सामुदायिकता (Communitarianism) एक सामाजिक और राजनीतिक दर्शन है जो व्यक्ति की पहचान, नैतिक मूल्यों और सामाजिक जीवन में समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देता है। यह व्यक्तिवाद (individualism) और उदारवाद (liberalism) के विपरीत है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता की तुलना में सामूहिक कल्याण और साझा जिम्मेदारियों को प्राथमिकता देता है। नीचे इसका 360 डिग्री विश्लेषण दिया गया है, जिसमें इसके मूल सिद्धांत, ऐतिहासिक जड़ें, प्रमुख विचारक, आलोचनाएँ और समकालीन प्रासंगिकता शामिल हैं।
मूल सिद्धांत
सामुदायिकता का मानना है कि व्यक्ति स्वाभाविक रूप से समुदायों—जैसे परिवार, पड़ोस या समाज—में निहित होते हैं, जो उनकी पहचान, मूल्यों और दायित्वों को आकार देते हैं। उदारवाद के विपरीत, जो स्वायत्त व्यक्ति पर केंद्रित है, सामुदायिकता के मुख्य बिंदु हैं:
• समुदाय व्यक्तित्व को आकार देता है: सामाजिक रिश्ते व्यक्ति की पहचान को गढ़ते हैं, और व्यक्ति को समुदाय के बिना पूरी तरह समझा नहीं जा सकता।
• अधिकारों और जिम्मेदारियों में संतुलन: व्यक्तिगत अधिकार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें सामान्य कल्याण के प्रति कर्तव्यों के साथ संतुलित करना चाहिए। अत्यधिक व्यक्तिवाद सामाजिक एकता को कमजोर कर सकता है।
• सामान्य कल्याण की प्राथमिकता: नीतियाँ और संस्थाएँ साझा मूल्यों और सामूहिक कल्याण को बढ़ावा दें, न कि केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता या बाजार दक्षता को।
• अनियंत्रित पूँजीवाद का विरोध: सामुदायिकता लाभ को समुदाय की स्थिरता से ऊपर रखने वाले अनियंत्रित पूँजीवाद की आलोचना करती है।
ऐतिहासिक जड़ें
हालांकि “सामुदायिकता” शब्द 1841 में ब्रिटिश चार्टिस्ट नेता जॉन गुडविन बार्मबी द्वारा गढ़ा गया था, जो यूटोपियन समाजवादियों को संदर्भित करता था, इसके विचार बहुत पुराने हैं:
• प्राचीन और धार्मिक परंपराएँ: अरस्तू ने पोलिस (नगर-राज्य) को मानव उत्कर्ष के लिए आवश्यक माना, न्यू टेस्टामेंट ने सामुदायिक साझेदारी पर जोर दिया, और प्रारंभिक मठवासी जीवन ने सामूहिकता को अपनाया।
• समाजशास्त्रीय आधार: 19वीं और 20वीं सदी के समाजशास्त्रियों जैसे फर्डिनेंड टॉनीज (Gemeinschaft बनाम Gesellschaft) और एमिल दुर्खाइम (सामाजिक एकीकरण बनाम अनomie) ने व्यक्तिगत समाजों के जोखिमों को उजागर किया।
• यूटोपियन आंदोलन: थॉमस मॉर (यूटोपिया), चार्ल्स फूरियर और रॉबर्ट ओवेन जैसे विचारकों ने आत्मनिर्भर समुदायों की कल्पना की।
आधुनिक सामुदायिकता 1980 के दशक में पश्चिमी उदार लोकतंत्रों, विशेष रूप से अमेरिका और ब्रिटेन में अत्यधिक व्यक्तिवाद के जवाब में उभरी।
प्रमुख विचारक और धाराएँ
सामुदायिकता की कई धाराएँ हैं, और विचारक इसे अलग-अलग तरीकों से देखते हैं:
• दार्शनिक सामुदायिकता:
• माइकल सैंडल: जॉन रॉल्स के उदारवादी न्याय सिद्धांत की आलोचना की, यह तर्क देते हुए कि पहचान सामुदायिक संबंधों और नैतिक दायित्वों से जुड़ी होती है।
• चार्ल्स टेलर: “सामाजिक थीसिस” पर जोर दिया, जिसमें व्यक्ति समुदायों के भीतर संवादात्मक रिश्तों के माध्यम से विकसित होते हैं।
• अलस्डेयर मैकइंटायर: परंपरा और गुण नीतियों पर ध्यान दिया, यह कहते हुए कि नैतिक तर्क सामुदायिक कथाओं पर निर्भर करता है।
• माइकल वाल्जर: “जटिल समानता” की वकालत की, जहाँ न्याय विभिन्न समुदायों के विशिष्ट मानदंडों का सम्मान करता है।
• उत्तरदायी सामुदायिकता:
• अमिताई एत्जियोनी: 1993 में कम्युनिटेरियन नेटवर्क की स्थापना की। उनकी पुस्तक The Spirit of Community अधिकारों और जिम्मेदारियों को संतुलित करने वाली नीतियों, जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों, को बढ़ावा देती है।
• विलियम गैल्स्टन: प्रगतिशील और पारंपरिक मूल्यों को मिलाकर समुदाय की प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने वाला “तीसरा रास्ता” प्रस्तावित किया।
• पूर्वी एशियाई सामुदायिकता:
• रसेल ए. फॉक्स और बिलाहारी कौसिकन जैसे विद्वान सिंगापुर जैसे स्थानों में सामूहिक कल्याण को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से ऊपर रखने वाली अधिनायकवादी सामुदायिकता का वर्णन करते हैं।
• मध्य यूरोपीय दृष्टिकोण:
