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संयुक्त राष्ट्र समुद्र कानून कन्वेंशन (UNCLOS): वैश्विक समुद्री कानून और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आधारशिला

समुद्र मानव इतिहास में हमेशा ही व्यापार, रणनीति, शक्ति और संसाधनों का केंद्र रहे हैं। आधुनिक युग में समुद्र केवल नौसैनिक और व्यापारिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह ऊर्जा, खनिज, जैविक संसाधन और पर्यावरणीय सुरक्षा का प्रमुख स्रोत बन गया है। वैश्विक समुद्र का न्यायसंगत और स्थिर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए 1982 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राष्ट्र समुद्र कानून कन्वेंशन (UNCLOS) को अपनाया, जिसे अक्सर “समुद्र का संविधान” कहा जाता है। इस कन्वेंशन ने समुद्री सीमाओं, अधिकारों, कर्तव्यों और संसाधनों के उपयोग के नियम स्पष्ट किए और अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून का सबसे व्यापक और प्रभावशाली ढांचा स्थापित किया।

20वीं सदी के मध्य तक समुद्र पर पारंपरिक अधिकार मुख्य रूप से “मुक्त नौवहन” के सिद्धांत पर आधारित थे। साम्राज्यवाद और वाणिज्यिक प्रतिस्पर्धा ने राष्ट्रों को समुद्र पर नियंत्रण के लिए प्रेरित किया। 1950 और 1960 के दशक में आर्थिक समुद्री क्षेत्र (EEZ) की मांग बढ़ी, समुद्री संसाधनों का दोहन तेज हुआ और छोटे व विकासशील देशों को समुद्री संसाधनों तक बराबरी का अधिकार चाहिए था। इन परिस्थितियों ने UNCLOS की आवश्यकता उत्पन्न की। इसका उद्देश्य केवल सीमाओं का निर्धारण नहीं, बल्कि समुद्री विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करना, संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करना और समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना था।

UNCLOS के विकास का इतिहास भी दर्शाता है कि यह केवल एक संधि नहीं, बल्कि वैश्विक समुद्री कानून का विकासात्मक प्रयास है। 1958 में पहले चार समुद्री कानून कन्वेंशन हुए, जिनमें समुद्री सीमा, कतरनी नहर और महासागरीय संसाधन जैसे प्रारंभिक नियम तय किए गए। 1967-1970 में वैश्विक सम्मेलन आयोजित किया गया और 1982 में UNCLOS को औपचारिक रूप से अपनाया गया। 1994 में इसका कार्यान्वयन हुआ और तब से इसे महासागरीय कानून का पूर्णतः सार्वभौमिक ढांचा माना जाता है।

UNCLOS ने समुद्र के उपयोग और अधिकारों को कई श्रेणियों में बांटा। इसमें हर राज्य के अधिकार और कर्तव्य स्पष्ट किए गए। “सामरिक समुद्र” 12 समुद्री मील तक राज्य के पूर्ण संप्रभु अधिकार में आता है। “सीमावर्ती क्षेत्र” 24 समुद्री मील तक फैला होता है, जिसमें सीमावर्ती कानून लागू कर सकने का अधिकार होता है। “आर्थिक विशेष क्षेत्र” (EEZ) 200 समुद्री मील तक फैला होता है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों जैसे मछली, तेल और गैस पर विशेष अधिकार होते हैं। महाद्वीपीय शेल्फ, जो समुद्र तट से 200 मील या उससे अधिक फैला होता है, राज्य को तेल-खनिज संसाधनों के दोहन का अधिकार देता है। मुक्त महासागर (High Seas) सभी देशों के लिए खुला है, लेकिन संसाधनों का सतत उपयोग आवश्यक है।

