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संगठन का प्रबंधन हेतु नेतृत्व तथा अभिप्रेरणा का सिद्धांत

Theory of leadership and motivation

किसी भी संगठन की सफलता केवल उसके संसाधनों, योजनाओं या नीतियों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि उस संगठन के नेतृत्व (Leadership) और अभिप्रेरणा (Motivation) की गुणवत्ता पर भी समान रूप से निर्भर करती है। प्रशासनिक और प्रबंधकीय संदर्भ में नेतृत्व संगठन को सही दिशा देने, उसके उद्देश्यों को स्पष्ट करने तथा कर्मचारियों को सामूहिक रूप से कार्य के लिए प्रेरित करने की क्षमता का नाम है। इसी प्रकार, अभिप्रेरणा संगठन के प्रत्येक व्यक्ति को आंतरिक रूप से कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती है, जिससे उत्पादकता, दक्षता और संतुष्टि का स्तर बढ़ता है।
इस प्रकार नेतृत्व और अभिप्रेरणा किसी भी संगठन के दो मूल स्तंभ हैं जो संगठनात्मक व्यवहार और सफलता का आधार निर्मित करते हैं।

संगठन प्रबंधन का अर्थ एवं महत्व

‘प्रबंधन’ (Management) का तात्पर्य संगठन के संसाधनों — मानव, भौतिक, वित्तीय और सूचनात्मक — का समुचित उपयोग कर संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति से है। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें योजना निर्माण, संगठन, निर्देशन, समन्वय और नियंत्रण जैसे कार्य सम्मिलित होते हैं।

प्रबंधन केवल आदेश देने या नियंत्रण करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक प्रक्रिया भी है जिसमें व्यक्ति-व्यक्ति के मध्य सहयोग, संचार और सामूहिकता का विकास होता है। प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य संगठन को एक संगठित, अनुशासित और परिणामोन्मुख दिशा प्रदान करना है।

प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य में नेतृत्व प्रबंधन का एक उपवर्ग माना गया है, क्योंकि एक सक्षम नेता ही संगठन की नीतियों को व्यवहारिक क्रियान्वयन के स्तर तक पहुँचाता है। इसीलिए यह कहा गया है कि –
प्रबंधन सही कार्य करने की कला है, जबकि नेतृत्व सही कार्य चुनने की कला है।

नेतृत्व की संकल्पना

नेतृत्व वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति दूसरों को प्रभावित कर उन्हें संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रेरित करता है।
बर्नार्ड (Chester Barnard) के अनुसार – ‘नेतृत्व का अर्थ व्यक्तियों के व्यवहार को इस प्रकार मार्गदर्शित करने से है कि वे किसी संगठित प्रयास में सक्रिय भागीदारी करें।’

टेरी (George R. Terry) ने कहा – ‘नेतृत्व वह क्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरों को स्वेच्छा से सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है।’

नेतृत्व केवल औपचारिक अधिकार का प्रयोग नहीं है; यह अनुयायियों के विश्वास, संवाद, प्रेरणा और सहयोग पर आधारित एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। एक सच्चा नेता केवल आदेश नहीं देता, बल्कि अपने अनुयायियों को प्रेरणा और दिशा दोनों प्रदान करता है।

नेतृत्व और प्रबंधन में अंतर

यद्यपि नेतृत्व और प्रबंधन एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं, फिर भी दोनों की प्रकृति और उद्देश्य में अंतर है।

क्रमांकतत्वप्रबंधननेतृत्व
1स्वरूपयह संगठन की गतिविधियों को नियंत्रित करने की प्रक्रिया हैयह लोगों को प्रेरित करने की कला है
2आधारऔपचारिक अधिकार एवं पदविश्वास, प्रभाव और व्यक्तित्व
3उद्देश्यदक्षता और नियंत्रणप्रेरणा और परिवर्तन
4दृष्टिकोणयथास्थिति बनाए रखनानवाचार एवं दृष्टि प्रदान करना
5कार्य का प्रकारतकनीकी और प्रशासनिकसामाजिक और मनोवैज्ञानिक

इस प्रकार नेतृत्व प्रबंधन की आत्मा है जो संगठनात्मक संरचना को मानवीय ऊर्जा और दिशा प्रदान करता है।

नेतृत्व के प्रमुख सिद्धांत और विचार

  1. चेस्टर बर्नार्ड का दृष्टिकोण:
    बर्नार्ड ने नेतृत्व को तीन तत्वों पर आधारित बताया — व्यक्ति, अनुयायी और स्थिति। उनके अनुसार नेता का कार्य है:
  • कार्यवाही के साधनों का नियंत्रण,
  • उद्देश्यों का निर्धारण,
  • साधनों का कुशल प्रयोग,
  • समन्वित कार्यवाही की प्रेरणा देना।

बर्नार्ड ने चार प्रमुख गुणों का उल्लेख किया — प्राणशक्ति एवं सहनशक्ति, निर्णायकता, प्रोत्साहकता एवं जिम्मेदारी, तथा बौद्धिक क्षमता।

