➢ भारत में संविधानवादऐसी शासन व्यवस्था जिसमें सरकार की शक्तियाँ सीमित हों, और वह संविधान और कानूनों के अनुसार काम करे, ताकि नागरिकों के अधिकारों की रक्षाकी जा सके।
भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र (Constitutional Democracy) है, जहाँ सरकार जनता की इच्छाओं के अनुसार चलती है, लेकिन संविधान द्वारा नियंत्रित रहती है।
➢ संविधानवाद संविधान के सन्दर्भ को समझना भी अहम् हो जाता है जिसे राजनीतिक समाज का ढांचा (framework) कहा जा सकता है, क्योंकि यह बताता है कि देश की शासन व्यवस्था कैसे संगठित होगी। यह विधि (कानून) के माध्यम से स्थायी संस्थाओं की स्थापना करता है, जैसे संसद, न्यायपालिका और कार्यपालिका, जिनके अधिकार और कार्य निश्चित रूप से परिभाषित होते हैं।
भारत में संविधानवाद की प्रमुख विशेषताएँ
1. लिखित और सर्वोच्च संविधान
भारत का संविधान लिखित और सर्वोच्च (Supreme Law) है।कोई भी कानून या निर्णय संविधान के विरुद्ध नहीं हो सकता। यदि ऐसा होता है, तो न्यायपालिका उसे असंवैधानिक घोषित कर सकती है।
2. शक्तियों का विभाजन (Separation of Powers)
भारत में सरकार की शक्तियाँ तीन अंगों में बाँटी गई हैं
➢ विधायिका (Legislature) – कानून बनाती है।
➢ कार्यपालिका (Executive) – कानून लागू करती है।
➢ न्यायपालिका (Judiciary) – कानून की व्याख्या करती है।
ये तीनों एक-दूसरे पर नियंत्रण और संतुलन बनाए रखते हैं।
3. विधि का शासन (Rule of Law)
भारत में सभी नागरिक कानून के सामने समान हैं। कोई भी व्यक्ति चाहे वह राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ही क्यों न हो कानून से ऊपर नहीं है।
4. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा
संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) देता है, जैसे समानता,स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और न्याय पाने का अधिकार। अगर सरकार इन अधिकारों का उल्लंघन करे, तो नागरिक न्यायालय की शरण ले सकते हैं।
5. स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)
भारत की न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र है। यह संविधान की रक्षक (Guardian) और व्याख्याता (Interpreter) है। सर्वोच्च न्यायालय संविधान की मर्यादा बनाए रखता है।
6. लोकतांत्रिक शासन और उत्तरदायित्व
भारत में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है। सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी (Accountable) है और उसे संविधान की सीमाओं में रहकर कार्य करना होता है।
संविधानवाद क्या है?
➢ संविधानवाद एक आधुनिक विचार है, जो यह कहता है कि देश को नियमों और कानूनों के अनुसार चलना चाहिए, न कि किसी व्यक्ति की मर्जी से। इसमें यह माना जाता है कि कानून सबसे ऊपर है और हर कोई, चाहे वह सरकार ही क्यों न हो, कानून के अधीन है।
➢ संविधानवाद में राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और सीमित सरकार के सिद्धांत शामिल होते हैं। इसका मतलब है कि सरकार के पास बहुत अधिक शक्ति नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसकी शक्तियों पर नियंत्रण होना चाहिए।
फ्रेडरिक (Friedrich) के अनुसार संविधानवाद सरकार की शक्तियों को बाँटकर (विभाजन करके) उस पर प्रभावी रोक लगाता है।संविधानवाद का उद्देश्य यह है
a) सरकार मनमाने तरीके से काम न करे,
b) नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें,
