नागालैंड सरकार द्वारा जारी निरोध आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने सही कारणोंकी कमी के कारण रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा किनिवारक निरोध एक कठोर कानून है, इसलिए इसे लागू करते समयसंवैधानिक और कानूनी प्रावधानों का पूरी तरह पालन किया जानाअनिवार्य है। कोर्ट ने यह भी बतया कि नागालैंड सरकार द्वारा के निरोधअदेह में कानूनी नियमों का उल्लंघन किया गया था।
निवारक निरोध (Preventive Detention) क्या है?
▪ निवारक निरोध भारतीय संविधान का एक अनूठा प्रावधान है जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को देश के किसी कानून का उल्लंघन किए बिना भी गिरफ्तार किया जा सकता है। इस संबंध में डी. डी. बसु कहते हैं, “निवारक निरोध का अर्थ है बिना किसी मुकदमे के किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना । “ऐसी निरोध का उद्देश्य व्यक्ति को दंडित करना नहीं है, बल्कि उस व्यक्ति को गलत और असंवैधानिक कार्य करने से रोकना है।
▪ फिनले के अनुसार , “यह दंडात्मक नहीं बल्कि एहतियाती उपाय है।”यह दंडात्मक निरोध (Punitive Detention) से अलग है, क्योंकिदंडात्मक निरोध में कानूनी प्रक्रिया और दोषसिद्धि (Conviction) के बाद सजा दी जाती है, जबकि निवारक निरोध केवल संदेह केआधार पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करता है।
क्या है मामला
दो व्यक्तियों को नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों की अवैधतस्करी निवारण अधिनियम, 1988 (PITNDPS Act) के तहत निवारकनिरोध में रखा गया था। और पुलिस ने आरोप लगाया कि रिहा होने पर वेफिर से मादक पदार्थों की तस्करी शुरू कर सकते हैं, लेकिन उनकेखिलाफ कोई अलग और विशिष्ट आधार (Separate Grounds) प्रस्तुतनहीं किया गया।
निरोध आदेश क्यों रद्द हुआ – सुप्रीम कोर्ट
▪ धारा 6 का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निरोध आदेश में अलगऔर विशिष्ट आधारों की कमी के कारण यह PITNDPS अधिनियम की धारा 6 का उल्लंघन करता है।
▪ मौखिक सूचना पर्याप्त नहीं: याचिकाकर्ताओं को, जो अंग्रेजी नहींसमझते थे, उन्हें नागामीज़ में मौखिक रूप से निरोध के कारण बताएगए। कोर्ट ने इसे अपर्याप्त मानते हुए हरिकिशन बनाम महाराष्ट्रराज्य (1962) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था किकेवल मौखिक सूचना देना कानूनी रूप से पर्याप्त नहीं है।
▪ मौलिक अधिकारों की रक्षा: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निवारक निरोधसे मौलिक अधिकारों पर असर पड़ता है, इसलिए कानूनी प्रक्रियाओं(Statutory Norms) का सख्ती से पालन आवश्यक है।
इन खामियों के कारण सुप्रीम कोर्ट ने निरोध आदेशों को रद्द (Quash) करदिया।
निवारक निरोध और दंडात्मक निरोध के बीच अंतर
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दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा151 के तहत निवारक निरोध का अर्थ है किसी व्यक्तिको न्यायालय द्वारा बिना सुनवाई और दोषसिद्धि केहिरासत में लेना। | यह किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अपराध केलिए न्यायालय में सुनवाई और दोषसिद्धि के बाददंडित करने के लिए है। |
उद्देश्य : इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को पिछलेअपराध के लिए दंडित करना नहीं है, बल्कि उसे निकटभविष्य में अपराध करने से रोकना है। | इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को उसके अपराध केलिए दंडित करना है। |
यह केवल एहतियाती उपाय है और संदेह परआधारित है। | यह किये गये अपराध के लिए दण्ड देता है। |
