सामूहिक सुरक्षा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसा सिद्धांत है जिसके अंतर्गत विश्व के सभी राष्ट्र मिलकर आक्रामकता (Aggression) का विरोध करते हैं। इसका मूल उद्देश्य विश्व शांति और स्थिरता बनाए रखना है। यह सिद्धांत इस धारणा पर आधारित है कि “एक पर हमला, सब पर हमला है” — अर्थात यदि कोई देश किसी अन्य देश पर आक्रमण करता है, तो सभी राष्ट्र मिलकर उस आक्रामक राष्ट्र के विरुद्ध कार्यवाही करेंगे।
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परिभाषा (Definition)
सामूहिक सुरक्षा का अर्थ है – विश्व के सभी राष्ट्रों का एक साझा दायित्व कि वे किसी भी देश द्वारा की गई आक्रामकता को रोकने के लिए एकजुट होकर कदम उठाएँ।
👉 “Security for one is security for all.”
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मूलभूत सिद्धांत (Basic Principles)
1.सभी के लिए समान सुरक्षा: सभी राष्ट्रों को समान रूप से सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
2.आक्रमणकारी की पहचान: जिस राष्ट्र ने आक्रमण किया है, उसकी पहचान की जाएगी।
3.संयुक्त प्रतिरोध: सभी राष्ट्र मिलकर उस आक्रमणकारी राष्ट्र के विरुद्ध सामूहिक कार्यवाही करेंगे।
4.शांति का दायित्व सामूहिक: किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा केवल उसके अपने बल पर नहीं बल्कि सामूहिक प्रयासों पर निर्भर करती है।
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मुख्य उद्देश्य (Objectives)
1.अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना।
2.आक्रमण और युद्ध को रोकना।
3.विवादों को शांतिपूर्ण माध्यमों से सुलझाना।
4.अंतरराष्ट्रीय सहयोग और न्याय को बढ़ावा देना।
ऐतिहासिक विकास (Historical Evolution)
1.
League of Nations (1920)
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति बनाए रखने के उद्देश्य से “League of Nations” की स्थापना की गई।
- इसका उद्देश्य था कि सभी सदस्य राष्ट्र मिलकर आक्रमणकारियों के विरुद्ध कार्य करें।
- विफलता के कारण:
- जापान द्वारा मांचूरिया (1931) पर हमला
- इटली द्वारा अबीसीनिया (1935–36) पर हमला
- जर्मनी द्वारा राइनलैंड पर कब्जा (1937)
- लीग ने कोई ठोस कार्यवाही नहीं की।
➤ परिणाम: द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया।
2.
United Nations (1945)
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई, जिसने सामूहिक सुरक्षा को अपने मुख्य उद्देश्यों में सम्मिलित किया (UN Charter, Chapter VII)।
- मुख्य संस्थाएँ:
- सुरक्षा परिषद (Security Council) — सामूहिक सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारी।
- स्थायी सदस्य: अमेरिका, रूस (पूर्व USSR), ब्रिटेन, फ्रांस, चीन।
सामूहिक सुरक्षा के प्रमुख उदाहरण (Major Examples)
- कोरिया संकट (1950–53):
- उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर हमला किया।
- संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में अमेरिका और अन्य राष्ट्रों ने हस्तक्षेप किया।
- यह सामूहिक सुरक्षा की पहली सफल परीक्षा थी।
- स्वेज संकट (1956):
- मिस्र द्वारा स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण।
- ब्रिटेन, फ्रांस और इज़राइल ने मिस्र पर हमला किया।
- अमेरिका और सोवियत संघ के दबाव के कारण युद्ध रुका।
- खाड़ी युद्ध (1991):
- इराक ने कुवैत पर कब्जा किया।
- संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन सेना ने इराक को पीछे हटाया।
- यह UN के सामूहिक सुरक्षा सिद्धांत की प्रभावी मिसाल थी।
सामूहिक सुरक्षा की सीमाएँ (Limitations)
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: सभी राष्ट्रों की एकजुटता हमेशा संभव नहीं।
- शक्ति असंतुलन: महाशक्तियों का प्रभुत्व निर्णय प्रक्रिया पर हावी रहता है।
- राष्ट्रीय हितों का टकराव: कई बार देश अपने स्वार्थ के कारण सामूहिक कार्रवाई से बचते हैं।
- वेटो प्रणाली: सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों का veto सामूहिक कार्रवाई को रोक सकता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य (Contemporary Relevance)
- वर्तमान युग में सामूहिक सुरक्षा की भूमिका बहुआयामी हो गई है — यह केवल युद्ध रोकने तक सीमित नहीं, बल्कि आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, साइबर अपराध आदि वैश्विक खतरों से भी जुड़ी है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (UN Peacekeeping Forces) इसका आधुनिक स्वरूप हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विश्व शांति का आधार स्तंभ है। यद्यपि इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, फिर भी यह सिद्धांत वैश्विक स्थिरता और सहयोग के लिए आवश्यक है।
👉 जैसा कि UN Charter में कहा गया है —
“To save succeeding generations from the scourge of war.”
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