in , , , , , ,

सामाजिक व्यवस्था लोकतंत्र और कुलीनतंत्र : एडवर्ड ए. शिल्स


हम सामाजिक व्यवस्थाओं को समझने के लिएराजनीतिक आधुनिकीकरणको एक मापदंड मानें, तो इसका उपयोग दुनिया की राजनीतिक व्यवस्थाओं के उदाहरण देने के लिए भी किया जा सकता है। इस दिशा में एडवर्ड ए. शिल्स का नाम बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने आधुनिक राजनीतिक व्यवस्थाओं को दो भागों में बाँटा है
लोकतंत्र (Democracy) – जहाँ जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार होता है,
कुलीनतंत्र(Oligarchy) – जहाँ शासन कुछ गिने-चुने लोगों या वर्ग के हाथों में होता है।

फिर उन्होंने इन दोनों के अंदर और भी उपविभाग किए

लोकतंत्र के अंतर्गत:

a) राजनीतिक लोकतंत्र (Political Democracy) – जहाँ जनता की भागीदारी होती है और शासन कानून के अनुसार चलता है।
b) ट्यूटेलरी लोकतंत्र (Tutelary Democracy) – जहाँ कुछ हद तक जनता की भागीदारी होती है,लेकिन असली नियंत्रण सेना, राजा या किसी उच्च वर्ग के हाथ में रहता है।

कुलीनतंत्र (Oligarchy) के अंतर्गत

a) आधुनिककारी वर्गतंत्र (Modernizing Oligarchy) – जहाँ कुछ नेता या समूह देश को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सत्ता जनता के पास नहीं होती।
b) सर्वाधिकारी वर्गतंत्र (Totalitarian Oligarchy) – जहाँ पूरा नियंत्रण एक दल या नेता के पास होता है, जैसे तानाशाही।
c) परंपरागत वर्गतंत्र (Traditional Oligarchy) – जहाँ सत्ता पुराने शासकों, राजाओं या कुलीन परिवारों के पास होती है।

शिल्स का कहना है कि अगर राजनीतिक आधुनिकीकरण को मापदंड माना जाए, तो समाजों को इस आधार पर समझा जा सकता है

आदिम और पिछड़े समाजों में लोगों की वफादारी सिर्फ अपने परिवार, जाति या इलाके तक सीमित होती है। इसलिए वहाँ कानून का शासन और निष्पक्ष न्याय पाना मुश्किल होता है, क्योंकि भाई-भतीजावाद और पक्षपात ज़्यादा होता है।
विकासशील समाजों में पुरानी परंपराएँ, सामाजिक ढांचे और संसाधनों की कमी राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। इन कारणों से आदर्श लोकतंत्र हासिल करना कठिन होता है, लेकिन धीरे-धीरे समाज आधुनिकता की ओर बढ़ने की कोशिश करता है।

राजनीतिक लोकतंत्र (Political Democracy)

राजनीतिक लोकतंत्र शासन का सबसे अच्छा और विकसित रूप माना जाता है। ऐसी व्यवस्था ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में देखी जा सकती है, जहाँ जनता के अधिकार, संस्थाएँ और स्वतंत्रताएँ मज़बूत हैं।

