यह लेख वैश्विक व्यापार नीति, अमेरिकी संरक्षणवाद (protectionism), और इसके प्रभावों पर केंद्रित है। वर्तमान में “कोई व्यापार मुक्त नहीं होता है”, क्योंकि सभी अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक गतिविधियों में कुछ न कुछ नियम, लागत, या रणनीतिक हित जुड़े होते हैं। अब अमेरिकी संरक्षणवाद वैश्विक व्यापार और विकास के लिए एक चुनौती लेकर आई है।
क्या है संरक्षणवाद (Protectionism)
संरक्षणवाद (Protectionism) एक आर्थिक नीति है जिसके तहत कोई देश अपने घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए आयातित वस्तुओं और सेवाओं पर उच्च शुल्क (Tariffs), कोटा (Quotas), और अन्य व्यापारिक प्रतिबंध लगाता है। अमेरिका ने हाल के वर्षों में इस नीति को आक्रामक रूप से अपनाया है, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन (2016-2020) के दौरान इस नीति को आरम्भ किया गया था। इस नीति का उद्देश्य घरेलू उत्पादकों और श्रमिकों को बचाना है, लेकिन इसके वैश्विक व्यापार, अमेरिकी उपभोक्ताओं और अन्य देशों की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़े हैं। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह एक चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है।
अमेरिकी संरक्षणवाद का इतिहास
अमेरिकी संरक्षणवाद का इतिहास लंबा रहा है। 19वीं और 20वीं शताब्दी में अमेरिका ने कई बार टैरिफ और व्यापारिक नीतियों के माध्यम से अपने उद्योगों को सुरक्षित करने का प्रयास किया। हालांकि, 1945 के बाद वैश्विकरण (Globalization) की लहर के चलते अमेरिका ने मुक्त व्यापार (Free Trade) को अपनाया और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे संस्थानों का नेतृत्व किया। लेकिन 21वीं सदी में, विशेष रूप से चीन के आर्थिक उत्थान और अमेरिकी व्यापार घाटे (Trade Deficit) में वृद्धि के कारण, अमेरिका ने फिर से संरक्षणवाद की नीति अपनानी शुरू की। डोनाल्ड ट्रंप ने 2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद “America First” और “Make America Great Again” नीतियों के तहत कई देशों पर टैरिफ लगाए और व्यापार समझौतों को पुनः परिभाषित किया।
संरक्षणवाद के मुख्य उद्देश्य
- अमेरिका की “न्यायसंगत व्यापार” (Fair Trade) नीति का उद्देश्य रणनीतिक लाभ प्राप्त करना है, न कि पूर्ण मुक्त बाजार को बढ़ावा देना।
- घरेलू उद्योगों और नौकरियों की रक्षा करना – सस्ते आयात से अमेरिकी कंपनियों को बचाना।
- व्यापार घाटे को कम करना – अन्य देशों से होने वाले अधिक आयात को रोकना।
- बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) की रक्षा – अमेरिकी नवाचारों की नकल रोकना।
- रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) प्राप्त करना – चीन और अन्य प्रतिद्वंद्वियों पर निर्भरता कम करना।
- ट्रंप प्रशासन के दौरान यह नीति और आक्रामक हो गई, जिसमें चीन, मैक्सिको, कनाडा और भारत जैसे देशों पर शुल्क लगाए गए।
- यह नीति वैश्विक व्यापार नियमों को कमजोर करती है और अन्य देशों को नियमों से बाहर जाकर व्यापार करने को प्रोत्साहित करती है।
संरक्षणवाद की प्रमुख नीतियां
- ट्रंप प्रशासन ने चीन से आयातित 200 अरब डॉलर के उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाया।
- स्टील और एल्युमिनियम पर शुल्क लगाकर विदेशी उत्पादों को महंगा बनाया।
- NAFTA (North American Free Trade Agreement) को बदलकर USMCA लागू किया।
- ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) से अमेरिका बाहर हो गया।
- ‘अमेरिका में खरीदो’ (Buy American) नीति को अपनाया है, जिसमें सरकारी खरीद में अमेरिकी कंपनियों को प्राथमिकता दी गई और दवा, टेक्नोलॉजी, और रक्षा क्षेत्र में आयात पर प्रतिबंध लगाए गए।
- Huawei और TikTok जैसी चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए गए।
- अमेरिकी कंपनियों को चीन में निवेश करने से रोका गया है।
- चीन, मैक्सिको और कनाडा जैसे देशों पर भारी शुल्क लगाने से अमेरिका के उपभोक्ताओं को नुकसान हुआ क्योंकि इससे सामान महंगा हुआ।
- भारत पर भी अमेरिकी टैरिफ का असर पड़ा, लेकिन भारत ने जवाबी शुल्क नहीं लगाए और इसका नकारात्मक प्रभाव भारतीय निर्यात पर पड़ा।
संरक्षणवाद के वैश्विक प्रभाव
- अमेरिकी टैरिफ के जवाब में चीन और यूरोप ने भी अमेरिका पर टैरिफ लगा दिए। इससे कई उद्योगों को नुकसान हुआ और वैश्विक व्यापार धीमा पड़ा।
- जब अमेरिका ने चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाया, तो मोबाइल, ऑटोमोबाइल, और टेक्सटाइल जैसे उत्पाद महंगे हो गए। अमेरिकी उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ी।
- यूरोप, भारत और चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क लगाया, जिससे अमेरिकी किसानों और निर्यातकों को नुकसान हुआ।
- संरक्षणवाद के कारण अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को कच्चे माल की कीमतों में अस्थिरता का सामना करना पड़ा। इससे उत्पादन लागत बढ़ी और निवेश धीमा पड़ा।
भारत पर प्रभाव और संभावनाएं
- भारतीय उत्पादों पर टैरिफ का असर – अमेरिका ने भारतीय स्टील और एल्युमिनियम पर ऊंचे आयात शुल्क लगाए, जिससे इन उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता घटी और निर्यात प्रभावित हुआ है।
- GSP (Generalized System of Preferences) का निष्कासन – अमेरिका द्वारा भारत के लिए GSP कार्यक्रम को समाप्त करने से भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ा, जिससे उनके व्यापारिक अवसरों में कमी आई है।
- आईटी और फार्मा उद्योग पर प्रभाव – अमेरिकी नीतियों के कारण भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों और दवा उद्योग को व्यापार में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इन क्षेत्रों में आर्थिक दबाव बढ़ा है।
अमेरिका का वास्तविक उद्देश्य
- अमेरिका का उद्देश्य केवल व्यापार नहीं, बल्कि डिज़ाइन और बौद्धिक संपदा (intellectual property) के माध्यम से वर्चस्व बनाए रखना है। अमेरिका अब श्रम-प्रधान उत्पादन (labour-intensive manufacturing) में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता, इसलिए वह व्यापार प्रतिबंध लगाकर अपनी कंपनियों को लाभ देना चाहता है।
- भारत को अपनी व्यापार रणनीति को अमेरिका के टैरिफ से प्रभावित किए बिना नए बाजारों में प्रवेश करना चाहिए। यूके और यूरोपीय संघ के साथ भारत को नए व्यापार समझौते (FTA) को प्राथमिकता देनी चाहिए।
निष्कर्ष
अमेरिकी संरक्षणवाद वैश्विक व्यापार और विकास के लिए एक चुनौती है, लेकिन यह भारत के लिए नए अवसर भी प्रस्तुत करता है। यदि भारत सही व्यापारिक रणनीति अपनाता है और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है, तो वह अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का लाभ उठाकर वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।