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प्रमुख समुदायवादी विचारक: योगदान

समुदायवाद (Communitarianism) एक राजनीतिक और दार्शनिक सिद्धांत है जो व्यक्तिवाद के बजाय समाज और समुदाय की भूमिका पर जोर देता है। यह सिद्धांत इस बात पर केंद्रित है कि एक व्यक्ति अपनी पहचान, जिम्मेदारी, और स्वतंत्रता को समाज और सांस्कृतिक परंपराओं के संदर्भ में समझे। समुदायवादी विचारक मानते हैं कि स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांत को केवल व्यक्तिगत अधिकारों के तौर पर नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों और साझा मूल्यों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

प्रमुख समुदायवादी विचारक और उनके योगदान

  1. माइकल सैंडल (Michael Sandel)

    • प्रमुख कृतियाँ: Liberalism and the Limits of Justice (1982), Justice: What’s the Right Thing to Do? (2009)

    • योगदान: माइकल सैंडल, लिबरलिज़्म की आलोचना करते हुए, समाज और समुदाय की भूमिका को न्याय के सिद्धांत में शामिल करने का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि न्याय केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधारित नहीं हो सकता, बल्कि यह साझा नैतिक मूल्यों पर भी आधारित होना चाहिए। सैंडल का मानना है कि व्यक्तिगत पहचान और अधिकार समाज के परिप्रेक्ष्य में ही समझे जा सकते हैं, क्योंकि हम सिर्फ स्वतंत्र व्यक्ति नहीं हैं, हम समुदाय का हिस्सा हैं।

    • प्रसिद्ध उद्धरण:

      • “The community is the place where we discover who we are.”
      • “We are not just free individuals, we are also shaped by the communities we belong to.”
    • (समुदाय वह स्थान है जहाँ हम पता लगाते हैं कि हम कौन हैं। हम सिर्फ स्वतंत्र व्यक्ति नहीं हैं, हम उन समुदायों से भी आकारित होते हैं जिनसे हम संबंधित होते हैं।)

  2. चार्ल्स टेलर (Charles Taylor)

    • प्रमुख कृतियाँ: Sources of the Self (1989), Multiculturalism and The Politics of Recognition (1992)

    • योगदान: टेलर ने पहचान और समुदाय के बीच के रिश्ते पर गहराई से विचार किया। उनका मानना था कि व्यक्तिगत पहचान केवल व्यक्तिगत अनुभवों और निर्णयों पर आधारित नहीं होती, बल्कि यह समाज, संस्कृति, और समुदायों से गहरे जुड़े होते हैं। उनका “पहचान” सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि हम अपनी पहचान को समाज और समुदाय से मान्यता प्राप्त करके ही समझ सकते हैं। यह सिद्धांत संवेदनशीलता और सांस्कृतिक विविधता के महत्व पर भी जोर देता है।

    • प्रसिद्ध उद्धरण:

      • “The self is not a single, unified thing, but a social creation.”
      • “A recognition of difference is the foundation of a just society.”
    • (स्वयं एक एकल, एकीकृत वस्तु नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक निर्माण है। भिन्नता की स्वीकृति ही एक न्यायपूर्ण समाज की नींव है।)

  3. अलास्डेयर मैकइंटायर (Alasdair MacIntyre)

    • प्रमुख कृतियाँ: After Virtue (1981), Whose Justice? Which Rationality? (1988)

    • योगदान: मैकइंटायर का विचार था कि नैतिकता और सद्गुण केवल व्यक्तिगत दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति की परंपराओं के संदर्भ में समझी जानी चाहिए। वे यह मानते हैं कि समाज में सद्गुण और नैतिकता के सिद्धांतों को जीवित रखने के लिए एक साझा परंपरा और सांस्कृतिक समझ का होना आवश्यक है। उन्होंने आधुनिक समाज में नैतिक और सामाजिक परंपराओं के महत्व को रेखांकित किया।

    • प्रसिद्ध उद्धरण:

      • “I can only answer the question ‘What am I to do?’ if I can answer the question ‘Of what story or stories do I find myself a part?'”
      • “A tradition is an argument extended through time.”
    • (मैं केवल इस सवाल का उत्तर दे सकता हूँ कि ‘मुझे क्या करना चाहिए?’ अगर मैं यह उत्तर दे सकूं कि ‘मैं किस कहानी या कहानियों का हिस्सा हूं?’ एक परंपरा समय के साथ विस्तारित एक तर्क है।)

  4. अमिताई एत्ज़ियोनी (Amitai Etzioni)

    • प्रमुख कृतियाँ: The Spirit of Community (1993), The New Golden Rule (1997)

    • योगदान: एत्ज़ियोनी ने सामाजिक जिम्मेदारी और समुदाय के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि समाज में समूहों और साझी मूल्यों का महत्व अत्यधिक है, और व्यक्ति को अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी ध्यान रखना चाहिए। वे एक नए स्वर्णिम नियम की आवश्यकता की बात करते हैं, जो हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करने के लिए प्रेरित करे जैसा हम अपने प्रियजनों के साथ करते हैं।

    • प्रसिद्ध उद्धरण:

