महात्मा गांधी, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, भारत में मोहनदास करमचंद गांधी के रूप में हुआ, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति थे। वे अपनी अहिंसक प्रतिरोध (सत्याग्रह) की विचारधारा के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने दांडी नमक मार्च (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) जैसे अभियानों का नेतृत्व किया, जो नागरिक अधिकारों और आत्मनिर्भरता के लिए थे। उनकी विचारधारा ने वैश्विक नागरिक अधिकार आंदोलनों को प्रेरित किया। 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में नाथूराम गोडसे, एक हिंदू राष्ट्रवादी, ने उनकी हत्या कर दी। उनकी विरासत उनकी रचनाओं, जैसे हिंद स्वराज, और सादगी, सत्य व समानता पर जोर देने के माध्यम से जीवित है।
महात्मा गांधी का सामाजिक और राजनीतिक कार्य भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधारों में क्रांतिकारी था। उनके प्रमुख योगदान निम्नलिखित हैं:
सामाजिक कार्य:
1. अस्पृश्यता विरोध: गांधी ने दलितों (“अछूतों”) के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम किया। उन्होंने उन्हें “हरिजन” (ईश्वर के लोग) कहकर सम्मान दिया और मंदिर प्रवेश जैसे आंदोलनों का समर्थन किया।
2. स्वच्छता और शिक्षा: गांधी ने ग्रामीण स्वच्छता, बुनियादी शिक्षा, और सामुदायिक विकास पर जोर दिया। उन्होंने वर्धा में बुनियादी शिक्षा (नई तालीम) की शुरुआत की, जो व्यावहारिक और समावेशी थी।
3. महिला सशक्तिकरण: उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल किया और उनके अधिकारों की वकालत की, जैसे खादी बुनाई के माध्यम से आर्थिक स्वतंत्रता।
4. स्वदेशी और खादी: गांधी ने स्वदेशी वस्तुओं, विशेष रूप से खादी, को बढ़ावा दिया ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो और ब्रिटिश सामानों पर निर्भरता कम हो।
राजनीतिक कार्य:
1. अहिंसक सत्याग्रह: गांधी ने अहिंसा और सत्य पर आधारित सत्याग्रह को ब्रिटिश शासन के खिलाफ हथियार बनाया। यह दक्षिण अफ्रीका (1906-1914) में भारतीयों के अधिकारों के लिए शुरू हुआ और भारत में लागू हुआ।
2. चंपारण सत्याग्रह (1917): बिहार के चंपारण में नील किसानों के शोषण के खिलाफ पहला बड़ा सत्याग्रह, जिसने ब्रिटिश जमींदारों को सुधार के लिए मजबूर किया।
3. खेड़ा सत्याग्रह (1918): गुजरात में किसानों को कर राहत दिलाने के लिए आंदोलन, जो अहिंसक प्रतिरोध का उदाहरण बना।
4. असहयोग आंदोलन (1920-22): गांधी ने ब्रिटिश संस्थानों का बहिष्कार करने का आह्वान किया, जिसमें स्कूल, कॉलेज, और विदेशी सामान शामिल थे। यह स्वराज की मांग थी।
5. दांडी नमक मार्च (1930): नमक पर ब्रिटिश कर के खिलाफ 240 मील का मार्च, जिसने सविनय अवज्ञा आंदोलन को तेज किया और विश्व का ध्यान आकर्षित किया।
6. भारत छोड़ो आंदोलन (1942): स्वतंत्रता की अंतिम मांग के लिए जन आंदोलन, जिसमें “करो या मरो” का नारा दिया गया। इससे ब्रिटिश शासन कमजोर हुआ।
7. सांप्रदायिक सद्भाव: गांधी ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम किया, विशेष रूप से 1940 के दशक में सांप्रदायिक दंगों के दौरान शांति स्थापित करने के लिए उपवास किए।
प्रभाव:
• गांधी के अहिंसक तरीकों ने भारत को 1947 में स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
• उनके सामाजिक सुधारों ने जातिगत भेदभाव और ग्रामीण गरीबी जैसी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया।
• उनकी विचारधारा ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे वैश्विक नेताओं को प्रेरित किया।
महात्मा गांधी का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान अतुलनीय था। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को जन-आंदोलन बनाया। उनके प्रमुख योगदान निम्नलिखित हैं:
1. चंपारण सत्याग्रह (1917):
• बिहार के चंपारण में नील किसानों के शोषण के खिलाफ पहला सत्याग्रह।
• ब्रिटिश जमींदारों को नील की खेती के लिए अनुचित नियम बदलने पर मजबूर किया।
• इससे गांधी को राष्ट्रीय नेता के रूप में पहचान मिली।
2. खेड़ा सत्याग्रह (1918):
• गुजरात के खेड़ा में अकालग्रस्त किसानों के लिए कर माफी की मांग।
• अहिंसक विरोध के माध्यम से ब्रिटिश प्रशासन को झुकाया।
• स्थानीय स्तर पर सत्याग्रह की ताकत दिखाई।
