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स्मार्ट टूलकिट फॉर पाकिस्तान/ Smart Toolkits for Pakistan

प्रॉक्सी वार

पाकिस्तान की राज्य प्रायोजित आतंकवाद और छद्म युद्ध दक्षिण एशिया में स्थायित्व और शांति के लिए एक गंभीर चुनौती पैदा कर रही हैं। ऐसे में भारत के लिए पाकिस्तान के प्रॉक्सी नेटवर्क को विफल करने के लिए संभावित टूलकिटो पर गहन रूप से विचार किया जाना चाहिए, जिसमें क्षेत्रीय साझेदारियों, वैश्विक मंचों और रणनीतिक धैर्य पर बल देना शामिल होना चाहिए।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद से दोनों देशों के बीच चार युद्ध हो चुके हैं और अनगिनत सीमा संघर्ष हुए हैं। पाकिस्तान ने अपनी राष्ट्रीय पहचान को भारत-विरोध के आधार पर गढ़ा है, जिससे उसका रणनीतिक व्यवहार बार-बार भारत को अस्थिर करने की दिशा में रहा है।

  • प्रॉक्सी वॉर का उद्भव: 1980 के दशक से पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देना शुरू किया। यही से प्रॉक्सी वॉर का उद्भव हुआ।
  • आर्थिक एवं कूटनीतिक अलगाव: अमेरिका द्वारा आतंकवाद के समर्थन को लेकर पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव बढ़ाया गया है (जैसे FATF में ग्रे लिस्टिंग)। जो प्रॉक्सी वॉर का ही हिस्सा था।

प्रॉक्सी वॉर की परिभाषा

प्रॉक्सी वॉर वह संघर्ष है जिसमें दो या दो से अधिक शक्तियाँ सीधे युद्ध में शामिल हुए बिना, अन्य समूहों, संगठनों या देशों का समर्थन कर, उनके माध्यम से अपने राजनीतिक, आर्थिक या सामरिक हितों की पूर्ति करती हैं। इसमें प्रत्यक्ष लड़ाई से बचते हुए, किसी अन्य पक्ष को हथियार, धन, प्रशिक्षण, रणनीतिक सहायता या कूटनीतिक समर्थन दिया जाता है ताकि वह उनके विरोधी के खिलाफ युद्ध करे या अस्थिरता फैलाए। प्रॉक्सी वॉर का उद्देश्य अपने हित साधना होता है, लेकिन खुद को प्रत्यक्ष युद्ध के जोखिम से बचाना भी होता है।

Example:

  • शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ ने वियतनाम, अफगानिस्तान, कोरिया जैसे देशों में प्रॉक्सी युद्ध लड़े।
  • भारत-पाकिस्तान संघर्ष में पाकिस्तान का कश्मीर में आतंकवादी गुटों का समर्थन करना भी प्रॉक्सी वॉर का उदाहरण है।

पाकिस्तान को नियंत्रित करने के टूलकिट

  • क्षेत्रीय और वैश्विक साझेदारियों में अलग-थलग करना
  • वित्तीय दबाव (Financial Pressure) बढ़ाया जाये
  • अंतरराष्ट्रीय ऋण संस्थानों में प्रभाव
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और व्यापार प्रतिबंध
  • बैंकिंग और फाइनेंशियल चैनल्स पर निगरानी
  • विकास परियोजनाओं को बाधित करना