अधिकारों की उपलब्धता – निवारक निरोध कानून के तहत गिरफ्तार या हिरासत मेंलिए गए व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार उपलब्धनहीं हैं : • गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किए जानेका अधिकार • कानूनी व्यवसायी से परामर्श करने और बचावपाने का अधिकार • यात्रा समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतरमजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने काअधिकार • 24 घंटे के बाद रिहा होने का अधिकार, जब तककि मजिस्ट्रेट आगे की हिरासत को अधिकृतन करे | ये सभी अधिकार दंडात्मक निरोध कानून के तहतगिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उपलब्धहैं । |
निवारक निरोध के तहत बंदी को अनुच्छेद 19 याअनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रताका कोई अधिकार नहीं है। | दंडात्मक हिरासत में रखे गए व्यक्ति को अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रताका अधिकार प्राप्त हो सकता है। |
संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)
▪ अनुच्छेद 22(1) और 22(2) के तहत गिरफ्तारी और निरोध से बचावके अधिकार निवारक निरोध कानूनों के तहत हिरासत में लिए गएव्यक्तियों पर लागू नहीं होते, जैसा कि अनुच्छेद 22(3) में उल्लेखितहै।
▪ किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए तीन महीने तक हिरासत मेंरखा जा सकता है।
▪ यदि हिरासत की अवधि बढ़ानी हो, तो यह सलाहकार बोर्ड(Advisory Board) की मंजूरी से किया जा सकता है। यह बोर्डऐसे व्यक्तियों से बना होता है जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशबनने की योग्यता रखते हैं।
▪ हिरासत में लिए गए व्यक्ति को निरोध के कारण बताए जाने चाहिए, जब तक कि इससे जनहित (Public Interest) को नुकसान न हो।
▪ निरुद्ध व्यक्ति को कानूनी प्रतिनिधित्व (Legal Representation) काअधिकार है, हालांकि कुछ मामलों में इस अधिकार पर प्रतिबंधलगाया जा सकता है।
न्यायिक निर्णय
▪ अमीना बेगम बनाम तेलंगाना राज्य, 2023 (Ameena Begum vs The State of Telangana, 2023): सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले मेंकहा कि निवारक निरोध एक असाधारण उपाय (Exceptional Measure) है और इसका मनमाने तरीके से (Arbitrarily) इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
▪ जसीला शाजी बनाम भारत संघ, 2024 (Jaseela Shaji vs The Union of India, 2024): इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा किनिवारक निरोध में रखे गए व्यक्तियों को अपनी रिहाई के लिएनिष्पक्ष मौका (Fair Opportunity) मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह भीस्पष्ट किया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को निरोध के कारणों(Grounds of Detention) को चुनौती देने का पूरा अधिकार है।
निवारक निरोध से संबंधित प्रमुख कानून
▪ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 – UAPA): भारत कीसंप्रभुता (Sovereignty), सुरक्षा (Security) और अखंडता(Integrity) को खतरे में डालने वाली गतिविधियों को रोकने केलिए यह कानून बनाया गया है। इस कानून के तहत आतंकवाद औरराष्ट्र–विरोधी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को बिना मुकदमाचलाए 180 दिन तक हिरासत में रखा जा सकता है।
▪ लोक सुरक्षा अधिनियम, 1978 (Public Safety Act, 1978 – PSA): यह कानून विशेष रूप से जम्मू–कश्मीर में लागू होता है औरसार्वजनिक व्यवस्था (Public Order) तथा सुरक्षा को बनाए रखनेके लिए किसी व्यक्ति को निवारक निरोध में रखने की अनुमति देताहै। इस अधिनियम के तहत बिना मुकदमा चलाए 3 महीने से 2 सालतक हिरासत में रखा जा सकता है।
▪ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (National Security Act, 1980): यह कानून राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) औरसार्वजनिक व्यवस्था (Public Order) को खतरे से बचाने के लिएकिसी व्यक्ति को निवारक निरोध में रखने की अनुमति देता है। इसअधिनियम के तहत, सरकार बिना मुकदमा चलाए किसी व्यक्ति को12 महीने तक हिरासत में रख सकती है।
Source
▪ हिन्दुतान टाइम्स
▪ https://ijrrssonline.in/HTMLPaper.aspx?Journal=International%20Journal%20of%20Reviews%20and%20Research%20in%20Social%20Sciences;PID=2019-7-2-29