3. असहयोग आंदोलन (1920-22):
• ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला राष्ट्रव्यापी आंदोलन।
• स्कूल, कॉलेज, अदालतों, और विदेशी सामानों (विशेषकर कपड़ों) का बहिष्कार।
• स्वदेशी और खादी को बढ़ावा दिया, जिसने आर्थिक स्वतंत्रता की नींव रखी।
• चौरी-चौरा हिंसा (1922) के बाद गांधी ने आंदोलन वापस लिया, जिससे उनकी अहिंसा की प्रतिबद्धता दिखी।
4. सविनय अवज्ञा आंदोलन और दांडी नमक मार्च (1930):
• नमक पर ब्रिटिश कर के खिलाफ 240 मील का दांडी मार्च (12 मार्च-6 अप्रैल 1930)।
• गांधी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर कानून तोड़ा, जिसने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया।
• राष्ट्रव्यापी नमक सत्याग्रह और ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार हुआ।
• इसने विश्व का ध्यान भारत के स्वतंत्रता संग्राम की ओर खींचा।
5. गांधी-इरविन समझौता (1931):
• सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड इरविन के साथ समझौता।
• राजनीतिक कैदियों की रिहाई और नमक बनाने की अनुमति जैसे मुद्दों पर सहमति।
• गांधी ने लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, हालांकि यह ज्यादा सफल नहीं रहा।
6. भारत छोड़ो आंदोलन (1942):
• स्वतंत्रता के लिए अंतिम और सबसे तीव्र आंदोलन।
• “करो या मरो” का नारा दिया, जिसने जनता में जोश भरा।
• ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध, गिरफ्तारियां और दमन हुआ।
• इसने ब्रिटिश शासन को कमजोर किया और स्वतंत्रता की राह प्रशस्त की।
7. सांप्रदायिक एकता:
• गांधी ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया।
• 1940 के दशक में दंगों के दौरान उपवास और शांति यात्राएं कीं, विशेष रूप से नोआखली (1946) और कलकत्ता में।
• उनकी कोशिशों ने सांप्रदायिक तनाव को कम करने में मदद की।
प्रभाव:
• गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम को आम जनता तक पहुंचाया, जिसमें किसान, मजदूर, महिलाएं और युवा शामिल हुए।
• उनकी अहिंसक रणनीतियों ने ब्रिटिश शासन पर नैतिक दबाव बनाया और वैश्विक समर्थन हासिल किया।
• खादी और स्वदेशी ने आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया।
• उनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मजबूत हुई और स्वतंत्रता की मांग तेज हुई।
• 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता में गांधी की रणनीतियों और जन-जागरण का बड़ा योगदान था।
महात्मा गांधी ने अपने विचारों को कई पुस्तकों और लेखों के माध्यम से व्यक्त किया। उनकी रचनाएँ और उद्धरण (कोट्स) सत्य, अहिंसा, और सामाजिक सुधारों पर केंद्रित हैं। नीचे उनकी प्रमुख पुस्तकें और प्रसिद्ध उद्धरण हिंदी में दिए गए हैं:
प्रमुख पुस्तकें:
1. हिंद स्वराज (1909):
• गांधी की सबसे महत्वपूर्ण रचना, जिसमें उन्होंने भारतीय स्वराज (स्वशासन) की अवधारणा प्रस्तुत की।
• यह पुस्तक ब्रिटिश सभ्यता की आलोचना और भारतीय आत्मनिर्भरता पर जोर देती है।
• इसे गांधी ने गुजराती में लिखा और बाद में हिंदी व अन्य भाषाओं में अनुवादित किया गया।
2. सत्य के प्रयोग या आत्मकथा (1925-29):
• गांधी की आत्मकथा, जिसमें उन्होंने अपने जीवन, सत्य और अहिंसा के प्रति प्रयोगों का वर्णन किया।
• यह दक्षिण अफ्रीका और भारत में उनके अनुभवों को दर्शाती है।
• इसे गुजराती में “सत्यना प्रयोगो” के नाम से लिखा गया और हिंदी में अनुवादित किया गया।
3. दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह (1924-25):
• दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों के लिए किए गए सत्याग्रह का विवरण।
• यह उनकी अहिंसक प्रतिरोध की शुरुआत को दर्शाती है।
4. रचनात्मक कार्यक्रम: इसका अर्थ और स्थान (1941):
• गांधी ने स्वतंत्रता और सामाजिक सुधार के लिए रचनात्मक कार्यों (जैसे खादी, स्वच्छता, शिक्षा) पर जोर दिया।
• यह पुस्तक ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भरता की योजना प्रस्तुत करती है।
5. यंग इंडिया और हरिजन:
• ये गांधी द्वारा संपादित समाचार पत्र थे, जिनमें उनके लेख और विचार प्रकाशित होते थे।
• यंग इंडिया (1919-31) स्वतंत्रता संग्राम पर केंद्रित था।
• हरिजन (1933-48) सामाजिक सुधार, विशेषकर अस्पृश्यता उन्मूलन पर जोर देता था।
