
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की समस्या को ध्यान में रखते हुए 2025 को “ग्लेशियर संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय वर्ष” घोषित किया है। इसका उद्देश्य जल स्रोतों की रक्षा के लिए वैश्विक प्रयासों को एकजुट करना है। यह पहल यूनेस्को और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा शुरू किया गया है।
ग्लेशियर संरक्षण वर्ष का लक्ष्य
● ग्लेशियरों को और अधिक पिघलने से रोकने, उनके पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को संरक्षित करने तथा जल संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक प्रयासों को संगठित करना।
● जागरूकता स्थापना करना।
● सहयोग को बढ़ावा देना।
● कार्रवाई की वकालत करना।
● वैज्ञानिक समझ को बढ़ाना।
● नीतिगत ढांचे और वित्तीय सहायता को मजबूत करना।
ग्लेशियर प्वाइंटस
● अधिकांश ग्लेशियर ध्रुवीय क्षेत्रों जैसे ग्रीनलैंड, कनाडा आर्कटिक और अंटार्कटिका में पाए जाते हैं, क्योंकि उच्च अक्षांशों पर सौर विकिरण कम होता है।
● उष्णकटिबंधीय ग्लेशियर भूमध्य रेखा के पास पर्वत शृंखलाओं में मौजूद हैं, जैसे दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वतमाला बहुत ऊँचाई पर स्थित है। पृथ्वी का लगभग 2% जल ग्लेशियरों में संग्रहित है।
ग्लेशियर की वर्तमान स्थिति
● मैथियास जुरेक ने पहले भी कहा था कि, “दुनिया भर के ग्लेशियर खतरे में हैं।”
● ग्लेशियर और बर्फ की चादरें विश्व के 70% ताजे पानी को संग्रहीत करती हैं, लेकिन उनका तीव्र पिघलना पर्यावरण और मानवता के लिए बड़ा संकट पैदा कर रहा है।
● 2023 में ग्लेशियर पिछले 50 वर्षों में सबसे अधिक मात्रा में पिघला है। यूनेस्को की रिपोर्ट बताती है कि 50 विश्व धरोहर स्थलों में से एक-तिहाई ग्लेशियर 2050 तक गायब हो सकते हैं।
ग्लेशियरों कैसे बचाएं
● यूएनईपी और साझेदार संगठन जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में पर्वतीय समुदायों और सरकारों के साथ काम करते हैं। जैसे; इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) है। यह हिंदुकुश-हिमालय के ऊंचे पहाड़ों में बर्फ की कवरेज और ग्लेशियल झीलों की निगरानी भी करता है।
● हिमालय जैसे क्षेत्रों में, बढ़ते तापमान की समस्या तीन गुना है: इससे पर्वतीय ग्लेशियर पिघलते हैं, जिससे बाढ़ आ सकती है।
● इससे ग्लेशियर कवरेज भी कम हो जाता है, जिससे लोगों, कृषि और जलविद्युत के लिए पानी की दीर्घकालिक उपलब्धता में कमी आती है।
● स्विट्जरलैंड स्थित संगठन वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विस वैश्विक हिमनद परिवर्तन पर नज़र रखता है।
● पेरिस समझौते में, सदस्य देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस से कम और अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की प्रतिबद्धता जताई थी। इससे ग्लोबल वार्मिंग को धीमा करके ग्लेशियरों को बचाने में मदद मिलेगी।
● स्विस विकास एवं सहयोग एजेंसी द्वारा वित्तपोषित ऊंचाई पर अनुकूलन कार्यक्रम के संदर्भ में, यूएनईपी और साझेदार ग्रह के गर्म होते तापमान के अनुकूल होने के लिए नवोन्मेषी समाधानों पर काम कर रहे हैं।
● जेसिका ट्रोनी के अनुसार, पारिस्थितिकी तंत्र आधारित अनुकूलन परियोजनाएं पहाड़ी ढलानों पर जंगलों और झाड़ियों को बहाल कर सकते हैं, जो मिट्टी को एक साथ रखकर और सतही जल के प्रवाह को नियंत्रित करके बाढ़ और भूस्खलन दोनों को रोकने में मदद करता हैं।
ग्लेशियर संरक्षण के लिए 2025 को अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित करने के सकारात्मक अल्पकालिक प्रभाव निम्नलिखित हो सकते हैं:
● ज्वालामुखीय क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की खोज की संभावना है
● पिघलती बर्फ से उत्तरी समुद्री मार्ग खुलने से व्यापार तेज होगे।
● नए जल स्रोत और खेती योग्य भूमि उपलब्ध हो सकती है।
● नई पारिस्थितिकी तंत्र और आवास विकसित होंगे।
चुनौतियां
● ग्लेशियर पिघलने से करोड़ों लोगों के लिए जल स्रोत प्रभावित हो रहे हैं। खासकर एशिया, अफ्रीका और मध्य एशिया में, जहां देशों के बीच पानी साझा होता है।
● जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है, जिससे ग्लेशियरों का नुकसान हो रहा है।
● विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त जुटाने का दबाव बन सकता है।
● जल संसाधनों पर निर्भर देशों के बीच तनाव और समाधान खोजने की आवश्यकता है।
● यह पहल जलवायु संकट के समाधान के लिए देशों को एकजुट करेगी है और पेरिस समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने में मदद करेगी है।
निष्कर्ष
2025 को ग्लेशियर संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित करना एक महत्वपूर्ण कदम है जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देता है। यह पहल जागरूकता फैलाने, ग्लेशियरों के महत्व को समझाने और संरक्षण के लिए वैज्ञानिक, नीतिगत और वित्तीय ढांचे को मजबूत करने की दिशा में काम करेगी। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन, वित्तीय दबाव और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में कमी जैसी चुनौतियाँ बनी रहेंगी। इस पहल से न केवल पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल और पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखने का मार्ग भी प्रशस्त होगा।