मुख्य विशेषताएँ

I. विधायिका का महत्व: सरकार का केंद्र संसद या विधानमंडल होता है, जिसे जनता द्वारा चुना जाता है। यह कानून बनाती है और सरकार की गतिविधियों पर नज़र रखती है।
II. राजनीतिक दलों की भूमिका: राजनीतिक दल चुनाव जीतकर सरकार बनाते हैं और अपनी नीतियों को लागू करते हैं।
III. सत्ता का सीमित प्रयोग: सत्ता सीमित समय के लिए और संविधान के दायरे में रहकर प्रयोग की जाती है।
IV. विरोध की स्वतंत्रता: असहमति और आलोचना की पूरी स्वतंत्रता होती है ताकि सत्ता का दुरुपयोग न हो सके।
V. न्यायपालिका की स्वतंत्रता: न्यायालय स्वतंत्र और निष्पक्ष होते हैं, जो कानून की रक्षा करते हैं।
VI. संवैधानिक उपायों से सुधार: लोग केवल कानूनी और संवैधानिक तरीकों से सरकार में परिवर्तन करते हैं।
VII. जन-विश्वास: नागरिकों में सरकार के प्रति विश्वास और जिम्मेदारी की भावना होती है।
VIII. प्रशासनिक व्यवस्था: एक प्रशिक्षित और सक्षम प्रशासनिक सेवा होती है जो चुनी हुई सरकार के निर्णयों को लागू करती है।
IX. कानून-व्यवस्था: सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिस और सशस्त्र बलों की व्यवस्था होती है।
X. लोकतांत्रिक मूल्यों की निष्ठा: नागरिक लोकतंत्र के सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति समर्पित रहते हैं।

2. ट्यूटेलरी लोकतंत्र (Tutelary Democracy)

यह राजनीतिक व्यवस्था लोकतंत्र जैसी दिखती है, लेकिन पूरी तरह लोकतांत्रिक नहीं होती।
ऐसे देश लोकतंत्र के आदर्शों और मूल्यों को अपनाने की कोशिश करते हैं, पर वे उन्हें पूरी तरह लागू करने में सक्षम नहीं होते। यह व्यवस्था उन परिस्थितियों में बनती है, जहाँ लोग लोकतंत्र चाहते तो हैं, पर लोकतांत्रिक संस्थाएँ अभी उतनी मज़बूत नहीं होतीं।

मुख्य विशेषताएँ:

i. सत्ता का केंद्र कार्यपालिका (Executive) : यहाँ असली शक्ति प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या कुछ शक्तिशाली व्यक्तियों के हाथ में होती है। विधायिका (संसद) उनसे कमज़ोर होती है।
ii. विधायिका की सीमित भूमिका: संसद या विधानसभा कार्यपालिका के नियंत्रण में काम करती है और उसकी स्वतंत्रता सीमित होती है।
iii. विरोध की सीमित स्वतंत्रता: सरकार विरोध की कुछ गुंजाइश तो देती है, लेकिन मीडिया, संचार साधन और राजनीतिक गतिविधियों पर उसका नियंत्रण बना रहता है।
iv. मजबूत और वफादार नौकरशाही: प्रशासनिक अधिकारी सरकार के प्रति वफादार रहते हैं।वे नीतियों को लागू करते हैं और कभी-कभी औपचारिक रूप से आलोचना भी कर सकते हैं।
v. कानून और स्वतंत्रता बनाए रखने की कोशिश: सरकार कानून का शासन और नागरिक स्वतंत्रता बनाए रखने के प्रयास करती है, लेकिन इनकी सीमा कार्यपालिका के नियंत्रण से तय होती है।

आधुनिकीकरण वर्गतंत्र (Modernizing Oligarchy)

यह शासन-प्रणाली परंपरागत वर्गतंत्र से थोड़ी आगे होती है, लेकिन लोकतंत्र से बहुत पीछे।
ऐसी व्यवस्था में सत्ता कुछ लोगों के हाथ में रहती है अक्सर सैन्य अधिकारियों या प्रशासकोंके पास।
वे देश को आधुनिक बनाने और विकास की दिशा में आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जनता को सत्ता में भाग लेने नहीं देते।

मुख्य विशेषताएँ:

I. संसद केवल दिखावे की संस्था होती है : संसद या विधानमंडल सिर्फ सरकार के फैसलों को मंज़ूरी देने का काम करती है। असली शक्ति प्रशासकों या सैन्य नेताओं के हाथ में होती है।
II. विरोध और स्वतंत्रता पर रोक : विपक्षी दलों को अवैध घोषित कर दिया जाता है, स्वतंत्र चुनाव नहीं होते, और राजनीतिक दलों व मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
III. मजबूत नौकरशाही : प्रशासन (नौकरशाही) बहुत शक्तिशाली होती है। शासक उसी पर भरोसा करते हैं, और जनता का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता।
IV. न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अभाव : अदालतें स्वतंत्र नहीं होतीं। कानून का शासन कमजोर पड़ जाता है और फैसले सरकार के प्रभाव में लिए जाते हैं।