प्रसिद्ध उद्धरण:
1. “सत्य और अहिंसा मेरे लिए सबसे बड़ा धर्म है।”
• यह गांधी के जीवन दर्शन को दर्शाता है, जो सत्य और अहिंसा पर आधारित था।
2. “पहले वे आपकी उपेक्षा करते हैं, फिर हँसते हैं, फिर लड़ते हैं, और तब आप जीत जाते हैं।”
• सत्याग्रह की प्रक्रिया और धैर्य की ताकत को दर्शाता है।
3. “आपको वह बदलाव खुद बनना होगा जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।”
• व्यक्तिगत जिम्मेदारी और नैतिकता पर जोर देता है।
4. “अहिंसा ही मानवता का सबसे बड़ा बल है।”
• गांधी की अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति में विश्वास को व्यक्त करता है।
5. “स्वराज मेरे लिए केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण और आत्म-सुधार है।”
• स्वराज की उनकी व्यापक अवधारणा को दर्शाता है।
6. “जब तक गलती स्वीकार करने का साहस है, तब तक कोई भी गलती हानिकारक नहीं है।”
• सत्य और आत्म-विश्लेषण के महत्व को बताता है।
7. “जो कमजोर हैं, वे कभी क्षमा नहीं कर सकते; क्षमा करना बलवानों का गुण है।”
• क्षमा और नैतिक शक्ति पर गांधी का विचार।
महात्मा गांधी को उनके योगदान के लिए कई उपाधियाँ और सम्मान दिए गए, जो उनके व्यक्तित्व और कार्य को दर्शाते हैं। ये उपाधियाँ औपचारिक और जनता द्वारा दी गईं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
1. महात्मा:
• यह उपाधि गांधी को रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी, जो उनके नैतिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व को दर्शाती है।
• “महात्मा” का अर्थ है “महान आत्मा”। यह उपाधि 1915 में उनके दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद प्रचलित हुई।
• जनता और लेखकों ने उन्हें इस नाम से पुकारना शुरू किया, जो उनकी अहिंसा और सत्य की विचारधारा का प्रतीक बना।
2. राष्ट्रपिता (Father of the Nation):
• गांधी को भारत का “राष्ट्रपिता” कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को जन-आंदोलन बनाया और देश को एकजुट किया।
• यह उपाधि औपचारिक रूप से नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा 1944 में सिंगापुर रेडियो पर दिए गए एक संबोधन में इस्तेमाल की गई थी।
• यह उपाधि उनके नेतृत्व और देश के प्रति समर्पण को दर्शाती है।
3. बापू:
• गांधी को प्यार से “बापू” (पिता) कहा जाता था, जो जनता के बीच उनकी आत्मीयता और सादगी का प्रतीक था।
• यह उपाधि विशेष रूप से गुजरात और अन्य क्षेत्रों में प्रचलित थी, जहाँ लोग उन्हें परिवार के मुखिया की तरह देखते थे।
• बच्चों और आम लोगों ने उन्हें यह नाम दिया, जो उनकी सुलभता को दिखाता है।
4. हरिजनों का मसीहा:
• गांधी ने दलितों (अछूतों) के उत्थान के लिए काम किया और उन्हें “हरिजन” (ईश्वर के लोग) का नाम दिया।
• इस कारण उन्हें “हरिजनों का मसीहा” कहा गया, जो उनके सामाजिक सुधार के प्रयासों को दर्शाता है।
अन्य सम्मान और मान्यताएँ:
• टाइम पत्रिका का ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ (1930):
• गांधी को दांडी नमक मार्च और सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए टाइम पत्रिका ने 1930 में “पर्सन ऑफ द ईयर” चुना।
• यह वैश्विक स्तर पर उनकी प्रभावशाली छवि को दर्शाता है।
• नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन:
• गांधी को 1937, 1938, 1939, 1947, और 1948 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, हालाँकि उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिला।
• नोबेल समिति ने बाद में इसे अपनी कमी माना, क्योंकि गांधी की अहिंसा वैश्विक शांति का प्रतीक थी।
• वैश्विक प्रतीक के रूप में मान्यता:
• गांधी को विश्व भर में अहिंसा और शांति का प्रतीक माना गया। संयुक्त राष्ट्र ने उनके जन्मदिन, 2 अक्टूबर, को “अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” घोषित किया।
विशेष टिप्पणी:
• गांधी ने हमेशा औपचारिक उपाधियों और पुरस्कारों से दूरी बनाए रखी। वे सादगी और कार्य पर ध्यान देना पसंद करते थे।
• “महात्मा” और “बापू” जैसी उपाधियाँ जनता के प्यार और सम्मान का परिणाम थीं, न कि किसी संस्था द्वारा थोपी गईं।
• उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी उपाधियाँ और सम्मान उनकी विचारधारा को जीवित रखते हैं।