• चेक और स्लोवाक दार्शनिक जैसे मारेक ह्रुबेक और लुबोस ब्लाहा सामुदायिकता को समाजवादी और सामूहिक परंपराओं, जैसे मार्क्स और प्रूधों, से जोड़ते हैं।
1980 के दशक में विकास
1980 के दशक में सामुदायिकता ने निम्नलिखित की आलोचना के रूप में प्रमुखता प्राप्त की:
• रॉल्सियन उदारवाद: जॉन रॉल्स की A Theory of Justice (1971) ने निष्पक्षता के आधार पर न्याय की बात की। सैंडल जैसे सामुदायिकतावादियों ने तर्क दिया कि यह सामुदायिक नैतिक प्राथमिकताओं को नजरअंदाज करता है।
• नवउदारवाद: थैचरवाद और रीगनॉमिक्स के बाजार और व्यक्तिवाद पर जोर ने सामुदायिकतावादियों को सामाजिक एकता की वकालत करने के लिए प्रेरित किया।
• सामाजिक विखंडन: रॉबर्ट बेल्लाह की Habits of the Heart (1985) ने अमेरिकियों के भौतिकवाद की ओर झुकाव और नागरिक संबंधों से दूरी को रेखांकित किया।
आलोचनाएँ
सामुदायिकता को कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है:
• अधिनायकवाद का जोखिम: सामूहिकता को प्राथमिकता देने से व्यक्तिगत अधिकारों का दमन हो सकता है, जैसा कि कुछ पूर्वी एशियाई मॉडलों में देखा गया।
• अपवर्जन की संभावना: साझा मूल्यों पर जोर देने से अल्पसंख्यक या बाहरी लोग हाशिए पर जा सकते हैं।
• “समुदाय” की अस्पष्टता: समुदाय क्या है और उसके मूल्य क्या हैं, इसे परिभाषित करना विवादास्पद हो सकता है।
• सापेक्षवाद: नैतिकता को सामुदायिक परंपराओं से जोड़ने से सार्वभौमिक सिद्धांत कमजोर हो सकते हैं।
• उदारवाद विरोधी पूर्वाग्रह: एमी गटमैन जैसे उदारवादी कहते हैं कि सामुदायिकता उदारवाद की खामियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है।
सामुदायिकतावादी जवाब देते हैं कि वे संतुलन चाहते हैं, न कि सामूहिक प्रभुत्व। उदाहरण के लिए, उत्तरदायी सामुदायिकतावादी न्यूनतम प्रभावी उपायों (जैसे नवजातों के लिए एचआईवी परीक्षण) का प्रस्ताव करते हैं।
समकालीन प्रासंगिकता
सामुदायिकता आज कई मुद्दों पर प्रासंगिक है:
• ध्रुवीकरण और सामाजिक अलगाव: रॉबर्ट पुतनम की Bowling Alone में उल्लिखित अविश्वास और नागरिक भागीदारी में कमी सामुदायिक नीतियों की आवश्यकता को दर्शाती है।
• विविधता और समावेश: पुतनम जैसे विद्वान “ब्रिजिंग” सामाजिक पूँजी का सुझाव देते हैं, जो विविध समूहों को जोड़ती है।
• नीतिगत अनुप्रयोग: सामुदायिक विचार सामाजिक सुरक्षा, मेडिकेयर या स्कूल लंच जैसे सार्वभौमिक कार्यक्रमों को प्रभावित करते हैं।
• वैश्वीकरण: सामुदायिकता राष्ट्रीय संप्रभुता बनाम वैश्विक एकीकरण की बहस में योगदान देती है।
• प्रौद्योगिकी और अलगाव: डिजिटल युग के सामाजिक बंधनों पर प्रभाव से सामुदायिक नीतियों की माँग बढ़ती है, जैसे पैदल चलने योग्य पड़ोस की योजना।
व्यावहारिक उदाहरण
• स्कैंडिनेवियाई मॉडल: डेनमार्क जैसे देश व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मजबूत कल्याण प्रणालियों को संतुलित करते हैं।
• नागरिक पहल: अमेरिका में AmeriCorps स्वयंसेवा और सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देता है।
• तीसरा रास्ता: टोनी ब्लेयर और बिल क्लिंटन ने बाजार और सामाजिक एकजुटता को मिलाने के लिए सामुदायिक विचारों का उपयोग किया।
ताकत और कमजोरियाँ
• ताकत:
• अति-व्यक्तिवाद को संतुलित करती है।
• व्यावहारिक नीति-निर्माण के लिए ढांचा प्रदान करती है।
• स्थानीय से वैश्विक संदर्भों तक लागू होती है।
• कमजोरियाँ:
• बहुलवादी समाजों में “समुदाय” को परिभाषित करना मुश्किल।
• अधिनायकवादी या अपवर्जनकारी विचारधाराओं द्वारा अपनाए जाने का जोखिम।
• उदारवाद की तुलना में एकीकृत सिद्धांत की कमी।
निष्कर्ष
सामुदायिकता व्यक्ति और समुदाय के बीच संबंधों को समझने का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करती है, जो उदारवाद की व्यक्तिगत धारणाओं को चुनौती देती है और आधुनिक समाजों की जटिलताओं से जूझती है। सामाजिक विखंडन के युग में साझा मूल्यों और पारस्परिक दायित्वों पर इसका जोर प्रासंगिक है, लेकिन इसे विविधता और व्यक्तिगत अधिकारों के साथ तनाव को संबोधित करना होगा। विविधता को जोड़ने और नागरिक जुड़ाव को बढ़ावा देने वाली नीतियों की वकालत करके, सामुदायिकता एकजुट और समावेशी समुदायों की ओर एक रास्ता प्रदान करती है—यदि यह अपवर्जन या अतिरेक के जोखिमों से बच सकती है।