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संत थॉमस एक्विनास

( Saint Thomas Aquinas)

संत थॉमस एक्विनास मध्यकालीन यूरोप के एक ऐसे महान विचारक, दार्शनिक और धर्मशास्त्री थे जिनकी शिक्षा और दर्शन का प्रभाव न केवल ईसाई धर्म पर पड़ा, बल्कि पश्चिमी राजनीतिक विचार, कानून, नैतिकता और शिक्षा प्रणाली पर भी गहरा असर हुआ। उनका जीवन एक साधारण बालक से लेकर महान धर्मशास्त्र के शिक्षक और “Doctor of the Church” तक की अद्भुत यात्रा है।
थॉमस एक्विनास का जन्म 1225 ई. में इटली के रोकेसेका (Roccasecca) नामक स्थान पर हुआ था, जो कि रोम और नेपल्स के बीच स्थित है। उनका परिवार कुलीन था और समाज में उच्च स्थान रखता था। उनके पिता का नाम “लैंडुल्फ” (Landulf) था जो एक सैन्य अधिकारी और छोटे राज्य के प्रभारी थे। उनकी माँ, “थियोडोरा” (Theodora), एक समृद्ध और धार्मिक महिला थीं।
थॉमस का बचपन धार्मिक वातावरण में बीता। परिवार चाहता था कि वह एक प्रभावशाली पादरी बने, इसलिए उन्हें बहुत कम उम्र में ही मोंटे कैसिनो (Monte Cassino) के बेनिडिक्टाइन मठ (Benedictine Monastery) में भेज दिया गया। यहाँ उन्होंने धार्मिक अनुशासन, अध्ययन और आत्म-नियंत्रण की शुरुआत की।

प्रमुख ग्रंथ

थॉमस एक्विनास ने जीवनभर अध्ययन और लेखन में समय बिताया। उन्होंने कठिन से कठिन धार्मिक और दार्शनिक प्रश्नों को तर्क और व्याख्या द्वारा सरल बनाया।

🔹 उनकी दो सबसे प्रमुख रचनाएँ हैं:

1. Summa Theologiae – यह ईसाई धर्म के सिद्धांतों का एक व्यवस्थित संग्रह है। इसमें उन्होंने विश्वास, नैतिकता, ईश्वर की प्रकृति, कानून, न्याय, और मानव जीवन के उद्देश्य पर विस्तार से लिखा।
2. Summa Contra Gentiles – यह पुस्तक विशेष रूप से गैर-ईसाई दार्शनिकों और धर्मों के लिए लिखी गई थी, जिसमें उन्होंने तर्क के माध्यम से ईसाई विश्वास की रक्षा की।
इसके अलावा उन्होंने बाइबिल पर कई व्याख्याएँ (commentaries) और Disputed Questions (विवादित प्रश्नों) पर शास्त्रार्थ लिखे, जहाँ वे विभिन्न विचारों के पक्ष और विपक्ष को तर्कपूर्वक विश्लेषण करते थे।
1274 ई. में, जब वे एक धार्मिक सभा में भाग लेने जा रहे थे, तब उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और उन्होंने 7 मार्च 1274 को फोसा नोवा (Fossanova) नामक स्थान पर अंतिम सांस ली।

उनकी मृत्यु के 50 साल बाद ही, 1323 में पोप जॉन XXII ने उन्हें “संत” घोषित किया। बाद में उन्हें कैथोलिक चर्च ने Doctor of the Church की उपाधि भी दी यह सम्मान सिर्फ गिने-चुने महान धर्मशास्त्रियों को मिलता है।

मुख्य विचार

1 प्राकृतिक न्याय (Natural Law) का सिद्धांत, नैतिक कानून की नींव

थॉमस एक्विनास का सबसे बड़ा योगदान “Natural Law Theory” है। उनके अनुसार:

ईश्वर ने सृष्टि को एक “नियमबद्ध व्यवस्था” (ordered system) के अनुसार बनाया है।
मनुष्य की अंतर्निहित बुद्धि (human reason) ईश्वर के इन नियमों को समझने में सक्षम है।
इसलिए मनुष्य खुद निर्णय ले सकता है कि क्या नैतिक है और क्या अनैतिक।

राजनीति विज्ञान में महत्व:

