल एक कानूनी, अनुमत और त्वरित सुधार की दिशा में प्रमुख मार्ग खोलती है, जिसमें शक्ति-संतुलन के निरर्थक विवादों में उलझे बिना जरूरी सुधार किए जा सकते हैं।
शांति एवं सतत सुरक्षा के लिए समर्पित बोर्ड (BPSS): परिकल्पना और स्वरूप
BPSS के निर्माण का उद्देश्य UN की शांति संरचना में एक ऐसा समर्पित तंत्र स्थापित करना है, जो संघर्ष या समझौते के बाद की राजनीतिक प्रक्रियाओं को मजबूती दे। BPSS सुरक्षा परिषद की भूमिका को न चुनौती देगा, न ही राज्य-स्वतंत्रता में दखल देगा। इसका फोकस तीन स्तरों पर होगा: राजनीतिक संवाद को बढ़ावा देना, शांति समझौतों के अमल में मदद, क्षेत्रीय कूटनीतिक साझेदारी को सहयोग व दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य बनाए रखना।
इसके साथ ही, BPSS पीसबिल्डिंग कमीशन जैसी संस्थाओं की क्षमताओं को समेटकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में स्मृतिशक्ति, अनुशासन व निरंतरता सुनिश्चित करेगा। यह तंत्र शांति की प्रक्रिया में सरकारों की राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका को सुदृढ़ करेगा, साथ ही क्षेत्रीय संगठनों (जैसे अफ्रीकी यूनियन, आसियान) को सक्रिय साझेदार बनाकर वैश्विक कूटनीति में समावेशी दृष्टिकोण लाएगा।
प्रतिनिधित्व, वैधता, और कार्यक्षमता
BPSS की स्वीकृति और प्रभावशीलता उसके प्रतिनिधित्व और वैधता में निहित होगी। इसके लिए दो दर्जन के आसपास सदस्य-राज्य, निश्चित अवधि के लिए चुनकर, क्षेत्रीय संतुलन बनाएंगे – जिससे ‘elite club’ जैसी जटिलताएं और वीटो व्यवस्था खत्म होगी, और सभी हिस्सों (अफ्रीका, एशिया, यूरोप, लैटिन अमेरिका, पश्चिम एशिया आदि) की आवाज को महत्व मिले। क्षेत्रीय संगठन और नागरिक समाज की परामर्शदाता भूमिका भी सुनिश्चित की जाएगी, जिससे BPSS लोगों और सरकारों के बीच सेतु बनकर कार्य कर सके।
सतत सुरक्षा का समावेशी सिद्धांत
BPSS की नींव सतत सुरक्षा की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें युद्धविराम या बल-प्रदर्शन के बजाय प्रशासन में समावेशन, सार्वजनिक विश्वास, जिम्मेदार शासन और स्थानीय स्वामित्व जैसी संस्थागत खूबियां अधिक महत्वपूर्ण मानती हैं।
सतत शांति क्रमशः स्थापित होता है – तेज़ परिणाम की अपेक्षा लचीली, सर्वसम्मत और समय के साथ प्रबल होती राजनीतिक व्यवस्थाएं ही सच्ची सुरक्षा दे सकती हैं। इस नजरिए में शांति केवल एक घटना नहीं, बल्कि दीर्घकालिक राजनीतिक परियोजना है।
कार्यपद्धति और व्यावहारिक संचालन
BPSS का उद्देश्य और कार्यशैली केवल संवादात्मक नहीं, बल्कि व्यावहारिक और समीक्षा आधारित होगी। यह शांति मिशनों को समयपूर्व या अपूर्ण रूप से समाप्त होने से रोकेगा, उसे आगे तक व्यवस्थित रूप से जारी रखेगा। BPSS महासचिव, सुरक्षा परिषद, और पीसबिल्डिंग कमीशन के साथ समन्वय में कार्य करेगा, जिससे उनके प्रयासों और रणनीति के बीच सामंजस्य बना रहेगा।
यह ढाँचा कमजोर देशों और युवाव्यवस्थाओं पर विशेष ध्यान देगा, जिससे शांति उपस्थिति बनी रहे – खासकर वहां, जहां राजनीतिक संस्थान अभी नव्य हैं या संघर्ष के तुरंत बाद सुरक्षित शासन की जरूरत है। BPSS दीर्घकालिक राजनीतिक रणनीति और प्रशासनिक सहयोग को एकीकृत करेगा, जिससे बार-बार संघर्ष दोहरने की संभावना कम हो।
व्यापक बदलाव: जिम्मेदार और व्यावहारिक सुधार
UN शांति प्रणाली के सामने सबसे बड़ा संकट है – बदलाव या ठहराव के बीच चयन। BPSS, न तो असंभव संरचनात्मक सुधार का मोह रखता है, न ही वर्तमान व्यवस्था के ठहराव को मान्यता देता है। यह एक साहसिक पर व्यावहारिक नवाचार है, जो विश्व संस्थानों को नए ढंग से जिम्मेदारी के साथ विकसित होने का अवसर देता है।
BPSS यद्यपि सुरक्षा परिषद की शक्ति-संरचना को नहीं बदलता, लेकिन कार्यप्रणाली में स्थायित्व और अनुशासन जोड़कर शांति-मार्ग के सबसे बड़े दोष – राजनीतिक निरंतरता की अनुपस्थिति – को दूर करता है।
निष्कर्ष
BPSS कोई चमत्कारी उपाय नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक, तात्कालिक और सैद्धांतिक नवीनता है, जो वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में बहुत जरूरी है। यह न केवल संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की मूल भावना को पुनर्जीवित करता है, बल्कि इसके ज़रिए ‘शांति प्रक्रिया’ को एक सतत, संस्थागत और लोकतांत्रिक स्वरूप भी मिलेगा। BGSS जैसी पहलें ही सतत शांति और सुरक्षा की दिशा में दीर्घकालिक वैश्विक प्रतिबद्धता की सच्ची अगुवाई कर सकती हैं।
निष्कर्षतः, शांति और सतत सुरक्षा के लिए समर्पित बोर्ड आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में जवाबदेही, स्मृति और राजनीतिक अनुशासन की धारा बनी रहे। यह न केवल हमारी पीढ़ी, बल्कि आने वाले युगों के लिए भी एक स्थायी और सुरक्षित वैश्विक व्यवस्था की स्थापना का महत्वपूर्ण कदम है।
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