  1. एम. पी. फॉलेट (Mary Parker Follett):
    उन्होंने नेतृत्व को एक परस्पर संबंध की प्रक्रिया बताया, जिसे उन्होंने Circular Response कहा। नेता समूह को प्रभावित करता है और समूह भी नेता को प्रभावित करता है। उनके अनुसार नेतृत्व का उद्देश्य तालमेल, उद्देश्य की परिभाषा और पूर्वानुमान स्थापित करना है।
  2. फिलिप सेल्जनिक:
    सेल्जनिक ने नेतृत्व को संस्थागत संदर्भ में देखा। उनके अनुसार नेता के कार्य हैं —
  • संस्थागत मिशन एवं भूमिका को परिभाषित करना,
  • संस्थागत अखंडता की रक्षा करना,
  • आंतरिक विवादों का समाधान,
  • संगठनात्मक उद्देश्यों को संस्थागत बनाना।

नेतृत्व की प्रकारिकी (Styles of Leadership)

नेतृत्व की शैलियों को सामान्यतः तीन रूपों में वर्गीकृत किया गया है —

  1. निरंकुश (Autocratic):
    • नेता स्वयं निर्णय लेता है, अनुयायियों से विचार-विमर्श नहीं करता।
    • नियंत्रण और अनुशासन पर बल।
    • लाभ: त्वरित निर्णय, संकट की स्थिति में प्रभावी।
    • हानि: कर्मचारी असंतोष और रचनात्मकता की कमी।
  2. जनतांत्रिक (Democratic):
    • निर्णय में अनुयायियों की भागीदारी।
    • संचार द्विपक्षीय होता है।
    • संगठनात्मक मनोबल और संतुष्टि में वृद्धि।
  3. मुक्त व्यापार शैली (Laissez-faire):
    • नेता केवल मार्गदर्शन करता है, नियंत्रण न्यूनतम होता है।
    • रचनात्मकता को प्रोत्साहन परंतु अनुशासन का अभाव।

नेतृत्व की विचारधाराएँ

  1. विशेषता विचारधारा (Trait Theory):
    • काल: 1900–1940
    • समर्थक: बर्नार्ड, टेरी, एपल्बी, मिलेट आदि।
    • मान्यता: व्यक्ति के विशिष्ट गुण जैसे बुद्धिमत्ता, आत्मविश्वास, निर्णय क्षमता उसे नेता बनाते हैं।
  2. व्यावहारिक विचारधारा (Behavioral Theory):
    • नेता क्या करते हैं और कैसे करते हैं, इस पर ध्यान।
    • 1945 में Ohio State Studies द्वारा ‘Initiating Structure’ और ‘Consideration’ के दो व्यवहारिक आयामों का विश्लेषण।
  3. स्थितिगत विचारधारा (Situational Theory):
    • नेतृत्व एक सार्वभौमिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि परिस्थिति-विशिष्ट है।
    • प्रमुख मॉडल:
      • फ्रेड फीडलर (1967) का Contingency Model
      • मॉर्टिन इवांस रॉबर्ट हाउस (1970–71) का Path–Goal Theory
      • विलियम रेडिन (1970) का Three Dimensional Model

अभिप्रेरणा (Motivation) की संकल्पना

‘अभिप्रेरणा’ शब्द लैटिन शब्द movere से बना है, जिसका अर्थ है ‘गति में लाना’।
यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति को किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आंतरिक रूप से प्रेरित किया जाता है।

राबर्ट ड्यूविन के अनुसार –

‘अभिप्रेरणा वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति को कार्य प्रारंभ करने तथा उसमें निरंतर संलग्न रहने के लिए प्रेरित करती है।’

अभिप्रेरणा एक निरंतर, गतिशील और चक्रीय प्रक्रिया है। एक आवश्यकता की पूर्ति होते ही दूसरी आवश्यकता जन्म लेती है, जिससे यह प्रक्रिया अविराम बनी रहती है।

अभिप्रेरणा की विचारधाराएँ

अभिप्रेरणा के सिद्धांत दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किए गए हैं –

  1. परंपरागत विचारधाराएँ:
    • भय एवं दंड सिद्धांत
    • पुरस्कार सिद्धांत
    • ‘गाजर और डंडा’ (Carrot and Stick) सिद्धांत
  2. आधुनिक विचारधाराएँ:
    • मैक्ग्रेगर का X तथा Y सिद्धांत
    • मैस्लो का आवश्यकता सोपान सिद्धांत
    • आउची का Z सिद्धांत
    • लिकर्ट का प्रबंध पद्धति सिद्धांत
    • हर्जबर्ग का द्विघटक सिद्धांत
    • ब्रुम का प्रत्याशा सिद्धांत

डगलस मैक्ग्रेगर का X और Y सिद्धांत (1960)

मैक्ग्रेगर ने अपनी प्रसिद्ध कृति The Human Side of Enterprise में दो प्रकार के दृष्टिकोण प्रस्तुत किए —

() X सिद्धांत:

  • सामान्य व्यक्ति कार्य से बचना चाहता है।
  • उसे नियंत्रित और दंड से भयभीत कर कार्य कराया जाता है।
  • कर्मचारी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते।
  • सुरक्षा और स्थायित्व को प्राथमिकता देते हैं।