यह विचार आधुनिक लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था की नींव है।
Natural Law से ही Human Rights (मानवाधिकार), Rule of Law (कानून का शासन), और Moral Legitimacy of Power (सत्ता की नैतिक वैधता) जैसे सिद्धांत विकसित हुए।

2. कानून और न्याय के प्रकार

एक्विनास ने कानून को 3 मुख्य वर्गों में बाँटा:

1. Eternal Law (शाश्वत कानून) – ईश्वर का आदेश, जो पूरे ब्रह्मांड को संचालित करता है।
2. Natural Law (प्राकृतिक कानून) – वह जो मनुष्य की बुद्धि समझ सकती है, जैसे कि “अच्छा करो, बुरे से बचो”।
3. Human Law (मानव कानून) – समाज द्वारा बनाए गए कानून, जो प्राकृतिक कानून पर आधारित होने चाहिए।

राजनीतिक महत्व:

यदि कोई मानवनिर्मित कानून नैतिक नहीं है या प्राकृतिक कानून के विरुद्ध है, तो एक्विनास उसे “अन्यायपूर्ण कानून” (unjust law) मानते हैं।
इस विचार ने आगे चलकर नागरिक अवज्ञा (civil disobedience) जैसे आंदोलनों को वैचारिक समर्थन दिया (जैसे गांधी, मार्टिन लूथर किंग)।

3. राज्य की नैतिक भूमिका (Moral Role of State)

एक्विनास ने माना कि राज्य (state) का मुख्य उद्देश्य सिर्फ सत्ता चलाना नहीं है, बल्कि:

नैतिक व्यवस्था बनाए रखना,
सामान्य भलाई (common good) को बढ़ावा देना,
और नागरिकों को “नैतिक और धार्मिक रूप से अच्छा जीवन” जीने में मदद करना है।

राजनीतिक विज्ञान में योगदान:

उन्होंने राज्य को धर्म से पूरी तरह अलग नहीं किया, बल्कि एकसहायक संस्था माना जो लोगों को नैतिक पूर्णता की ओर ले जा सकती है।
यह विचार कल्याणकारी राज्य (welfare state) की अवधारणा में दिखता है जहाँ राज्य केवल सत्ता नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम होता है।

4. धर्म और राजनीति का संबंध (Faith & Politics)

थॉमस ने कहा कि धर्म और तर्क दोनों के बीच संतुलन जरूरी है।
उन्होंने पोप (धर्म) और राजा (राजनीति) के संबंध को इस तरह देखा कि राजा को न्यायसंगत शासन चलाना है, लेकिन ईश्वर के अधीन रहकर।

राजनीतिक प्रयोग

यह विचार “Dual Authority” को जन्म देता है धर्म और राज्य दोनों की भूमिका, पर अलग-अलग क्षेत्र में।
आधुनिक सेक्युलर राज्य इसी सोच की विकसित रूप है, जहाँ धर्म और राजनीति अलग रहते हैं, पर एक-दूसरे के मूल्यों का सम्मान करते हैं।

5. तर्क (Reason) और नैतिक शासन (Moral Governance)

थॉमस के अनुसार कोई भी शासक तब तक वैध (legitimate) है जब तक वह नैतिक मूल्यों पर आधारित शासन करता है।
यदि राज्य अन्यायपूर्ण है, तो लोगों का विरोध करने का अधिकारबनता है।

राजनीतिक प्रभाव

यह विचार लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और मूल अधिकारों की रक्षा के लिए आधार बना।
Machiavelli जैसे बाद के राजनीतिक विचारकों ने इस नैतिक दृष्टिकोण से हटकर यथार्थवादी (realist) राजनीति पर ज़ोर दिया, पर थॉमस का नैतिक दृष्टिकोण आज भी “राजनीतिक आदर्शवाद” (political idealism) का प्रतिनिधि है।

6. शिक्षा और राजनीतिक जागरूकता

एक्विनास का शिक्षण कार्य और उनके तर्क-आधारित विवादों की परंपरा ने राजनीतिक विचारों की सार्वजनिक चर्चा को बढ़ावा दिया।
विश्वविद्यालयों में राजनीतिक और नैतिक दर्शन के समावेश सेराजनीतिक चेतना और बौद्धिक प्रशिक्षण की नींव पड़ी।

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