c) और सरकार की सर्वोच्च शक्तियों को संविधान द्वारा परिभाषित किया जाए।
इस तरह संविधानवाद यह मानता है कि हर देश में एक संविधान होना चाहिए, जो सरकार के कामकाज को सीमित करे और लोगों की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखे।
भारत एवम अन्य विकाशील देशो में संविधानवाद
➢ एशिया और अफ्रीका के वे गरीब और पिछड़े देश, जो हाल ही में स्वतंत्र होकर सर्वभौम राष्ट्र-राज्य बने हैं, उनमें संविधानवाद की सही रूपरेखा तय करना काफी कठिन है। ये देश अभी भी सामाजिक-कल्याणकारी राज्य (Welfare State) के आदर्श को प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
➢ इन देशों के सामने सबसे बड़ी दुविधा यह है कि वे या तो उनयूरोपीय देशों की शासन-प्रणालियों की नकल करें जिनके अधीन वे वर्षों तक उपनिवेश रहे,या फिर ऐसी नई प्रणाली अपनाएँ जो उनकी अपनी सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप हो और जिसमें देशी परंपराओं के साथ-साथ समाजवादी सिद्धांतों का भी कुछ अंश शामिल हो।कई विकासशील देशों ने विदेशी (आयातित) संविधानिक व्यवस्थाओं को अपनाने का प्रयास किया है। वे एक ओर उदार लोकतंत्र (Liberal Democracy) के आदर्शों को बनाए रखना चाहते हैं, और दूसरी ओर स्थानीय लोगों की अपेक्षाओं और जरूरतों के अनुरूप ढलना चाहते हैं।
➢ भारत ने अपने संविधान में पश्चिमी (यूरोपीय) संविधानिक मूल्यों को अपनाया है।
इन देशों ने स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे आदर्शों को अपने समाज की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार थोड़ा बदला है, ताकि ये उनके देश की जरूरतों के अनुरूप हो सकें।पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश कभी संसदीय शासन प्रणाली(Parliamentary System) अपनाते हैं और कभी राष्ट्रपतीय शासन प्रणाली (Presidential System) की ओर मुड़ जाते हैं। वहीं, इंडोनेशिया, दक्षिण वियतनाम, इराक, तुर्की, सूडान, और पाकिस्तानजैसे देशों में लोकतांत्रिक शासन पद्धति की असफलता के बादसैनिक शासन (Military Rule) आ गया।
➢ घाना, तंजानिया, युगांडा, पाकिस्तान और बर्मा जैसे कई देश अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि उनके लिए कौन-सी शासन प्रणाली सबसे उपयुक्त होगी। वे यह महसूस करते हैं कि पश्चिमी संविधानवाद उनके वास्तविक उद्देश्यों को पूरी तरह पूरा नहीं कर पाएगा।
फिर भी, उन्होंने संविधानवाद पर से अपनी पूरी आस्था नहीं खोई है और वे अभी भी अपने लिए सही रास्ता खोजने की कोशिश में हैं।
➢ इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि कई तीसरी दुनिया (Third World) के देशों में संविधानवाद अभी मजबूत नहीं हो पाया है। इन देशों में संविधान तो मौजूद है, लेकिन लोकतंत्र, कानून का शासन और सीमित सरकार के सिद्धांतों को व्यवहार में पूरी तरह लागू करना अब भी एक बड़ी चुनौती है।
संविधानवाद का पश्चिमी दृष्टिकोण
➢ पश्चिमी विचारकों थॉमस पेन (Thomas Paine), एलेक्सिस डी टॉकविल (Alexis de Tocqueville), जेम्स ब्राइस (James Bryce), हेरोल्ड जे. लास्की (Harold J. Laski), हर्मन फाइनर (Herman Finer), और चार्ल्स एच. मैकइल्वेन (Charles H. McIlwain) का मानना है कि संविधानवाद सिर्फ एक साध्य ही नहीं, बल्कि उस तक पहुँचने का साधन भी है।