() Y सिद्धांत:

  • कार्य खेल और विश्राम जितना ही स्वाभाविक है।
  • आत्म-नियंत्रण और आत्म-निर्देशन संभव है।
  • उचित परिस्थितियों में व्यक्ति जिम्मेदारी लेने को तत्पर रहता है।
  • व्यक्ति केवल धन से ही नहीं, बल्कि आत्म-संतोष और विकास की भावना से भी प्रेरित होता है।

यह सिद्धांत मानवीय मूल्यों और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर आधारित है तथा आधुनिक संगठनों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।

मैस्लो का आवश्यकता सोपान सिद्धांत

अब्राहम मैस्लो ने मानव आवश्यकताओं को पाँच स्तरों में बाँटा:

  1. भौतिक आवश्यकताएँ – भोजन, वस्त्र, आश्रय।
  2. सुरक्षा आवश्यकताएँ – स्थायित्व, सुरक्षा।
  3. सामाजिक आवश्यकताएँ – मित्रता, संबंध, समूह-स्वीकृति।
  4. सम्मान आवश्यकताएँ – आत्म-सम्मान, पहचान।
  5. स्वयंअभिव्यक्ति (Self-actualization) – सृजनात्मकता और आत्म-विकास की इच्छा।

नेता को अपने कर्मचारियों की आवश्यकताओं के इस क्रम को समझते हुए अभिप्रेरणा के साधन विकसित करने चाहिए।

रेनिस लिकर्ट का प्रबंध पद्धति सिद्धांत

रेनिस लिकर्ट ने अपनी रचना The New Patterns of Management (1961) और The New Ways of Managing Conflict (1976) में चार प्रकार की प्रबंधन शैलियों का वर्णन किया –

  1. शोषणकारी-अधिनायकवादी
  2. दयालु-अधिनायकवादी
  3. परामर्शात्मक
  4. सहभागी

लिकर्ट का मत है कि संगठन में सहभागी प्रबंध शैली (Participative Management) सबसे प्रभावी है क्योंकि यह पारस्परिक विश्वास, संचार और आत्मीयता पर आधारित होती है।

हर्जबर्ग का द्विघटक सिद्धांत (Two-Factor Theory)

फ्रेडरिक हर्जबर्ग ने 1959 में अपने Motivation to Work शोध में यह सिद्धांत प्रस्तुत किया। उन्होंने दो प्रकार के कारकों की पहचान की:

  1. हाइजीन कारक (Hygiene Factors):
    • वेतन, नीति, पर्यवेक्षण, कार्य परिस्थितियाँ।
    • इनकी अनुपस्थिति असंतोष पैदा करती है, परंतु उपस्थिति से संतोष नहीं बढ़ता।
  2. प्रेरक कारक (Motivators):
    • उपलब्धि, पहचान, उत्तरदायित्व, उन्नति।
    • ये कारक वास्तविक प्रेरणा और संतोष प्रदान करते हैं।

ब्रुम का प्रत्याशा सिद्धांत (Expectancy Theory)

विक्टर ब्रुम के अनुसार, व्यक्ति तभी कार्य करने के लिए प्रेरित होता है जब उसे यह विश्वास होता है कि उसका प्रयास वांछित परिणाम लाएगा और परिणाम उसे व्यक्तिगत रूप से लाभकारी होगा।
अर्थात्:
प्रेरणा = प्रत्याशा × उपकरणता × मूल्य

यह सिद्धांत अभिप्रेरणा को तार्किक और गणनात्मक दृष्टिकोण से समझाता है।

अभिप्रेरणा और नेतृत्व का पारस्परिक संबंध

नेतृत्व और अभिप्रेरणा एक-दूसरे के पूरक हैं। एक सशक्त नेता तभी प्रभावी हो सकता है जब वह अपने अनुयायियों को प्रेरित कर सके, और अभिप्रेरणा तभी प्रभावी होगी जब उसे नेतृत्व के माध्यम से दिशा प्राप्त हो।
नेता अपने व्यवहार, दृष्टिकोण और संप्रेषण शैली के माध्यम से कर्मचारियों में उद्देश्य के प्रति निष्ठा, संगठन के प्रति प्रतिबद्धता और कार्य के प्रति संतोष उत्पन्न करता है।

निष्कर्ष

नेतृत्व और अभिप्रेरणा संगठन के प्रबंधन की आत्मा हैं। जहाँ नेतृत्व संगठन को दिशा देता है, वहीं अभिप्रेरणा उस दिशा में गति प्रदान करती है। आधुनिक संगठनात्मक परिवेश में तकनीकी कौशल के साथ-साथ भावनात्मक बुद्धिमत्ता, संवेदनशीलता और सहभागी दृष्टिकोण अत्यंत आवश्यक हैं।
एक आदर्श प्रबंधक वही है जो केवल आदेश देने वाला नहीं, बल्कि प्रेरणा देने वाला भी हो; जो केवल लक्ष्य निर्धारित न करे, बल्कि अपने अनुयायियों में उस लक्ष्य की प्राप्ति की आकांक्षा उत्पन्न करे।

 

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