      • “The spirit of community and the shared values that create it are more important than individual rights.”
      • “We need a new golden rule: we should treat others the way we would treat our loved ones.”
    • (समुदाय की भावना और उसे बनाने वाले साझा मूल्य व्यक्तिगत अधिकारों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। हमें एक नया स्वर्णिम नियम चाहिए: हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसे हम अपने प्रियजनों के साथ करते हैं।)

  5. माइकल वाल्ज़र (Michael Walzer)

    • प्रमुख कृतियाँ: Spheres of Justice (1983), The Communitarian Critique of Liberalism (1987)

    • योगदान: वाल्ज़र ने सामाजिक न्याय के सिद्धांत में विभिन्न क्षेत्रों (spheres) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें प्रत्येक क्षेत्र के न्याय के अलग-अलग मानक होते हैं। उनका कहना था कि न्याय के सिद्धांतों को समाज के विभिन्न हिस्सों में लागू किया जाना चाहिए, जैसे राजनीति, संस्कृति और आर्थिक क्षेत्र। यह विचार व्यक्तित्व, समुदाय और विविधता के संदर्भ में न्याय को समझने का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है।

    • प्रसिद्ध उद्धरण:

      • “Justice is not a matter of general principles, but of specific rules suited to particular practices.”
      • “We cannot understand justice except in the context of particular communities.”
    • (न्याय सामान्य सिद्धांतों का मामला नहीं है, बल्कि यह विशिष्ट प्रथाओं के लिए उपयुक्त विशेष नियमों का मामला है। हम न्याय को केवल विशेष समुदायों के संदर्भ में ही समझ सकते हैं।)

  6. जॉन ग्रे (John Gray)

    • प्रमुख कृतियाँ: Two Faces of Liberalism (2000), Hayek on Liberty (1984)

    • योगदान: जॉन ग्रे ने समुदायवादी सिद्धांतों और लिबरलिज़्म की आलोचना करते हुए, सांस्कृतिक और राजनीतिक विविधता की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका यह मानना था कि न्याय का कोई सार्वभौमिक सिद्धांत नहीं हो सकता, क्योंकि समाजों के बीच विभिन्न सांस्कृतिक और नैतिक विश्वास होते हैं। वे सांस्कृतिक बहुलवाद और समाज की विविधता को स्वीकार करने की बात करते हैं।

    • प्रसिद्ध उद्धरण:

      • “The pluralism of values is the real condition of human life.”
      • “Liberalism claims to be universal, but it is in fact a particular philosophy of human life.”
    • (मूल्यों का बहुलतावाद ही मानव जीवन की वास्तविक स्थिति है। लिबरलिज़्म इसे सार्वभौमिक मानने का दावा करता है, लेकिन यह वास्तव में मानव जीवन का एक विशिष्ट दर्शन है।)

समुदायवाद के प्रमुख सिद्धांत

  1. समुदाय और व्यक्तित्व: समुदायवादी विचारक यह मानते हैं कि एक व्यक्ति केवल अपने स्वतंत्रता के हक से नहीं समझा जा सकता। व्यक्ति का अस्तित्व समाज और समुदाय के भीतर है, और उसकी पहचान भी इन्हीं के आधार पर बनती है। समुदाय, परंपरा, और सामाजिक संबंध व्यक्ति के आत्म-संवेदन और नैतिक निर्णयों को आकार देते हैं।

  2. लिबरलिज़्म की आलोचना: समुदायवादी विचारक लिबरलिज़्म को आलोचना करते हैं क्योंकि यह सिद्धांत केवल व्यक्तित्व और स्वतंत्रता को प्रमुख मानता है, जबकि समाज, संस्कृति और सामूहिक हितों की उपेक्षा करता है। समुदायवाद का कहना है कि समाज की नैतिकता और एकता को ध्यान में रखकर ही स्वतंत्रता को संतुलित किया जा सकता है।

  3. सांस्कृतिक परंपराएँ और नैतिक मूल्य: समुदायवादियों के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति की पहचान केवल व्यक्तिगत निर्णयों पर आधारित नहीं होती, बल्कि वह समाज, संस्कृति और समुदाय से प्रभावित होती है। इसलिए, नैतिकता और न्याय को सांस्कृतिक परंपराओं और साझा मूल्यों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

  4. सामाजिक न्याय: समुदायवाद में न्याय का अर्थ केवल व्यक्तित्व और अधिकारों से नहीं होता, बल्कि यह सामाजिक जिम्मेदारी और समूहों के बीच सहयोग पर आधारित होता है। एक न्यायपूर्ण समाज वह है जहाँ व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए समाज की भलाई और समानता में योगदान करता है।

निष्कर्ष:

समुदायवादी विचारकों का यह दृष्टिकोण है कि व्यक्ति और समुदाय का आपसी संबंध, सांस्कृतिक परंपराओं, सामाजिक जिम्मेदारियों, और साझे नैतिकता के माध्यम से सामाजिक न्याय को सुनिश्चित किया जा सकता है। उनका यह मानना है कि व्यक्तिगत अधिकारों को समाज की सामूहिक भलाई और साझी जिम्मेदारियों से जोड़कर ही न्याय का वास्तविक रूप सामने आ सकता है।

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