क्षेत्रीय और वैश्विक साझेदारियाँ

  • क्षेत्रीय और वैश्विक साझेदारियाँ भारत के लिए एक सशक्त Strategic Force Multiplier के रूप में कार्य कर सकती हैं। इन सहयोगों के माध्यम से भारत पाकिस्तान पर कूटनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा के कई स्तरों पर दबाव डाल सकता है, जिससे उसे अपने प्रॉक्सी खेल से पीछे हटने के लिए मजबूर किया जा सके।
  • यह साझेदारियाँ पाकिस्तान पर बहुआयामी दबाव बनाने, उसे अलग-थलग करने और भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • पाकिस्तान ने लंबे समय तक अफगान तालिबान और अन्य गुटों का समर्थन किया है। भारत को अफगान सरकार (या स्थिर गुटों) के साथ सहयोग कर पाकिस्तान की रणनीतिक नीति को कमजोर करना चाहिए। अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास में निवेश भारत के लिए लाभकारी रणनीति है।
  • चाबहार पोर्ट परियोजना भारत को पाकिस्तान और चीन के ग्वादर पोर्ट के प्रभुत्व को संतुलित करने का अवसर देती है। ईरान के साथ ऊर्जा, व्यापार और कनेक्टिविटी बढ़ाकर पाकिस्तान को क्षेत्रीय स्तर पर अलग-थलग किया जा सकता है।
  • बांग्लादेश के साथ सुरक्षा सहयोग और व्यापार समझौते बढ़ाना।
  • नेपाल और श्रीलंका में चीन-पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित करना।
  • क्षेत्रीय मंचों (जैसे BIMSTEC) का सक्रिय उपयोग।
  • आतंकवाद विरोधी सहयोग और व्यापार मार्ग (North-South Corridor) के माध्यम से संपर्क मजबूत करना।
  • आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में भारत और अमेरिका के बीच गहरा सामरिक सहयोग है। पाकिस्तान को सहायता (जैसे रक्षा फंडिंग) को सीमित करने के लिए भारत को अमेरिकी नीति को प्रभावित करना चाहिए।
  • मानवाधिकार और आतंकवाद के मुद्दों पर पाकिस्तान की आलोचना के लिए यूरोपीय समर्थन हासिल करना। व्यापार और निवेश संबंधों के माध्यम से यूरोपीय संघ को भारत के पक्ष में करना।
  • पारंपरिक सहयोगी रूस के साथ रक्षा, ऊर्जा और रणनीतिक संवाद को और गहरा करना।
  • रूस-पाकिस्तान के बीच हालिया बढ़ते संबंधों को संतुलित करने के प्रयास।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए रक्षा और समुद्री सुरक्षा सहयोग बढ़ाना।
  • संयुक्त राष्ट्र मंचों पर पाकिस्तान के आतंकवादी नेटवर्कों को बेनकाब करना।
  • वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को FATF की ग्रे/ब्लैक लिस्ट में बनाए रखने का समर्थन जुटाना।

वित्तीय दबाव (Financial Pressure)

  • पाकिस्तान की आक्रामक और आतंकवाद समर्थक नीतियों को प्रभावी ढंग से चुनौती देने के लिए भारत को उस पर वित्तीय दबाव बढ़ाना आवश्यक है। वित्तीय दबाव से पाकिस्तान की आतंकवाद को प्रायोजित करने की क्षमता कमजोर होगी और उसे अपने नीतिगत दृष्टिकोण में बदलाव लाने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
  • FATF एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो धनशोधन (Money Laundering) और आतंकवादी वित्तपोषण (Terror Financing) पर नजर रखती है। पाकिस्तान को 2018 में FATF की ग्रे लिस्ट में डाला गया था।
  • ग्रे लिस्ट में होना पाकिस्तान की विदेशी निवेश और आर्थिक सहायता प्राप्त करने की क्षमता को प्रभावित करता है। भारत को प्रयास करना चाहिए कि पाकिस्तान को FATF की ब्लैक लिस्ट में डलवाने के लिए वैश्विक समर्थन जुटाए।
  • इससे विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, मुद्रा का अवमूल्यन, महंगाई दर में वृद्धि हो सकती है।
  • पाकिस्तान में बेरोजगारी और गरीबी से जनता में असंतोष बढ़ सकता है और यह स्थिति पाकिस्तान को आतंकवाद रोकने के लिए मजबूर कर सकती है।

