सामुदायिक विकास कार्यक्रम 1952 तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम 1953 की असफलता की जांच करने के लिए भारत सरकार ने 1957 ईस्वी में बलवंत राय मेहता समिति की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट 1958 में सरकार को सौंप दी समिति ने जनतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सिफारिश की जिसे पंचायती राज कहा गया इसकी निम्न सिफारिश है
- त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली की स्थापना की जाए
(i) ग्राम पंचायत
(ii) पंचायत समिति
(iii) जिला पंचायत
- तीनों को एक दूसरे से अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से जोड़ा जाए |
- ग्राम पंचायत का चुनाव प्रत्यक्ष रुप से तथा पंचायत समिति और जिला पंचायत का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से हो |
- विकास व नियोजन से जुड़े सभी कार्यों को इन संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाए |
- पंचायत समिति को कार्यकारी निकाय तथा जिला पंचायत को पर्यवेक्षी समन्वयात्मक तथा सलाहकारी निकाय बनाया जाए |
- जिला कलेक्टर को जिला पंचायत का अध्यक्ष बनाया जाए |
- विकास कार्य करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएं |
अतः समिति की सिफारिशों को 1958 में स्वीकार कर लिया गया जिसके तहत सर्वप्रथम पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले से 2 अक्टूबर 1959 को हुआ इसके बाद कई राज्यों ने अपने यहां इस प्रणाली का शुभारंभ किया जैसे
- आंध्र प्रदेश – 1959
- कर्नाटक, तमिलनाडु, असम – 1960
- महाराष्ट्र – 1962
- गुजरात – 1963
- पश्चिम बंगाल – 1964
परंतु सभी राज्यों में पंचायतों के स्तर भिन्न भिन्न न थी |
अशोक मेहता समिति (1977-78)
पंचायती राज्य संस्थाओं के संबंध में 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट 1978 में सरकार को सौंप दिए समिति ने निम्न सिफारिशें सरकार को सौंपी |
- त्रिस्तरीय प्रणाली को समाप्त कर द्विस्तरीय प्रणाली अपनाई जाए 15000-20000 की जनसंख्या पर मंडल पंचायत का गठन किया जाए तथा ग्राम पंचायतों को समाप्त किया जाए |
- जिले को विकेंद्रीकरण का प्रथम स्थान माना जाए |
- पंचायत चुनाव राजनीतिक दल के आधार पर होने चाहिए |
- जिला स्तर के नियोजन के लिए जिले को ही जवाबदेही बनाया जाए तथा जिला परिषद एक कार्यकारी निकाय हो |
- पंचायतों को कर लगाने की शक्ति हो जिससे वित्तीय संस्थाओं को जुटाया जाए |
- जिला स्तर की एजेंसी से पंचायतों के लेखों की संपरीक्षा होनी चाहिए |
- न्याय पंचायतों को पंचायतों से अलग रखा जाए, जिसका प्रमुख न्यायाधीश हो |
- राज्य पंचायतों का अतिक्रमण ना करें अगर करें तो 6 माह के अंदर चुनाव होने चाहिए |
- भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त की सलाह पर राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव कराना चाहिए |
- विकास के कार्य जिला परिषद को दिए जाएं |
- राज्य में पंचायती राज्य मंत्रालय का गठन किया जाए तथा एक पंचायत मंत्री की नियुक्ति की जाए |
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए जनसंख्या के आधार पर सीटों का आरक्षण हो |
एल एम सिंघवी समिति
1986 में राजीव गांधी सरकार द्वारा ‘रिवाइटलाइजेशन ऑफ पंचायती राज इंस्टीट्यूशंस फॉर डेमोक्रेसी एंड डेवलपमेंट’ विषय पर एल एम सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया | इस समिति ने निम्न सिफारिशें सरकार को सौंपी |
- पंचायती राज्य संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाए और संविधान में इसके लिए अलग अध्याय को जोड़ा जाए तथा इन संस्थाओं के नियमित चुनाव के लिए संविधान में प्रावधान किया जाए |
- कई गांवों को मिलाकर न्याय पंचायतों का गठन किया जाए |
- पंचायतों के लिए कई गांवों का पुनर्गठन किया जाए |
- पंचायतों को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएं |
- पंचायतों से जुड़े मामलों (जैसे चुनाव, समय से पूर्व पंचायतें भंग करने तथा कार्यप्रणाली) को हल करने के लिए राज्य में न्यायिक अधिकरण की स्थापना की जाए |
पी के थुंगन समिति
- इस समिति का गठन 1989 में पंचायती राज्य संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया तथा इस समिति ने भी पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की सिफारिश की |
जी वी के राव समिति- 1985-86
- योजना आयोग ने जी बी के राव की अध्यक्षता में 1985 में ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए प्रशासनिक प्रबंधन विषय पर एक समिति का गठन किया गया तथा समिति ने अपनी रिपोर्ट 1988 में सरकार को सौंप दी और कहा कि लोकतांत्रिकरण की जगह विकासात्मक प्रशासन पर नौकरशाही की छाया पड़ने से पंचायती राज की संस्थाएं निर्बल हुई है तथा उनकी स्थिति बिना जड़ के घास जैसी हो गई है |
- समिति ने विकेंद्रीकरण के तहत नियोजन एवं विकास कार्य में पंचायतों की भूमिका को बल प्रदान किया इसी के तहत जी बी के राव समिति की सिफारिशें, दांतवाला समिति 1978 जो कि ब्लॉक नियोजन से संबंधित थी तथा 1984 में जिला स्तर के नियोजन से संबंधित हनुमंत राव समिति की रिपोर्ट से भिन्न है |
- अतः दांतवाला और हनुमंत राव समिति ने सिफारिश की थी विकेंद्रीकृत नियोजन के कार्यों को जिला स्तर पर ही किया जाए तथा हनुमंत राव समिति ने मंत्री या जिला कलेक्टर के अधीन जिला नियोजन संगठन की सिफारिश की अतः जिला कलेक्टर की भूमिका को आवश्यक माना तथा पंचायतों की भूमिका बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया |
