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मार्केट सोशलिज्म

Market Socialism

मार्केट सोशलिज्म

मार्केट सोशलिज्म (Market Socialism) एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व समाज या राज्य के पास होता है, लेकिन वस्तुओं और सेवाओं का वितरण बाजार तंत्र (market mechanism) के माध्यम से होता है। यह पूंजीवाद और पारंपरिक समाजवाद के बीच की कड़ी मानी जाती है, जिसमें समाजवादी मूल्यों के साथ-साथ बाजार की दक्षता को भी अपनाया गया है।

मुख्य अवधारणा

  • मार्केट सोशलिज्म में उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व सीमित या समाप्त होता है, लेकिन मूल्य निर्धारण, उत्पादन, वितरण आदि के लिए बाजार तंत्र का उपयोग किया जाता है।

  • इसका उद्देश्य है—समाज में आर्थिक समानता, सामाजिक न्याय, और संसाधनों का कुशल आवंटन।

  • प्रसिद्ध कथन:
    “प्रत्येक को उसकी योग्यता के अनुसार, प्रत्येक को उसके श्रम के अनुसार।”
    (From each according to his ability, to each according to his work.)

प्रसिद्ध लेखक, किताबें और विचार

  • ऑस्कर लैंगे (Oskar Lange):
    The Economics of Socialism
    लैंगे ने समाजवादी गणना बहस (Socialist Calculation Debate) में बाजार तंत्र के उपयोग का समर्थन किया।

  • एब्बा पी. लर्नर (Abba P. Lerner):
    The Economics of Control
    लर्नर ने समाजवादी समाज में बाजार मूल्य तंत्र के लाभों का विश्लेषण किया।

  • ब्रावो, नोवाक, टिटो (Yugoslav Model):
    यूगोस्लाविया में श्रमिक स्वामित्व और मार्केट सोशलिज्म का व्यावहारिक प्रयोग किया गया।

  • Alec Nove:
    The Economics of Feasible Socialism
    नोव ने व्यावहारिक समाजवाद के लिए बाजार के महत्व को रेखांकित किया।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • समाजवादी गणना बहस:
    1920-30 के दशक में लुडविग वॉन मीज़ेस और फ्रेडरिक हायक ने तर्क दिया कि बाजार के बिना संसाधनों का तर्कसंगत आवंटन असंभव है। लैंगे और लर्नर ने जवाब दिया कि समाजवादी व्यवस्था में भी बाजार तंत्र का उपयोग संभव है।

  • युगोस्लाविया मॉडल:
    1950-80 के दशक में यूगोस्लाविया में श्रमिक स्वामित्व और बाजार तंत्र का संयोजन हुआ, जिसे मार्केट सोशलिज्म का व्यावहारिक उदाहरण माना जाता है।

  • चीन का मॉडल:
    चीन ने “सोशलिज्म विद चाइनीज कैरेक्टरिस्टिक्स” के तहत बाजार तंत्र को अपनाया, जिससे आर्थिक विकास में तेजी आई।

प्रमुख विशेषताएँ

  • उत्पादन के साधनों का सामाजिक या सामूहिक स्वामित्व।

  • मूल्य निर्धारण, आपूर्ति, मांग आदि के लिए बाजार तंत्र का उपयोग।

  • सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और दक्षता का संतुलन।

  • श्रमिक स्वामित्व, सहकारी समितियाँ और राज्य उद्यमों की भूमिका।

प्रसिद्ध उद्धरण

  • ऑस्कर लैंगे:
    “If socialism is ever to become a reality, it must make use of the market as an instrument of economic calculation.”

  • अब्बा लर्नर:
    “The market is a tool, not a master. It can serve socialist ends as well as capitalist ones.”

  • मार्क्स:
    “From each according to his ability, to each according to his work.”

आलोचना और चुनौतियाँ

  • मूल्य संकेतों की समस्या:
    हायक और मीज़ेस के अनुसार, बाजार मूल्य तंत्र के बिना संसाधनों का कुशल आवंटन संभव नहीं है।

  • नवीनता और प्रतिस्पर्धा:
    आलोचकों का तर्क है कि राज्य या सामूहिक स्वामित्व में नवाचार और प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है।

  • राजनीतिक हस्तक्षेप:
    राज्य के अत्यधिक हस्तक्षेप से बाजार की स्वतंत्रता और दक्षता प्रभावित हो सकती है।

भारतीय संदर्भ

  • भारत में सहकारी समितियाँ (cooperatives), सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) आदि मार्केट सोशलिज्म के तत्वों के उदाहरण हैं।

  • पंचायती राज, सहकारिता आंदोलन और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी मार्केट सोशलिज्म की झलक मिलती है।

मार्केट सोशलिज्म एक लचीली और व्यावहारिक आर्थिक अवधारणा है, जो समाजवादी आदर्शों और बाजार की दक्षता का संयोजन प्रस्तुत करती है। यह प्रणाली सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और संसाधनों के कुशल आवंटन के बीच संतुलन साधने का प्रयास करती है। ऑस्कर लैंगे, लर्नर, नोव आदि के विचार और यूगोस्लाविया-चीन के प्रयोग इसे व्यवहार में उतारने के प्रयास हैं।
“बाजार समाजवाद का उद्देश्य है—समाज के सभी वर्गों के लिए न्याय और समृद्धि, लेकिन बाजार की शक्ति को सामाजिक नियंत्रण में रखना।”

प्रमुख पुस्तकें:

  • The Economics of Socialism – ऑस्कर लैंगे

  • The Economics of Control – अब्बा पी. लर्नर

  • The Economics of Feasible Socialism – एलेक नोव

  • Market Socialism: The Debate Among Socialists – बर्दन, रोएमर

प्रमुख उद्धरण:

  • “The market is a tool, not a master.” – अब्बा लर्नर

  • “If socialism is ever to become a reality, it must make use of the market as an instrument of economic calculation.” – ऑस्कर लैंगे

संक्षेप में:

मार्केट सोशलिज्म सामाजिक न्याय और आर्थिक दक्षता के बीच संतुलन का प्रयास है, जिसमें समाजवादी मूल्यों के साथ बाजार तंत्र का समावेश होता है। इसके सिद्धांत, आलोचना, व्यावहारिक प्रयोग, प्रमुख लेखक और उद्धरण—सभी इसे समग्रता में समझने के लिए आवश्यक है

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