➢ उनके अनुसार संविधानवाद में मूल्य भी हैं और व्यावहारिकता भी। यानी इसमें आदर्शों (जैसे स्वतंत्रता, समानता और न्याय) का भी समावेश है, और साथ ही शासन चलाने के ठोस तरीके (व्यवहारिक व्यवस्था) भी शामिल हैं। संविधान में केवल सरकार के अलग-अलग अंगों जैसे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों और उनके कामकाज का विवरण नहीं होता, बल्कि उसमेंस्वतंत्रता, समानता, न्याय और अधिकारों जैसे आदर्शों को भी बहुत महत्व और सम्मान दिया जाता है। विधानवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसका हर व्यक्ति को सम्मान करना चाहिए। यह न केवल एकलक्ष्य (साध्य) है बल्कि उस लक्ष्य तक पहुँचने का साधन भी है।
इसका उद्देश्य लोगों की आज़ादी की सुरक्षा और रक्षा करना है।
पश्चिमी दृष्टिकोण के अनुसार, संविधान ऐसा दस्तावेज़ हो सकता है जो
➢ लिखित रूप में मौजूद हो, जैसे एक औपचारिक दस्तावेज (Document),
➢ परंपराओं, रीति-रिवाजों और संस्थाओं के समूह के रूप में अस्तित्व में हो।
थॉमस पेन (Thomas Paine) और एलेक्सिस डी टॉकविल (Alexis de Tocqueville) जैसे विद्वानों ने यह कहा था कि इंग्लैंड में कोई संविधान नहीं है क्योंकि वहाँ संविधान किसी एक लिखित दस्तावेज़ के रूप में मौजूद नहीं है। लेकिन यह कहना पूरी तरह सही नहीं है, क्योंकि संविधान केवल लिखित रूप में ही नहीं होता यह परंपराओं, नियमों, रीति-रिवाजों और न्यायिक निर्णयों के रूप में भी मौजूद हो सकता है।
जेम्स ब्राइस (James Bryce) ने सही कहा था कि इंग्लैंड में संविधान कई परंपराओं, व्यवहारों, और न्यायिक निर्णयों के रूप में कार्य करता है, जिन्हें जनता और सरकार दोनों स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि अंग्रेजी संविधान की एक अद्वितीय विशेषता यह है कि इसके बहुत-से नियम परंपराओं पर आधारित हैं, न कि केवल लिखित कानूनों पर।
न्यूमैन (Newman)
➢ अंग्रेज़ी संविधान की सबसे विशिष्ट बात यह है कि इसके नियमों का बड़ा भाग परंपराओं पर आधारित है, और संसद के किसी सामान्य अधिनियम की तुलना में इनका भी समान महत्व है। चाहे कोई संविधान किसी विशेष समय पर लिखित रूप में बनाया गया हो जैसे अमेरिकी संविधान, जो सन् 1787 में फिलाडेल्फिया सम्मेलन में तैयार किया गया था या वह कानूनों, संस्थाओं और परंपराओं के रूप में विकसित हुआ हो,
➢ पश्चिमी संविधानवाद का मुख्य विचार यह है कि देश के मूल नियम ऐसे होने चाहिए जो सरकार और जनता के बीच स्पष्ट और बुनियादी अंतर दिखाएँ। इस दृष्टिकोण के अनुसार, संविधान का स्थानसरकार से कहीं ऊपर होता है। सरकार संविधान से संचालित होती है और उसकी शक्तियाँ संविधान द्वारा सीमित की जाती हैं।संविधान में ऐसी व्यवस्थाएँ की जाती हैं जो सरकार पर आवश्यक नियंत्रण लगाती हैं,ताकि सत्ता का दुरुपयोग न हो और एक सभ्य, उत्तरदायी शासन कायम रह सके।
| | | संविधानवाद (Sanvidhaanvaad) |
| | शासन की व्यवस्था व ढांचे का लिखित दस्तावेज़ | शासन को सीमित और कानून के अधीन रखने का विचार |
| | | एक राजनीतिक सिद्धांत या विचारधारा |
| | राज्य की शक्तियों, अधिकारों और संरचना को निर्धारित करना | सरकार को तानाशाही से रोकना और नागरिकों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना |
| | शासन की संरचना और कार्यप्रणाली | सरकार की सीमाएँ और जवाबदेही |
| | | नागरिक अधिकारों की रक्षा और कानून का शासन स्थापित करना |
| | भारत का संविधान, अमेरिका का संविधान | न्यायपालिका की स्वतंत्रता, मौलिक अधिकारों की रक्षा |
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