जी बी के राव समिति की सिफारिशें (Recommendations of GVK Rao Committee)
जी बी के राव समिति ने निम्न सिफारिशें प्रस्तुत की जो कि निम्न है
- विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया में जिला परिषद की सशक्त भूमिका होनी चाहिए, क्योंकि नियोजन एवं विकास कार्य के लिए जिला एक उपयुक्त स्तर है |
- विकास कार्यक्रमों का पर्यवेक्षण नियोजन कार्यालय जिला या उसके निचले स्तर की पंचायती संस्थाओं द्वारा किया जाना चाहिए |
- जिला विकास आयुक्त के पद का सृजन किया जाए तथा उसे जिले के विकास कार्यों का प्रभारी बनाया जाए |
- नियमित चुनाव कराने चाहिए |
गाडगिल समिति
1988 में बी एन गाडगिल की अध्यक्षता में एक नीति एवं कार्यक्रम समिति का गठन कांग्रेस पार्टी ने किया था ।इस समिति से इस प्रश्न पर विचार करने को कहा गया कि पंचायती राज संस्थाओं को प्रभावी कैसे बनाया जाए । इस संदर्भ में समिति ने निम्न अनुशंसा की थी :
१ पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाये
२ गाँव प्रखंड एवं जिला स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती राज होना चाहिए
३ पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल पाँच साल सुनिश्चित किया जाना चाहिए
४ पंचायत के सभी तीन स्तरों के सदस्यों का सीधा निर्वाचन होना चाहिए
५ अनुसूचित जातीयों जनजातियों तथा महिलाओं के लिए आरंक्षण होना चाहिए
संवैधानीकरण:
राजीव गांधी सरकर : एल एम सिंघवी समिति की अनुशंसाओं की प्रतिक्रिया ।राजीव गांधी सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं के संवैधानीकरण और उन्हें ज़्यादा शक्तिशाली बनाने हेतु जुलाई 1989 में 64 वा संविधान संशोधन विधेयक लोक सभा में पेश किया ।यद्यपि अगस्त 1989 में लोक सभा ने यह विधेयक पारित किया किंतु राज्य सभा द्वारा इसे पारित नहीं किया गया
बी पी सिंह सरकार
नवंबर 1989 में बी पी सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने कार्यालय सम्भाला और शीघ्र ही घोसना की कि वह पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती प्रदान करेगी सितंबर 1990 में इससे संबंधित एक विधेयक लोक सभा में प्रस्तुत किया गया लेकिन सरका के गिरने के साथ ही यह विधेयक भी समाप्त हो गया नरसिम्हा राव सरकार:
पी बी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक बार फिर पंचायती राज के संवैधानीकरण के मामले पर विचार किया गया । इसके लिए सितंबर 1991 को लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया अंततः यह विधेयक 73 वे संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के रूप में पारित हुआ और 24 अप्रैल 1993 को प्रभाव में आया ।
73वें संशोधन के मुख्य बिंदु:
*पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देना*
1. *पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना*: 73वें संशोधन के तहत, पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना अनिवार्य की गई है।
2. *त्रिस्तरीय पंचायती राज*: इस संशोधन के तहत, त्रिस्तरीय पंचायती राज की व्यवस्था की गई है, जिसमें ग्राम पंचायत, मंडल पंचायत और जिला पंचायत शामिल हैं।
3. *पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव*: पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव हर पांच साल में अनिवार्य रूप से आयोजित किए जाने हैं।
4. *पंचायती राज संस्थाओं के कार्य*: पंचायती राज संस्थाओं को ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल और स्वच्छता जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार बनाया गया है।
5. *महिलाओं के लिए आरक्षण*: पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं।
6. *अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण*: पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
*उद्देश्य*
73वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देना और उन्हें अधिक शक्तियां प्रदान करना है, ताकि वे ग्रामीण विकास के कार्यों को प्रभावी ढंग से कर सकें।
73वें संशोधन का महत्व:
*स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा*
1. *पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा*: 73वें संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया, जिससे उन्हें अधिक शक्तियां और जिम्मेदारियां मिलीं।
2. *ग्रामीण विकास के लिए*: इस संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं को ग्रामीण विकास के कार्यों के लिए जिम्मेदार बनाया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा मिला।
3. *स्थानीय मुद्दों का समाधान*: पंचायती राज संस्थाओं को स्थानीय मुद्दों का समाधान करने की शक्ति दी गई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में समस्याओं का समाधान तेजी से हो सके।
*महिलाओं और वंचित वर्गों के लिए आरक्षण*
1. *महिलाओं के लिए आरक्षण*: इस संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कीं, जिससे महिलाओं को राजनीति में अधिक प्रतिनिधित्व मिला।
2. *अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण*: इस संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की, जिससे वंचित वर्गों को अधिक प्रतिनिधित्व मिला।
*लोकतंत्र को मजबूत करना*
1. *लोकतंत्र को मजबूत करना*: इस संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं को लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर दिया।
2. *नागरिकों की भागीदारी*: इस संशोधन ने नागरिकों को पंचायती राज संस्थाओं में भाग लेने और अपने क्षेत्र के विकास में योगदान देने का अवसर दिया।