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ट्रम्प युग में व्यापारिक शक्ति संतुलन और पारस्परिकता का खेल

डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका की नीतियाँ वैश्विकव्यापार व्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं। 13 फरवरी को व्हाइट हाउसद्वारा एक मेमो जरी किया गया इस मेमो में “Fair and Reciprocal Plan” (न्यायसंगत और पारस्परिक योजना) का प्रस्ताव दिया गया है, जोअमेरिका के व्यापार भागीदारों के साथगैरपारस्परिक व्यापारसमझौतों को समाप्त करने के लिए बनाया गया है। हालांकि, इसयोजना को लागू करने से WTO (विश्व व्यापार संगठन) के कई नियमोंका उल्लंघन होगा और यह विकासशील देशों के लिए असमानपरिस्थितियाँ पैदा कर कर सकती है

Fair and Reciprocal Plan के मुख्य तत्व

इस योजना का मुख्य उद्देश्य अमेरिका के बड़े व्यापार घाटे को कमकरना औरअनुचित व्यापार समझौतोंको रोकना है।

अमेरिका अपने व्यापार भागीदारों के लिए एक पारस्परिक शुल्क(reciprocal tariff) लागू करना चाहता है, जिसे निम्नलिखित चारआधारों पर तय किया जाएगा:

1. मूल्य वर्धित कर (VAT) और अन्य कर: विदेशी देशों द्वारा अमेरिकीउत्पादों पर लगाए गए अतिरिक्त करों की समीक्षा की जाएगी।
2. गैरशुल्कीय और नियामक बाधाएँ: अमेरिकी कंपनियों के लिएव्यापार करने में कठिनाई पैदा करने वाले सरकारी नियम, बौद्धिकसंपदा सुरक्षा की कमी, डिजिटल व्यापार पर नियंत्रण आदि।
3. मुद्रा विनिमय नीतियाँ: ऐसी नीतियाँ जो अमेरिकी कंपनियों कोप्रतिस्पर्धा में नुकसान पहुँचाती हैं।
4. अन्य व्यापारिक बाधाएँ: वे सभी प्रथाएँ जो अमेरिकी कंपनियों केलिए बाज़ार तक पहुँच को सीमित करती हैं।

WTO के सिद्धांतों को कैसे ओवेरलेप करता है?

सबसे अधिक अनुकूल राष्ट्र (MFN) नियम का उल्लंघन: अमेरिकाअलगअलग देशों पर अलगअलग शुल्क लगाएगा, जो WTO केMFN नियम के खिलाफ है।
अमेरिकी शुल्क सीमा (Bound Tariffs) का उल्लंघन: WTO कीनिर्धारित शुल्क सीमा को पार कर यह योजना लागू होगी।
गैरभेदभावपूर्ण कर नीति का उल्लंघन: WTO देशों को आयातितऔर घरेलू उत्पादों पर समान मूल्य वर्धित कर लगाने की अनुमतिदेता है, लेकिन अमेरिका इसे बदलना चाहता है।
सरकारी खरीद नीतियों में दखल: अधिकांश विकासशील देशों कोअपने घरेलू उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं को प्राथमिकता देने कीअनुमति है, लेकिन अमेरिका इसमें दखल देगा।
एकतरफा कार्रवाई पर प्रतिबंध: WTO के अनुसार, अमेरिका अन्यदेशों की व्यापारिक नीतियों को जबरदस्ती नहीं बदल सकता।

इस योजना को लागू करने से WTO की संप्रभुता पर सीधा आघात होगाऔर यह वैश्विक व्यापार संतुलन को बिगाड़ सकती है।

अमेरिकी एजेंडा

इस योजना का अंतिम उद्देश्य दुनिया के अन्य देशों पर व्यापारिकदबाव डालना और अमेरिकी व्यापारिक हितों को आगे बढ़ाना है।इसके तहत, अमेरिका चाहता है कि अन्य देश अपने सरकारी खरीदनियमों, डिजिटल व्यापार, सब्सिडी और बौद्धिक संपदा (IPR) सेजुड़े कानूनों में बदलाव करें।
अमेरिका इस योजना के ज़रिए विकासशील देशों को अपनीव्यापारिक संप्रभुता से समझौता करने पर मजबूर कर सकता है।

क्या विकासशील देश अमेरिका का मुकाबला कर सकते हैं?

अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर छोटे देश झुक सकते हैं, लेकिन भारत, चीन, ब्राज़ील जैसे बड़े देश मिलकर विरोध कर सकते हैं।
यदि अमेरिका इस योजना को लागू करता है, तो विकासशील देशअमेरिकी पेटेंट और बौद्धिक संपदा अधिकारों का पालन करना बंदकर सकते हैं।

क्योंकि अमेरिका की पारस्परिक शुल्क योजना (Reciprocal Tariff Plan) यदि लागू होती है, तो यह WTO के मूल सिद्धांतों को नष्ट करसकती है और वैश्विक व्यापारिक नियमों को कमजोर कर सकती है।

“Make America Great Again” की नीति के कारण, दूसरे देशों कोअमेरिकी बाज़ार से कोई खास फायदा नहीं मिलेगा।

भारत क्या कर सकता है?

भारत को WTO में इस बात को उठाना चाहिए कि अमेरिका खुदडेयरी, कृषि और टेक्सटाइल सेक्टर में बड़े पैमाने पर सब्सिडी देताहै, जिससे प्रतिस्पर्धा असमान हो जाती है। अमेरिका के डेयरी औरकृषि उत्पादों पर 140% तक का शुल्क है, जिसे भारत एकतर्कसंगत आधार पर WTO में चुनौती दे सकता है।
भारत को केवल अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका में अपने निर्यात बाजारों काविस्तार करना चाहिए। RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) जैसे समझौतों पर ध्यान देकर भारत कोविकल्पों की तलाश करनी चाहिए।
भारत को फार्मास्यूटिकल और टेक्नोलॉजी सेक्टर में अधिक नवाचार(Innovation) और स्वदेशी उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।
भारत को अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता में अधिक आक्रामक रुखअपनाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यदि वहअमेरिका को कोई व्यापारिक रियायत (Concession) देता है, तोअमेरिका भी भारत के लिए बाजार खोले।

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