अंतरराष्ट्रीय ऋण संस्थानों में प्रभाव

  • IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष), World Bank, और Asian Development Bank जैसे संस्थानों के जरिए पाकिस्तान की आर्थिक सहायता पर निगरानी रखें के लिए ध्यान आकर्षित करना चाहिए।
  • भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जब भी पाकिस्तान इन संस्थानों से वित्तीय सहायता मांगे, तब उन पर आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने की शर्तें लगाई जाएं

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और व्यापार प्रतिबंध

  • भारत को वैश्विक कंपनियों और निवेशकों के साथ मिलकर पाकिस्तान में निवेश जोखिमों (जैसे राजनीतिक अस्थिरता, आतंकवादी खतरा) को उजागर करना चाहिए।
  • पाकिस्तान को एक अस्थिर और असुरक्षित निवेश गंतव्य के रूप में प्रस्तुत करना ताकि विदेशी निवेश घटे।
  • संवेदनशील वस्तुओं (Dual-use goods) के पाकिस्तान को निर्यात पर वैश्विक नियंत्रण की वकालत करना।

बैंकिंग और फाइनेंशियल चैनल्स पर निगरानी

  • पाकिस्तान के बैंकों, विशेषकर उन बैंकों पर जो आतंकी गतिविधियों से जुड़े हैं, पर वैश्विक प्रतिबंध और जुर्माने की मांग करे।
  • पाकिस्तान के वित्तीय नेटवर्क को आतंकवाद से जोड़ने वाले रास्तों को उजागर करना और उन्हें बंद करवाना चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय स्विफ्ट नेटवर्क (SWIFT) से पाकिस्तान के कुछ बैंकों को बाहर करवाने का प्रयास करना चाहिए।

विकास परियोजनाओं को बाधित करना

  • पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) जैसी परियोजनाओं के जोखिम और गैर-पारदर्शिता को वैश्विक मंचों पर उजागर करना।
  • इन परियोजनाओं में फाइनेंशियल फ्रॉड और दुरुपयोग के मामलों को प्रमुखता से पेश करना ताकि वैश्विक निवेशक सतर्क हो जाएं।

 

निष्कर्ष

भारत को पाकिस्तान की आक्रामक नीतियों का मुकाबला करने के लिए एक दीर्घकालिक, सतत और बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। कूटनीतिक अलगाव, आर्थिक दबाव, क्षेत्रीय नेटवर्किंग और स्मार्ट सैन्य विकल्पों का संयोजन भारत को सफलता की दिशा में ले जा सकता है। एक रणनीतिक धैर्य के साथ, भारत पाकिस्तान के प्रॉक्सी खेल को निष्फल कर सकता है और दक्षिण एशिया में स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है। वित्तीय दबाव पाकिस्तान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण और प्रभावी रणनीतिक उपकरण है। यह सीधे सैन्य संघर्ष से बचते हुए पाकिस्तान की नीतियों को बदलने का एक शांतिपूर्ण, लेकिन कठोर तरीका है। भारत को इस दिशा में निरंतर अंतरराष्ट्रीय सहयोग, सतर्कता और मजबूत कूटनीति के साथ काम करना चाहिए।

 

संदर्भ (References)

  1. Gupta, A. (2025). The Toolkit for Pakistan. Indian Express.
  2. Tellis, A.J. (2012). Pakistan’s Strategic Culture. Carnegie Endowment for International Peace.
  3. Fair, C.C. (2014). Fighting to the End: The Pakistan Army’s Way of War. Oxford University Press.
  4. Haqqani, H. (2005). Pakistan: Between Mosque and Military. Carnegie Endowment.
  5. Schaffer, T.C. (2009). Kashmir: The Economics of Peace Building. Center for Strategic and International Studies.
  6. International Monetary Fund (IMF) Reports on Pakistan (2018–2023).
  7. Financial Action Task Force (FATF) Public Documents (2020–2024).
  8. UN Security Council Resolutions on Counterterrorism (2019–2024).
  9. Ministry of External Affairs, Government of India (Annual Reports).

 

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