सर्वाधिकारी वर्गतंत्र (Totalitarian Oligarchy)

यह शासन-प्रणाली पूरी तरह सत्तावादी (authoritarian) होती है, जहाँ सारी शक्ति कुछ लोगों या एक नेता के हाथ में केंद्रित होती है। ऐसे शासन दक्षिणपंथी (जैसे इटली का फासीवाद या जर्मनी का नाज़ीवाद) या वामपंथी (जैसे सोवियत संघ या चीन का साम्यवाद) दोनों हो सकते हैं। इन सबकी एक समान विशेषता यह है कि वे किसी एक विचारधारा (ideology) के प्रति पूरी तरह समर्पित रहते हैं।

मुख्य विशेषताएँ:

I. सत्ता का केंद्रीकरण : सत्ता पूरी तरह एक समूह या वर्ग (जैसे पार्टी या नेता) के हाथ में होती है। जनता की इसमें कोई भूमिका नहीं होती।
II. संगठित शासक वर्ग: एक अनुशासित और मज़बूत शासक वर्ग होता है, जो एक ही पार्टी और विचारधारा से जुड़ा होता है और उसी के अनुसार काम करता है।
III. न्याय और विरोध का अभाव : यहाँ स्वतंत्र न्यायपालिका नहीं होती, न ही किसी विरोधी दल या असहमति की अनुमति दी जाती है।
IV. लोकतंत्र का दिखावा : चुनाव, संसद या मताधिकार जैसी लोकतांत्रिक चीज़ों का इस्तेमाल केवल दिखावे और प्रचार के लिए किया जाता है, असली सत्ता जनता के पास नहीं होती।
V. विचारधारा का प्रचार : सरकार ऐसे बुद्धिजीवियों और संस्थाओं को बढ़ावा देती है जो सरकारी विचारधारा का समर्थन करें और जनता के बीच झूठी एकता या सर्वसम्मति का माहौल बनाएं।

परम्परागत वर्गतंत्र (Traditional Oligarchy)

यह शासन-प्रणाली पुराने धार्मिक विश्वासों और राजवंशों (वंशानुगत सत्ता) पर आधारित होती है।
ऐसे शासन में सत्ता राजाओं, रईसों या कुलीन परिवारों के पास होती है, जो अपने रिश्तों और परंपराओं के आधार पर शासन चलाते हैं।

मुख्य विशेषताएँ:

I. विधायिका का अभाव: शासन पूरी तरह राजा या शासक और उसके चुने हुए सलाहकारों के हाथ में होता है। संसद या विधानमंडल जैसी संस्थाओं का कोई महत्व नहीं होता।
II. सीमित प्रशासन: राज्य के कामकाज बहुत सीमित होते हैं, इसलिए बड़ी और संगठित नौकरशाही की ज़रूरत नहीं पड़ती।
III. छोटी सेना और पुलिस: शासक अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए एक छोटी लेकिन वफादार सेना और पुलिस बल रखता है।
IV. सामंतवादी व्यवस्था: शासन व्यवस्था सामंतवादी होती है यानी अलग-अलग इलाकों में छोटे-छोटे शासक या जमींदार होते हैं, जो उसी राजवंश या रिश्तेदारी के आधार पर शासन करते हैं।
V. विरोध का अभाव: यहाँ कोई विरोधी दल नहीं होता, न ही जनमत (public opinion) की कोई भूमिका होती है। शासक यह दावा करता है कि उसका शासन समाज की परंपरागत संस्कृति और धर्मकी रक्षा के लिए है।


Discover more from Politics by RK: Ultimate Polity Guide for UPSC and Civil Services

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

What do you think?

भारत में महिला संगठन

संविधानवाद: भारत,विकासशील और विकसित देशो का दृष्टिकोण