UNCLOS समुद्री संसाधन और पर्यावरण संरक्षण को भी सुनिश्चित करता है। समुद्री खनिज, तेल-गैस और जैविक संसाधनों का न्यायसंगत वितरण इसमें शामिल है। महासागरीय प्रदूषण रोकने और समुद्री जीवन तथा पारिस्थितिकी की सुरक्षा के लिए स्पष्ट नियम निर्धारित किए गए हैं। इसके अलावा, UNCLOS ने समुद्री विवाद समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय, ITLOS और पंचायती तथा मध्यस्थता के माध्यम से समाधान के ढांचे का निर्माण किया। मुक्त नौवहन, समुद्री सुरक्षा और मरीन ट्रैफिक नियंत्रण के नियम भी इसमें शामिल हैं।

UNCLOS का वैश्विक महत्व अत्यधिक है। इसने समुद्री विवादों और सीमा संघर्षों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने का मार्ग प्रशस्त किया। छोटे और विकासशील देशों को EEZ और खनिज संसाधनों तक बराबरी का अधिकार मिला। महासागरीय व्यापार और नौवहन सुरक्षित हुए और पर्यावरणीय संरक्षण को बल मिला। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान और सहयोग को कानूनी आधार प्रदान किया गया, जिससे महासागरीय संसाधनों के सतत दोहन और जैविक विविधता का संरक्षण सुनिश्चित हुआ।

भारत के लिए UNCLOS अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत की EEZ लगभग 2.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर है, जो खनिज और जैविक संसाधनों के सतत उपयोग का आधार प्रदान करती है। समुद्री सीमा विवाद, जैसे पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ, UNCLOS के नियमों के आधार पर हल किए जाते हैं। हिंद महासागर में मुक्त नौवहन और रणनीतिक सहयोग के लिए भी UNCLOS महत्वपूर्ण है। मरीन पर्यावरण, जैव विविधता और समुद्री प्रदूषण नियंत्रण में यह कानूनी ढांचा भारत की समुद्री नीति का आधार है।

हालांकि, UNCLOS के सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। डिजिटल युग में साइबर सुरक्षा और समुद्री आतंकवाद के नए खतरे उत्पन्न हुए हैं, जिनका समाधान UNCLOS में स्पष्ट नहीं है। महासागरीय संसाधनों का गैरकानूनी दोहन, मछली पकड़ने की अनियंत्रित गतिविधियाँ और खनिज संसाधनों का अतिव्यापी दोहन एक बड़ी समस्या है। दक्षिण चीन सागर, ईस्ट चीन सागर और आर्कटिक में सीमा विवाद और भू-राजनीतिक तनाव इसके पालन को चुनौती देते हैं। सभी राष्ट्रों द्वारा नियमों का पूर्ण पालन न होना भी एक बड़ी चिंता का विषय है।

भविष्य में UNCLOS को और प्रभावी बनाने के लिए डिजिटल और साइबर सुरक्षा के नियम शामिल करना आवश्यक है। समुद्री प्रदूषण और पर्यावरणीय संरक्षण के लिए कठोर निगरानी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना चाहिए। महासागरीय संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना और अनुसंधान परियोजनाओं में वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है।

UNCLOS आधुनिक अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। इसने समुद्री संसाधनों और अधिकारों को स्पष्ट किया, समुद्री विवादों का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित किया, समुद्री पर्यावरण और जैव विविधता की सुरक्षा में योगदान दिया और समुद्री व्यापार और नौवहन की सुरक्षा को मजबूती प्रदान की। भारत और अन्य महासागरीय देशों के लिए यह एक रणनीतिक और वैश्विक ढांचा है। वैश्विक राजनीति, समुद्री सुरक्षा और पर्यावरणीय चुनौतियों के बीच UNCLOS एक नियम-आधारित, सहयोगपूर्ण और सतत समुद्री कानून का आधार बना हुआ है। सतत विकास, महासागरीय संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग और समुद्री विवादों का शांतिपूर्ण समाधान ही UNCLOS के सिद्धांतों का सार है। भविष्य में यह अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून का मार्गदर्शन और सुरक्षा प्रदान करता रहेगा।


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